मोदी ने दिया भारत के भविष्य को हौसला

-सुरेश हिन्दुस्थानी-

modi2देश में काम सब करते हैं, परन्तु कुछ लोग ऐसे होते हैं जो सभी कामों को लीक से हटकर करते हुए समाज के लिए एक उदाहरण बन जाते हैं। बने हुए मार्गों पर चलना एक परिपाटी का पालन करने जैसा है, लेकिन उस परम्परा का पालन करते हुए कुछ नया करने का और सोचने का सकारात्मक चिन्तन जिनके मन में होता है, वे ही राष्ट्र में अनुकरणीय आदर्श बनकर सामने आते हैं। वर्तमान में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिक्षक दिवस पर जिस प्रकार से कार्य कर रहे हैं उससे तो यही कहा जा सकता है कि उनका काम करने का तरीका अनोखा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिक्षक दिवस के अवसर जो मिसाल प्रस्तुत की है, वह अपने आप में अनुपम ही कही जाएगी। वास्तव में एक लीक पर चल रहे शिक्षक दिवस को नरेन्द्र मोदी ने एक नया आयाम दिया है, इस कार्यक्रम को लेकर जहां शिक्षक बेहद उत्सुक नजर आए वहीं छात्रों का उत्साह भी कम नहीं था। प्रत्येक छात्र के मन में एक नवीन उत्कंठा रही कि हमारे देश के प्रधानमंत्री पहली बार छात्रों से साक्षात्कार करने वाले हैं।

हम जानते हैं कि शिक्षक भारत के भविष्य के निर्माता हैं, और छात्र ही भारत का भविष्य हैं। देश के प्रधानमंत्री को यह चिन्ता है कि भारत का भविष्य यानि छात्र दिशा के अभाव में केवल अपने उत्थान तक ही सोचने को सीमित हो गया है, जबकि प्रत्येक छात्र के अंदर यह भावना भी होना चाहिए कि मुझे राष्ट्र के लिए क्या करना चाहिए। वर्तमान में देश में राष्ट्र के प्रति जिस प्रकार से नैतिकता का ग्राफ निम्नतम बिन्दु की ओर जा रहा है, उसमें हमारे देश की शिक्षा प्रणाली का बहुत बड़ा दोष माना जा सकता है। इसी कारण से आज कई लोग अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों में पढ़ाना पसन्द नहीं करते। सरकार की कई अच्छी योजनाओं के बाद भी हमारे देश में कई निजी विद्यालय, सरकारी विद्यालयों से बेहतर प्रमाणित हो रहे हैं। इससे सवाल यह आता है कि करोड़ों रुपए व्यय होने के बाद भी हमारे देश के सरकारी विद्यालयों में शिक्षा का वह स्तर क्यों नहीं आ रहा जो अभिनव उदाहरण बन सके। भारतीय शिक्षा नीति में यह बहुत बड़ी खामी कही जा सकती है।

आज के छात्र कल देश के जिम्मेदार नागरिक बनेंगे, अतएव अगर प्रधानमंत्री मोदी ने देश के भावी नागरिकों से रूबरू होकर उनके साथ संवाद कायम करने के लिए शिक्षक दिवस को एक उपयुक्त अवसर मान लिया है तो उस पर आपत्ति जताते हुए अनावश्यक विवाद खड़े करने के प्रयासों का औचित्य निसंदेह समझ से परे है। देश के प्रधानमंत्री को यदि राष्ट्र के स्वाधीनता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से संपूर्ण राष्ट्र को संबोधित करने का अधिकार संविधान में मिला हुआ है तो प्रधानमंत्री एक विशेष तिथि को स्कूली छात्रों से संवाद कायम क्यों नहीं कर सकते।

