मुक्ति संग्राम में मेरा, अपने इष्ट से मिलन हो गया

अमर शहीद-भगतसिंह -राजगुरु -सुखदेव की शहादत को चिरस्मरणीय बनाते हुए-काव्यात्मक श्रद्धाँजलि !

मुक्ति संग्राम में मेरा ,अपने इष्ट से मिलन हो गया।।
पग शहीदों ने आगे धरा ,वो युग का चलन हो गया।
गुलामी के फंद काटने , जब जवानियाँ मचलने लगीं,
तब क्रांति यज्ञ वेदी पर , शहादत का हवन हो गया।,,,,,[मुक्ति संग्राम में मेरा ……… ]

कालकोठरी में एक-एक क्षण , विप्लव के संग हम जिए,
जन -जन हुंकार जब उठी ,अरुण तब लाल हो गया।
मानव इतिहास ने सभी ,ग्रन्थ रचे दासता भरे,
स्वतंत्रता अहम हो चली , संघर्ष जब वयम हो गया।,,,,,,,,,[मुक्ति संग्राम में मेरा ,,,,,,,,,]

धुंध भरे व्योम में हम, धूमकेतु जब बन गए,
गुलामी को चीरकर तब , राष्ट्र कुंद इंदु हो गया।
कालजयी क्रांतियों के ,पृष्ठ कुछ हम भी लिख चले,
विचारों के नीड में परम ,सत्य से मिलन हो गया।,,,,,,,,,,,,,[मुक्ति संग्राम में मेरा ……]

अंजुली में अर्ध्य को लिए, ‘इंकलाब ‘ गुनगुना चले,
छंदों के क्षीर सिंधु में , श्रेष्ठ महा मंत्र हो गया।
जुल्म की सुनामियों के , क्रूर दिन जब लद चले,
मुल्क की आजादी का , हमको इल्हाम हो गया।,,,,,[मुक्ति संग्राम में मेरा ….]

संघर्ष सिंधु मंथन का, गरल कंठ हमने धरा,
चूमा फांसी के फंदे को, मानों मीत से मिलन हो गया।
सींच अपने लहू से हम ,नए वतन का सृजन कर चले,
क्रांति का परचम लिए , धन्य अपना गमन हो गया।
मुक्ति संग्राम में मेरा , अपने इष्ट से मिलन हो गया।।

-श्रीराम तिवारी

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