प्रकृति ने फिर दिखाया महाविनाश का तांडव

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उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप के कैरेबियाई क्षेत्र के एक छोटे से देश हेती की राजधानी पोर्ट ऑ प्रिंस गत 13 जनवरी की शाम 4 बजकर 53 मिनट पर उस समय प्रकृति की महाविनाश लीला का एक बहुत बड़ा केंद्र बन गई जबकि इस क्षेत्र को 7.3 क्षमता के भयानक भूकंप का सामना करना पड़ा। 2 वर्ष पूर्व चीन में आए विश्व के अब तक के सबसे तीव्र एवं हानिकारक भूकंप के बाद हेती में आए इस भूकंप को विश्व का अब तक का सबसे भयानक, तीव्र एवं सर्वाधिक क्षति पहुंचाने वाला भूकंप माना जा रहा है। हेती की राजधानी पोर्ट ऑ प्रिंस से मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर अपना केंद्र बनाने वाले इस महाविनाशकारी भूकंप की गहराई का केंद्र मात्र 13 किलोमीटर पृथ्वी के भीतर बताया जा रहा है। हेती के अतिरिक्त कैरिबियाई देशों में क्यूबा, बहामास तथा डोमिनिक रिपब्लिक जैसे देश शामिल हैं। ज्ञातव्य है कि चीन में आए भूकंप से अब तक की विश्व की सबसे अधिक क्षति हुई मानी जाती रही है। इसमें एक अनुमान के अनुसार लगभग साढ़े आठ लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी। हेती में आए वर्तमान भूकंप में हालांकि मृतकों की संख्या का अभी स्पष्ट अंदांजा नहीं हो पा रहा है। क्‍योंकि लगभग पूरी राजधानी खंडहर में तब्दील हो चुकी है। आम लोगों के घरों,कार्यालयों अथवा भवनों की तो बात क्या करनी वहां के सबसे मंजबूत समझे जाने वाले संसद भवन तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यालय,अस्पताल, अग्निशमन केंद्र जैसी इमारतें सभी तबाह हो गई हैं। लाखों लोगों के इन मलवों के तले दबे होने की आशंका है। फिर भी शुरुआती सूचनाओं के अनुसार 50,000 से लेकर 1 लाख तक लोग मौत के शिकार हो चुके हैं। अंदांजा लगाया जा रहा है कि मलवा सांफ होने के बाद मृतकों की संख्या 4से 5 लाख तक या इससे भी अधिक हो सकती है।

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस प्राकृतिक त्रासदी को गंभीरता से लेते हुए यह घोषणा की है कि इससे निपटने हेतु अमेरिका विश्व का अब तक का सबसे बड़ा राहत अभियान चलाने जा रहा है। ब्रिटिश महारानी एलिज़ाबेथ ने भी हेती में आए भूकंप पर दु:ख व चिंता जाहिर करते हुए इसमें भरपूर मदद देने की बात कही है। हालांकि पूरी दुनिया इस समय हेती के मुसीबतजदा लोगों की ओर मदद का हाथ बढ़ा रही है। परंतु प्रकृति ने महाविनाश का जो तांडव वहां दिखाया है उससे राहत कार्यों तथा राहत सामग्री पहुंचने में भी काफी दिक्‍कत हो रही है। सड़क, संचार, यातायात सब कुछ ठप्प पड़ा है। हेती का हवाई अड्डा सहायता सामगी लेकर आने वाले विदेशी विमानों से इस कदर भर गया है कि वहां और अधिक विमान उतारने की गुंजाईश ही नहीं बची। अमेरिका द्वारा तीन बड़े समुद्री जहांज हेती भेजे गए हैं। इनमें प्रशिक्षित सहायताकर्मी, भारी मशीनें तथा संपूर्ण अस्पताल के रूप में कार्य करने वाले जहाज शामिल हैं।

