बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के दिन ब दिन बढ़ते कद से राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं… 2014 के लोकसभा चुनाव के बारे में कांग्रेस मे अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हों…लेकिन बीजेपी ने साफ कर दिया है कि वो मोदी के नेतृत्व में ही दिल्ली की सत्ता हासिल करने का सपना देखेगी… मोदी के महिमामंडन में बीजेपी काडर ने काफी जल्दबाजी दिखाई…हालांकि पार्टी के रणनीतिकारों की मानें तो देश में मौजूदा दौर में जिस तरह का निराशा का माहौल बना है…उसका फायदा चुनाव मे उठाने के लिए मोदी के प्रमोशन का यह बिल्कुल सही वक्त है… लेकिन आडवाणी की अड़ंगेबाजी के बीच उन्हें आरएसएस की सख्त हिदायत से साफ है कि पार्टी आज भी नागपुर स्थित संघ के दफ्तर के आदेशों पर ही संचालित हो रही है…
लिहाजा मोदी के लिए दिल्ली का सफर जितना चुनौतीभरा होने वाला है…उतना की कंफ्यूजन पार्टी को भी होने वाला है… हिंदुत्व की बात करने वाली पार्टी 2014 के चुनाव मे एक बार फिर राम के नाम पर वैतरणी पार करना चाहती है… इसके लिए बीजेपी ने अपने सहयोगी संगठनों वीएचपी के जरिए उत्तर प्रदेश में चौरासी कोस परिक्रमा और अन्य रैलियों की शुरुआत कर दी है… मोदी के लेफ्टिनेंट अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाकर बीजेपी ने पहले ही यह संकेत दे दिया था… देश की सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटें भी इसी राज्य में हैं…ऐसे में राम मंदिर के मुद्दे पर पार्टी यूपी में 1999 वाली कहानी दोहरा पाती है…तो मोदी के दिल्ली की गद्दी पर विराजने का रास्ता आसान हो जाएगा…
हालांकि सांप्रदायिक छवि और गुजरात दंगो के दाग साथ लेकर चलने वाले मोदी के लिए चुनावी गणित सबसे बड़ी चिंता का कारण बना हुआ है… अधिकतर क्षेत्रीय पार्टियां सांप्रदायिकता के नाम पर मोदी का साथ देने से कतराएंगी…. यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश में मुस्लिम वोटरों की अच्छी खासी तादात है… इन राज्यों में करीब 203 सीटें हैं जिन पर अच्छा प्रदर्शन किए बिना दिल्ली दूर ही नजर आएगी… मुस्लिम बहुल होने के कारण इन सीटों पर मोदी को रणनीति बदलनी होगी…उन्हें सांप्रदायिकता और कट्टर हिंदुत्व का चोला उतारकर उदारवाद की तरफ कदम बढ़ना होगा… यहां तक कि कभी कट्टर हिंदुत्व की दुहाई देने वाले वाजपेई और आडवाणी ने भी समय के फेर को समझा और सबको साथ लेकर चलने की रणनीति बनाई…मोदी भी राजनीतिक फायदा लेने के लिए अटल-आडवाणी का राह चल सकते हैं
वैसे गहराई से देखा जाए मुसलमानों के लिए मोदी इतने अछूत भी नहीं होने चाहिए… मोदी पर कभी न धुलने वाले गुजरात दंगों के दाग भले ही लगे हों…लेकिन अब तक अदालत में उनके खिलाफ कोई बात साबित नहीं हुई है…दूसरी बात कि गुजरात में 2002 के बाद से कोई दंगा नहीं हुआ…जिससे उनकी प्रशासनिक क्कुशलता झलकती है…और सबसे बड़ी बात ये है कि मोदी के गुजरात में मुसलमानों की स्थिति देश के कई बड़े राज्यों में सबसे अच्छी है… 2006 में तैयार की गई सच्चर कमेटी की रिपोर्टों के मुताबिक गुजरात के ग्रामीण इलाकों में