अग्निहोत्र यज्ञ से रोग निवारण पर शोध एवं अनुसंधान की आवश्यकता

0
230

मनमोहन कुमार आर्य

               यज्ञ के अनेक प्रकार के भौतिक एवं आध्यात्तिमक लाभ होते हैं। यज्ञ से स्वस्थ जीवन सहित रोग निवारण भी होते हैं। यज्ञ से रोग निवारण के बारे में देश की जनता को ज्ञान नहीं है। ऋषि दयानन्द ने यज्ञ के लाभों का वर्णन करते हुए लिखा है कि देवयज्ञ करने से मनुष्य को पाप होता है। इसका कारण यह है कि यज्ञ करना ईश्वर की वेदों में की गई मुख्य आज्ञाओं में सम्मिलित है। हमें अग्नि का प्रतिदिन प्रातः व सायं एक अतिथि की तरह से स्वागत व सत्कार करना चाहिये। अग्नि का सत्कार अग्निहोत्र यज्ञ करके ही उपयुक्त रीति से होता है। अग्नि को प्रदीप्त करने से हमें ताप व प्रकाश मिलता है। इस ताप व प्रकाश के गुण को अपने हव्य पदार्थों से जोड़कर हम वायु व जल की शुद्धि कर सकते हैं। शुद्ध वायु एवं शुद्ध जल ही हमारे स्वस्थ व दीर्घ जीवन का आधार है। यज्ञ से अशुद्धि तथा दुर्गन्ध का नाश होता है। दुर्गन्ध में सभी प्रकार के रोगकारी कृमियों सहित बैक्टिरिया तथा वायरस आदि सम्मिलित हैं। वेदों में अनेक मन्त्र हैं जिनमें रोग व रोग के कारण कृमियों के नाश की ईश्वर से प्रार्थना है और इसे प्राप्त करने के लिये मनुष्य को प्रार्थना के साथ देवयज्ञ अग्निहोत्र करना होता है। हमारे पास यज्ञ विषयक अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। यज्ञ का प्रमुख ग्रन्थ यज्ञमीमांसा है जो वेदों के शीर्ष विद्वान व मर्मज्ञ आचार्य डा. रामनाथ वेदालंकार जी द्वारा लिखित है। इसके अतिरिक्त डा. राम प्रकाश जी का यज्ञविमर्श तथा स्वामी डा. सत्यप्रकाश जी की अंग्रेजी पुस्तक अग्निहोत्र भी महत्वपूर्ण हैं। हमारे पास यज्ञ विषयक एक शोध प्रबन्ध भी है जो गुरुकुल कांगड़ी में हुआ था। यह भी यज्ञ के विभिन्न पहलुओं के अध्ययन में उपयोगी है। इन ग्रन्थों का अध्ययन कर लेने पर यज्ञ विषयक महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। जिन लोगों ने इन पुस्तकों को पढ़ा है और जिनके स्मृति में इन पुस्तकों की मुख्य बातें बनी हुई हैं, वह लोग यज्ञ के महत्व व इसके लाभों को भली प्रकार जानते हैं। यज्ञ से वायु शुद्धि, जल शुद्धि, स्वास्थ्य लाभ, रोग निवारण सहित बुद्धि की शक्ति व सामथ्र्य में वृद्धि एवं उचित मनोरथों व इच्छाओं की पूर्ति होना सम्भव है। अतः प्रत्येक मनुष्य को यज्ञ का गहन अध्ययन कर इसको नियमित रूप से करते हुए अपने सभी मनोरथों को पूरा करना चाहिये।

               आजकल देश विदेश में कोरोना वायरस की महामारी फैली हुई है। हजारों की संख्या में लोग मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं। इसके कारण देश में 21 दिन का लाकडाउन करना पड़ा है जो वर्तमान में जारी है। कोरोना संक्रमण वा महामारी इतिहास की अभूतपूर्व घटना है। देश की आजादी के बाद ऐसा प्रभावी संक्रामक रोग देखने को नहीं मिला और ही किसी सरकार को इस प्रकार सामाजिक दूरी का पालन कराने के लिये लोगों को प्रेरित करने की आवश्यकता ही हुई। देश की अर्थ व्यवस्था पर भी इसका कुप्रभाव होना निश्चित है। डाक्टरों द्वारा बताया जा रहा है कि पूरे विश्व में इस रोग का कोई उपचार अभी तक नहीं है। ऐसी स्थिति में भी हमारे योग्य चिकित्सक अपने प्राणों को संकट में डालकर रोगियों का उपचार कर रहे हैं और बहुत से स्वस्थ भी हुए हैं। अग्निहोत्र यज्ञ के लाभों को दृष्टि में रखकर यदि विचार करें तो लगता है कि यज्ञ करके इस रोग से बचा जा सकता है। किसी संक्रमित रोगी को रोग के आरम्भ में यज्ञ का अनुकूल प्रभाव व लाभ हो सकता है। इसके लिये आर्यसमाज को समुचित शोध कार्य कराने की आवश्यकता थी जो किन्हीं कारणों से नहीं कराये जा सके हंै। शोध की दृष्टि पुष्ट कोई ठोस जानकारी हमारे पास नहीं है जिसका प्रचार कर हम देश के लोगों को यज्ञ से रोगनिवृत्त व स्वस्थ होने का विश्वास करा सकें।

