नगर सेठ की गाड़ी

    दो बैल जुते इस गाड़ी में,

    यह नगर सेठ की गाड़ी है |

    लोगों  का पीछा करती है,

    न उनसे कभी पिछड़ती है|

    कितना भी तेज चले जनता,

    यह साथ साथ में चलती है|

    है बिना रुके ही चढ़ जाती ,

    यह ऊंची बड़ी पहाड़ी है|

    यह नगर सेठ की गाड़ी है|

    गर्दन में घुंघरू बंधे हुए,

    खन खन का शोर मचाते हैं|

    सब नगर सेठ की गाड़ी को ,

    जग में बेजोड़ बताते हैं|

    है बैलों की पहचान अलग,

    लम्बी मूंछें हैं दाढ़ी है|

    यह नगर सेठ की गाड़ी है|

    यह नगर सेठ की गाड़ी जब ,

    चलती ,तो चलती जाती है|

    पड़ते हैं पाँव जहां इसके ,

    पग चिन्ह छोड़ यह आती है|

   यह सीधी नहीं चली अब तक,

   यह चलती तिरछी आड़ी है|

     यह नगर सेठ की गाड़ी है|

       यह सेठ बड़ा व्यापारी है,

       बच्चों से इसकी यारी है|

       बच्चों को आगे ले जाना,

       इस गाड़ी की तैयारी है|

       दम लेगी मंज़िल तक जाकर,

       यह गाडी अभी दहाड़ी है| 

       यह नगर सेठ की गाड़ी है|
  

      बच्चे होते प्रतिभा शाली ,

      बच्चे ही देश बनाते  हैं|

      बच्चों के ओंठों पर आकर,

      ही भाग्य देव मुस्काते हैं |

      मारा जिसने मैदान वही तो,

      होता बड़ा खिलाडी है|

      यह नगर सेठ की गाड़ी है|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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