मुसलमानों की औसत प्रति व्यक्ति आय 668 रुपए जबकि हिंदुओं की प्रतिव्यक्ति आय 644 रुपए है…जबकि देश के अन्य हिस्सों में मुस्लिमों का प्रतिव्यक्ति आय 553 रुपए है… शहरी क्षेत्रों में भी गुजरात के मुसलमानों की प्रतिव्यक्ति आय 875 रुपए है जबकि देश के अन्य हिस्सों में केवल 804 रुपए है…यही नहीं गुजरात में मुस्लिम इलाकों में 97.7 फीसदी लोगों तक पीने के पानी की सुविधा है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर आंकड़ा 93.1 फीसदी है… साक्षतरता में भी गुजरात के मुसलमान आगे हैं…यहां मुस्लिम साक्षरता73.5 फीसदी है…जबकि राष्ट्रीय औसत 64.8 फीसदी है…मोदी सरकार ने तटीय इलाकों में मुस्लिमों के विकास के लिए 11 हजार करोड़ खर्च किए…जाहिर सी बात है कि मोदी के गुजरात में मुसलमानों की स्थिति यूपी और अन्य राज्यों के मुकाबले कहीं ज्यादा बेहतर है… आंकड़ों पर गौर करें तो 2012 के चुनाव में भी करीब 30 फीसदी मुसलमानों में मोदी के पक्ष में मतदान किया था…जबकि मोदी ने एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया था…
बावजूद इसके मोदी को मुसलमानों के धुर विरोधी के तौर पर पेश किया जाता है… हालांकि मोदी को भी खुद ये उम्मीद नहीं होगी कि उन्हें अल्पसंख्यक समुदाय का ज्यादा वोट मिलेगा…गोयाकि अगर मोदी उग्र हिंदुत्व की बजाए गुजरात के सामूहिक विकास के मॉडल को आगे रखकर चुनाव लड़ें…और सभी वर्गों मे पैंठ बढ़ाने की कोशिश करें तो 7 आरसीआर पहुंचने का गणित आसान हो सकता है…इसमें भी कोई शक नहीं कि कांग्रेस, एसपी और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों से बार बार धोखा खा चुके अल्पसंख्यक समुदाय का बड़ा तबका मोदी का साथ दे दे… बहरहाल इसके लिए 2014 का इंतजार करना होगा कि मोदी किस रणनीति के तहत कठिन रास्तों को पार करते हैं
पंकज कुमार नैथानी
लेख को नहीं, पाठकों की प्रतिक्रिया पर लेखक की टिपण्णी पढ़ने से श्री नरेन्द्र मोदी विरोधी लेखक का घिनौना उद्देश्य स्पष्ट हो आता है|
यहाँ इस पोस्ट में गाँधी परिवार के जितने भी चाटुकार है वोह ये बताये की अभी राहुल ने कहा था कांग्रेस सपना देखती है की मजदूर का बेटा भी hawai जहाज में उड़े लेकिन भा.ज.पा. तो सपने देखती है की एक चाय बेचने वाला बचा भी प्रधान मंत्री बने iske जवाब में कोई चमचा कुछ कहेगा.
डॉ. ठाकुर,त्यागी जी, मधुसूधन जी और शिवेंद्र मोहन जी…
आज देश भ्रष्टाचार से त्रस्त है…शायद इसीलिए मौजूदा सरकार के खिलाप लोगों में इतना आक्रोश है…मोदी में लोगों को राहत की एक उम्मीद दिखती है… एक साफ सुथरी छवि दिखती है जो भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना दिखा सके…हमें मोदी के इस गुण का सम्मान भी करना चाहिए…
लेकिन ये न भूलें कि अगर मोदी इतने पारर्दर्शी हैं तो…
१. बार बार लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर सवालों के घेरे में क्यों रहे हैं..?
२. अप्रैल २०१३ में कैग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि गुजरात सरकार की कंपनियों ने कई बड़े औद्योगिक घरानों की मिलीभगत से सरकारी खजाने को 200 करोड़ से ज्यादा का का चूना लगाया.
