राजनीति

मोदी की जनसभाओं से उमड़े जनज्वार को रोकने की सरकारी नीति

डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

downloadभाजपा द्वारा प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रुप में घोषित किये जाने के बाद २३ जून २०१३ को मोदी की सबसे पहली रैली पंजाब , हिमाचल प्रदेश व जम्मू कश्मीर के सीमान्त नगर पठानकोट में हुई थी । यह दिन भारतीय जनसंघ के संस्थापक डा० श्यामा प्रसाद मुखर्जी की शहादत का दिन है । इस रैली का ज़िक्र मैं इसलिये कर रहा हूँ क्योंकि इसी दिन मेरी नई किताब ‘जम्मू कश्मीर की अनकही कहानी’ का लोकार्पण लाल कृष्ण आडवानी जी को करना था । कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र छप ही नहीं चुके थे बल्कि वितरित भी किये जा चुके थे । लेकिन पठानकोट में मोदी की रैली के कारण जम्मू का यह कार्यक्रम रद्द करना पड़ा । बाद में आडवानी जी ने यह लोकार्पण ६ जुलाई को दिल्ली में किया । बात मोदी की रैली की चल रही थी । इस जनसभा ने देश की राजनीति का मुहावरा बदल दिया । भाजपा ने इस जनसभा में लोगों का रुख़ भाँपते हुये देश भर में इसी प्रकार की जनसभाओं का आयोजन प्रारम्भ कर दिया । शायद भाजपा को स्वयं भी विश्वास नहीं रहा होगा कि मोदी को लेकर , उन्हें सुनने के लिये देश में इस प्रकार का जन ज्वार पैदा हो जायेगा ।

इसी प्रकार की एक रैली राजस्थान की राजधानी जयपुर में हुई । प्रसिद्ध पत्रकार तवलीन सिंह नरेन्द्र मोदी के प्रशंसकों में नहीं गिनी जातीं । लेकिन जयपुर की रैली ने उन्हें भी चौंका दिया । इस रैली पर उन्होंने टिप्पणी की –“लोग क्या चाहते है वो अब दिखने लगा है। पत्रकार होने के नाते मैं जयपुर गयी , लेकिन वहां जो नजारा देखा उसे झुठला नहीं सकती। अगर अपनी आँखों से न देखा होता तो विश्वास न होता । जहाँ तक नजर जाती बस लोग ही लोग थे। बहुत से लोग तो सुबह से ही तपती धूप में बैठकर मोदी का इंतजार कर रहे थे। कुछ रास्ते में ही रह गए । कड़ी मशक्कत करने के बाद जब मैं अमरुद वाले बाग पहुंची तो वहां की भीड़ सडकों से भी कई गुना ज्यादा थी। मुझे पाँव रखने के लिए भी जगह नहीं मिल रही थी। हर तरफ से मोदी मोदी की आवाजें सुनाई पड़ रही थीं , जिससे साफ पता चलता था कि लोग सिर्फ मोदी को सुनने आये हैं। मैंने कई सभाएँ देखी हैं पर , इतनी भारी संख्या में लोग पहले कभी नहीं देखे। दिल्ली में बैठे लोग जो कह रहे हैं कि मुसलमानों को जबरदस्ती लाया गया था वे यहां आकर देखते तो उनकी भी आंखे आश्चर्य से फटी की फटी रह जाती। मुझे याद है जब जनता पार्टी की सभाओं मेंं लोगों की भीड़ उमड़ने लगी थी और लोग इंदिरा गाँधी हटाओ के नारे लगा रहे थे तब वे इतनी डर गयी थी की उन्होंने दूरदर्शन पर बोबी फिल्म लगवा दी ताकि लोग घरों से न निकलें । लेकिन नतीजा उल्टा हुआ । ठीक ऐसा ही उस दिन मेरे साथ हुआ । अमरूद वाले बाग़ तक पहुँचने में 6 घंटे से ज्यादा समय लगा। एक बार तो सोचा कि लौट जाऊं । पर लोगों के सैलाब को उधर जाते देख मैं भी उनके साथ हो ली। दूर दूर से लोग आ रहे थे । क्या बूढ़े और क्या बच्चे…नौजवान तो इतने थे कि मानों पूरे भारत के युवा यहीं आ गए हों । भीड को वहां जाने से रोकने के लिए प्रशासन ने बहुत प्रयास किये। यातायात को अवरुद्ध कराया गया । यहाँ तक की जगह जगह बिजली भी बंद कर दी गयी। राजस्थान सरकार की ऐसी व्याकुलता देखकर मुझे इंदिरा गाँधी की वो दशा याद आ गयी । इसमें कोई दो राय नहीं कि देश में मोदी नाम की आंधी चल चुकी है और इस आंधी का असर इतना तेज है की विरोधी अपना तम्बू भी नहीं संभाल पा रहे।” स्वभाविक ही सोनिया कांग्रेस की केन्द्र की सरकार मोदी की इस आन्धी का मुक़ाबला करने के लिये अपनी रणनीति बनाती । जिन राज्यों में अन्य राजनैतिक दलों की सरकारें हैं वे और उनके राजनैतिक दल भी मोदी के तूफ़ान का मुक़ाबला करने के लिये अपनी बिसात बिछायें , यह भी समझ में आता है । लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का और विरोधी की काट करने का अधिकार है । लेकिन नरेन्द्र मोदी की पटना की जनसभा को लेकर केन्द्र सरकार और बिहार सरकार ने जो रणनीति बनाई वह आपत्तिजनक ही नहीं , निंदनीय भी है ।

