– ललित गर्ग –
भारतीय कराधान व्यवस्था में जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) का आगमन एक ऐतिहासिक एवं क्रांतिकारी कदम था। इसने अप्रत्यक्ष करों के जटिल और उलझे जाल को जहां सरल बनाने का प्रयास किया, वहीं शासन एवं प्रशासन में पसरे भ्रष्टाचार एवं अफसरशाही को भी काफी सीमा तक नियंत्रित किया। सुधार, सुविधा एवं जनता को राहत देने के लिये किये इस प्रयास के बावजूद इसमें अनेक जटिलताएं एवं भारी-भरकम कराधान जनता को बोेझिल किये हुए था, इस बात को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार लम्बे समय से महसूस कर रही थी, इसीलिये इसवर्ष स्वतंत्रता दिवस के लालकिले के उद्बोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने जीएसटी को अधिक सुगम एवं जनता के हित में करने की घोषणा की। अब सरकार ने इसे और सुसंगठित करते हुए केवल दो स्लैब्स में कराधान को समेट दिया है और कर भी काफी कम कर दिये हैं तो निश्चय ही यह उपभोक्ताओं और कारोबारियों दोनों के लिए राहतकारी है। इसमें मिडल एवं लोअर क्लास का व्यापक ध्यान रखते हुए उन्हें राहत दी गयी है, जिससे हर परिवार के पास ज्यादा खर्च करने लायक आमदनी बचेगी और लोग अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं पर अधिक खर्च कर सकेंगे। इन बड़े एवं क्रांतिकारी सुधारों से खपत बढ़ेगी, विकास को तीव्र गति मिल सकेगी। निश्चित ही यह एक नए कराधान युग का सूत्रपात है, जिसमें कर प्रणाली अधिक पारदर्शी, सरल और उपयोगी बनने की ओर अग्रसर है।
जीएसटी काउंसिल की 56वीं बैठक के बाद घोषित जीएसटी की नई दरें 22 सितंबर से लागू करने करने की घोषणा की गई है। जिसमें अब 12 व 28 फीसदी के दो स्लैब को खत्म करके सिर्फ 5 व 18 फीसदी कर दिया गया है। कहा जा रहा है कि यह सरकार की ओर से आर्थिक सुधारों की कड़ी में एक नई पहल एवं आयाम है, जिससे जीएसटी को तार्किक बनाने व आम जनता को महंगाई से राहत देने का प्रयास हुआ है। वहीं दूसरी ओर विलासिता आदि वस्तुओं के लिये चालीस फीसदी का एक नया स्लैब जोड़ा गया है। विपक्ष इसे देर से उठाया गया कदम बता रहा है, तो सरकार आर्थिक सुधार की दिशा में बड़ा कदम। जीएसटी के बड़े सुधार को लेकर विपक्ष और विशेषतः कांग्रेस एवं भाजपा के बीच जो आरोप-प्रत्यारोप शुरु हुआ है, वह इसलिये औचित्यहीन, अतार्किक एवं व्यर्थ है, क्योंकि जीएसटी परिषद ने लम्बी विवेचना एवं आम सहमति से यह फैसला लिया है। वहीं कुछ अर्थशास्त्री इस कदम को ट्रंप के टैरिफ वॉर के परिप्रेक्ष्य में उठाया गया सुरक्षात्मक कदम मानते हैं। जिससे घरेलू खपत को बढ़ाकर निर्यात घाटे को कम किया जा सकेगा। वहीं कुछ लोग इसे नवरात्र में दिवाली से पहले सरकार का तोहफा बता रहे हैं।
अनेक कर दरों की जटिलता उपभोक्ताओं के लिए हमेशा भ्रम और बोझ का कारण रही। बार-बार की दर-संशोधन प्रक्रियाओं से व्यापार जगत में असमंजस की स्थिति बनी रहती थी। अब दो स्लैब्स की व्यवस्था से यह समस्या काफी हद तक समाप्त हो जाएगी। उपभोक्ता को वस्तुओं और सेवाओं पर अपेक्षाकृत सरल, न्यायोचित और संतुलित कर ढांचा मिलेगा। इससे न केवल मूल्य स्थिरता आएगी, बल्कि खरीदारी और उपभोग की प्रक्रिया भी सहज होगी। इससे व्यापार एवं उद्योग भी विकास की रफ्तार पकडें़गे। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के लिए कई प्रभावी कदम उठाए गए हैं। डिजिटलाइजेशन, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, आधार लिंकिंग और पारदर्शी तंत्र ने व्यवस्था में विश्वास जगाया है। जीएसटी भी इसी कड़ी का एक क्रांतिकारी सुधार है जिसने ‘वन नेशन, वन टैक्स’ की अवधारणा को मजबूत किया।
