विविधा

अब न जागे तो बहुत देर हो जाएगी ….. !

हर हाल में स्थापित होगी ‘ रामलला प्रतिमा ‘

-डॉ0 नवीन आनंद

श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण का जन आन्दोलन एक बार फिर प्रचण्ड वेग से प्रारंभ हो चुका है, यह आन्दोलन अब ‘अ’ राजनैतिक होगा, जिसे सियासी चश्मे से नहीं देखा जाएगा। वैज्ञानिक तथ्य और अदालती दस्तावेज इस सच को प्रमाणित कर रहे हैं कि मन्दिर के अवशेष उक्त स्थल पर हैं, अत: ‘अ’ विलम्ब यहाँ रामलला प्रतिमा का प्राणप्रतिष्ठा समारोह हो जाए।

हिन्दुस्थान में निवासरत सवा सौ करोड़ जनसमूह की भावना के प्रवाह को आगे विदेशी शासक की शक्ल में बैठी भारत सरकार और उत्तरप्रदेश के रहनुमा जाग जाएं, वर्ना बहुत देर हो जाएगी। आमजन का लावा गर्म हो गया है जो किसी भी वक्त फूट सकता है। मंदिर के निर्माण के प्रति दृढ़ संकल्पित है जनता जनार्दन।

श्रीराम यह एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व है, विष्णुभगवान का मानवीय अवतार है। एक आदर्श समाज निर्माण करने के उद्देश्य से उन्होंने अवतार धारण किया। उन्होंने ‘रामराज्य’ प्रतिष्ठापित कर प्रशासन का निर्दोष उदाहरण प्रस्तुत किया – राज्य के अस्तित्तव का आदर्श रूप दिया। सेमेटिक वंश और खासकर अरब और ईसाइयों जैसा वह प्रेषित या मसीहा नहीं था। वह तो ईश्वर का अवतार या उसके माता-पिता, वांशिक परम्परा, इस धरती पर उसका अस्तित्तव इनमें से किसी की भी ईसाई मसीहा जैसे चमत्कारों में गिनती नहीं हो सकती। प्रभु श्रीराम के जन्म का दिन, तिथि, वर्ष और समय-काल को लेकर कुछ भी अनिश्चितता अथवा संदिग्धाता नहीं है। ऐसा होते हुए भी ईसाई शासक, जिन्होंने इस प्राचीन संस्कृति के इतिहास को तोड़-मरोड़ दिया, उन्होंने श्रीराम का वर्णन एक काल्पनिक चरित्र के रूप में किया। लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक पौराणिक गाथाओं के अनुयायियों से आखिर कौन सी अपेक्षा रखी जा सकती है ?

बड़े खेद की बात है, कि बुद्धिभेद किये गये काले साहब, जो इस देश की महान सभ्यता, संस्कृति, धर्म एवं आध्‍यात्मिकता को न मानने वाले हैं, वे उनके चालाक युरोपियन मार्गदर्शकों के कहने में आकर बड़ी ही असत्य बातों को रखते और बढ़ाते जा रहे हैं। साथ-साथ वे अयोध्‍या में प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि में उनके मन्दिर निर्माण का विरोध करते हुए 85 करोड़ हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुँचाना जारी ही रख रहे हैं और यह जत्था-दिखने में भारतीय परन्तु भारत के विरोधियों से निष्ठा रखने वाला- इसकी इस देश का सत्ता केन्द्र, प्रसारमाध्‍यम, नौकरशाही, शासनसंस्था, राजनीतिक क्षेत्र और लोगों के बीच हो रही चर्चा आदि सभी पर बड़ी मजबूत पकड़ है। पुरातत्तव विज्ञान सम्बंधी ऐतिहासिक प्रमाणों से पुष्टि हो रहा, इस धरती पर श्रीराम के राज्य शासन के सम्बंध में उपलब्धा समकालीन साहित्य और इन सभी से महत्तवपूर्ण होने वाली भारत के करोड़ों हिन्दुओं के तथा इस्लामी देश इंडोनेशिया एवं बुद्धिस्ट देश कांबोडिया और थायलेंड के नागरिकों के मन में श्रीराम के लिए होने वाले असीम श्रध्दाभाव के बावजूद भी देश के छद्म निधर्मी प्रस्थापितों के लिए श्रीराम यह एक खास कुछ ध्‍यान देने लायक व्यक्तित्व नहीं है। आखिर क्यों ? केवल इसलिए, कि तथाकथित छद्म निधर्मी तत्तवों के मुखिया मुस्लिम ‘व्होट बैंक’ को खुश रखना चाहते हैं। दिनांक 5 मार्च, 2003 को न्यायालय ने ‘पुरातत्तव सर्वेक्षण विभाग’ (ए.एस.आय) को उस जगह पर उत्खनन करने का आदेश दिया, जिससे वह वहाँ किसी मन्दिर के होने की सम्भावना की दुष्टि से पर्याप्त सबूत प्राप्त करा सके – मन्दिर, जो ध्‍वस्त किया गया था और उस स्थान पर मस्जिद बाँध दी गई थी।