पटना में नरेन्द्र मोदी की जनसभा के लिये काफी अरसा पहले से तैयारियां शुरु हो गयी थी । दरअसल बिहार में नीतिश कुमार के व्यवहार को लेकर जो वातावरण बना था उसमें इस रैली की महत्ता और भी बढ़ गयी थी नीतिश कुमार पिछले कुछ वर्षों से इस मुद्दे पर अड़े हुये थे कि नरेन्द्र मोदी को बिहार में नहीं आना चाहिये । नीतिश का मानना था कि बिहार में मोदी के आने से मज़हबी ध्रुवीकरण हो जायेगा जिससे सरकार को नुकसान पहुंच सकता है। जबकि तटस्थ विश्लेषक ऐसा मानते थे कि नीतिश के इस आग्रह का कारण इतना ध्रुवीकरण नहीं है जितना राजनैतिक । बहुत समय नहीं बीता , नीतिश मोदी विरोध में इतना आगे बढ़े कि जब बिहार में भाजपा के कार्यकर्ताओं ने मोदी के पोस्टर चस्पां किये तो नीतिश ने भाजपा के केन्द्रीय नेताओं को भोज के लिये दिया गया निमंत्रण भी रद्द कर दिया। नीतिश के इसी विरोध और अजीब व्यवहार के कारण बिहार में मोदी के प्रति लोगों की उत्सुकता बढ़ गयी थी । शायद इसी को ध्यान में देखकर भाजपा ने मोदी की इस रैली के लिये पटना के गांधी मैदान का चयन किया था । गांधी मैदान में जनसभा करने की हिम्मत आमतौर पर राजनैतिक दल नहीं करते । मैदान का आकार इतना बड़ा है कि उसे भर पाना सामान्य कूबत से बाहर की बात है । इकट्ठी की गयी भीड़ के बलबूते यह मैदान भर पाना संभव नहीं है । गांधी मैदान का दृश्य तभी सार्थक हो पाता है जब लोग स्वतः प्रेरणा से जनसभा में आयें । जयप्रकाश नारायण के वक्त गांधी मैदान में ऐसे दृश्य देखे जा सकते थे । भाजपा ने भी उसी गांधी मैदान को मोदी के प्रति जनभावना की परीक्षा लेने के लिये परीक्षण स्थल बनाया। रैली की महत्ता और उसको लेकर उमड़े जन-ज्वार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी 27 अक्टूबर को पटना में अपना पूर्व निर्धारित कार्यक्रम रद्द कर दिया।

