नरेन्द्र मोदी, मुस्लिम तुष्टीकरण और अखण्ड भारत का चुनाव

-डॉ. मनोज चतुर्वेदी-
narendra-modi

भारतीय लोकतंत्र की सोलहवीं लोकसभा का चुनावी बिगुल बज चुका है। 7 अप्रैल से 12 मई तक 9 चरणों में होने वाले इस चुनावी समर के अखाड़े में दो दर्जन से अधिक छोटी-बड़ी राष्ट्रीय, क्षेत्रीय पार्टियां अपने-अपने नये पुराने क्षत्रपों के साथ ताल ठोंककर एक-दूसरे के आमने-सामने हैं। इन सभी पार्टियों के अपने नफे-नुकसान, स्वार्थ के हित को पूरा करने में जो पार्टी सफल हैं, वह उसके आगे नतमस्तक हो रहे हैं। इन सबके बीच एक बात सामान्य है, वह है मुस्लिम तुष्टीकरण और जातीयता, क्षेत्रीयता के आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण के लिए छद्म धर्मनिरपेक्षता का चोला पहनकर खुद को अल्पसंख्यक इनमें से मात्र मुस्लिमों का सबसे बड़ा रहनुमा बनना। इसी कड़ी के पहले 1992 की बाबरी मस्जिद ढहाने का मगरमच्छी आंसू हर चुनाव में प्रत्येक दल के उम्मीदवार बहाते थे और 12 वर्ष पुराने 2002 के गुजरात के गोधरा कांड पर भाजपा के घोषित भावी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को घेरने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी से पहले लगभग 20 हजार दंगे और अभी हाल में गत डेढ़ वर्षों के दौरान उत्तर प्रदेश के लगभग 200 सांम्रदायिक दंगे उन्हें नजर नहीं आते। मात्र नरेन्द्र मोदी के नाम पर मुस्लिमों को डराना और उनके वोट हासिल कर सत्तासीन होना ही कांग्रेस, तीसरा मोर्चा, ‘आप’ और तथा कथित धर्मनिरपेक्ष जैसी पार्टियों का एकमात्र उद्देश्य रह गया है। तकनीकी शिक्षा, सीमा रक्षा, पड़ोसी राष्ट्रों से संबंध आर्थिक विकास दर महंगाई, भ्रष्टाचार, नारी सुरक्षा, आदि में से कोई भी बिन्दू इन भाजपा विरोधी दलों को महत्वपूर्ण नही लगता। इसीलिए मात्र गोधरा कांड, या मोदी मुस्लिम प्रेमी नहीं हैं, आदि बेहूदे तर्क और गाली-गलौज की भाषा से ही राजनीति करना इन तथाकथित नेताओं का उद्देश्य रह गया है। जबकि गोधरा कांड के 12 वर्षों के बाद भी गुजरात साम्प्रदायिक दंगों से मुक्त एकमात्र राज्य है। तमाम राजनीतिक विरोधों, और प्रयासों के बावजूद मोदी तीन बार सफलतापूर्वक गुजरात के मुख्यमंत्री बने। आज भारत के पिछड़े गरीब राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार से भागकर मुसलमान सूरत, अहमदाबाद में बसते जा रहे हैं। अभी हाल ही मे जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि मुझे माथे पर तिलक लगवाने में झिझक नहीं होती। लेकिन नरेन्द्र मोदी को टोपी पहनने में क्यों शर्म महसूस होती है।

