आखिर नरेंद्र मोदी किसी संजय भाई जोशी से इतना डरते क्यों हैं?

निमिष कुमार

2003-04 की बात है। देश में एनडीए की सरकार थी। अटल बिहारी बाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे और लालकृष्ण आडवाणी देश के उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री। देश और दुनिया अटल बिहारी बाजपेयी और उनकी सरकार की मुरीद दिख रही थी। ऐसे वक्त में एक ट्रेन के सेंकेंड क्लास स्लीपर कोच में एक सीधा-सादा-सा आदमी सफर कर रहा था। साथ में एक युवा था जो बार-बार उस व्यक्ति को तीन-चार फोन में से एक देता और कहता-भाई साहब, अटलजी लाइन पर हैं। कभी बताता- आडवाणीजी बात करना चाह रहे हैं। कभी किसी प्रदेश का कोई मुख्यमंत्री, तो कभी एनडीए सरकार का कोई बड़ा केंद्रीय मंत्री फोन लाइन पर वेटिंग में होता। कई बार वो आदमी किसी राज्य के बीजेपी अध्यक्ष या पार्टी के किसी बड़े नेता से बात करने की इच्छा जताता और उनका युवा सहायक अपने लेपटॉप पर उस नेता का नंबर निकालता और बात करवाता। आखिरकार एक सहयात्री से रहा नहीं गया और वो गुस्सा होकर बोला। यार इतने बड़े आदमी हो तो एयरोप्लेन में सफर क्यों नही करते। अरे कम-से-कम फर्स्ट एसी में तो सफर कर ही सकते हो। हो कौन? जब उस सहयात्री को पता चला कि ट्रेन के सेकेंड क्लास स्लीपर में बर्थ में एक मोटी चादर डाल कर बैठा वो शख्स संजय भाई जोशी है तो वो ही नहीं बाकी सब भी चौंक गए। क्योंकि संजय भाई जोशी उस वक्त बीजेपी के संगठन महासचिव थे। बीजेपी की परंपराओं के मुताबिक संगठन महासचिव आरएसएस का कोई पूर्णकालिक प्रचारक होता है। जिस पर बीजेपी में संगठन को संभालने का जिम्मा होता है। सीधे तौर पर कहें तो संगठन का सर्वेसर्वा। कई बार तो विरोधी ये भी कहते है कि दरअसल संगठन महासचिव ही वो व्यक्ति होता है जिससे आरएसएस बीजेपी को चलाता है। इसके माने उस वक्त वो संजय भाई जोशी नाम का शख्स देश की सत्ता चला रहा था। अटल बिहारी बाजपेयी हो या लालकृष्ण आडवाणी, राज्यों के बीजेपी अध्यक्ष हो या मुख्यमंत्री, सब ना केवल उस व्यक्ति की बात ध्यान से सुन रहे थे, मान भी रहे थे। वो इंसान एक आम हिंदुस्तानी की तरह ट्रेन के सेकेंड क्लास स्लीपर में सफर कर रहा था।

24 और 25 मई को मुंबई के नरीमन पाइंट में स्थित यशवंतराव चव्हाण सेंटर में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिन बैठक हुई। बैठक में से बहुत सी बातें सामने आई। लेकिन एक सवाल बार-बार हिंदुस्तान के लोगों के जहन में गूंजता रहा। बार-बार मोदी को चाहने वाले और मोदी को गालियां देने वाले एक बात जानना चाहते रहे कि आखिर वो कौन है जिससे मोदी इतना डरते हैं। क्योकिं मोदी के चाहने वाले और मोदी को पानी पी-पीकर गालियां देने वाले जानते है कि मोदी से पाकिस्तान, मुसलमान ही नहीं अब तो बीजेपी आलाकमान भी डरता है। मोदी की महत्वाकांक्षाओं के रास्ते में आने वाला वो कौन है जिसने मोदी की रातों की नींद हराम कर दी है।

बताया जा रहा है कि हाल ही मुंबई आए पाकिस्तानी पत्रकारों के एक प्रतिनिधी मंडल ने ये स्वीकारा कि पाकिस्तान में भी सब हिंदुस्तान के इस नेता नरेंद्र मोदी से डरते है। जब-जब पाकिस्तान हमारे देश के साथ कोई नापाक हरकत करता है, देश का आम आदमी नरेंद्र मोदी को ही पाकिस्तान की अकल ठिकाने लगाने वाले के रुप में देखते हैं। बड़ा आम है लोगों का ये कहना कि – ‘अरे साहब, इस पाकिस्तान को सबक सीखाना हो तो मोदीजी को कमान दे दो, फिर देखना नरेंद्र मोदी कैसे इन साले पाकिस्तानियों को दौड़ा-दौड़ा कर मारेंगे’। ‘अरे साहब, हम लोग इस्लामाबाद, कराची, लाहौर में जाकर इन लोगों को मारेंगे। इनके पजामें खोल-खोलकर मारेंगे’। ‘इतना मारेंगे कि फिर कोई पाकिस्तानी या ये पाकिस्तान वाले हमारे कश्मीर या देश पर गलत नजर ना डालें’। ये दरअसल हिंदुस्तान के एक आम आदमी का पाकिस्तान को लेकर गुस्सा और मोदी पर भरोसे का प्रतीक है।