३. जून में मोदी सरकार में खनन मंत्री रहे बाबू भाई बुखेरिया को जेल की हवा खानी पड़ी…
४.मोदी के दो और मंत्रियों पुरुषोत्तम सोलंकी और आनंदी बेन पटेल पर भी भ्रष्टाचार में शामिल होने का आरोप है… सोलंकी ने बिना डेंटर तालाबों का ठेका अपने खास लोगों को दे दिया, जिससे सरकार को करीब 400 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ…इसी तरह राजस्व मंत्री आनंदी बेन ने लीज पर दी गई जमीन वापस नहीं ली गई और पटेल की सहमति से ही उस उद्योगपति ने लीज पर ली हुई सरकारी जमीन बेच भी दी…
उम्मीद है अब मोदी की महिमा, गरिमा, और आरोपों को एक तराजू से तौला जाएगा…
श्रीमान नैथानी जी
आपके आरोपों का क्रमशः उत्तर
१. आप अपने आप को एक न्यूज़ चैनल का असिस्टेंट प्रोडूसर बताते हो लेकिन ये नहीं बताते की मोदी लोकायुक्त की नियुक्ति का विरोध कर रहे थे या जस्टिस आर ए मेहता की नियुक्ति का, अब जस्टिस आर ए मेहता को तो आप जानते ही होंगे
2. सरकार उद्योगपतियों को, व्यापारियों को, किसानो को, दलितों को अथवा आम नागरिकों को जब भी कोई सब्सिडी अथवा छूट देगी तो सरकारी खजाने को चुना लगेगा ही, समस्या तब है जब अपात्रों को ये लाभ मिले और जनसेवक को इससे कोई आर्थिक लाभ हासिल हो, ऐसा कैग रिपोर्ट में कहीं नहीं कहा गया है
३. बाबु भाई बुखेरिया अगर भ्रष्ट है तो उन्हें जेल की हवा खानी ही पड़ेगी इसमे समस्या क्या है
4. पुरुषोत्तम सोलंकी पर ये आरोप जिसने लगाये है उसका नाम है इसाक मराडिया और उनके वकील है मुकुल सिन्हा (जोकि गुजरात दंगा पीड़ितों के भी वकील है), इसाक मराडिया जो तालाबों में ठेके लेने के माहिर है और बड़े ठेकेदार है जिनके डर से सामान्य व्यक्ति ठेका लेने में डरता है, सरकार ने निर्णय लिया की इस बार तालाबों के ठेके क्षेत्रीय लोगो को दिए जायेंगे जिससे इसाक मराडिया जैसे बड़े ठेकेदार को वर्चस्व टूटता लगा, इसमे कई ठेके नर्मदा प्रोजेक्ट के विस्थापितों को और आदिवासियों को भी दिए गए जिससे वो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सके इसकी तो सराहना होनी चाहिए
आनंदी बेन पर जो आरोप लगाये गए है वो हास्यास्पद है एक कंपनी इंडीगोल्ड रिफैनरी ने सरकार से उद्योग लगाने की अनुमति मांगी और उसके लिए कुछ जमीन मालिकों से जमीन खरीदी जब उसे लगा की वो वह कारखाना लगाने की स्थिति में नहीं है तो उसने वही जमीन एलुमिना रिफैनरी को बेच दी जो वहां वही कारखाना लगाना चाहती थी चूँकि दोनों कंपनियों का उद्देश्य एक था और सरकार को केवल अनुमति भर देनी थी जबकि उसकी कोई जमीन नहीं थी तो समस्या क्या है
शैलेन्द्र कुमार जी, लोकायुक्त क़ानून में परिवर्तन करके ,जिस तरह नमो ने लोकायुक्त को मुख्य मंत्री का कठ पुतली बना दिया है,उससे पता चलता है कि वास्तव में नमो क्या हैं?
मुकेश अम्बानी को कांग्रेस ने कावेरी बेसिन के प्राकृतिक गैस के कीमत को दोगना करने के लिए किस तरह अपने एक ईमानदार मंत्री की बलि दे दी है,यह किसी से छिपा नहीं है.नमो और उनके समर्थकों के इस विषय में मौन को क्या कहा जाये?
