सियासतदानों के लाख विरोध या ऐतराज के बावजूद वर्तमान सियासी परिप्रेक्ष्य आज दोराहे पर पहुंच चुके हैं । इस दोराहे का पहला रास्ता है मोदी समर्थकों का तो दूसरा रास्ता बेशक मोदी के हरसंभव विरोध की ओर जाता है । यदि मोदी के समर्थक पूरे देश में मौजूद हैं तो उनके विरोधी भी प्रत्येक पार्टी में हैं । ये विरोधी उनकी छोटी बड़ी प्रत्येक हरकत या वकतव्य को मुस्लिम विरोधी बताने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते । बहरहाल खेद का विषय है उनका ये तुच्छ प्रयास आज मोदी को एक ब्रांड के रूप में स्थापित कर चुका है । यही वजह है कि आगामी लोकसभा चुनाव मोदी बनाम अन्य के रूप में लड़े जाने की पूरी संभावना है ।
अभी हाल में मोदी के एक समाचार एजेंसी को दिये इंटरव्यू ने सियासत दानों को गुर्राने की एक नयी वजह दे दी है । अपने इस साक्षात्कार में उन्होने स्वयं को हिन्दू राष्ट्रवादी बताया है । अक्सर गोधरा के मुद्दे पर शांत रहने वाले मोदी ने इस बार ये स्पष्ट कर दिया कि इन दंगों में उनकी कोई गलती नहीं थी इसलिए उन्होने इस घटना का कोई अफसोस नहीं है । जहां तक जन धन की हानि का प्रश्न है तो एक पिल्ले की मौत से भी दुख पहुंचता है । यदि हिन्दुत्व के दर्शन से देखें तो उनका ये कथन बिल्कुल जायज है,क्योंकि सनातन दर्शन में जीव मात्र के प्रति दया करने की बात कही गयी है । इस पूरे वाक्य को उपरोक्त दर्शन से देखें तो उनकी बातों का स्पष्ट सा अर्थ मात्र इतना है कि उन्हे इस दुर्घटना में मृत लोगों के प्रति गहन संवेदना है । बेहद सामान्य अर्थों के इस कथन पर यूं तो सियासत का कोई प्रश्न नहीं उठना चाहिए किंतु दुर्भाग्य से कई अल्पमति नेताओं ने इसे मुसलमानों का अपमान बता दिया । इस विषय में सबसे बड़ी बात तो ये है कि उनके इस कथन पर मुस्लिम समाज की कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी लेकिन इन छुटभैयों ने इसे मुस्लिम समाज का निरादर घोषित कर दिया । क्या ये सामाजिक समरसता बिगाड़ने का दुराग्रह नहीं है ?
सबसे हैरत कि बात तो ये है घपले , घोटाले एवं वंशवाद की राजनीति करने लोग अब मुस्लिम वोट के लालच में सारी हदें लांघने को अमादा हैं । कुछ लोगों को उनका स्वयं को हिन्दू राष्ट्रवादी कहना रास नहीं आया । आप ही बतायें क्या समस्या है इस शब्द में ? जहां तक प्रश्न है हिन्दू होने का तो ये वाकई गौरव की बात है और राष्ट्रवादी होना कोई अपराध नहीं है । जीव मात्र के प्रति समभाव को स्वीकार करने वाली सनातन सभ्यता सदैव वंदनीय है । स्मरण रहे कि इस सभ्यता ने अपने प्रति दुर्भावना रखने वाले आक्रांताओं एवं लुटेरों को भी स्वीकार्यता प्रदान की है । इतिहास गवाह है कि समस्त अत्याचारों के बावजूद अपने संस्कारों के कारण अहिंसक रहने वाले हिन्दुओं को सीमा के दोनों ओर छला गया है । ऐसे में हिन्दू होना अपराध कैसे है ? धार्मिक आधार पर विभाजन के बाद हिन्दुओं की पाकिस्तान में दयनीय स्थिती से हम सभी बखूबी परिचित हैं । इसके अलावा आजाद भारत के कश्मीर,असम आदि मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में हिन्दुओं की दुर्दशा को नकारा नहीं जा सकता । इन सबके बावजूद हिन्दुओं का तिरस्कार करना तुष्टिकरण का चरम विन्दू है । इस पूरे विषय को दूसरे नजरिये से देखें तो भी जो कानून मुस्लिमों को आजाद भारत में पाकिस्तानी ध्वज लहराने,वंदे मातरम का बहिष्कार करने एवं अन्य राष्ट्रद्रोही गतिविधियों में संलिप्त होने को मानवाधिकार से जोड़कर देख सकता है,वही कानून मोदी को सगर्व स्वयं को हिन्दू कहने से कैसे रोक सकता है ? या भाई लोगों को मोदी के टोपी न पहनने से इतना ऐतराज क्यों है ? ये तो अपनी पसंद का विषय है ।इसी राष्ट्र में यदि कुछ लोग संविधान को नकार कर शरियत के अनुसार चल सकते हैं तो नरेंद्र मोदी द्वारा स्वयं को हिन्दू कहने का इतना विरोध क्यों ?
इस विषय में सबसे सतही प्रतिक्रिया मुलायम सिंह यादव ने दी जिन्होने मोदी को उत्तर प्रदेश आकर संस्कृति और सांप्रदायिक आधार से रहित राजनीति सीखने की नसीहत दे डाली । विचारणीय प्रश्न है किस संस्कृति की बात कर रहे हैं मुलायम ? कौन नहीं जानता मुलायम की सांप्रदायिक राजनीति जिसने शहादत जैसे गर्वपूर्ण विषय को मजहब के आधार पर विभाजित कर डाला ? कौन भूल सकता है मुलायम का दोहरा चरित्र जिसने समूचे उत्तर प्रदेश का समूल नाश कर दिया ? किस योग्यता के आधार पर मोदी को नसीहत दे रहे हैं मुलायम ? गौरतलब है कि समाजवाद के नाम पर परिवार वाद एवं तुष्टिकरण को बढ़ावा देने वाले माननीय मुलायम क्या राष्ट्रवाद का अर्थ समझते हैं ? क्या राष्ट्रवाद शहादत को श्रेणियों में विभक्त करता है ? जहां तक विकास,शांतिव्यवस्था एवं भाईचारे का प्रश्न है तो इस विषय पर भी सपा शासित उत्तर प्रदेश गुजरात से कई दशक पीछे है । सबसे महत्वपूर्ण बात आतंकियों पर चल रहे मुकदमों को वापस लेना,दहशत गर्दों की मौत पर मुआवजा बांटने को यदि मुलायम अपनी विशेष योग्यता मानते हैं तो ये बेशर्मी की इंतहां ही होगी । गौरतलब की कथित आतंकी खालिद मुजाहिद की मौत पर मुआवजा देकर सपा सरकार ने अपना मूल चरित्र दर्शा दिया है । जिया उल हक के परिवार पर घड़ियाली आंसू बहाने वाले ये तथाकथित सेक्यूलर लोग इलाहाबाद में शहीद हुए एसएसपी आर.पी द्विवेदी की मौत पर इतने निष्ठुर क्यों हो जाते हैं । ऐसे दर्जनों से अधिक मामले हैं जहां मुलायम जी का घृणित समाजवाद सतह पर आ चुका है । इन सारे तथ्यों से एक बात तो स्पष्ट है कि मुलायम जी की ये दुश्चिंता किसी सिद्धांत को नहीं वरन उनकी वोटबैंक की राजनीति को ही दर्शाती है ।ऐसे में दूसरों पर आरोप लगाने से पहले मुलायम जी पहले अपने गिरेबां में झांककर देखना चाहीए । आखिर में विचारणीय प्रश्न है, किस संस्कृति की बात कर रहे हैं मुलायम ?
वैरी वेल इलस्ट्रेटेड….
गुप्ताजी ने बिलकुल सही कहा है….
बेचारे मुलायम जी की संस्कृति का दायरा अपने परिवार,और मुस्लिम मतों पर आकर सिमट जाता है.उनकी रोजी रोटी का सहारा मात्र ये ही है.अन्यथा कौन उन्हें उत्तर प्रदेश में पूछे,और सीट्स न मिलने पर केंद्र में.असल में आज जनता को जागरूक होने की जरूरत है मुसलमानों को भो समझ लेना चाहिए की उनका कितना भला कितना विकास इन्होने किया है.कुछ चापलूस जो मुस्लिम मतों के ठेकेदार बने हुए है अपने, अपनों के स्वार्थ पुरे कर रहें है,बाकि सामान्य मुस्लिम की वहां क्या हालत है यह जा कर देखने से ही पता चल जाता है.राजनितिक चरित्र ,सिधान्त तो आज किसी दल के रहे ही नहीं.रही सही कसर अपराधियों ने पूरी कर दी है.सुप्रीम कोर्ट के द्वारा रोक लगाने के निर्णय पर सबसे पहले पी एम को पत्र लिखने व इस निर्णय को क्रियान्वित करने की रोक के लिए सबसे पहले इन्होने ही पत्र लिखा है.क्योंकि सबसे ज्यादा संख्या आनुपातिक तौर में इस पार्टी के पास ही है.ये भी उनकी राजनितिक संस्कृति की बड़ी मिसाल है.अतएव इसकी अपेक्षा करना उनके साथ ज्यादती होगी.अब तक हर महत्व पूर्ण विषय पर संसद में ऍन समय पर पाला बदलना,अपने साथियों को ऍन समय पर दगा देना उनके दोहरे चरित्र ,दोगलेपन व तथाकथित संस्कृति के अच्छे उदाहरण हैं.