हेती के भूकंप की एक और सबसे दु:खद त्रासदी यह भी है कि उपरोक्त सभी सूचनाएं तथा आंकड़े केवल राजधानी पोर्ट ऑ प्रिंस से ही संबंधित हैं। आशंका है कि इसी प्रकार की क्षति राजधानी के आसपास के 50 से लेकर 100 किलोमीटर की दूरी तक के शहरों व कस्बों में भी अवश्य हुई होगी। परंतु इस विनाशकारी भूकंप के बाद चूंकि राजधानी का सड़क, संचार, व यातायात संपर्क अन्य पड़ोसी शहरों से पूरी तरह टूट चुका है अत: इस बात का अंदांजा ही नहीं हो पा रहा है कि आख़िर कहां, कितनी क्षति पहुंची है। अनुमान लगाने वाले विशेषज्ञ भी आंखिरकार यही कहकर अपनी बात खत्म करते हैं कि हेती में अनुमान से कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचा है। वहां चारों ओर जिधर भी नजर जा रही है खंडहर बनी इमारतें और इधर-उधर लावारिस सी पड़ी लाशें दिखाई दे रही हैं। भूकंप की इस महाविनाश लीला ने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है कि ब्रह्मांड के रहस्यों की जानकारी तथा उसमें घटित होने वाली भविष्य की घटनाओं का पूर्व ज्ञान रखने का दावा करने वाले विज्ञान तथा वैज्ञानिकों को आंखिर अपने ही पैरों तले होने वाली हलचल का पूर्व आभास क्योंकर नहीं हो पाता।

सन् 2005 में आए सुनामी जैसे विनाशकारी समुद्री तूफान के बाद एक बार विश्व के वैज्ञानिक अपनी आंखे खोलते नजर आए थे। कुछ समय के लिए उस वक्त यह हलचल सुनाई दी थी कि सुनामी तथा भूकंप जैसी प्राकृतिक विपदाओं की पूर्व सूचना प्राप्त करने हेतु वैज्ञानिक पूरी गंभीरता व सक्रियता से कार्य करेंगे। परंतु लगता है ब्रम्हांड, चंद्रमा,मंगल ग्रह तथा आकाश गंगा जैसी अति दूरस्थ एवं रहस्यमयी समझी जाने वाली चींजों पर अपनी मंजबूत पकड़ प्रदर्शित करने वाली तथा पूरे आत्मविश्वास के साथ इनके विषय में नित्य नवीनतम जानकारियां देने वाली विज्ञान भूगर्भ विज्ञान के क्षेत्र में ही असफल दिखाई दे रही है। अलबत्ता भूकंप आने के बाद यही विज्ञान इस स्थिति में अवश्य पहुंच जाती है जोकि यह बता सके कि भूकंप की तीव्रता क्या थी,भूकंप का केंद्र किस जगह स्थित था तथा धरती की कितनी गहराई में किस फाल्ट के चलते यह भूकंप आया है। परंतु हमारे वैज्ञानिक इनकी पूर्व जानकारी दे पाने में अभी तक पूरी तरह से नाकाम हैं।

वैज्ञानिकों की इस कार्यशैली को हमें आंखिर किन नजरों से देखना चाहिए। पृथ्वी नामक ब्रम्हांड के एक मात्र ग्रह पर जीव तथा जीवन उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त अभी तक जो भी समाचार जीव संबंधी पाए जा रहे हैं वे पूर्णतया अपुष्ट तथा परस्पर विरोधाभासी हैं। ऐसे में वैज्ञानिकों के उन अत्यंत खर्चीले तथा जोखिम भरे अभियानों का हमें क्या लाभ जो तारों, ग्रहों तथा ब्रम्हांड के अन्य तमाम अविश्वसनीय से लगने वाले तथ्यों की जानकारी का तो हमारे समक्ष भंडार लगाए जा रहे हैं। जबकि यही वैज्ञानिक चिरांग तले अंधेरा की कहावत को चरितार्थ करते हुए अपने ही बेशकीमती ग्रह पृथ्वी के विषय में सम्पूर्ण जानकारी जुटा पाने में पूर्णतया सफल नहीं हैं।

पिछले दिनों विश्व के अनेकों बड़े वैज्ञानिकों ने महामशीन नामक एक विशाल यंत्र के द्वारा एक महाप्रयोग शुरु किया। फ्रांस तथा स्विटजरलैंड के सीमांत क्षेत्र में जेनेवा के पास हो रहे इस प्रयोग के शुरु होने से पूर्व ही यह विवाद उठ खड़ा हुआ था कि इस मशीन द्वारा पृथ्वी के भीतर किए जाने वाले भयानक विस्फोटों से पृथ्वी को काफी क्षति पहुंच सकती है। कुछ लोग तो इसके कारण लघु प्रलय जैसी संभावनाओं से भी इंकार नहीं कर रहे थे। यह महामशीन अपना काम शुरु करते ही किसी त्रुटि के कारण बंद हो गई थी। समाचार है कि इस महामशीन पर पुन: कार्य शुरु कर दिया गया है। परंतु इस महामशीन द्वारा भी वैज्ञानिक उपलब्धि का जो लक्ष्य निर्धारित था वह यह कतई नहीं था कि भूकंप कब आएगा,कहां आएगा और वह कितनी तीव्रता का होगा। बजाए इसके इस महामशीन का उदद्ेश्य कुछ ऐसे निष्कर्षों पर पहुंचना था जिनसे यह अंदांजा लगाया जा सके कि ब्रम्हांड तथा पृथ्वी की संरचना कैसे और किन परिस्थितियों में हुई तथा अपनी संरचना के समय ब्रम्हांड को किस दौर से गुंजरना पड़ा।

इसमें कोई संदेह नहीं कि संचार, प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त करने वाले हमारे वैज्ञानिक आधुनिक विज्ञान में इतने आगे बढ़ चुके हैं जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। अब तो यहां तक खबरें आ रही हैं कि वैज्ञानिक इंसान का दिमांग भी स्वयं तैयार करने की योजना पर काम कर रहे हैं। अर्थात् अब मनुष्य की बुद्धि भी संभवत: भगवान की मोहताज नहीं रहेगी। मौसम की जानकारी, सूर्य व चंद्रग्रहण के भविष्य के सभी आंकड़े, ब्रम्हांड में भविष्य में घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाएं,शक्तिशाली लेंजर तकनीक पर वर्चस्व आदि सभी क्षेत्रों पर वैज्ञानिकों ने अपनी पूरी पकड़ मजबूत कर ली है। परंतु ले-देकर यही वैज्ञानिक यदि कभी बेबस नजर आता है तो भू-गर्भीय घटनाओं की भविष्य की जानकारी को लेकर। और आंखिरकार हमारे योग्य तथा ब्रम्हांड की बातें बताने वाले यही वैज्ञानिक भूकंप जैसी विनाशकारी घटनाओं की पूर्व सूचना दिए जाने में पूरी तरह असहाय दिखाई देते हैं।

वैज्ञानिकों के बढ़ते क़ दम को देखकर यह तो नहीं कहा जा सकता कि भविष्य में भी पृथ्वी पर रहने वाले लोग भूकंप के संबंध में कोई पूर्व सूचना नहीं प्राप्त कर सकेंगे। परंतु जब तक विज्ञान इस स्थिति में नहीं पहुंचती तब तक तो यही मानना पड़ेगा कि प्रकृति ने पृथ्वी के ऊपर तथा पृथ्वी के गर्भ में अभी भी ऐसे तमाम रहस्य छुपा रखे हैं जहां तक फिलहाल उन वैज्ञानिकों के कदम या नजरें तो क्या उनकी कल्पनाएं भी संभवत: नहीं पहुंच पा रही हैं। और इंसान की यही सोच एक बार फिर उसे सर्वशक्तिमान रहस्यमयी ईश्वर की असीम सत्ता के आगे नतमस्तक होने पर मजबूर कर देती है।

-तनवीर जाफरी

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