मुस्लिम वोटों की सौदेबाज़ी 

1
284
अनिल अनूप 

क्या मुस्लिम वोट किसी नेता या पार्टी की बपौती हो सकते हैं? क्या ओवैसी सरीखे नेता मुस्लिम वोट को कांग्रेस या भाजपा की ओर स्थानांतरित कर सकता है? क्या मुस्लिम वोटों की सौदेबाजी संभव है और सिर्फ उन्हीं के जरिए सत्ता हासिल की जा सकती है? क्या मुस्लिम वोटों की खरीद-फरोख्त के लिए ओवैसी या कांग्रेस अधिकृत हैं? क्या नेता और मतदाता भी लोकतंत्र में पूरी तरह बिकाऊ होते हैं? ये सवाल फिलहाल बेहद संवेदनशील, गंभीर और प्रासंगिक हैं, क्योंकि चुनावों का दौर है। बेशक भारतीय राजनीति में ऐसे बिकाऊपन की कोई जगह नहीं है, भारतीय लोकतंत्र की धाराएं भी ऐसी बिकाऊ सियासत से नहीं चलतीं। यदि ऐसा ही होता, तो भारत के लोकतंत्र में प्रभावी परिवर्तन न होते। एक ही नेता और एक ही राजनीतिक दल की अनंत सत्ता होती, लेकिन ऐसा नहीं है। भारतीय राजनीति में कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं भी हुई हैं। मसलन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर सचिवालय में ही मिर्ची पाउडर से हमला किया गया है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने राहुल गांधी और कांग्रेस के अहंकार को महागठबंधन के लिए सबसे बड़ा रोड़ा माना है, लेकिन चुनाव के मौजूदा दौर में एमआईएम पार्टी के अध्यक्ष एवं लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि तेलंगाना में रैली न करने के लिए 25 लाख रुपए की पेशकश कर उनका ईमान खरीदने की कोशिश की गई है। यह भी इच्छा जताई गई है कि वह मुस्लिम इलाकों में पार्टी का प्रचार भी न करें। ओवैसी ने दावा किया है कि पेशकश करने वाले व्यक्ति का ऑडियो उनके पास है। ओवैसी का आरोप यह भी है कि राहुल गांधी ने कपिल सिब्बल को बाबरी मस्जिद केस की पैरवी करने से मना किया था। हालांकि कांग्रेस ने इन तमाम आरोपों को हास्यास्पद करार देते हुए खंडन किया है और ओवैसी से सबूत मांगे हैं, लेकिन कांग्रेस पर सवाल तो खड़े हो रहे हैं कि उसका चरित्र दोहरा है। ओवैसी की भी सियासी शख्सियत ऐसी है कि उनके बयान और आरोपों पर यूं ही यकीन नहीं किया जा सकता। अलबत्ता ओवैसी के कथनों की दो व्याख्याएं जरूर की जा सकती हैं। पहली, ओवैसी यह संकेत देना चाहते हैं कि कांग्रेस भी हिंदूवादी पार्टी है, क्योंकि वह धर्मनिरपेक्ष नहीं है, मुसलमानों की पक्षधर नहीं है। दूसरी व्याख्या यह की जा सकती है कि ओवैसी के ऐसे बयान से भाजपा को चुनावी फायदा हो सकता है। दरअसल ओवैसी की पार्टी ने उप्र, महाराष्ट्र, बिहार और कर्नाटक आदि राज्यों में जिन सीटों या इलाकों में जब भी चुनाव लड़ा है, तो भाजपा को ही फायदा हुआ है, लिहाजा कांग्रेस एमआईएम को भाजपा की ‘बी टीम’ करार देती रही है। कांग्रेस का यह भी मानना है कि चुनावों के दौरान ओवैसी भाजपा की ही भाषा बोलते हैं। चूंकि तेलंगाना में भी 7 दिसंबर को मतदान होना है और तेलंगाना में ही ओवैसी की पार्टी का जनाधार है। ओवैसी हैदराबाद के ही सांसद हैं। तेलंगाना में करीब 12.5 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं और विधानसभा की 40 सीटों पर मुस्लिम ही निर्णायक साबित होते रहे हैं, लिहाजा मुसलमानों को कोई भी नजरअंदाज नहीं कर सकता। उस राज्य में भाजपा का आधार फिलहाल ज्यादा नहीं है, लिहाजा कांग्रेस किसी भी तरह ओवैसी को मनाना या दबाना चाहती है। ओवैसी को जो ‘चुनावी घूस’ देने की पेशकश की गई है, उसका प्रभाव मुस्लिम वोट पर पड़ना तय है। अहम सवाल यह भी है कि क्या भारत में दूसरी सबसे बड़ी आबादी मुसलमान चुनावी तौर पर बिकाऊ हो सकते हैं? क्या इन आरोपों से मुस्लिम वोट कांग्रेस से नाराज भी हो सकते हैं और ओवैसी की पार्टी के पक्ष में ध्रुवीकृत हो सकते हैं? यदि साक्ष्य का ठोस ऑडियो ओवैसी के पास है, तो वह उसे सार्वजनिक करने में हिचक क्यों रहे हैं?

1 COMMENT

  1. वह समय चला गया जब मुस्लिम किसी एक दल या किसी एक नेता के पीछे चलते थे ,अब तो इनके मसीहा बन ने वाले नेता व दल भी इसे अचछी तरह जानते हैं तभी तो कमल नाथ को मध्य प्रदेश में हर मुस्लिम बहुल बूथ पर ९०% मतदान कराने की गुहार लगानी पड़ी आज ओवेशी को भी मुस्लिम वह कद्र नहीं देते जिस की वे हुंकार भरते हैं , आज का मतदाता काफी समझदार हो गया है कुछ लोग ही इन के बहकावे में आ पाते हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,467 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress