कविता

बन्दर

प्रभु द या ल श्रीवास्तव

अब बंदर भी नहीं चाहता,
रहना बनकर मामा।
नहीं सुहाती है अब उसको,
बूढ़ा फटा पजामा।

     लोग पहनते नई शर्ट पर,
    जीन्स कोट और टाई।
     फटा पजामा पहना कर।
     क्यों उसे सताते भाई।

      उसे कोई जब मामा कहता,
      कांटेसा चुभता  है।
      शकुनी और कंस बन जाना,
       किसे भला लगता है।