एक नए युग का सूत्रपात

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मनोज कुमार
11 दिसम्बर का दिन गहमागहमी भरा रहा. हर घंटे एक नए नाम के साथ मध्यप्रदेश के सीएम बनने का कयास लगाया जाने लगा. अपनी-अपनी पसंद और सुविधा के बरस्ते सीएम तय किया जा रहा था लेकिन लोगों को यह भी पता था कि जो सोच रहे हैं, वह शायद ही होगा. सांझ ढलने के पहले-पहले भाजपा विधायक दल की बैठक शुरू हो गई और थोड़ी देर में सारे कयासों पर पूर्ण विराम लग गया. मध्यप्रदेश को मोहन मिल गए थे. मोहन यानि उज्जैन के लोकप्रिय विधायक एवं पूर्व उच्च शिक्षामंत्री डॉ. मोहन यादव. एक तरह से यह फैसला चौंकाने वाला था लेकिन अप्रत्याशित नहीं था. मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे पुख्ता दावेदार शिवराजसिंह चौहान थे और इसके बाद क्रम में प्रहलाद पटेल, नरेन्द्रसिंह तोमर और कैलाश विजयवर्गीय के नाम हवा में तैर रहा था. भाजपा हाईकमान हमेशा चौंकाने वाले फैसले लेता है तो लोगों ने कुुछ अनाम को भी मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल कर दिया गया लेकिन किसी के जेहन में डॉ. मोहन यादव का नाम नहीं था. बकौल डॉ. मोहन यादव-‘मैं पीछे की पंक्ति में बैठकर अपना काम कर रहा था. मुझे गुमान भी नहीं था कि मेरे जैसे मामूली कार्यकर्ता को इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है. जब मेरे नाम का अनाउसमेंट हुआ तो मैं चौंक गया. सब महाकाल की कृपा है।’
मध्यप्रदेश के लिए नए मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. मोहन यादव के चयन के बाद कयासों का बाजार ठंडा पड़ गया. संभावित मुख्यमंत्री के बंगलों से भीड़ अब डॉ. यादव के बंगले की तरफ शिफ्ट हो गई. तीन दिसम्बर को चुनाव परिणाम में भाजपा को मिली बड़ी जीत से यह संभावना को बल मिला था कि पांचवीं बार शिवराजसिंह चौहान मुख्यमंत्री बन सकते हैं. उनके विकल्प के रूप में नरेन्द्र सिंह तोमर को रखा गया तो ओबीसी कोटे से प्रहलाद पटेल की दावेदारी मजबूत मानी गई लेकिन राजनीति में कुछ भी संभव है. डॉ. मोहन यादव का मध्यप्रदेश के 33वें मुख्यमंत्री के रूप में नामांकित होना हैरानी भरा हो सकता है लेकिन इसे एक नए युग का सूत्रपात माना जाना चाहिए. महज तीन बार के विधायक डॉ. मोहन यादव की छवि आक्रामक है और इसी छवि के चलते वे संघ और भाजपा हाइकमान के करीब हैं. छात्रसंघ चुनाव से राजनीति शुरू करने वाले डॉ. मोहन यादव संभावनाओं से भरे राजनेता हैं. मीडिया ने अपने रूटीन में पूछ लिया कि उनकी प्राथमिकता क्या होगी? तो उनका सधा हुआ जवाब था ‘आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी के सपनों अनुरूप मध्यप्रदेश का विकास करना’.
डॉ. मोहन यादव ऊर्जावान हैं. गरम मिजाज के हैं तो नरम भी हैं. उच्च शिक्षित हैं और उनकी अपनी योजनाएं हैं. शिक्षा मंत्री के रूप में उनकी पृथक पहचान बनी है तो संघ की नीतियों पर वे चलते रहेंगे. हालांकि डॉ. यादव के लिए आगे का रास्ता कटंक भरा है. प्रदेश की खस्ताहाल आर्थिक स्थिति से निपटना और प्रदेश की जनता के विश्वास में खरा उतरना. शिवराजसिंह चौहान ने जो अपार लोकप्रियता अर्जित की है, उसे पारकर अपनी और मध्यप्रदेश की एक नयी छवि गढऩा. वर्तमान में जो योजनाएं चल रही हैं, वह भाजपा सरकार की ही हैं अत: उन्हें रोककर या बंद करने का खतरा नहीं उठा सकते हैं लेकिन डॉ. यादव आने वाले समय में कुछ कड़ुवे फैसले लेंगे, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है. नौकरशाही पर लगाम लगाना और उनसे काम कराना भी डॉ. यादव के लिए एक बड़ी चुनौती होगी. इन चुनौतियों के बीच डॉ. मोहन यादव का रास्ता थोड़ा सुगम इसलिए होगा कि हाइकमान का उन पर विश्वास है. उन्हें राजकाज चलाने में हाइकमान का पूरा सहयोग मिलेगा.
मुख्यमंत्री की ताजपोशी के पहले जिस विनम्रता के साथ मंच में अपने वरिष्ठ नेताओं के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लिया, यह एक सुखद क्षण था. यह इस बात का भी विश्वास दिलाता है कि करीब 18 वर्ष के अनुभवी मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से सलाह करते रहेंगे. कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल का सहयोग भी उन्हें मिलेगा. समदर्शी बनकर वे सबको साथ लेंगे, ऐसा विश्वास किया जाना चाहिए. मध्यप्रदेश के लिए डॉ. मोहन यादव का मुख्यमंत्री बनना युवा वर्ग में एक बड़ा संदेश देता है. निश्वित रूप से मोदी-शाह-शिवराज के अथक प्रयासों से मध्यप्रदेश में भाजपा को बेमिसाल जीत हासिल हुई लेकिन इस जीत से आगे की विजय का रास्ता डॉ. मोहन को सौंप दिया गया है. भाजपा के भीतर ही एक वर्ग को शिवराजसिंह चौहान के लगातार मुख्यमंत्री बने रहने से जो शिकायत थी, वह दूर हो गई होगी लेकिन अब उनका दायित्व बनता है कि डॉ. मोहन यादव की सरकार को मजबूत करने में सहयोग करें. डॉ. मोहन यादव को मध्यप्रदेश जैसे विशाल एवं संभावनाशील राज्य का मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा हाइकमान ने संदेश दे दिया है कि भाजपा में व्यक्ति नहीं, योग्यता की परख होती है. फिर वह व्यक्ति पार्टी का मामूली कार्यकर्ता ही क्यों ना हो. एक विश्वास मोदी-शाह का डॉ. मोहन यादव पर और एक भरोसा बनाना है डॉ. मोहन यादव को अपने मध्यप्रदेश पर. (

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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