उमर अब्दुल्ला से पूछना चाहिए कि क्या सिर्फ माथे पर तिलक लगाने से वह हिन्दुओं विशेषकर कश्मीरी पंडितों के वर्षों से मिलती आ रही पीड़ा पर मरहम लगा देंगे। वह कश्मीरी पंडित जो अपनी जमीन से उखड़ गये, जिन्हें उनके राज्य से, उनकी मातृभूमि से उखाड़कर आज विस्थापित जीवन जीने को मजबूर कर दिया गया, विस्थापित कश्मीरी पंडितों की नयी पीढ़ी अपने घर-बार जमीन से दूर सांस लेती युवा हो चुकी है, जिनके बहू-बेटियों की अश्मत लुटली गई, हिन्दू होने के कारण जिनकी हत्या की गयी, क्या उन सबकी पीड़ा मात्र उमर अब्दुल्ला के माथे पर तिलक लगाने से ही दूर हो जायेगी। जबकि उधर गोधरा कांड के बाद नरेन्द्र मोदी ने सबसे ज्यादा ध्यान मुस्लिमों की रक्षा, सुरक्षा, रोजगार के क्षेत्र में दिया। इसी का परिणाम है कि गुजरात से मुस्लिम किसी अन्य राज्यों में विस्थापित शरणार्थी नहीं बने। बल्कि अन्य राज्यों से मुस्लिम वर्ग अपनी रोजी-रोटी की तलाश में गुजरात के जिले, कस्बे, नगरों में आते और बसते जा रहे हैं। रोजी-रोटी और जान माल की सुरक्षा चाहने वाला वर्ग हिन्दू हो या मुस्लिम उसे इस बात से कोई मतलब नहीं कि राज्य का मुख्यमंत्री माथे पर तिलक लगा रहा है और कौन टोपी नहीं पहन रहा? उसे तो केवल रोटी, सुरक्षा, और सम्मान चाहिए और इस मामले में नरेन्द्र मोदी सफल साबित हुए हैं।

इसी प्रकार चांदनी चौक के उम्मीदवार और सत्तारूढ़ दल के कपिल सिब्बल ने कहा कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने से देश में आर्थिक कट्टरता बढ़ेगी। हिन्दू मुस्लिम के बीच दूरियां बढ़ेंगी। सिब्बल से पूछना चाहिए कि उनकी कांग्रेस के पिछले 60 वर्षों के शासन में यदि हिन्दू-मुस्लिम के बीच प्यार बढ़ा है, तो वर्तमान राष्ट्रपति समेत आलाकमान लोगों का देश में बढ़ती साम्प्रदायिकता और दंगों की चिन्ता क्यों हुई? जबकि स्वतंत्रता के बाद से नेहरू-इंदिरा-राजीव, सोनिया नीत कांग्रेस की नीतियों के कारण आज भारत में हिन्दू अपने पास खड़े मुसलमान को शक और शत्रु की नजर से देखता है। वहीं मुस्लिम केवल वोट बैंक मजबूत कर राजनीतिज्ञों के केन्द्र में आ कर हिन्दुओं को पीड़ित और अपमानित करने में पीछे नहीं हटता। लेकिन साथ ही मुस्लिम खुद को असुरक्षित और बेचारा भी समझता है। संभवतः इसी का फायदा हर दल उठाना चाहता है।

आज, क्षेत्रीय, जातीयता, मुस्लिम तुष्टीकरण के बीच ‘महान भारत‘ अखण्ड भारत की विचारधारा क्षीण हो चुकी है, ऐसे में नरेन्द्र मोदी द्वारा भारत पहले, इंडिया फर्स्ट का उद्घोष निश्चित ही संपूर्ण भारत को एकता के अखण्ड सूत्र में बांधता दिखता और गुजरात के काठियावाड़ से लेकर पूर्वोत्तर में अरूणाचल, असम तक यदि सभी नागरिकों देषवासियों के लिए ‘देश‘ ही श्रद्धाकेन्द्र बन जाय तो जाति, क्षेत्र, सम्प्रदाय की संकुचित विचार धाराएं इस राष्ट्रीयता की विराट चेतना में सहज ही डूब जायेंगी। फलतः चाणक्य ओर विवेकानंद का स्वप्निल भारत, गांधी का रामराज्य तथा अब्दुल कलाम का ‘ विश्वगुरू-भारत‘ साकार हो उठेगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress