राजनीति

नरेन्द्र मोदी सरकार और तिब्बत का प्रश्न

-डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री-
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दिल्ली में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नई सरकार गठित हो जाने के बाद विदेश नीति के मामले में चीन का प्रश्न फिर फ़ोकस में आ गया है । भारतीय विदेश नीति में चीन का प्रश्न आता है तो उसके पीछे पीछे तिब्बत का प्रश्न अपने आप चलता है। प्रत्यक्ष रूप से चाहे उसकी चर्चा न हो रही हो, लेकिन उसकी छाया भारत-चीन चर्चा में हर समय विद्यमान रहती है। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर तिब्बत का प्रश्न इसलिये भी फ़ोकस में आया है क्योंकि मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुये चार बार चीन की यात्रा कर चुके हैं । चीन की विदेश नीति को लेकर समय समय प्रकट होते रहे संकेतों को भी समझ लेने का दावा करने वालों का कहना है कि एक बार तो चीन ने मोदी का स्वागत इस अंदाज़ा में किया जो केवल राष्ट्राध्यक्षों के लिये ही सुरक्षित है। साउथ ब्लॉक के धुरन्धर वैसे भी, माओ ने एक क़दम आगे बढ़ कर नेहरु का स्वागत किया, इत्यादि सामान्य घटना के असामान्य अर्थ निकालने के लिये प्रसिद्ध हैं। यह अलग बात है कि व्यावहारिक धरातल पर उनके असामान्य अर्थ ग़लत सिद्ध हुये। लेकिन यहाँ तो अन्य सांकेतिक साक्ष्य भी विद्यमान है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि मोदी चीन के साथ व्यापार बढ़ाने की वकालत करते रहे हैं। अभी भी मोदी ने चीन के साथ विकास के मामले में प्रतिस्पर्धा की बात कहीं ही है। चीन मोदी को इतनी अहमियत दे रहा है कि उसने मोदी की ताजपोशी के तुरन्त बाद अपने विदेश मंत्री वांग यी को दिल्ली रवाना कर दिया ताकि बीजिंग के राष्ट्रपति की आगामी भारत यात्रा की आधार भूमि तैयार की जाये। कहा जाता है कि मोदी की प्राथमिकता गुजरात की तर्ज़ पर विकास करना है, इसलिये वे हर हालत में चाहेंगे कि चीन को किसी भी कारण से उत्तेजित न किया जाये । बल्कि इसके विपरीत चीन के साथ व्यापार बढ़े और चीन भारत में उतारतापूर्वक निवेश करे। इसलिये मोदी का प्रयास रहेगा कि चीन के साथ लगती लम्बी सीमा और तिब्बत में चीन की नीति पर फ़िलहाल चुप ही रहा जाये। लेकिन ध्यान रखा जाना चाहिये कि मोदी चीन के साथ व्यापारिक हितों के मुद्दे उठाते समय भी चीन के साथ सीमा विवाद, अरुणाचल में चीनी घुसपैठ और पाक अनधिकृत जम्मू कश्मीर में चीनी सैनिकों की उपस्थिति ही नहीं बल्कि चीन द्वारा पाकिस्तान को अणु शक्ति व अन्य सैनिक साजों समान मुहैया करने के प्रश्न उठाने से नहीं चूके। जबकि सभी जानते हैं कि चीन इन प्रश्नों को भारतीय परिप्रेक्ष्य में उठाने पर सहज नहीं रह पाता ।