               हमने देश के एक विश्व प्रसिद्ध प्रतिष्ठित वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान में कार्य किया है। वहां विज्ञान से सम्बन्धित अनेक कार्य किये जाते थे। नयेनये शोध होते हैं जिससे देश समाज लाभान्वित हुआ है। हमारे शोध कार्यों वा प्रोजेक्ट्स की समयावधि 6 महीने से पांच वर्ष व अधिक भी होती थी। सरकार अथवा प्रायोजित संस्था से इसके लिये धन आदि साधन सुलभ कराये जाते थे। हमारे वैज्ञानिक एवं उनके सहायक प्रायोजित शोध कार्य करते थे और अपनी एक रिर्पोट प्रायोजित संस्था को प्रस्तुत करते थे। ऐसा ही कार्य हम समझते हैं कि आर्यसमाज भी करा सकता है। लखनऊ में स्वास्थ्य विज्ञान तथा रोगों के निवारण के लिये ओषधी अनुसंधान संस्थान व प्रयोगशालायें हैं जहां हजारों की संख्या में चिकित्सा से जुड़े शोध-विज्ञानकर्मी कार्य करते हैं। यदि हम इनको अपने कार्य का उद्देश्य बतायें तो वह हमें उसका प्रोजेक्ट प्रस्ताव बना कर दे सकते हैं। हमें उन्हें इतना बताना होगा कि हम अग्नि में घृत, शक्कर, आयुर्वेदिक ओषधी, सुगन्धित पदार्थ आदि की वेदमंत्रों से आहुतियां देते हैं। यह आहुतियां तीव्र अग्नि में जल कर सूक्ष्म व भस्म हो जाती है। इनका सर्वांश व अधिकांश भाग सूक्ष्म होकर सूर्य की किरणों व वायु के द्वारा पूरे वायुमण्डल में फैल जाता है। कुछ भाग श्वास द्वारा हमारे फेफड़ों में पहुंचता है जहां यह हमारे रक्त में मिलकर पूरे शरीर में पहुंच जाता है। यज्ञ से जो सूक्ष्म धूम्र निकलता है वह हमारी त्वचा के छिद्रों से शरीर के भीतर प्रविष्ट होकर भी शरीर को लाभ पहुंचाता है। हमें रिसर्च प्रयोगशाला को यह निवेदन करना है कि हम यज्ञ के धू्रम का रोग कृमियों, रोगकारी सभी बैक्टिरिया तथा वायरसों पर प्रभाव जानना चाहते हैं। क्या यज्ञ से सभी बैक्टीरिया तथा वायरस नष्ट हो जाते है? यदि सभी नष्ट नहीं होते तो कितनी मात्रा में होते हैं या बिलकुल नहीं होते?

