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मानवाधिकार विषय को न्यायसंगत करने की आवश्यकता

हमारे देश में मानव अधिकारों का बहुत ध्यान रखा जाता है, हां ये अलग बात है कि यहाँ मानव का उतना ध्यान कोई नहीं रखता। देश के मानवाधिकारवादी कार्यकर्ता अत्यन्त सक्रिय रहते है। कोई आतंकवादी घटना हो या फिर कोई किसी क सताया हुआ हो, पोलिस ने परेशान किया हो या किसी स्कूल महाविद्यालय की घट्ना हो, हर जगह ये मानवाधिकारवादी कार्यकता आपको मिल जायेंगे। फर्क सिर्फ इतना है कि ये पीडित कि मदद न करके पीडा देने वाले की मदद करते है और यदि पीडा देने वाला (कभी-2 पीडित भी) किसी धर्म विशेष का हो तो फिर सोने पे सुहागा। अब कसाब का ही उदाहरण लीजिये, वो मानव है उसको मानव अधिकार मिले हुए है, इसलिये जेल में उसको सब सुविधा दी जाय, अब उसने कुछ लोगों की हत्या कर दी जिसे पूरी दुनिया ने देखा तो क्या हो गया। अब चूँकि वो एक धर्म विशेष का है इसलिये उसे मानव अधिकार मिले है, जिनकी उसने हत्या की उनका कोई धर्म नही था।

करोलबाग में सोनू नाम के 15 साल के एक लडके की हत्या एक भिखारी ने मात्र एक कम्बल के लिये कर दी। अपनी माँ का एकलौता सहारा भीमा की मौत ठंड से हो गई क्योंकि एमसीडी ने वहाँ का रैन बसेरा तोड दिया, उन्हें कामनवेल्थ गेम्स में बाहर से आने वाले अतिथियों के लिये शहर को सुन्दर बनाना है। लेकिन भीमा और सोनू का कोई मानव अधिकार नहीं था!

अभी कुंभ का मेला लगा हुआ है। वहाँ कश्मीर से भी कुछ लोग अपना सामान बेचने आये हैं। जब वहाँ के लोगों ने किसी कारण से उन्हें भाग जाने को कहा तो तुरन्त मानवाधिकारी जाग गये लेकिन आज से बीस साल पहले कश्मीर से पन्डितों को उनके अपने घरों से जब भगाया था उस वक्त किसी मानवाधिकारवादी के पास समय नहीं था।

मानवाधिकार का विषय आज पूरी तरह एकतरफा सा दिखता है और जिस मानवाधिकार की संकल्पना न्याय पर आधारित है वह अन्याय का पक्ष लेता दिखता है।

हाल ही में इंडियन मीडिया फोरम और साउथ एशिया फोरम द्वारा एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का विषय था ”मानव अधिकार : एक नये नजरिये से”। अमेरिका स्थित मानवाधिकार संगठन फोर्सफील्ड के अध्यक्ष और प्रसिध्द अमेरिकी पत्रकार डा रिचर्ड बेंकिन इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता थे। कार्यक्रम मे साउथ एशिया फोरम के अध्यक्ष श्री अमिताभ त्रिपाठी और इंडियन मीडिया फोरम के अध्यक्ष श्री अरुण कुमार भी उपस्थित थे। इसके साथ ही विशेष अतिथि के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष श्री मनोज चौधरी भी उपस्थित थे।

इस कार्यक्रम में डॉ रिचर्ड ने कहा कि आज विश्व में अन्य धर्मों के लोगों के मानव अधिकारों के लिये तो सयुंक्त राष्ट्र संघ तुरंत प्रस्ताव पास कर देता है लेकिन कश्मीर में, बांग्लादेश में, मलेशिया में हिन्दु लोगों के मानव अधिकरों के बारे में कोई बात नहीं करता, ऐसा क्यों? जब मनोज चौधरी ने इस मामले में हिन्दूओं के साथ भेदभाव की बात कही तो सदन में कुछ लोगों ने हंगामा शुरु कर दिया लेकिन क्या वास्तव मे आज ऐसा नहीं हो रहा है? जरा विचार करें! आज मानव अधिकारों का प्रयोग गैर सामाजिक तत्वों और देश विरोधी लोगों को कानूनी सहायता देने के लिये किया जा रहा है! क्या आज मानव अधिकारों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता नहीं है? क्या आज मानवाधिकार विषय को न्यायसंगत करने की आवश्यकता है?

-रामेन्द्र मिश्रा