लेकिन मोदी की तमाम चीन यात्राओं के बावजूद वे अरुणाचल प्रदेश में जाकर भारत-तिब्बत सीमान्त पर चीन को चेतावनी देना नहीं भूले । वहाँ उन्होंने भारतीय सीमा के भीतर चीन की सेना की घुसपैठ की चर्चा ही नहीं की बल्कि भारत की सीमाओं को विदेशी आक्रमणों से सुरक्षित करने की देश की प्रतिबद्धता को भी दोहराया । प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद मोदी ने अरुणाचल प्रदेश के युवा नेता किरण रिजूजू को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर आन्तरिक सुरक्षा का ज़िम्मा दिया । ध्यान रहे किरण रिजूजू चौदहवीं लोकसभा में चीन के बढ़ते ख़तरों के प्रति अत्यन्त सक्रिय थे और लोक सभा में तिब्बत के प्रश्न को प्राय उठाते रहते थे । लोक सभा में रिजूजू की सक्रियता से चीन भी असहज होता था । अरुणाचल प्रदेश में आन्तरिक सुरक्षा को सबसे ज़्यादा ख़तरा चीनी सेना की घुसपैठ से ही रहता है । भारत की चीन के साथ २५२१ मील की सीमा लगती है और यह सीमा जम्मू कश्मीर से शुरू होकर अरुणाचल प्रदेश तक जाती है । चीन ने केवल तिब्बत पर ही नहीं बल्कि भारतीय भूभाग पर भी क़ब्ज़ा किया हुआ है । चीन के साथ आर्थिक रिश्ते बढ़ें इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता लेकिन आर्थिक रिश्ते बढ़ाने के मोह में सीमा पर चीनी ख़तरे को न तो नज़रअन्दाज़ किया जा सकता है और न हीं उसे फ़िलहाल विदेश नीति के पिछवाड़े में फेंका जा सकता है । दरअसल भारत में चीन का ख़तरा बरास्ता तिब्बत होकर ही आता है। तिब्बत दोनों देशों के बीच में एक प्राकृतिक बफर स्टेट है, जिस पर १९५० में चीनी आधिपत्य के बाद ही भारत के उत्तरी सीमान्त पर चीन की लाल छाया प्रकट होने लगी।

विदेश नीति को लेकर भारतीय जनता पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र के निम्न भाग को पढ़ लेना आवश्यक होगा-हम अपने पड़ोसियों के साथ मैत्री सम्बंध सुदृढ़ करेंगे लेकिन आवश्यकता पड़ने पर सख़्त क़दम और मज़बूत स्टैंड लेने से भी नहीं हिचकिचायेंगे । लेकिन घोषणा पत्र का यह अंश केवल साज सज्जा का हिस्सा नहीं है बल्कि सरकार की प्राथमिकताओं का हिस्सा है, इसका संकेत मोदी के शपथ ग्रहण समारोह से ही मिलना शुरु हो गया था। इस समारोह में निर्वाचित तिब्बत सरकार के प्रधानमंत्री डॉ. लोबजंग सांग्ये और उनकी गृह मंत्री डोलमा गेयरी को भी निमंत्रित किया गया था। यह पहली बार हुआ है कि निर्वाचित तिब्बती सरकार के प्रधानमंत्री को इस प्रकार के समारोह में आमंत्रित किया गया हो। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिये कि लोबजंग सांग्ये चार हज़ार की भीड़ में गुम हो जाने वाले किसी अन्य आमंत्रित की तरह नहीं थे। उनके अपने शब्दों में ही, मैंने सोचा था कि मुझे कहीं पीछे की क़तारों में बिठा दिया जायेगा ताकि मैं भीड़ में गुम रह सकूं, लेकिन जब मैंने अपना निमंत्रण पत्र दिखाया तो आयोजकों ने मुझे आगे की क़तार में बैठने के लिये कहा।

लोबजंग सांग्ये भारत के प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में आगे की क़तार में बिठाये जाने की बात तो दूर उन्हें इस समारोह में आमंत्रित करने से ही चीन नाराज़ होगा, इतना तो विदेश मंत्रालय अच्छी तरह जानता ही होगा। लेकिन नरेन्द्र मोदी ने अनेक बार कहा है कि भारत केवल दूसरे देशों के एक्ट करने पर केवल प्रतिक्रिया करने वाला देश ही नहीं बना रहेगा, वह अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर एक्ट भी करेगा । लोबजंग सांग्ये को आगे की पंक्ति में बिठा कर चीन से सम्बंधित विदेश नीति के मामले में भारत ने सचमुच एक्ट किया है। अलबत्ता सांग्ये को इस समारोह में निमंत्रित किये जाने पर चीन ने अपने असंतोष की प्रतिक्रिया दर्ज करवा दी है। लेकिन कल की ख़बर है कि सरकार ने अरुणाचल प्रदेश के साथ लगती तिब्बत सीमा के साथ ५४ चौकियाँ बनाने का निर्णय किया है।