मुझे नहीं लगता की आप तथ्यों को नहीं जानते या जानबूझकर अनजान बनाने की कोशिश करते है,
तब आप कहा थे जब कमल बेनीवाल ने मेहता को लोकायुक्त बनाने के लिए सारी परम्परों को ताक पर रख दिया, अब ये मत कहियेगा की राज्यपाल राजनीती से परे होता है, अब आपके प्रश्न का जवाब आपके लिए नहीं उन लोगो के लिए जिन्हें आप जैसे लोग आधा सत्य बोलकर गुमराह करते है
गुजरात सरकार ने अगस्त २००६ में जस्टिस के आर व्यास की नियुक्ति लोकायुक्त के रूप में करने के लिए जब राज्यपाल को भेजा तो वो उसपर विपक्ष के नेता के विरोध के कारण तीन साल तक फाइल रोक कर बैठी रही और उसे सितम्बर २००९ में लौटाया जबकि उसी दौरान २००७ में जस्टिस के आर व्यास की नियुक्ति महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार ने मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष के रूप में की, उसके बाद जब गुजरात सरकार ने जो तीन नाम(जस्टिस भगवती प्रसाद, जस्टिस ए एल दावे, जस्टिस आर पी डोलकिया) लोकायुक्त पद के लिए दिए थे, उन तीनों नामों को गुजरात हाई कोर्ट की स्वीकृति प्राप्त थी लेकिन गुजरात हाई कोर्ट का अपमान करते हुए इन सभी नामों को नकारकर केवल एक घोषित रूप से मोदी विरोधी आर ए मेहता जो मोदी के विरुद्ध एनजीओ चलाते है, उनके एनजीओ को विदेशों से करोड़ों रुपये फण्ड के रूप में मिलते है को जबरदस्ती लोकायुक्त बनाने को आप क्या अच्छी नियत से किया गया कार्य मानते है, स्वाभाविक है ये लड़ाई राजनीतिक थी और मोदी ने उसे राजनीतिक बना कर लड़ा
जहाँ तक मुकेश अम्बानी की बात है ये बताने की जरूरत नहीं की किसने धीरुभाई को बनाया और कौन आज मुकेश अम्बानी को लाभ पंहुचा रहा है, मुकेश अम्बानी कभी मोदी को मनमोहन के ऊपर नहीं चुनेंगे कांग्रेस उनकी पहली प्राथमिकता है जैसा की वो राडिया टेप प्रकरण में कबूल कर चुके है, मोदी के साथ समस्या ये है की वो एक साथ कई मोर्चों को नहीं खोल सकते एक चतुर राजनेता की यहीं निशानी है, समय आने दीजिये मुकेश भी किनारे लगेंगे
“…नमो और उनके समर्थकों के इस विषय में मौन को क्या कहा जाये?” राजनीति!
खेद इस बात का है, आर. सिंह जी, कि आपकी टिप्पणियों से ऐसा प्रतीत होता है आप वर्तमान भारतीय राजनीतिक वातावरण में अधिकतर राजनीतिक दलों के प्रति अपनी संशयी अथवा मानवद्वेषी मनोवृति के वशीभूत अपने जीवन में कांग्रेस और उसके विपरीत किसी भी राष्ट्रवादी राजनीतिक विकल्प को अपनी परिपक्व गंभीरता नहीं दे पाये हैं| समाज और देश में घोर भ्रष्टाचार व अनैतिकता और जीवन के प्रत्येक स्तर पर अयोग्यता व मध्यमता के कारण भारत में बड़ी विकट स्थिति उत्पन्न हो चुकी है| आपको देश में एक वर्तमान अव्यवस्था एवं दूसरा उसके अच्छे विकल्प, एक को चुनना होगा| कोई तीसरी सम्भावना उपलब्ध नहीं है| बीते दिनों प्रवक्ता.कॉम पर मैंने कांग्रेस और बीजेपी, दोनों को देश में प्रचलित समस्याओं के लिए दोषी बताया है| आज बात लोकप्रिय नेता श्री नरेन्द्र मोदी जी की हो रही है; उनके नेत्रित्व की बात हो रही है| यदि एक जवाहरलाल नेहरु देश को दल दल में ले जा सका है तो मेरा दृढ़ विश्वास है कि एक राष्ट्रवादी नरेन्द्र मोदी देश को दल दल से उठा उज्जवल भविष्य की ओर अवश्य ले जा सकता है| संशयी मन आशा को न खोएं| देश की दो तिहाई जनता द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक के अंतर्गत निस्संदेह गरीब की चीखें भले ही सुनने को न मिलें, आधे अधूरे विकसित देश में बदबू और गन्दगी से घिरीं वैश्विकता व उपभोक्तावाद की आकांक्षाओं के बीच मची घुटन कभी समाप्त न होगी| हमें आने वाली पीढ़ी का सोचना है; अब और अभी|
प्रिय शैलेन्द्र कुमार–
जानकारी देने के लिए धन्यवाद।
नमस्कार मधुसुदन जी,
आपसे ज्यादा कौन जानता है
आभार
(१)====>” मोदी के साथ समस्या ये है की वो एक साथ कई मोर्चों को नहीं खोल सकते एक चतुर राजनेता की यहीं निशानी है, समय आने दीजिये मुकेश भी किनारे लगेंगे”
—बहुत सुन्दर राजनीति की समझदारी आप की टिप्पणी में देख रहा हूँ।
(२)
वास्तविकता की जानकारी, आप ने जो दी, वह मुझे नहीं थी। (अनुमान ऐसा ही था}
आप की विनम्रता के अर्थ में ही –आप के शब्द, सही है; अन्यथा नहीं।
आशीष।
शैलेन्द्र जी,
बहुत अच्छा और उचित जवाब दिया आपने… बधाई!!
