~ कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
‘एमपी के मन में मोदी थीम’ के अन्तर्गत अभाविप और राष्ट्रीय स्वयंसेवक की तपोभूमि में तपे – डॉ. मोहन यादव को मध्यप्रदेश भाजपा विधायक दल का नेता ( मुख्यमंत्री) चुने जाने से लोग अप्रत्याशित तौर पर चौंके हुए हैं। लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि मीडिया और खेमेबाजी की रेस में दिखने वाले चेहरों को दरकिनार कर डॉ. मोहन यादव को कैसे चुन लिया गया? हालांकि भाजपा की संगठनात्मक राजनीति जानने वालों के लिए यह कोई चौंकाने वाला निर्णय नहीं है।
18 वर्षों तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की शानदार पारी अपने आप में बड़ी इबारत थी। इसके बाद 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा का यह निर्णय उसकी संगठनात्मक धारा का परिचय करवाता है । इसी के अन्तर्गत – नई नेतृत्व परम्परा, संगठन सर्वोपरि, समन्वय और विचारधारा के प्रति समर्पण व खेमेबाजी से हटकर, अन्य राजनीति समीकरणों को साधने के रूप में डॉ . मोहन यादव को नेतृत्व सौंपा गया।
छ.ग. और मध्यप्रदेश में नए विधायक दल के नेता (मुख्यमंत्री ) के मनोनीत/ चयन के बाद
2024 के लोकसभा की चुनाव के भी संकेत सुस्पष्ट देखे जा रहे हैं। वह यह कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एक ओर जहां केन्द्र एवं राज्य की भाजपा सरकार की विकास नीति चलेगी। वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीयता एवं भारतीय संस्कृति पर आधारित वैचारिक प्रतिबद्धता पर केन्द्रित राजनीति ही देखने को मिलेगी। मोदी की गारंटी के साथ ये सभी मुद्दे आगे भाजपा की राजनीति में देखने को मिलेंगे। वस्तुत: 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद भारत की राजनीति में जटिल समझे जाने वाले अनेकानेक कठोर निर्णय लिए जाएंगे। अतएव उस अनुरूप राज्यों की तैयारी और चुनावी रणनीति भी भाजपा में दिखाई देने लग गई है। इसमें विचार के प्रति शत प्रतिशत निष्ठा महत्वपूर्ण होने वाली है। इसीलिए प्रभावी नेतृत्व की भूमिका में ऐसे अचम्भित से लगने वाले निर्णय भाजपा में अवश्यंभावी रुप से दिखाई देंगे।
किन्तु इन सबके अधिक चिन्ता का सबब आज प्रदेश भाजपा कार्यालय में देखा गया। जैसे जैसे पर्यवेक्षकों की बैठक समाप्त होने को थी वैसे वैसे ही वहां अपने अपने नेताओं के समर्थन में नारेबाजी शुरू कर दी गई थी । जोकि भाजपा के संगठनात्मक अनुशासन पर प्रश्न चिन्ह के रूप में देखा जाना चाहिए। फिर जैसे ही फैसला आया उसके साथ ही – प्रदेश भाजपा कार्यालय भोपाल में अपने अपने चहेते नेताओं की पैरवी करने, नारेबाजी करने वालों के चेहरे बुझे बुझे से दिख रहे थे । विधायकों और नेताओं के वे बड़े बड़े चेहरे जो पहले से ही अपने क्षेत्रीय कद्दावर नेताओं/ खेमे के सहारे मंत्रिमंडल की राह देख रहे थे। वे भी चिन्तित से दिखे। उनके माथे की लकीर पर परेशानी के भाव भी खूब झलके। अपने को घाघ नेता समझने वालों की भी स्थिति ऐसी थी मानों काटो तो खून नहीं निकलेगा। भाजपा की एक बड़ी विशेषता यह भी है कि – भाजपा के निर्णय पर क्षणिक अस्वीकृति भले देखी जाए। लेकिन आगे चलकर यह अस्वीकृति – स्वीकृति में बदल जाती है। इसी का प्रभाव यह रहा कि दबे हुए सुरों में अपनी अप्रसन्नता में प्रसन्नता का रंग रोगन करने के प्रयास देखे गए । बहरहाल, नए की स्वीकृति के साथ म.प्र. और छ.ग. में भाजपा अपने नए तेवर के साथ दिखने वाली है।
इस बीच छ.ग. के बाद म.प्र. में मुख्यमंत्री के चेहरे को तय किए जाने को लेकर मीडिया भी अटकलबाजी ही लगाता दिखा । अपने आपको आथेंटिक और सोर्सफुल माने जाने वाली मीडिया और पत्रकार भी हवा में ही तीर लगाते हुए दिखे। जब तक भाजपा का निर्णय घोषित नहीं हो गया तब तक मुख्यमंत्री कौन बनने जा रहा है? इसकी कोई सुगबुगाहट तक भी कहीं पता नहीं चली। आश्चर्यजनक बात तो ये भी कि विभिन्न चैनलों की पॉलिटिकल रिपोर्टिंग, एंकरिंग करने वाले अधिकांशतः पत्रकार – डॉ .मोहन यादव का नाम तय हो जाने के बाद भी उनकी पृष्ठभूमि के बारे में बहुत कुछ कह नहीं पा रहे थे। बस गूगल पर सर्च करके ही थोड़ी बहुत ब्रीफिंग की जा रही थी। ये दृश्य मध्यप्रदेश भाजपा कार्यालय में बहुलता के साथ देखे गए। इसे हम मीडिया के लिए भी चिंताजनक स्थिति के रूप में देख सकते हैं। इतना ही नहीं इसी बीच कई सारे जाने पहचाने मीडिया के चेहरे भी नामालूम बुझे बुझे से दिखते रहे । यह क्यों और कैसे हुआ यह भी बड़े आश्चर्य की बात है।
बहरहाल, कल तक मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री कौन होगा? इस पर तमाम अटकलें और विश्लेषण जारी थे। वहीं आज से नाम तय हो जाने के बाद क्यों और कैसे के साथ अनेकानेक विश्लेषण आते रहेंगे। चर्चाएं जारी रहेंगी। इस बीच सियासी मानसून का लुत्फ़ उड़ाते रहिए….भाजपा की नई रणनीति से चौंकते रहिए.