गुजरात दंगों के बाद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर कई बार आरोप लगे कि गुजरात के मुसलमान मोदी और उसकी सरकार से डरते है। भय खाते हैं। उन्हें लगता है कि नरेंद्र मोदी के राज में उन्हें इंसाफ नहीं मिलेगा। इतना ही नहीं विरोधियों ने लगातार मोदी को एक कट्टर हिदुत्ववादी और मुसलमानों के दुश्मन के रुप में प्रोजेक्ट किया। बीजेपी ही नहीं, एनडीए में बीजेपी के कई घटक दल मोदी को अपने यहां चुनावों में प्रचार के लिए नहीं बुलाते हैं। बिहार के नितीश कुमार जब दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के लिए मैदान में उतरे, तो बीजेपी को साफ संकेत दे दिए। बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान मोदी को अलग ही रखा जाए।

अब २४ और २५ मई को हुई बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बाद ये भी साफ हो गया कि पाकिस्तान और मुसलमान ही नहीं बीजेपी आलाकमान भी मोदी से डरता है। तभी तो मोदी के इस बैठक के बहिष्कार करने की खबरों से बीजेपी आलाकमान घबरा गया था। मोदी के अलावा गुजरात बीजेपी के अलग होने, मोदी का अलग पार्टी बनाने जैसी खबरों ने बीजेपी आलाकमान के होश उड़ा दिए थे। ऐसे में आनन-फानन नरेंद्र मोदी को मनाने की कोशिशें हुई। बताया जा रहा था कि मोदी ने साफ शब्दों में कह दिया- संजय भाई जोशी यदि राष्ट्रीय कार्यकारिणी में होंगे, तो मैं नहीं आउंगा। ये कितना सच था या झूठ, ये तो बीजेपी आलाकमान ही जानें। लेकिन इतना जरुर हुआ कि बैठक शुरु होने के एक दिन पहले ही संजय भाई जोशी ने इस्तीफा दे दिया। वैसे संजय भाई जोशी बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में हिस्सा लेने के लिए मुंबई तक आ गए थे। खैर, संजय भाई जोशी के इस्तीफे के बाद २४ मई को नरेंद्र मोदी ने मुंबई के यशवंतराव चव्हाण सेंटर में शिरकत की।

अब आते है असल सवाल पर। जो नरेंद्र मोदी इतने पॉवरफुल है। जिससे पाकिस्तान थरथर कांपता है, जिससे देश के मुसलमान नाराज हैं, जिससे अब तो बीजेपी आलाकमान के डरने की खबरें भी आ रहीं हैं, वो नरेंद्र मोदी किसी संजय भाई जोशी नाम के शख्स से इतना क्यों डरता है कि उसके बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में रहने पर मुंबई तक आने को तैयार नहीं थे। ऐसा क्या है उस संजय भाई जोशी में, कि नरेंद्र मोदी जैसा लारजर देन लाइफ फिगर भी नहीं चाहता कि वो आस-पास रहे। ऐसा क्या है कि जिस नरेंद्र मोदी की एक आवाज पर देश-दुनिया का कारोबारी जगत गुजरात में निवेश के लिए अपनी तिजोरियां खोल देता है। डेढ़ दिन में लाखों करोड़ रुपये गुजरात में निवेश के लिए उड़ेल दिए जाते हैं। इतना पैसा कि आखिरकार गुजरात सरकार को हाथ जोड़कर कारोबारी जगत से कहना पड़ता है कि भाई अब बस करो, अगली बार आपको भी गुजरात में निवेश का चांस देंगे। हमारा वादा रहा। वो नरेंद्र मोदी, किसी संजय भाई जोशी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शिरकत को तैयार नही थे।

