माँ

-कुलदीप प्रजापति-

mother

जब से जन्मा हूँ माँ मैं तेरे द्वार पर,

सारी दुनिया की मुझको ख़ुशी मिल गई।

जब से खेला हूँ माँ मैं तेरी गोद में,

स्वर्ग भू से भी बढ़कर जमीं मिल गई।

 

तेरे आँचल से पी है जो बूंदें सभी,

आज दूध की धाराएं अमृत बनी,

जो मिले शब्द बचपन तुझसे मुझे,

बस उन्ही से मेरी जिंदगी ये बनी,

तेरा साया मुझे जो मिला मेरी माँ,

मुझको लगता है जैसे कि छत मिल गई।

 

उँगलियों के सहारे चलाया मुझे,

राह चलना है जिस पर बताया मुझे,

गीले बिस्तर पे सो कर के तुमने सदा,

सूखे बिस्तर हमेसा सुलाया मुझे,

तेरी ममता मिली है मुझे इस कदर,

जैसे दुनिया की दौलत मुझे मिल गई।

 

तुमने मुह निवाला खिलाया मुझे,

कर बहाना उस व्रत का जो ना था कभी,

जो हुई कोई पीड़ा मेरे तन में तो,

कर जतन तुमने दुख वो उभरे सभी,

मेरे अधरों पर आने से पहले ही माँ,

मेरे मन की बातों को तू कह गई।

 

मैं ऋणी हूँ तेरा और रहूँगा सदा,

तेरे ऋण से ही हूँ मैं अब तक जिया,

क्यों उतारूं ये ऋण अब मैं तू ही बता,

जब तेरे रूप मुझको ईश्वर मिला,

तेरे चरणो में ही सरे तीरथ है माँ,

मुझको तीरथ की रूपों में माँ मिल गई।

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