परंतु सच्चाई यह भी है कि जीएसटी विभाग आज भी भ्रष्टाचार की जकड़न से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाया है। छोटे व्यापारियों और उद्यमियों को आए दिन नोटिस, जांच और जटिल प्रक्रियाओं के जाल में उलझाया जाता है। कई बार भ्रष्ट तंत्र इन्हें भयभीत कर अनुचित लाभ उठाता है। यह स्थिति जीएसटी सुधार की भावना के विपरीत है। यदि वास्तव में कराधान को क्रांतिकारी मोड़ देना है, तो जीएसटी व्यवस्था को भी पूर्णतः भ्रष्टाचार मुक्त करना अनिवार्य होगा। यह किसी से छिपा नहीं है कि टैक्स विभाग लंबे समय तक भ्रष्टाचार का गढ़ बना रहा। जटिल कानून और अनेक कर-श्रेणियाँ इस भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती थीं। लेकिन जब कराधान पारदर्शी और सरल होगा, तो अधिकारी और कारोबारी के बीच की अनावश्यक जटिलता भी कम होगी। इससे जनता एवं छोटे व्यापारियों का विश्वास व्यवस्था पर मजबूत होगा। अब आवश्यकता है कि सरकार जीएसटी प्रणाली को तकनीकी और प्रशासनिक स्तर पर और अधिक पारदर्शी बनाए। कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटल ट्रैकिंग का उपयोग कर कर चोरी रोकने के साथ-साथ अधिकारियों की मनमानी और रिश्वतखोरी पर भी अंकुश लगाया जा सकता है। करदाता के अधिकारों की रक्षा हो, ईमानदार व्यापारी को भयमुक्त वातावरण मिले और उपभोक्ता को राहत-तभी जीएसटी सचमुच क्रांति कहलाएगा। जीएसटी का नया दौर एक बड़ी राहत और परिवर्तन का संदेश लेकर आया है। अब अगला कदम यही होना चाहिए कि इसे भ्रष्टाचार से पूरी तरह मुक्त कर ईमानदार करदाताओं का विश्वास जीता जाए। तभी यह कहा जा सकेगा कि भारत ने वास्तव में ‘सही अर्थों में एक राष्ट्र, एक कर और एक पारदर्शी कर व्यवस्था’ की ओर निर्णायक कदम बढ़ा लिया है।
भारत की आर्थिक यात्रा में कुछ फैसले ऐसे होते हैं, जो केवल नीतिगत बदलाव नहीं, बल्कि युगांतरकारी मोड़ साबित होते हैं। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में हालिया सुधार उसी दिशा में उठाया गया एक साहसिक कदम है। कराधान व्यवस्था को सरल बनाने और जनता को सीधी राहत पहुँचाने की दिशा में यह सुधार महज सरकारी निर्णय नहीं, बल्कि एक लोककल्याणकारी दृष्टि का प्रमाण है। आजादी के बाद से भारत में कर-व्यवस्था जटिलताओं, बहुस्तरीय बोझ और भ्रष्टाचार की दलदल में फंसी रही। छोटे व्यापारी हों या आम उपभोक्ता, हर कोई अप्रत्यक्ष करों की इस भूलभुलैया से परेशान था। मोदी सरकार ने जीएसटी को लागू करके पहले ही इस दिशा में बड़ा कदम उठाया था, लेकिन अब इसे और सरल बनाना तथा दो स्लैब्स तक सीमित करना एक क्रांतिकारी सुधार है। इससे न केवल उपभोक्ताओं पर बोझ घटेगा, बल्कि व्यवसाय करने की सुगमता भी बढ़ेगी। अर्थव्यवस्था का असली इंजन जनता की जेब है। जब उपभोक्ता को राहत मिलती है, उसके हाथ में थोड़े अधिक पैसे बचते हैं, तो खपत बढ़ती है। यही खपत उद्योगों को गति देती है, उत्पादन में उछाल लाती है और अंततः रोजगार के नए अवसर पैदा करती है। जीएसटी सुधार का सबसे बड़ा असर यही होगा कि यह आर्थिक गतिविधियों को नये पंख देगा और इससे भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थ-व्यवस्थ बन सकेगा।
किसी भी लोकतांत्रिक शासन का मूल्यांकन इस बात से होता है कि वह अपने नागरिकों के हितों को किस हद तक प्राथमिकता देता है। मोदी सरकार ने जीएसटी सुधार के जरिए यह स्पष्ट किया है कि उनकी नीतियाँ महज आँकड़ों का खेल नहीं, बल्कि जनजीवन को आसान बनाने की कोशिश हैं। यह सुधार जनता को केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि मानसिक राहत भी देता है। हालाँकि सुधार के साथ चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। राज्यों को राजस्व हानि की भरपाई, छोटे कारोबारियों को नई व्यवस्था में सहज बनाना और कर-प्रशासन में पारदर्शिता बनाए रखना, ये सब गंभीर प्रश्न हैं। लेकिन यदि इन्हें दूर किया गया तो यह सुधार भारत को एक मजबूत, पारदर्शी और विकासोन्मुख अर्थव्यवस्था की ओर ले जाएगा। जीएसटी सुधार को जनता के लिए एक ‘उपहार’ कहना गलत नहीं होगा। यह केवल कराधान का बदलाव नहीं, बल्कि जनता के जीवन स्तर को बेहतर बनाने की पहल है। यह निर्णय बताता है कि शासन की नीतियाँ केवल सत्ता चलाने के लिए नहीं, बल्कि जनता को राहत देने और देश को विकास की राह पर तेजी से आगे बढ़ाने के लिए बनाई गई हैं। लेकिन यहां यह देखना ज्यादा जरूरी है कि इस बदलाव से वास्तव में आम उपभोक्ता को कितना फायदा होता है। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उद्योग कर कटौती का लाभ उपभोक्ता तक कैसे पहुंचाते हैं। साथ ही नियामक कितनी सतर्कता से अनुपालन सुनिश्चित करते हैं।