बोलो “वन्दे मातरम” और साथ में “भारत मत की जय”
बहुत बहुत शुक्रिया शैलेन्द्र जी यथार्थ परक और तथ्यपरक जानकारी देने के लिए। …
—
सादर,
शिवेंद्र मोहन सिंह
आपका नैथानी जी आपका शुक्रिया … कुछ नई बातों (आरोपों ) के साथ आप आए, पढ़ने वालों को कुछ अन कही बातों का भी पता चला, और शैलेन्द्र जी का बहुत बहुत शुक्रिया की सिलसिलेवार उन्हों ने आपके आरोपों का जवाब दिया और हमें भी नई बातों की जानकारी हुई.
मैं सिर्फ तीसरे बिंदु को लेता हूँ ( हालाँकि शैलेन्द्र जी ने इसका भी बखूबी जवाब दिया है)
बाबू भाई बुखेरिया को जेल की हवा खानी पड़ी इसको नैथानी जी आप किस तरह लेंगे? कानून का राज या कुछ और ? जैसा की केंद्रीय सरकार कर रही है ? सर्वोच्च न्यायलय की कठोर टिप्पणी के बाद संसद को जाम करने के बाद, भ्रष्ट मंत्रियों को जेल भेज गया. क्या यही न्याय व्यवस्था है ? कार्यपालिका का क्या यही उद्देश्य है ?
बुखेरिया ने भ्रष्टाचार किया, आरोप सिद्ध हुए, सीधे जेल में. इसी को न्याय कहते हैं नैथानी जी. अब राजा राम के ज़माने गए की नैतिकता थी, लेकिन कांग्रेस जितने भ्रष्ट भी न हों कि सारे सबूत चीख रहे हों फिर भी सो काल्ड पी ऍम मुंह भी और आँख भी बंद कर ले.
—
सादर,
धोनी जैसे खिलाडी को जोकि झारखण्ड जैसे छोटे से राज्य से आता था कप्तान बनाने पर कुछ लोगो ने ऐसी ही आशंकाए जाहिर की थी, ऐसे ही कुछ लोग महिलाओं के हाथों में उद्योग धंधों एवं बड़ी कंपनियों में उच्च पदों पर काम करने को भी आशंकाओं के नजरियें से देखते है, कुछ लोगो का ये भी मानना है की दलित अथवा पिछड़ी जाति से आने वाला व्यक्ति राष्ट्र के नेतृत्व के लिए सहज ही अयोग्य हो जाता है,
हालाँकि आशंकाओं से देश नहीं चलता इस राष्ट्र में इतनी क्षमता है की वो अपनी गलतियों को दुरुस्त कर सकता है जैसे सभी आशंकाओं से निकलकर बीजेपी ने मोदी के नेतृत्व को चुना है राष्ट्र को भी कोई फैसला लेना होगा चुने जाने के बाद अगर मोदी असफल साबित होते है तो ये राष्ट्र उन्हें किनारे लगाने में कोई संकोच नहीं करेगा
मोदी एक राष्ट्रीय नेता का अनुभव कम और प्रान्त का अधिक रखते हैं
तकनीक से व्यक्तिगत संपर्क संभव नहीं है
उग्र हिन्दुत्व और उदार चेहरा साथमे संभव नहीं है
उनकी जीत में भी सांघिक सिद्धांत की हार है- व्यक्तिवाद का प्रश्रय जो गलती अटल-अडवानी ने की थी
किसी प्रकार सत्ता पा लेने से स्थाई परिवर्त्तन नहीं होगा
जी.. नहीं… आपकी बात सही नहीं… है… और यह आने वाला समय साबित कर देगा…
नमो नारायण…. “वन्दे मातरम”
डॉ. ठाकुर।
आदर सहित, असहमति व्यक्त करता हूँ।