संजय भाई जोशी एक ठिगने कद के, थोड़े ज्यादा सांवले या आम भाषा में कहें तो थोड़े काले, मोटी खादी का कु्र्ता और पजामा पहनने वाले, खाने में सादी खिचड़ी खाने वाले, चुप रहने वाले एक सामान्य से इंसान है। मैकेनिकल इंजीनियर की डिग्रीधारी संजय भाई जोशी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक प्रचारक है। जीवन में इतनी सादगी कि आम आदमी को कोफ्त होने लगे। लेकिन संजय भाई जोशी की एक बात के उनके विरोधी भी कायल है, शायद नरेंद्र मोदी भी। कि संजय भाई जोशी का बीजेपी के आम कार्यकर्ताओं से जुड़ाव जबरदस्त है। इतना कि लोग उन्हें बीजेपी के लाखों आम कार्यकर्ताओं की चलती फिरती डॉयरेक्टरी कहने लगे थे। शायद यहीं वो रहस्य है जो खुलासा करता है कि आखिर क्यों दुनिया को डरा सकने की छवि रखने वाले नरेंद्र मोदी इस शख्स से इतना डरते हैं।

बात दरअसल नब्बे की दशक की है। बताया जाता है कि कभी नागपुर से चुनाव लड़ने की ख्वाहिश संघ प्रचारक संजय भाई जोशी को गुजरात भेजा गया। नरेंद्र मोदी भी उस वक्त संघ के प्रचारक हुआ करते थे और गुजरात में पार्टी को मजबूत करने में लगे हुए थे। ऐसे वक्त में संजय भाई जोशी गुजरात पहुंचे और एक बिना एसी की टाटा सूमो में गुजरात घूमना शुरु कर दिया। गुजरात के बीजेपी कार्यकर्ताओं की मानें तो बिना प्रेस किए हुआ मोटी खादी का कुर्ता-पजामा पहना ये शख्स किसी भी गांव, कस्बे में पहुंचा जाता और पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलता। यहीं से शुरु हुआ नरेंद्र मोदी और संजय भाई जोशी के बीच अलगाव। संजय जोशी कार्यकर्ताओं के बीच अपने सरल स्वभाव, आसानी से उपलब्धता, बिना किसी शक्ति प्रदर्शन या ‘जानते नहीं मैं कौन हूं’ से अलग घुल मिलते गए। वहीं नरेंद्र मोदी बिलकुल उलट थे। मोदी शानदार तरीके से रहते थे। शानदार गाड़ियों में सफर करने में उन्हें कोई गुरेज नहीं थी। शानदार कपड़े पहते थे। अपनी हेयर स्टाइल हो या कुर्ते का कलफ, मोदी को अपने फिजिकल एपेरेंस का बड़ा ध्यान रहता। हालात ये हो गए कि गुजरात में ही पले-बढ़े मोदी के बदले संजय जोशी गुजरात के कार्यकर्ताओं के बीच अच्छे खासे लोकप्रिय होते चले गए। यहीं वो समय था जब मोदी को गुजरात बीजेपी के संगठन पर से अपनी पकड़ संजय भाई जोशी के हाथों में खिसकती दिखी।

खैर, मोदी- जोशी जैसे कार्यकर्ताओं की मेहनत से बीजेपी का संगठन गुजरात में मजबूत हुआ और गुजरात में बीजेपी की सरकार बनी। केशुभाई मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने तेजतर्रार नरेंद्र मोदी की जगह संजय जोशी को तरजीह दी। नरेंद्र मोदी दिल्ली केंद्र में संगठन महासचिव बनाकर भेजे गए। संजय जोशी – केशुभाई की जोड़ी अब गुजरात में सत्ता भोग रही थी। शायद यही नरेंद्र मोदी को नहीं भाया। नरेंद्र मोदी की राजनैतिक महात्वाकांक्षाएं किसी से छिपी नहीं थी। ऐसे में जब मोदी को मौका मिला तो नरेंद्र मोदी ने केशुभाई से सत्ता छिन्नी और गुजरात के मुख्यमंत्री बनकर आ गए। इसके बाद संजय जोशी को गुजरात से हटाकर दिल्ली में केंद्र में संगठन महासचिव बनाकर भेजा गया। जोशी ने गुजरात की तर्ज पर पूरे देश के कार्यकर्ताओं को जोड़ना शुरु कर दिया। कभी गुजरात बीजेपी संगठन में ताकतवर रहे संजय जोशी अब पूरे देश में बीजेपी के संगठन के सर्वेसर्वा बनते दिखे।

संगठन महासचिव के अपने दिनों में संजय भाई जोशी दिल्ली के ११ अशोक रोड में बीजेपी केंद्रीय कार्यालय के पीछे बने कमरे में रहते। सुबह पार्टी कार्यालय में बनी मेस में खाना खाते। वहीं खिचड़ी। दिन भर कार्यकर्ताओं से मिलते। जो भी मिलने आते, उसे अपने कमरे में दूसरे कार्यकर्ताओं की भेंट की मिठाई खिला देते। खुद गुड़- चना खाते। शाम को पार्टी कार्यालय के लॉन में घूमते और अपने साथियों के साथ संगठन की रणनीतियां बनाते। एक समय हालात ऐसे हो गए थे कि पूरे देश में हर गांव-कस्बे- शहर – जिले – संभाग – राज्य के कार्यकर्ताओं की जुबान पर बस एक ही नाम होता था – संजय भाई जोशी। जोशी की इस बढ़ती लोकप्रियता से ना केवल नरेंद्र मोदी, बल्कि बीजेपी के कई बड़े नाम घबराने लगे थे। जोशी की एक अपील पर हरियाणा हो या उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु हो या आसाम, हर राज्य के बीजेपी कार्यकर्ता एकजुट हो जाते थे। ऐसे वक्त में 2005 में बीजेपी के सिल्वर जुबली वर्ष में ही संजय जोशी की एक विवादास्पद सीडी सामने आई और जोशी को अपना पद छोड़ना पड़ा।

छह साल के राजनैतिक वनवास के बाद संजय जोशी को एक बार फिर उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों का प्रभारी बनाया गया था। जोशी एक बार फिर अपनी स्टाइल में उत्तर प्रदेश के गांव- गांव घूमने लगे। आम कार्यकर्ताओं से मिलने लगे। राजनैतिक जानकारों की मानें तो भले ही उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए प्रदेश के संगठन का प्रभारी पद जोशी के लिए एक छोटा पद था, लेकिन शायद नरेंद्र मोदी जानते थे कि संजय जोशी गुजरात की तर्ज पर एक बार फिर ताकतवर हो सकते हैं।

इस पूरे एपिसोड में कई सवाल खड़े होते हैं। नरेंद्र मोदी खुद एक आरएसएस प्रचारक रहे है फिर क्यों दूसरे आरएसएस प्रचारक को अपनी राजनैतिक महात्वाकांक्षा में इतना बाधक मानते हैं। क्या नरेंद्र मोदी को डर है कि संजय भाई जोशी भी उनकी सत्ता वैसे ही छिन सकते है जैसे उन्होंने केशुभाई की छिनी थी। लेकिन मोदी अब सक्रिय राजनीति के खिलाड़ी है, वहीं संजय भाई जोशी संगठन के आदमी। मोदी को अब भारत ही नहीं दुनिया भी ‘टाइम’ मैगजीन के कवर पर देखकर मानने लगी है। क्या नरेंद्र मोदी – संजय जोशी की ये लड़ाई बीजेपी का नुकसान नहीं है। दो लोगों की इस लड़ाई में बीजेपी मोदी जैसा एक शानदार प्रशासक, करिश्माई नेता, आर्थिक विकास का पुरोधा खो रही है वहीं संजय भाई जोशी के रुप में संगठन की हर डोर को पिरोए रखने वाला एक कुशल बुनकर। इस लड़ाई में मोदी जीते या जोशी, नुकसान भारत के उस आम आदमी का होना है जो महंगाई, भ्रष्ट्राचार, घोटालों के बीच अब बीजेपी या एनडीए को एक विकल्प के रुप में देख रहा है।

( लेखक हिन्दी इन डॉट कॉम के संपादक हैं)

4 COMMENTS

  1. दो लोगों की इस लड़ाई में बीजेपी मोदी जैसा एक शानदार प्रशासक, करिश्माई नेता, आर्थिक विकास का पुरोधा खो रही है वहीं संजय भाई जोशी के रुप में संगठन की हर डोर को पिरोए रखने वाला एक कुशल बुनकर। इस लड़ाई में मोदी जीते या जोशी, नुकसान भारत के उस आम आदमी का होना है जो महंगाई, भ्रष्ट्राचार, घोटालों के बीच अब बीजेपी या एनडीए को एक विकल्प के रुप में देख रहा है

  2. संघ को अपने प्रचारक की गरिमा का ध्यान रखना चाहिए
    यदु प्ररक ने गलत किया तो उसे सजा भी मिलनी चाहिए
    पर जिस प्रकार क अयुध्हा है उसमे दोनों को तीसरे काम में भेज देना चाहिए – व्बहुत सारे क्षेत्र है
    इसका निर्णय स्वयम ल्वेना की मैं राजनीती में ही रहूंगा भविष्य के लिए घटक है

  3. नरेन्द्र मोदी को संजय जोशी की ताकत का अंदाजा है इसलिए सेर के आने के पहले नरेन्द्र मोदी अपनी जोर आजमाइस कर रहे है।

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