यह सत्य है कि इस समय सारे विश्व के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों में मोदी का आभामंडल सबसे अधिक प्रभावी है। अपने इसी आभामंडल के चलते प्रधानमंत्री मोदी देश में अल्पमत की सरकार उतने ही आत्मविश्वास के साथ चला रहे हैं, जितने आत्मविश्वास के साथ उन्होंने अपनी पार्टी की बहुमत की सरकारों को चलाया है। इस बात को देश का विपक्ष भी जानता है कि संविधान में बदलाव करने के उसके भ्रामक प्रचार के कारण मोदी चाहे उस समय अपने स्पष्ट बहुमत से थोड़ा पीछे रह गये हों,परंतु यदि इस समय चुनाव कराए जाएं तो विपक्ष अपनी वर्तमान स्थिति को भी बचाने में सफल नहीं होगा और श्री मोदी उल्टे स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में वापसी कर जाएंगे। इसके साथ-साथ एनडीए के घटक दल भी इस बात को जानते हैं कि प्रधानमंत्री की तूती अभी भी बोल रही है ।
दूसरे शब्दों में राजनीति में इसी को चमत्कारिक व्यक्तित्व कहते हैं। राजनीति में अपने वर्चस्व को स्थापित किए रखने के लिए चमत्कारी व्यक्तित्व का होना आवश्यक होता है। कोई भी तानाशाह अपने इस प्रकार के चमत्कारिक व्यक्तित्व को पैदा करने के लिए डंडे से अपनी लोकप्रियता बनाने का या स्थापित करने का प्रयास करता है। परंतु अंतत: वह असफल ही होता है। उसकी यह तानाशाही वास्तव में राजसिक और तामसिक मानसिकता को झलकाती है। इंदिरा गांधी ने अपने प्रधानमंत्री रहते हुए ‘राजसिक तानाशाही’ का परिचय दिया था और अपने आपको ‘चमत्कारिक व्यक्तित्व’ के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया। ज्ञात रहे कि श्रीमती गांधी अपने पिता नेहरू द्वारा स्थापित झूठे विमर्शों को आगे लेकर चल रही थीं और उन्हीं के आधार पर अपने आप को एक ‘महान नेता’ के रूप में देखना चाहती थीं। जबकि नरेंद्र मोदी इसके विपरीत एक विचारधारा को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। वह देश के जनमानस की भौतिक और दैनिक आवश्यकताओं के प्रति तो गंभीर हैं ही राष्ट्र की आवश्यकताओं के प्रति भी गंभीर हैं । इंदिरा गांधी में और प्रधानमंत्री श्री मोदी में यही अंतर है कि इंदिरा गांधी ‘राष्ट्र की आवश्यकताओं’ के प्रति गंभीर नहीं थीं। राष्ट्र की आवश्यकताओं से हमारा अभिप्राय सनातन की मानवतावादी संस्कृति, ज्ञान परंपरा और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की चिंतनधारा से है।
देश का सनातन समाज यह चाहता है कि देश को सनातन की मानवतावादी सांस्कृतिक विरासत के आधार पर आगे बढ़ाया जाए। जिसमें सभी को जीने और अपना बहुमुखी विकास करने के समान अवसर उपलब्ध हों। किसी का सांप्रदायिक आधार पर तुष्टिकरण न हो। जातिवाद को मिटाया जाए और लोगों की ‘सांप्रदायिक अपेक्षाओं’ के आगे सरकारों को कभी घुटना न टेकना पड़े। जनभावनाओं का सम्मान करके आगे बढ़ते हुए मोदी भली प्रकार जानते हैं कि उनसे देश और राष्ट्र की अपेक्षाएं क्या हैं ? वे यह भी भली प्रकार जानते हैं कि भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए यही सही समय है। वे यह भी जानते हैं कि देश के भीतर अनेक शक्तियां ऐसी हैं जो देश को ‘मुस्लिम राष्ट्र’ बनाने के लिए काम कर रही हैं और इन शक्तियों को देश की धर्मनिरपेक्ष राजनीति भी समर्थन दे रही है। अपनी इसी विशेषता के कारण प्रधानमंत्री मोदी एक सशक्त नेता के रूप में काम कर रहे हैं। जिसके चलते उनकी पार्टी के भीतर भी उन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं है। विपक्ष की तो बात ही