मोदी को किसी भी सूत्रसे ना मापिए।
===>भाग्यवान है भारत ! कि, मोदी अलग मिट्टीका बना है।
यह मोदी अटलजी से और सरदार पटेल से भी अलग है।
सारे अनुमान गलत प्रमाणित होंगे्।
व्यक्तिमत्त्व उनका अपना है।
(एक)===>नरेंद्र मोदी को, किसी पढे पढाए, सूत्र से आंकनेवाले गलत प्रमाणित होंगे।
(दो)==>(मेरा अनुभव) यह व्यक्ति उसकी निंदा से भी सीखता है।
(तीन)===>(मेरा अनुभव) गलतियां समझ में आने पर त्वरित सुधार भी करता है।
इससे अधिक परिपूर्ण इस धरापर अस्तित्व में होता नहीं है।
==========================================
और आज की (प्रमुख )मूल समस्या शासक प्रवर्तित भ्रष्टाचार है।
=====================================
भ्रष्टाचार भी ३ स्रोतों से पनपता है।
(१) शासकीय,
(२) बडे उद्योगों द्वारा और,
३) छुट पुट (जैसा रेल टिकट),
===>मोदी ने (१) केवल गुजरात का शासकीय भ्रष्टाचार ९५% तक, समाप्त किया है।
(२) रा और (३)रा अभी भी, थोडा बहुत,चलता है।
स्वार्थी जनता (हम सब ) उत्तरदायी हैं।
उनके हाथ इतने लम्बे नहीं, कि सारा भ्रष्टाचार अंत कर दे।
कारण है, जब तक देनेवाले हैं, भ्रष्ट धन लेनेवाले भी रहेंगे।
पर शासकीय भ्रष्टाचार समाप्त होना १ ली सीढी है।
जनता को भी सहकार करना होगा।
काम का शॉर्ट कट (रिश्वत देना) छोड दो–दोनो हाथ की ताली मे, देनेवाला हाथ खिंच ले।
नहीं तो मोदी को दोष देते रहोगे।
देशका गोवर्धन पर्बत उठाने में आपको भी अंगुली लगानी होंगी।
रोगी नें पथ्यों का पालन किए बिना डॉक्टर भी कुछ नहीं कर सकता।<=======
चलिए, आप किसका नाम स्वीकार करेंगे? बताइए।
डाक्टर साहब (मधुसुदन जी को संबोधित) – यहाँ रास्ता देने के बजाए टांग खींचने में लोग ज्यादा राहत महसूस करते हैं. काम करने से पहले ही कम अनुभवी घोषित कर देना या प्रांतीय स्तर का नेता घोषित कर देना, कुल मिला कर मूर्खता का ही परिचायक है. ऊपर से टपकाए गए नेता भी तो हैं, उनका भी तो हाल देखें. जमीनी स्तर पर काम किये बिना कोई कैसे किसी बात को समझ सकता है. आज गुजरात की तुलना में कोई राज्य खड़ा नहीं है. ये यूँ ही नहीं हो गया है. आज मोदी के नाम की आंधी काम करने के कारण चली है. हवाई राजनीति करने वाले बहुत हैं उनके नाम पर आंधी क्यूँ नहीं चल रही है?
ठाकुर साहब का वक्तव्य निराशा जनक और व्यतिगत कुंठा का प्रतीक है.
सादर
श्रीमानजी,
और एक बात जो हमारे आज के प्रधानमंत्री हैं… वो कौन सा चुनाव लड़ कर आये हैं… और १० सालों से देश की गद्धी पर मौन व्रत धारण किये बैठे हैं..
जय श्री राम, बोलो “वन्दे मातरम “