राजनीति

मोदी जी, यह गांधी का भारत है हिटलर का जर्मनी नहीं

निर्मल रानी

जैसे-जैसे 2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों का समय क़रीब आता जा रहा है, सभी राजनैतिक दल अपनी-अपनी शतरंजी बिसातें बिछाने में लग गए हैं। देश में होने जा रहे राष्ट्रपति की उम्मीदवारी को लेकर भी विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा की जा रही ज़ोर-आज़माईश उसी 2014 के लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र है। मंहगाई व भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी यूपीए सरकार विशेष कर यूपीए के सबसे बड़े घटक दल कांग्रेस पार्टी के लिए भी यह समस्या है कि वह 2014 में मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में जनता के बीच लेकर जाए या किसी अन्य जनस्वीकार्य चेहरे को आगे रखकर जनता से पुन: वोट तलब करे। इसी प्रकार नेतृत्व विहीन सी दिखाई दे रही भारतीय जनता पार्टी भी किसी ऐसे चेहरे की तलाश में है जिसे आगे कर अपने वोट तथा सीटों में इज़ाफा किया जा सके और 2014 में केंद्र की सत्ता हासिल की जा सके।

हालांकि भाजपा के वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण अडवाणी अभी भी स्वयं को न तो राजनीति से अलग मान रहे हैं न ही वे सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने या दूरी बनाए रखने की बात कर रहे हैं। फिर भी भाजपा का एक बड़ा वर्ग जिसमें कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भी एक तबका शामिल है, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी की ओर से 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद का दावेदार पेश करने की कोशिश कर रहा है। ज़ाहिर है यह वही वर्ग है जिसने कि गुजरात को संघ की प्रयोगशाला के रूप में आज़माया है तथा नरेंद्र मोदी को इस कथित प्रयोगशाला का संचालक बनाया है। केवल भारतवर्ष के लोगों ने ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने यह बखूबी देख लिया कि नरेंद्र मोदी ने गोधरा हादसे व उसके पश्चात वहां के सांप्रदायिक दंगों के बाद किस प्रकार अपनी पक्षपातपूर्ण भूमिका निभाकर बड़ी ही चतुराई व सफलता के साथ हिंदू मतों का धु्रवीकरण अपने पक्ष में कराया है तथा तब से ही सत्ता पर अपनी पकड़ मज़बूत बनाई हुई है। अब मोदी समर्थक वही शक्तियां जो नरेंद्र मोदी की सांप्रदायिक राजनैतिक शैली की समर्थक हैं वही नरेंद्र मोदी को देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में पेश किए जाने की पक्षधर हैं। प्रश्र यह है कि क्या सांप्रदायकि राजनीति किए जाने का गुजरात जैसा फार्मूला पूरे भारत में भी चल सकता है? क्या नरेंद्र मोदी व उनकी समर्थक संघ परिवार की शक्तियां पूरे देश में गुजरात जैसा सांप्रदायिक वातावरण बना पाने में कभी सफल हो सकती हैं? क्या गुजरात की तरह पूरा देश कभी संघ की प्रयोगशाला के रूप में परिवर्तित हो सकता है?

यह जानने के लिए हमें धर्मनिरपेक्ष भारतवर्ष के प्राचीन, मध्ययुगीन तथा वर्तमान इतिहास एवं चरित्र पर नज़र डालनी होगी। गौरतलब है कि जहां हमारा देश भगवान राम और कृष्ण जैसे महापुरुषों का देश माना जाता है वहीं रहीम, रसखान, जायसी, संत कबीर जैसे महापुरुषों को भी इस धरती पर उतना ही सम्मान प्राप्त है जितना कि अन्य धर्मों के महापुरुषों को। भारतवर्ष अकबर महान तथा बहादुरशाह ज़फर जैसे शासकों का देश कहलाता है। ख्वाज़ा मोईनुद्दीन चिश्ती व निज़ामुद्दीन औलिया हमारे देश की सांझी विरासत के अहम प्रहरी हैं। यह देश अमीर खुसरो ,बाबा फरीद व बुल्लेशाह जैसे संतों व फकीरों का देश है। और वर्तमान समय में हमारे देश को महात्मा गांधी का देश अर्थात गांधीवादी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा का देश जाना जाता है। आज भी एपीज अब्दुल कलाम जैसे महान वैज्ञानिक भारतीय युवाओं के सबसे बड़े आदर्श पुरुष समझे जाते हैं। ऐसे में यह कल्पना करना भी गलत है कि पूरा का पूरा देश नरेंद्र मोदी जैसे विवादित,सांप्रदायिक छवि रखने वाले तथा गोधरा व गुजरात दंगों में मारे गए हज़ारों बेगुनाह लोगों की हत्या का आरोप झेलने वाले मोदी को कभी देश के प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार करेगा। नरेंद्र मोदी के शासनकाल में गुजरात ने भले ही कितना ही विकास क्यों न किया हो लेकिन उनका यह विकास या विकास का ढिंढोरा उनकी सांप्रदायिक छवि व उनके राजनैतिक चरित्र को कतई बदल नहीं सकता।