​यह जरूरी था इस रैली में मोदी की और आम प्रतिभागियों की सुरक्षा की व्यवस्था राज्य सरकार प्राथमिकता के आधार पर करती । जिस प्रकार देश में विदेशी शक्तियों द्वारा पोषित आतंकवाद पसरा हुआ है , उसके मद्दे नजर सुरक्षा व्यवस्था और भी चाक चौबंद होनी चाहिये थी , लेकिन शायद बिहार सरकार के मुखिया नीतिश कुमार नरेन्द्र मोदी को लेकर अपने व्यक्तिगत दुराग्रहों में इतने दूर तक चले गये कि उन्होंने सार्वजनिक जनसभाओं और राष्ट्रीय नेताओं की सुरक्षा के प्रश्न को भी दोयम दर्जे का मान लिया और स्वयं भी इसी दिन मुंगेर के दौरे पर निकल गये । इसे क्या कहा जाये कि नरेन्द्र मोदी की जनसभा से पहले रैली के आसपास सात बम विस्फोट हुये एक जिन्दा बम रेलवे स्टेशन से बरामद हुआ । रैली के दो दिन बाद तक 16 बम बरामद हो चुके हैं। इन बम विस्फोटों में सात लोग मारे गये और साठ से भी ज्यादा घायल हुए । ताज्जुब तो बिहार पुलिस के इस दावे पर है कि उसने रैली से पहले पूरे गांधी मैदान की छानबीन कर ली थी। लेकिन उसके इस दावे के बावजूद मैदान से रैली के बाद भी जिन्दा बम बरामद हुये । इन धमाकों से सारे देश में हड़कंप मचना लाज़मी था । वैसे यह भी हैरानी की बात है कि अपनी जान को खतरे के भाषण राहुल गांधी दे रहे थे और बम विस्फोट नरेन्द्र मोदी की सभा में हो रहे थे। बिहार सरकार ने दावा किया कि उसके पास न तो राज्य सरकार के खूफिया विभाग की ओर से और न ही केन्द्रीय सरकार की खूफिया विभाग की ओर से मोदी की रैली में किसी प्रकार के बम विस्फोट होने के अंदेशे का खुलासा किया गया था । नियम और परिस्थिति के अनुसार राज्य सरकार सुरक्षा और चौकसी की जितनी व्यवस्था कर सकती थी उतनी उसने की थी । नीतिश कुमार के इस आग्रह को स्वीकार न करने का प्रथम दृष्टया कोई कारण नहीं हो सकता और होना भी नहीं चाहिये। इसे राज्य सरकार की प्रशासनिक अव्यवस्था और ढीलापन कहा जा सकता है , उसकी मंशा को प्रश्नित नहीं किया जा सकता । लेकिन अब केन्द्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने यह कह कर सभी को चौंका दिया है कि केन्द्रीय एजेंसियों ने राज्य सरकार को इस प्रकार के अंदेशे के प्रति पहले ही चेतावनी दे दी थी । नीतिश कुमार और सुशील कुमार शिंदे दोनो में से कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ, इसका फैसला तो वे स्वयं आपस में बैठ कर सकते हैं , लेकिन एक बात निश्चित है कि अपने राजनैतिक मतभेदों के चलते न तो बिहार सरकार ने और न ही केन्द्र सरकार ने नरेन्द्र मोदी की सुरक्षा के मामले को अतिरिक्त गंभीरता से नहीं लिया । वैसे रिकॉर्ड के लिये बता दिया जाये कि जिस वक्त पटना में बम धमाके हुये और उनमें घायल निर्दोष लोग आईसीयू में जिंदगी और मौत से लड़ रहे थे , उस समय सुशील कुमार शिंदे रज्जो फिल्म का संगीत रिलीज़ कर रहे थे और उसकी धुनों पर गर्दन हिला रहे थे । सुशील कुमार शिंदे ने देश को यह तो बता दिया कि केन्द्र ने पहले ही मोदी की सुरक्षा को लेकर चेतावनी दे दी थी , लेकिन मोदी को बढ़ते खतरे के मद्दे नजर गृहमंत्री ने मोदी को एसपीजी सुरक्षा कवर मुहैया करने से फिर भी इंकार कर दिया। मुझे नहीं मालूम सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट बढेरा को कौन सा सुरक्षा कवच दिया जाता है और प्रियंका गांधी के बच्चे किस सुरक्षा कवच में कवर होते हैं , लेकिन इतना निश्चित है कि सोनिया कांग्रेस की सरकार ने , देश के आम लोगों की ओर से घोषित, उनके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की सुरक्षा के प्रति अपनी नीति का संकेत तो दे ही दिया है ।