पूर्वोत्तर मे मोदीः शांति एवं विकास की नई सुबह की आहट

0
4

– ललित गर्ग –

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मिज़ोरम, मणिपुर और असम की यात्रा के दौरान हुई घोषणाएं केवल राजनीतिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और राष्ट्रीय महत्व की दृष्टि से युगांतरकारी मानी जा सकती हैं। मोदी की घोषणाओं और उद्बोधनों से उनका संकल्प साफ झलकता है कि पूर्वाेत्तर को भारत की विकास धारा में सशक्त स्थान दिलाया जाएगा। मोदी की ये यात्राएं पूर्वाेत्तर की राजनीति और समाज में एक एक नई करवट, नई सुबह साबित हो सकती हैं। मिज़ोरम में उनका संदेश कि पूर्वाेत्तर प्रगति का प्रवेशद्वार है, असम में उनका कथन कि पूर्वाेत्तर भारत की आत्मा है, और मणिपुर में उनका आत्मीयता- हार्दिक स्पंदन का मरहम ये तीनों मिलकर एक नई दृष्टि, नई दिशा एवं नये संकल्प प्रस्तुत करते हैं।
प्रधानमंत्री ने यह संकल्प व्यक्त किया कि पूर्वाेत्तर को सड़क, रेल और हवाई सेवाओं से देश के हर हिस्से से जोड़ा जाएगा। ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के तहत पड़ोसी देशों से भी कनेक्टिविटी बढ़ाने पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि पूर्वाेत्तर में हिंसा, अशांति और अलगाव की जगह अब शांति, विकास और विश्वास का नया युग शुरू हो रहा है। उन्होंने इन राज्यों के युवाओं को शिक्षा, स्टार्टअप और खेलकूद के लिए विशेष योजनाओं का लाभ देने का वादा किया। मोदी ने कहा कि पूर्वाेत्तर की विविध संस्कृति और परंपराएं भारत की असली शक्ति हैं। इनकी पहचान और गौरव को सुरक्षित रखते हुए विकास होगा। इन तीनों राज्यों की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि यह केवल चुनावी वादे नहीं, बल्कि आने वाले ‘नए भारत’ का रोडमैप है। उनका यह संदेश भी महत्वपूर्ण रहा कि जब पूर्वाेत्तर मजबूत होगा, तभी भारत आत्मनिर्भर और सशक्त बनेगा और तभी नये भारत, विकसित भारत का सपना आकार लेगा।
हालांकि तीनों ही राज्यों की यात्राएं महत्वपूर्ण थीं, परंतु मणिपुर की यात्रा का महत्व विशेष रहा। पिछले डेढ़ वर्ष से हिंसा और अशांति झेल रहे मणिपुर में प्रधानमंत्री की उपस्थिति केवल औपचारिक कार्यक्रम नहीं थी, बल्कि एक संवेदनशील हस्तक्षेप एवं आत्मीय मरहम थी। दरअसल,राज्य में स्थायी शांति के मार्ग में जो एक सबसे बड़ी बाधा है, वह है पर्वतीय इलाकों में रहने वाले कुकी समुदाय और घाटी में रहने वाले बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के लोगों के बीच लगातार कम होता विश्वास। ऐसे में सरकार का दायित्व बनता है कि दोनों समुदायों की आकांक्षाओं में संतुलन बनाए। ताकि दोनों समुदायों की चिंता और शिकायतों का शीघ्र समाधान किया जा सके। ऐसा करते हुए मोदी ने दोनों समुदायों की पीड़ा सुनी, संवाद का सेतु बनाया और यह भरोसा दिलाया कि मणिपुर की त्रासदी केवल एक क्षेत्रीय संकट नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चुनौती है। यह यात्रा विश्वास बहाली की शुरुआत साबित हुई। लंबे समय से लोगों को शिकायत रही कि उनकी बात दिल्ली तक नहीं पहुँचती। प्रधानमंत्री की उपस्थिति ने इस दूरी को कम किया और संकेत दिया कि शांति और विकास दोनों को साथ लेकर ही मणिपुर का भविष्य गढ़ा जाएगा। मणिपुर में उनका संकल्प था कि यहां की मातृशक्ति और युवा शक्ति को आगे बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार हरसंभव सहयोग देगी। फिर भी यह स्वीकार करना होगा कि मणिपुर और पूर्वाेत्तर में शांति की राह आसान नहीं है। विस्थापितों का पुनर्वास, न्याय की प्रक्रिया और आपसी विश्वास का पुनर्निर्माण अभी अधूरा है। यदि इन चुनौतियों को ठोस नीतियों और निरंतर संवाद से नहीं सुलझाया गया, तो यह यात्रा केवल प्रतीकात्मक बनकर रह जाएगी।
राजनीतिक दलों और सामुदायिक नेतृत्व की भूमिका भी यहाँ अहम है। यदि वे केवल वोट-बैंक की राजनीति तक सीमित रहेंगे तो शांति की प्रक्रिया बाधित होगी। इसके लिए सामूहिक दृष्टिकोण और राष्ट्रीय प्रतिबद्धता आवश्यक है। यह एक ऐसा विवादास्पद मुद्दा था, जिसने कुकी-जो समुदाय के लोगों में असुरक्षा व अशांति पैदा कर दी। जिसे दूर किए जाने की सख्त जरूरत है। दरअसल, कुकी एवं मैतेई समुदायों के हिंसक संघर्ष ने राज्य में मतभेदों को मनभेद में बदल दिया है। कुकी-जो विधायकों के एक समूह, जिसमें भाजपा के भी सात विधायक शामिल हैं, ने कहा है कि ‘दोनों पक्ष केवल अच्छे पड़ोसियों के रूप में शांति से रह सकते हैं,लेकिन फिर कभी एक छत के नीचे नहीं।’ उनकी मांग रही है कि गैर-मैतेई समुदायों के लिये अलग विधायिका सहित अलग केंद्रशासित प्रदेश बनाया जाए। यह सोच दोनों समुदायों के बीच गहरे मतभेद को उजागर करती है, जिसने मणिपुर को गहरी क्षति पहुंचायी है। इन स्थितियों में मोदी ने जोर देकर कहा कि पूर्वाेत्तर में अब हिंसा, अलगाव और अशांति का युग समाप्त होना चाहिए। मणिपुर में उन्होंने विशेष रूप से रेखांकित किया कि शांति ही विकास का आधार है और जब तक सौहार्द स्थापित नहीं होगा, भारत की प्रगति अधूरी रहेगी। यह संदेश न केवल मणिपुर, बल्कि पूरे पूर्वाेत्तर के लिए विश्वास बहाली का माध्यम बना। पूर्वाेत्तर केवल सांस्कृतिक और भौगोलिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामरिक दृष्टि से भी भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। मणिपुर और अन्य राज्यों की स्थिरता का सीधा संबंध पड़ोसी देशों से भारत के रिश्तों और राष्ट्रीय सुरक्षा से है। इसलिए यहाँ की शांति केवल स्थानीय आवश्यकता नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अनिवार्यता है।
मणिपुर पिछले डेढ़ वर्ष से एक त्रासद संघर्ष का साक्षी रहा है। हिंसा, आगजनी, पलायन और खून-खराबे ने राज्य की आत्मा को झकझोर दिया। समाज का संतुलन टूट गया, आपसी विश्वास खंडित हो गया और सामुदायिक संबंधों में ऐसी दरारें पड़ गईं जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। लंबे समय तक राज्य अशांत और असुरक्षित बना रहा। हिंसा के कारणों को समझना ज़रूरी है। सरकार ने समय-समय पर स्थिति को संभालने की कोशिश की, सुरक्षा बल तैनात किए, कर्फ्यू लगाए और संवाद की पहल भी की, परंतु गहरी दरारें मिटाने में ये प्रयास अपर्याप्त साबित हुए। असली चुनौती थी-मनभेदों को मिटाना। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा का महत्व यहीं बढ़ जाता है। उन्होंने राज्य में पहुँचकर दोनों समुदायों की पीड़ा को प्रत्यक्ष रूप से सुना और उन्हें भरोसा दिलाया कि उनकी समस्याओं को उच्चतम स्तर पर समझा जा रहा है। उनका यह संदेश कि “शांति ही विकास का आधार है और भारत की प्रगति का सपना तब तक अधूरा है जब तक मणिपुर जैसे राज्यों में सौहार्द नहीं लौटता”-जनमानस में गहराई से उतरा है।
मोदी की इस यात्रा ने सबसे पहले विश्वास बहाली की प्रक्रिया को गति दी। उन्होंने स्पष्ट संकेत दिया कि मणिपुर की त्रासदी केवल एक क्षेत्रीय समस्या नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चुनौती है। दूसरा बड़ा प्रभाव यह रहा कि विकास का एक ठोस रोडमैप सामने आया। मोदी ने राज्य के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की दिशा में नई परियोजनाओं की घोषणा की। इस प्रकार उन्होंने शांति और विकास को एक-दूसरे के पूरक के रूप में प्रस्तुत किया। यह दृष्टिकोण मणिपुर को केवल शांति की ओर नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और प्रगति की ओर भी ले जाने की क्षमता रखता है। तीसरा और शायद सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम यह है कि इस यात्रा ने पूरे उत्तर-पूर्व के लिए एक सशक्त संदेश दिया। लंबे समय तक उत्तर-पूर्व को ‘दूरस्थ’ और ‘सीमांत’ मानकर उसकी समस्याओं को राष्ट्रीय विमर्श में हाशिये पर रखा गया। मोदी ने अपने संदेश से यह स्पष्ट कर दिया कि उत्तर-पूर्व भारत की विकास यात्रा का अभिन्न अंग है। मणिपुर में उनका जाना और वहाँ की संवेदनशीलता को समझना केवल राज्य तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने पूरे उत्तर-पूर्व को यह विश्वास दिलाया कि उसकी पीड़ा और आकांक्षाएँ अब भारत की मुख्यधारा की चिंता हैं।
फिर भी यह स्वीकार करना होगा कि मणिपुर में शांति की प्रक्रिया अभी अपूर्ण है। कई घाव ताजे हैं। हिंसा में घरबार खो चुके लोग अब भी अपने गाँवों और बस्तियों को लौटने की प्रतीक्षा में हैं। विस्थापितों के पुनर्वास का प्रश्न जटिल है। न्याय और जवाबदेही की प्रक्रिया अभी आरंभिक स्तर पर है। आपसी अविश्वास की परतें पूरी तरह पिघली नहीं हैं। यही वजह है कि इस यात्रा को केवल एक प्रतीकात्मक घटना मानकर छोड़ देना पर्याप्त नहीं होगा। इसे निरंतर प्रयासों और ठोस नीतिगत कदमों से आगे बढ़ाना ज़रूरी है। इस पूर्वाेत्तर राज्य में विधानसभा चुनाव होने में अभी डेढ़ साल बाकी है। राज्य में हिंसा की पुनरावृत्ति रोकने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर है ताकि विधानसभा चुनाव में देरी न हो। केंद्र सरकार को विधानसभा को लंबे समय तक निलंबित रखने के फायदे और नुकसान का भी आकलन करना होगा। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress