लेख

नववर्ष का संकल्प: समतामूलक समाज की ओर कदम

बाबूलाल नागा

   नववर्ष केवल कैलेंडर की तारीख बदलने का नाम नहीं है बल्कि यह आत्ममंथन, आत्मसमीक्षा और नए संकल्पों का अवसर होता है। हर नया साल हमें यह सोचने का मौका देता है कि बीते समय में हमने क्या खोया, क्या पाया और आगे किस दिशा में बढ़ना है। व्यक्तिगत जीवन के साथ-साथ सामाजिक जीवन में भी नववर्ष का महत्व कम नहीं है। यह वह क्षण होता है जब समाज को नई दिशा देने वाले विचार जन्म लेते हैं और बेहतर भविष्य के सपने आकार लेते हैं।

आज जब समाज अनेक तरह की चुनौतियों—असमानता, भेदभाव, जातिवाद, सांप्रदायिकता और सामाजिक विघटन—से जूझ रहा है, तब नववर्ष पर समतामूलक समाज के निर्माण का संकल्प लेना समय की सबसे बड़ी आवश्यकता बन गया है। ऐसा समाज,  जहां व्यक्ति की पहचान उसकी जाति, धर्म, भाषा या वर्ग से नहीं बल्कि उसकी मानवता से हो. जहां हर नागरिक को समान अवसर, सम्मान और न्याय मिले—यही एक सशक्त लोकतंत्र की पहचान है।

   नववर्ष हमें यह सोचने का अवसर देता है कि हम समाज के लिए क्या कर सकते हैं। अक्सर हम अपने व्यक्तिगत लक्ष्य तय करते हैं—स्वास्थ्य, करियर, आर्थिक प्रगति—लेकिन समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भूल जाते हैं जबकि सच्चाई यह है कि जब समाज मजबूत होता है, तभी व्यक्ति भी सुरक्षित और समृद्ध हो पाता है। इसलिए नववर्ष का संकल्प केवल व्यक्तिगत न होकर सामाजिक भी होना चाहिए।

   समाज निर्माण में सबसे पहली आवश्यकता है एकता और सहयोग। आज समाज में विभाजन की रेखाएं गहरी होती जा रही हैं। जाति, धर्म और विचारधारा के नाम पर नफरत फैलाने की कोशिशें हो रही हैं। ऐसे समय में हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम विभाजन नहीं, बल्कि संवाद और समझ को बढ़ावा देंगे। मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मनभेद नहीं। एक-दूसरे की बात सुनना, समझना और सम्मान देना ही सामाजिक एकता की बुनियाद है।

   नववर्ष पर हमें आशावाद और साहस का संकल्प भी लेना चाहिए। समाज में बदलाव आसान नहीं होता। जब भी समानता और न्याय की बात होती है, तो विरोध और कठिनाइयां सामने आती हैं लेकिन इतिहास गवाह है कि हर बड़ा सामाजिक परिवर्तन कुछ साहसी लोगों के संकल्प से ही संभव हुआ है। हमें निराशा के बजाय आशा को चुनना होगा और अन्याय के खिलाफ खड़े होने का साहस विकसित करना होगा।

   समाज के हर व्यक्ति के पास कोई न कोई प्रतिभा, कौशल या अनुभव होता है। नववर्ष पर यह संकल्प लेना आवश्यक है कि हम अपनी क्षमताओं का उपयोग केवल अपने लिए नहीं बल्कि समाज के व्यापक हित में करेंगे। कोई शिक्षा के क्षेत्र में योगदान दे सकता है, कोई स्वास्थ्य, कोई सामाजिक सेवा, तो कोई जागरूकता फैलाने के माध्यम से। छोटे-छोटे प्रयास भी यदि ईमानदारी से किए जाएं, तो वे बड़े बदलाव की नींव बन सकते हैं।

   यदि समाज विकसित होगा, तो देश स्वतः विकसित होगा। राष्ट्र निर्माण किसी एक सरकार या संस्था का काम नहीं, बल्कि हर नागरिक की सामूहिक जिम्मेदारी है। यदि प्रत्येक व्यक्ति यह सोच ले कि “मेरा छोटा सा योगदान भी मायने रखता है”, तो समाज और देश को बदलने से कोई नहीं रोक सकता। यही लोकतंत्र की असली शक्ति है।

   भारत विविधताओं का देश रहा है। यहां अनेक धर्म, संस्कृतियां, भाषाएं और परंपराएं सदियों से एक-दूसरे के साथ सह-अस्तित्व में रही हैं। हमारी सभ्यता की खूबसूरती इसी विविधता में निहित है। नववर्ष पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम इस विविधता का सम्मान करेंगे और इसे अपनी कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत बनाएंगे। आपसी मेल-जोल, प्रेम और भाईचारे से ही राष्ट्रीय एकता को मजबूती मिलती है।

   हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत के लिए जिस समाज की परिकल्पना की थी, उसके मूल में स्वतंत्रता, समता, बंधुता और न्याय के मूल्य थे। ये केवल शब्द नहीं, बल्कि हमारे लोकतांत्रिक जीवन की आत्मा हैं। नववर्ष पर हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम इन मूल्यों को केवल भाषणों और पुस्तकों तक सीमित नहीं रखेंगे, बल्कि अपने व्यवहार और सोच में उतारेंगे।

   संविधान केवल कानून की किताब नहीं, बल्कि एक मानवतावादी दस्तावेज़ है, जो हर नागरिक को बराबरी का अधिकार देता है। इसलिए यह हमारा संवैधानिक दायित्व है कि हम संविधान को पढ़ें, समझें और उसके अनुरूप जीवन जीने का प्रयास करें। जब तक संवैधानिक मूल्य समाज के व्यवहार का हिस्सा नहीं बनेंगे, तब तक समतामूलक समाज का सपना अधूरा रहेगा।

   आज भी समाज में जातिवाद, छुआछूत, लैंगिक भेदभाव और आर्थिक असमानता जैसी समस्याएं मौजूद हैं। नववर्ष पर हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम इन कुरीतियों के खिलाफ चुप नहीं रहेंगे। भेदभाव चाहे किसी भी रूप में हो, उसका विरोध करना हर जागरूक नागरिक की जिम्मेदारी है। समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलना ही सच्चे विकास का रास्ता है।

   किसी भी समाज में असंतोष की स्थिति उत्पन्न होना स्वाभाविक है, लेकिन उसे संवाद और सहयोग से सुलझाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। हिंसा और नफरत किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकती। नववर्ष पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम शांति, सद्भाव और सह-अस्तित्व के मार्ग पर चलेंगे।

   नववर्ष का वास्तविक संदेश यही है कि हम केवल अपनी भलाई तक सीमित न रहें, बल्कि समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझें। इतिहास गवाह है कि बड़े सामाजिक परिवर्तन छोटे-छोटे संकल्पों से ही शुरू हुए हैं। यदि हम ईमानदारी से अपने दायित्व निभाएं, तो बदलाव निश्चित है।

   अतः इस नववर्ष पर आइए, हम सब मिलकर यह शपथ लें कि हम समतामूलक, न्यायपूर्ण और मानवतावादी समाज के निर्माण के लिए निरंतर प्रयास करेंगे। यही नववर्ष का सच्चा स्वागत और हमारे लोकतंत्र के प्रति सच्ची प्रतिबद्धता होगी।

बाबूलाल नागा