भारत के पुरातत्‍व सर्वेक्षण विभाग (ए.एस.आय.) ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ पीठ के समक्ष प्रस्तुत किये हुए अपने अंतिम उत्खनन वृत्तन्त में एक लम्बे अर्से से हिन्दू जिसके लिए दावा कर रहे हैं, उसी तथ्य का तात्पर्य प्रकट किया है। विभाग ने (ए.एस.आय.) न्यायालय को जानकारी दी कि अयोध्‍या के तथाकथित बाबरी मस्जिद कहलाने वाले ढाँचे के निर्माण के पहले नीचे एक मन्दिर जैसी विशाल इमारत का अस्तित्तव था और लगभग 3300 बरसों से वहीं कुछ न कुछ भवन निर्माण निरंतर रूप से चलने के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं।

सन् 1975 में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के निवृत्त महानिदेशक और पुरातत्वशास्त्री श्री बी.बी. लालजी ने रामायण से सम्बंधित क्षेत्रों में पुरातत्तवीय संशोधन हेतु एक शोध प्रकल्प का आरम्भ किया था। उन्होंने श्री के.व्ही. सुंदरराजन के नेतृत्व में काम करने वाले एस.आय. के दल के साथ उस क्षेत्र में उत्खनन किया और उत्खनन के लिए उन क्षेत्रों में से रामजन्मभूमि को चुना। वहाँ की एक दरार में श्री लाल को एक ईंटों की बड़ी भारी दीवार और इमारत की मंजिलों के ध्‍वस्त होने पर जमा मलबा दिखाई दिया। इतना ही नहीं, तो ‘दि ग्राऊंड पेनिट्रेटिंग रडार सर्व्हे (जी.आर.पी.एस.) – इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देश पर हाल ही में (जनवरी 2003) किया गया वैज्ञानिक सर्वेक्षण – उसने उस विवाद्य ढाँचे के नीचे भवन का अस्तित्व होना साबित कर दिया है। हिन्दुओं के हित में रामजन्मभूमि को मुक्त कराने के बहुत सारे प्रयासों के दौरान ही एक रामभक्त श्री गोपाल सिंग विशारद द्वारा दिनांक 16 जनवरी, 1950 को फैजाबाद सिविल जज के समक्ष, उस स्थान पर अनिर्बंध दर्शन की अनुमति माँगने वाली अर्जी दर्ज की। एक ज्येष्ठ संत और रामजन्मभूमि न्यास के पूर्व अध्‍यक्ष स्व. महंत रामचंद्र परमहंस जी ने भी उसी प्रकार का आवेदन दर्ज किया था। सन् 1984 में विश्व हिन्दू परिषद ने मन्दिर पर पड़े ताले खुलवाने के लिए एक विशाल अभियान छेड़ा था, जिसके फलस्वरूप फैजाबाद सेशन्स जज ने दिनांक 1 फरवरी 1986 को हिन्दुओं को उस स्थान पर पूजा-आराधना करने की अनुमति दी और ताले फिर से खोले गये। सन् 1988-89 के दौरान देशभर में हिन्दुओं से लगभग दो लाख ‘रामशिलाओं’ का पूजन सम्पन्न हुआ। दिनांक 9 नवम्बर 1989 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विवाद न होने वाली भूमि पर शिलान्यास करने की अनुमति दी। सन् 1990 में भाजपा के तत्कालीन अध्‍यक्ष श्री लालकृष्ण अडवानी जी ने ‘ सोमनाथ से अयोध्‍या ‘ ऐसी रथयात्रा आरम्भ की लेकिन आपको बिहार में गिरफ्तार किया गया, जिसका परिणाम व्ही.पी. सिंह सरकार का पतन होने में हुआ और लाखों की संख्या में कारसेवक अयोध्‍या में एकत्रित हुए। उन्होंने विवादित ढाँचे के ऊपर भगवा झण्डा फहराया और पुलिस द्वारा गोलियाँ चलाई जाने पर 30 लोग मारे गये। दिनांक 6 दिसम्बर 1992 के दिन उत्तेजित हुए कारसेवकों ने विवादित ढाँचे को ध्‍वस्त किया और उस स्थान पर एक अस्थायी मन्दिर का निर्माण कर दिया। एन.डी.ए. की सरकार केन्द्र में बनने पर प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के आदेश पर सलाह-मशविरे के माध्‍यम से समस्या का हल निकालने के प्रयास किये गये। कांची के पूज्य शंकराचार्य ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ चर्चा करने की पहल की परन्तु चर्चा असफल रही। दिनांक 12 मार्च 2003 को ए.एस.आय. ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देश पर अयोध्‍या में उत्खनन आरम्भ किया।