छोड़िए क्योंकि वह तो अभी उनका विकल्प तैयार करने से बहुत अधिक दूर है। प्रधानमंत्री मोदी एक ही साथ पार्टी की समस्याओं से भी निपटते हैं, एनडीए की विसंगतियों को भी साधते हैं, देश के प्रान्तों में होने वाले चुनावों को भी अपने पक्ष में लाने का प्रयास करते हैं, देश की सीमाओं का भी ध्यान रखते हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि वह इसी समय सारे विश्व की समस्याओं को सुलझाने में भी अपनी महत्वपूर्ण और सर्वाधिक सशक्त भूमिका निभाते हैं। कदाचित उनकी यही विशेषता उन्हें अभी तक के प्रधानमंत्रियों में प्रथम स्थान पर ला देती है, इसके साथ ही अपने समकालीन नेताओं में सबसे अधिक सशक्त और सफल भी बना देती है।
ट्रंप के टैरिफ वार से प्रधानमंत्री श्री मोदी जिस प्रकार सफलता के साथ निपटे हैं, उससे उनकी अंतरराष्ट्रीय छवि और भी अधिक चमकदार हुई है। उन्होंने ट्रंप के टैरिफ वार की हवा निकालने के लिए रूस और चीन से अपने संबंधों को मजबूत किया है। चीन को पहली बार यह आभास कराया है कि भारत के बिना अंतरराष्ट्रीय राजनीति और संबंधों में चीन की भूमिका कभी महत्वपूर्ण नहीं हो सकती। उन्होंने राष्ट्रपति ट्रंप की बुद्धि को ठिकाने पर लाने के लिए यूरोपियन यूनियन संघ, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और यूरेशिया महाद्वीपों को साधने में भी सफलता प्राप्त की है। इसके साथ ही बिहार में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी जिस प्रकार वोट के अधिकारों को लेकर रैलियों में भ्रामक प्रचार कर रहे थे, उसे भी प्रधानमंत्री मोदी ने गंभीरता से लिया है।
कांग्रेस के मंच से प्रधानमंत्री मोदी की मां को दी गई गाली को प्रधानमंत्री ने एक भावुक मुद्दा बनाया और राहुल गांधी की हवा निकाल दी। भारतीय निर्यातकों और महंगाई की मार को झेल रहे लोगों को लाभ देते हुए उन्होंने जीएसटी की दरों को काम करने का एटम बम चलाकर विपक्ष को शस्त्रविहीन कर दिया है। सही समय पर सही अस्त्र का प्रयोग करने की कला प्रधानमंत्री मोदी के पास है, जिसे देखकर हर कोई अचंभित रह जाता है।
इसके उपरान्त भी हम यह कहना चाहेंगे कि राजनीतिक कौशल अलग है और जन समस्याओं का समाधान देना एक अलग बात है। माना कि सारी जनसमस्याओं का समाधान किया जाना संभव नहीं है, परंतु यह भी नहीं हो सकता कि समस्याओं का ढेर बढ़ता ही जाए। प्रधानमंत्री श्री मोदी के समर्थक भी इस बात को कहते हैं कि देश में भ्रष्टाचार की समस्या में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है । आज भी राजनीतिक पकड़ रखने वाले, बिल्डर, बदमाश या धन्ना सेठ लोगों की तूती समाज में बोलती है। लोगों की यह भी अपेक्षा है कि प्रधानमंत्री मोदी समान नागरिक संहिता और जनसंख्या नियंत्रण जैसे कानूनों को यथाशीघ्र लागू करें। पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लेने की अपेक्षा भी देश के लोग प्रधानमंत्री श्री मोदी से ही करते हैं। इसके अतिरिक्त लोग यह भी चाहते हैं कि प्रधानमंत्री श्री मोदी वेदों को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करें और गीता को उत्प्रेरक उद्बोधन ग्रन्थ के रूप में मान्यता दी जाए। जबकि उपनिषदों को भारत के वैदिक वांग्मय की आत्मा के रूप में स्थान दिया जाए। देखते हैं प्रधानमंत्री श्री मोदी इन चुनौतियों पर किस प्रकार पार पाते हैं? ‘मोदी है तो मुमकिन है’ यह नारा तभी पूर्ण होगा जब इस दिशा में प्रधानमंत्री मोदी कुछ करके दिखाएंगे।
डॉ राकेश कुमार आर्य