हमारे देश की उच्च प्राचीन परम्पराओं का जिस प्रकार से लोप हो रहा है, उसमें भी शिक्षा प्रणाली का योगदान कहा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि जब भारत में गुरुकुल परम्परा रही जब भारतीय समाज में एक विशेष प्रकार की सांस्कृतिक चेतना विद्यमान थी और वही सांस्कृतिक चेतना ही हमारे देश को विश्व गुरू का परम शिखर दिलाने में सहयोगी साबित हुई। ऐसा नहीं है कि आज उस चेतना में कमी आई है, चेतना तो वही है लेकिन आज के परिवेश में उसे हम भुला बैठे हैं। अगर चेतना नहीं होती तो क्या भारत की प्रतिभाएं वैश्विक स्तर पर उल्लेखनीय सफलता प्राप्त करने का सामथ्र्य रखतीं। हम जानते हैं कि आज अमेरिका में भारतीय प्रतिभा का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है। इससे यह बात तो साबित हो ही जाती है कि भारतीयों में आगे बढऩे का सामथ्र्य है, लेकिन उचित पाथेय के अभाव में देश का शिक्षा जगत दम तोड़ता दिखाई दे रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिक्षा जगत में कार्यरत शिक्षकों और छात्रों में उत्पन्न इस निराशा के बादलों को दूर करने का अद्भुत प्रयास किया है। शिक्षक दिवस पर छात्रों से सीधा संवाद करके छात्रों को यह संदेश देने का प्रयास किया है कि भारत का अध्यापन कार्य विश्व का ज्ञानवर्धन कर सकता है, आज उसमें निखार लाने की आवश्यकता है। अगर देश के सारे शिक्षक, प्रधानमंत्री के सोच के आधार पर राष्ट्र की प्रगति के सपने को आकार देने का संकल्प लेते हैं तो वह दिन दूर नहीं जब भारत पुन: विश्व गुरू की गरिमा को प्राप्त करे।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस कार्यक्रम के जरिए सरकार और छात्र के बीच की दूरियों को समाप्त कर दिया। आज हर छात्र यही सोच रहा है कि जब हमारे प्रधानमंत्री हमारे देश के बारे में इतना सोच रहे हैं तब हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम भी राष्ट्र के प्रति सोचें और अपने कार्यों को संचालित करें। जब नीचे से ऊपर तक सभी देश वासी इस सिद्धांत को अंगीकार करके अपने कार्य करेंगे तो फिर विश्व की कोई ताकत भी भारत के उत्थान को रोक नहीं सकती। हम जानते हैं कि बच्चों का मन एक कोरे कागज की तरह होता है, उस पर हमारे शिक्षक जो भी लिखना चाहें लिख सकते हैं, छात्र को जैसा बनाना चाहें बना सकतें हैं। प्रधानमंत्री ने शिक्षकों को सन्देश देते हुए कहा है कि सभी छात्रों के साथ शिक्षकों को समानता का व्यवहार करना चाहिए, लेकिन आज क्या हो रहा है। क्या शिक्षक समानता की इस नीति का पालन कर रहे हैं। कदापि नहीं। शिक्षकों ने छात्रों के बीच एक गहरी खाई का प्रादुर्भाव किया है। इस खाई को आज के परिवेश में पाटने की आवश्यकता है।
हमारे शिक्षक वर्तमान में राजनीतिक धारा में चलने के आदी होते जा रहे हैं। जिस प्रकार एक राजनेता सोचता है, उसी प्रकार से हमारे शिक्षक भी सोचने लगे हैं। शिक्षक दिवस के अवसर पर मैंने स्वयं एक महिला शिक्षक से इस कार्यक्रम के बारे में पूछा तो उसने एक राजनेता की भांति उत्तर देते हुए कहा कि इस कार्यक्रम के माध्यम से मोदी अपनी पार्टी का प्रचार करना चाहते हैं, पहले से ही जैसे कार्यक्रम होते रहे हैं, वही अच्छे हैं। प्रधानमंत्री को शिक्षक दिवस के इस पावन अवसर पर राजनीति नहीं करना चाहिए। संभवत: इस महिला शिक्षक का यह राजनीतिक सोच उस समय हवा हो गया होगा, जब उसने प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन सुना होगा। पूरे कार्यक्रम में न तो कहीं भाजपा दिखाई दी और न ही किसी राजनीतिक दल की आलोचना। वास्तव में मोदी पूरे देश को ही अपना परिवार मानते हैं और वैसा ही व्यवहार करते हैं। उनकी नजर में न तो कोई कांगे्रसी है और न ही कोई और दल। वे तो केवल यही चाहते हैं कि कैसे भी हो मेरे भारत की माटी में पैदा होने वाला छात्र देश के बारे में सोचे और देशहित में ही अपने कार्यों का संपादन करे।
प्रधानमंत्री मोदी ने शिक्षक दिवस के इस अवसर पर देशवासियों को गहरा सन्देश दिया है। इस सन्देश की गहराई को आत्मसात करते हुए प्रत्येक भारतवासी स्वर्णिम भारत की संकल्पना को साकार करने की दिशा में अपने आपको समर्पित कर दें। फिर देखिए हमारा देश कितना आगे जाता है।

2 COMMENTS

  1. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत के भविष्य को सकुशल व सुरक्षित देख मन में एक नए प्रकार के गर्व का अनुभव होता है। समस्त भारतीयों में आत्मविश्वास व आत्मसम्मान के पनपते देश के प्रति उनका गर्व उन्हें उन उचाईयों तक ले जाए गा जहां सभी नागरिक संगठित रूप में भारत पुनर्निर्माण में लग जाएं। सुरेश हिन्दुस्थानी जी को उनके सकारात्मक आलेख के लिए मेरा सधुवाद।

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