               वैज्ञानिकों के पास आधुनिक उपकरण हैं जिनसे वह यज्ञ के बैक्टीरिया तथा वायरसों पर प्रभाव को जान सकते हैं। वह आर्यसमाज से अपने यहां यज्ञ कराकर हमें इसकी रिर्पोट समस्त डेटा जानकारी के साथ उपलब्ध करा सकते हैं। हमें यह निवेदन उन्हें भेजना चाहिये। वह इसके उत्तर में हमें एक प्रोजेक्ट प्रोपोसल बना कर देंगे जिसमें वह जो अध्ययन कर सकते है, उसकी जानकारी देंगे और अपना शुल्क सूचित करेंगे। ऐसा होगा नहीं परन्तु यह मान लेते हैं कि वह हमारे पत्र के उत्तर में यह कह सकते हैं कि यह कार्य असम्भव है। वह नहीं कर सकते। यदि यह आशंका हो तो भी हमें यज्ञ पर अनुसंधान के लिये प्रयत्न तो करना ही चाहिये। हमारा विश्वास है कि यदि भारत सरकार चाहे तो यह कार्य अवश्य बिना किसी व्यय के हो सकता है। इस स्थिति में यह सरकारी प्रोजेक्ट बन सकता है जिसका व्यय भारत सरकार द्वारा दिये जाने वाले बजट से होगा। अतः इसका आयर्हसमाज पर कोई आर्थिक भार भी नहीं पड़ेगा। हमारा सौभाग्य है कि वर्तमान में डा. हर्षवर्धन जी भारत के स्वास्थ्य मंत्री हैं जो आर्यसमाज से जुड़े हुए हैं। दयानन्द संस्थान की बहिन दिव्या आर्या जी उनसे जुड़ी हैं। डा. हर्षवर्धन जी दयानन्द संस्थान भी आते रहे हैं। वह स्वयं भी एक डाक्टर हैं और उन्हें रिसर्च का भी अनुभव है। आर्यसमाज की सभाओं का यह कर्तव्य तो बनता ही है कि वह इसके लिये प्रयास करें? यदि भारत सरकार या सरकारी प्रयोगशाला इस कार्य को करने के लिये तैयार हो जाती है और हमें अनुसंधान कार्य की अधिकारिक रिर्पोट मिलती हैं तो इससे आर्यसमाज को लाभ मिल सकता है। यदि रिर्पोट में यज्ञ विषयक हमारे क्लेम की पुष्टि होती है तो यज्ञ को ग्लोबलाईज करने में सहायता मिलेगी। यदि रिर्पोट हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप न भी तब भी हम यज्ञ में यज्ञ सामग्री तथा यज्ञावधि आदि कुछ पैरामीटर बदलकर कुछ समय बाद दूसरी स्टडी करा सकते हैं। हमें लगता है कि आर्यसमाज ने इस प्रकार की पहल कभी नहीं की। यदि की हो तो उन्हें आर्य जनता को बताना चाहिये जिससे कि उसके परिणाम सामने आ सकें।

               आज दिनांक 6-4-2020 को आर्यसमाज के विद्वान वेदाचार्य श्री सनत कुमार जी, पंचकुला ने विश्वस्तर पर एक वीडियों कान्फ्रेंस का आयोजन किया जिसमें भारत, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, फीजी, मारीशस आदि से लगभग 40 लोग सम्मिलित हुए। आचार्य विश्रुत जी और श्री भुवनेश खोसला जी, श्री आलोक देशपाण्डे जी भी इसमें सम्मिलित थे। श्री सनत कुमार जी ने यज्ञ द्वारा वैक्टिरिया एवं वायरस के नष्ट होने विषयक अपने वैज्ञानिक प्रयोगों एवं अनुभवों की विस्तार से जानकारी दी। वेदों में रोग, रोग के कारण बैक्टीरिया व वायरस आदि का यातुधान व अनेक अन्य नामों से जो वर्णन है, उसका भी उन्होंने परिचय कराया। लगभग 2 घंटे तक यह परिचर्चा हुई। हमारा सौभाग्य था कि हमें भी इसमें सम्मिलित किया गया। कुछ दिनों बाद पुनः यह संयुक्त चर्चा की जायेगी। वार्तालाप व विचारों के आदान प्रदान से अच्छे परिणाम निकलते हैं। इससे भी कुछ लाभ अवश्य होगा। अब समय आ गया है कि जब हमें यज्ञ के वैज्ञानिक लाभों एवं रोगों पर उसके प्रभाव सहित विभिन्न रोग बैक्टीरियाओं तथा वायरसों पर यज्ञ के प्रभाव का ज्ञान हो। कोरोना वायरस पर भी यदि यज्ञ के प्रभाव का ज्ञान प्राप्त हो सकता है तो उसके लिये भी भारत सरकार तथा भारत सरकारी चिकित्सकीय अनुसंधान प्रयोगशालाओं से सम्पर्क किया जाना चाहिये। यदि यह कार्य किसी आर्य संस्था या व्यक्ति द्वारा किया जाता है तो वह प्रशंसनीय होगा। हमारी सभाओं व नेताओं को इस ओर ध्यान देना चाहिये। सभी आर्यसमाज के लोगों को वेद एवं ऋषि की आज्ञा का पालन करते हुए अपने घरों में नियमित दैनिक देवयज्ञ अवश्य करना चाहिये। इससे उन्हें व उनके पड़ोसियों को लाभ होगा। इससे वायुमण्डल पर बहुत अधिक न सही कुछ अनुकूल प्रभाव तो अवश्य ही पड़ेगा। रोग कम होंगे। यज्ञकर्ता को आध्यात्मिक, आधिदैविक व आधिभौतिक लाभ भी होंगे। इस चर्चा को विराम देते हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress