मां पिता और मेरी मां

—विनय कुमार विनायक
मां! मां तुम कहां हो?
मां तुम यहां हो! मां तुम वहां हो!
मां तुम जमीं में हो या आसमां में हो
मां तुम चाहे जहां हो तुझमें ये सारा जहां
मां तुम तो सारा जहां हो!

मां तुझमें राम है/मां तुझमें श्याम है
मां तुझसे ही मेरा अस्तित्व व नाम है!

मां तुम शतरुपा हो! मां तुम श्रद्धा हो!
मां कौशल्या देवकी यशोदा महामाया हो!
मां तुमने जना सारे अवतार भगवान को!

मां तुम्हीं हो सीता/तुम्ही रुक्मिणी राधा!
मां तुम्हीं हो बहन शांता तुम्हीं सुभद्रा हो!
मां तुम मेरे मामा की कलाई की शान हो!

मां तुम वेद की ऋचा/ब्रह्म की वाणी
मां तुम विनायक की बुद्धि मती ज्ञान
वैभव सम्पत्ति यश कृति वीर माता की मूर्ति
अर्जुन की भार्या देवी सुभद्रा के समान हो!

मां तुमने जना सारे इन्सान को
मां तुमसे हीं बना वो सारे भगवान जो!

मां तुम राम-कृष्ण-गौतम-महावीर-दसगुरु
अवतार-तीर्थ़कर-पैगंबर-पीर-फकीर
प्रताप-शिवा-भगतसिंह-सुखदेव-राजगुरु
बिस्मिल-असफाक-उथमसिंह-गांधी-सुभाष
तुलसी-कबीर-जायसी-जयशंकर-दिनकर
मैथिलीशरण मीरा निराला के महाप्राण हो!

मां तुम ईश्वर की अर्चना जगत की वन्दना
ऋषि मुनि साधु सज्जन सपूतो की साधना
पवित्रता में धूप दीप पुष्प पूजा अराधना हो!

मां तुमनें जन्म दिया सबको
मां तुम भगवानों के भगवान हो!
पर ये तुलना भी सच्चा नहीं है
भगवान भी मां से अच्छा नहीं है
मां तुम मां हो! मां हो केवल मां हो!
भगवानों के भगवान की तुम मां हो!

मुझे विश्वास है मां के पहले
कुछ भी नहीं था अन्यथा;
राम-कृष्ण-बुद्ध-जिन-ईसा
मां की कोख से क्यों आता?

अस्तु जन्म लेने वाला शिशु
अल्लाह खुदा भगवान नहीं
पहला शब्द मां क्यों कहता?
मां! मां! अम्मा! अम्मा! माता
ओमां! ओम्! ओम्! ॐ नमः मां:!

पिता
—विनय कुमार विनायक
पिता! पिता! पिता!
जब पास नहीं होता
तब अहसास होता
धाता-विधाता से बड़ा
अगर कोई होता
वह पिता ही होता!

वह पिता ही होता!
जहां भगवान नहीं
वहां भी पिता होता
पिता हो जहाँ में या
आसमानी हो गए
पिता का ही चेहरा
हमेशा ध्यान में होता!

चाहे सूर्य डूबा हो, चांद ना उगे
पिता का ही मुख
विहंसता सुनसान में होता!

जब जेब हो खाली
मुंह में ना निवाला
तब पिता की याद ही
देती है हमें दिलासा!

पिता ही पता है/ठौर ठिकाना है!
पिता नहीं तो हर शहर अंजाना है!
पिता नहीं तो हर रिश्ता बेगाना है!

पिता नहीं तो ना गीत ना गाना है!
पिता नहीं तो किस पर इतराना है!
पिता नहीं तो किस पर खिजाना है!

पिता नहीं तो किसको सुनाना है!
पिता नहीं तो किसको रुलाना है!
पिता नहीं तो किससे तुतलाना है!

पिता नहीं तो सब अफसाना है!
पिता सब खुशियों का खजाना है!
पिता नहीं तो टुअर कहलाना है!
पिता नहीं तो अनाथ हो जाना है!

मेरी मां
—विनय कुमार विनायक
मेरी मां में खासियत थी
किसी को रेकार नहीं मारती
जिसको जो नाम दी थी
उसको उसी नाम से पुकारती!

बड़का ब्रह्मदेव को बरहो
छोटका वीरेन्द्र को बीरहो
कहके धीरे से पुचकारती
मंझले संजय के मुख में
अपना ही मुख निहारती
तीसरे राजेश को राजाबाबू
चौथे सुनील को लेल्हा बेटा
कहकर मन से मनुहारती!

बेटी जो रोमा है
उसकी शोभा निहारती
छुटकी निशी को पुतली
कहके बारंबार चुमकारती!

मेरी मां मेरे पिता को
मेरे नाम से हे ब्रह्मदेव!
हे ब्रह्मदेव! हे ब्रह्मदेव!
कहकर धीरे से गुहारती
ना कभी थकती ना हारती
तीनों लोक मेरे पिता पर बारती
मेरी मां! मेरी मां! मेरी मां!
किसी को रेकार नहीं मारती!
-विनय कुमार विनायक

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