मुन्ना बोला

 

        मैंने सपने में देखा है,तुम दिल्ली जानेवाले हो|

       किसी बड़े होटल में जाकर,रसगुल्ले खाने वाले हो|

 

       मैंने सपने में देखा है भ्रष्टाचार समापन पर है| 

        बेईमानी सब हवा हो गई,सच्चाई सिंहासन पर है|

 

       मैंने सपने में देखा है,लल्लूजी फिर फेल हॊ गये|

       सुबह सुबह ओले बरसे हैं, बाहर रेलम ठेल हॊ गये|

        

       मैंने सपने में देखा है,मुन्नी की मम्मी आई है|

        चाकलेट‌ के पूरे पेकिट,अपने साथ पांच लाई है|

 

        मैंने सपने में देखा है, तुमने डुबकी एक लगाई|

        सबसे बोला चलो नहा लें,नदी आज खुद घर पर आई|

 

         मैंने सपने में देखा है तुम मेले में घूम रहे हो|

        अच्छे अच्छे फुग्गे लेकर, बड़े मजे से चूम रहे हो|

 

        मैंने सपने मॆं देखा है, तुम बल्ले से खेल रहे हो|

         चौके वाली गेंद दौड़कर, कूद कूद कर झेल रहे हो|

 

        मुन्ना बोला पर दादाजी,सपने तो झूठे होते हैं|

       हम बच्चों को चाकलेट और ,बिस्कुट ही बस‌ सुख देते हैं|

 

       चलकर कल्लू की दुकान से,चाकलेट बिस्कुट दिलवा दो|

        दिन में जो सपने देखे हैं ,पलकों पर सॆ उन्हें हटा दो|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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