नरेंद्र मोदी के समर्थक उनके पक्ष में यह तर्क देते हैं कि यदि वे योग्य नहीं तो टाईम मैगज़ीन ने उनका चित्र अपने कवर पृष्ठ पर क्यों प्रकाशित किया। नि:संदेह नरेंद्र मोदी की ‘योग्यता’ पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता। गुजरात में सांप्रदायिक आधार पर मतों का ध्रुवीकरण कराना, गुजरात दंगों में अपनी पक्षपातपूर्ण भूमिका निभाना तथा अपने ऊपर लगे आरोपों को छुपाने हेतु उस पर विकास का लेप चढ़ाना निश्चित रूप से मोदी की ‘योग्यता’ का ही परिणाम है। और उनकी यही ‘योग्यता’ गुजरात में उनकी सत्ता वापसी सुनिश्चित करती है। परंतु यही मोदी के समर्थक इस बात का जवाब देने से परहेज़ करते हैं कि आखिर जिस मोदी ‘महान’ का चित्र टाईम मैगज़ीन के कवर पृष्ठ पर प्रकाशित हो चुका हो उस मोदी को अब तक अमेरिका में प्रवेश करने की इजाज़त आखिर क्यों नहीं मिली? क्या वजह है कि आज मोदी को अमेरिका में बैठे अपने समर्थकों को संबोधित करने हेतु वीडियो कांफ़्रेंसिंग का सहारा लेना पड़ रहा है। मोदी समर्थक यह भी दावा कर रहे हैं कि गुजरात में मोदी के शासनकाल में प्रशासनिक भ्रष्टाचार समाप्त हो गया है। बड़े आश्चर्य की बात है कि जिस गुजरात में सबसे अधिक प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी विभिन्न जघन्य अपराधों के आरोपों में जेल की सलाखों के पीछे हों उसे अपराधमुक्त व सुशासित राज्य बताया जा रहा है। फर्जी मुठभेड़ों के मामले में तमाम आईपीएस अधिकारी गुजरात की जेलों में हैं। भाजपा के गुजरात के सांसद पर आरटीआई कार्यकर्ता की हत्या का आरोप है। गुजरात में शराब बंदी होने के बावजूद शराब मािफया व अधिकारियों की मिलीभगत के परिणास्वरूप ज़हरीली शराब पीने से तमाम लोगों की मौतें होती रहती हैं। उसके बावजूद गुजरात को स्वच्छ प्रशासन वाले राज्य के रूप में पेश करने का घृणित प्रयास किया जाता है। माया कोडनानी तथा अमित शाह जैसे मोदी सरकार के मंत्री सामूहिक हत्याकांड व हत्या जैसे आरोपों के कारण जेल की सलाखों के पीछे जा चुके हैं। इन सबके बावजूद स्वच्छ प्रशासन का तर्क दिया जाना हास्यास्पद नहीं तो और क्या है।

अब नरेंद मोदी ने गुजरात से बाहर अपनी राजनीति का विस्तार करने हेतु एक नया पासा यह फेंका है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश व बिहार के नेताओं को तथा वहां फैले कथित जातिवाद को इन राज्यों के पिछड़ेपन का जि़म्मेदार बताया है। इस का जवाब भाजपा के विरोधी दलों ने क्या देना स्वयं बिहार में भाजपा के सत्ता सहयोगी व राज्य के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने दे दिया है। उन्होंने एक कहावत में मोदी के विषय में सबकुछ कह डाला है। नितीश कुमार ने कहा ‘सूप बोले सो बोले छलनी क्या बोले जिसमें 72 छेद’। इस कहावत के द्वारा नितीश कुमार ने मोदी को स्पष्ट रूप से संदेश दे दिया है कि सांप्रदायिकता को आधार बनाकर सत्ता हासिल करने वालों को दूसरों को जातिवादी कहने का कोई अधिकार नहीं है। नरेंद्र मोदी के कथन से और भी कई सवाल पैदा होते हैं। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी कई बार सत्ता में भी रही है तथा सत्ता की सहयोगी भी रही है। तो क्या भाजपा भी उत्तर प्रदेश की कथित जातिवादी राजनीति की जि़म्मेदार नहीं है? इसी प्रकार बिहार में भी इस समय भाजपा सत्ता गठबंधन में सहयोगी है। फिर आखिर भाजपा ने गत् सात वर्षो में राज्य से जातिवाद समाप्त करने हेतु क्या ठोस कदम उठाए हैं? आख़िर 2014 कि चुनावों के पूर्व ही नरेंद्र मोदी को उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे देश के दो सबसे बड़े राज्यों के पिछड़ेपन की चिंता क्यों सताने लगी है?

गुजरात के तथाकथित विकास को भी मोदी समर्थक नरेंद्र मोदी की महान उपलब्धियों के रूप में प्रचारित करने के पक्षधर है। इन्हें ऐसी ग़लतफ़हमी है कि नरेंद्र मोदी के गुजरात के विकास माडल को पूरे देश में प्रचारित कर उनके पक्ष में न केवल बेहतर वातावरण तैयार किया जा सकता है बल्कि भाजपा की सीटों व मतों में भी इज़ाफा किया जा सकता है। इन लोगों को भी यह बात भलीभांति समझ लेनी चाहिए कि बेगुनाहों के खून से लथपथ बुनियाद पर खड़ी किसी प्रकार की कथित विकास की इमारत को भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की जनता कतई स्वीकार नहीं कर सकती। जर्मनी ने भी हिटलर के समय में बहुत अधिक विकास किया था। परंतु आखिरकार उस का भी हश्र बुरा ही हुआ। आज हिटलर को अच्छे शासक या विकास पुरुष के रूप में नहीं बल्कि दुनिया के सबसे क्रूर तानाशाह व बेगुनाहों के हत्यारे शासक के रूप में याद किया जाता है। फिर आख़िर हिटलर की राह पर चलने वाले या उससे प्रेरणा पाने वाले नरेंद्र मोदी को भारत की जनता कैसे स्वीकार कर सकती है? आखिरकार यह देश गांधी का भारत है न कि हिटलर की जर्मनी।