कविता

प्रवासी

एक बहतर ज़िन्दगी,

जिसकी तलाश मे,

सुदूर देशों मे जा बसे

कुछ लोग

फोटो फ्रेमो मे,

अपना अतीत

दीवारों पर निहारते,

कुछ लोग

पुरखों के चित्र,

उनकी निशानियाँ,

संजोते, संभालते,

कुछ लोग।

अपनी पहचान,

खोने के डर मे,

घबराये से,

कुछ लोग,

छोड़ आये जो,

घर आँगन अपना,

उसे बुहारते है,

ख़यालों मे,

कुछ लोग।

अपनी जड़ो मे

पानी डालते हैं

सपनो मे

कुछ लोग।

फिर सोचते हैं,

चलो सपना ही था,

एक बहतर ज़िन्दगी,

की तलाश में

ये तो होना ही था।

कुछ पाने की चाह मे,

कुछ खोना ही था,

क्या खोया ?

नहीं जानते या

नहीं स्वीकारते,

कुछ लोग।

क्या पाया

यही गणित लगाते,

कुछ लोग।

दूर देशों मे,

अपना वजूद,

अपनी पहचान

बनाते कुछ लोग।

फिर वहीं के हो जाते,

कुछ लोग।

अपने देश मे ही

प्रवासी हो जाते

कुछ लोग।