बेंगलूर में हुए बम धमाकों ने एक बार दोबारा भारतीय सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है । वैसे भी भारतीय लोकतंत्र में ये कोई नयी बात नहीं है । अभी हैदराबाद में हुए सिलसिलेवार धमाकों को ज्यादा समय भी नहीं बीता था कि ऐसे में हुए इन धमाकों ने गृह मंत्री के तमाम दावों की पोल खोल दी है । जहां तक लगातार हो रही इस दुर्घटना के कारणों का प्रश्न है तो निश्चित तौर पर कहीं न कहीं ये हमारी भ्रष्ट एवं वोट बैंक परस्त राजनीति का परिणाम है । अगर नहीं तो शिंदे साहब जैसे निकम्मे नेता का पद पर बने रहना क्या साबित करता है ? भगवा आतंकवाद का ढिंढ़ोरा पीटने वाले वरिष्ठ कांग्रेसी नेता इन धमाकों की तोहमत किस पर लगाएंगे ? क्या इन हादसों के लिए भी भगवा आतंकवाद ही जिम्मेदार है ?
जहां तक प्रश्न है भारतीय इतिहास का तो निश्चित तौर पर दशकों से भारतीय आम जन ने आतंक के दंश सहे हैं । मुंबई बम धमाके,जम्मू काश्मीर हिंसा,पुणे बम कांड,मुंबई पर हुए कुछ वर्ष पूर्व हुए आतंकी हमले जैसी हिंसक घटनाएं साल दर साल हजारों मासूमों को अपनी क्रूरता का शिकार बनाते रहे हैं । प्रतिवर्ष की औसत से हुए ये हादसे साफ साबित करते हैं कि आतंकियों (जेहादियों) को भारतीय सुरक्षा व्यवस्था का कोई खौफ नहीं है । ये कहना भी गलत ना होगा कि अपनी लचर नीतियों के कारण भारत आतंकियों का साफ्ट टारगेट बनता जा रहा है । यदि इन घटनाओं का सूक्ष्म विवेचन किया जाए तो इसकी जवाबदेही निश्चित तौर पर कांग्रेस की ही है । स्मरण रहे कि भारत की आजादी के पूर्व से ही मुस्लिम लीग ने कांग्रेस के तथाकथित बड़े नेताओं की शह पर ही देश के विभाजन की कुत्सित योजना को अंजाम तक पहुंचाया था । गौरतलब है कि धार्मिेक आधार पर हुए इस विभाजन का उत्तरदायित्व कांग्रेस के बड़े नेताओं का ही है । तुष्टिकरण की पैरोकारी में अंधे हुए इन नेताओं ने ही कश्मीर विवाद को भी जन्म दिया जो आज भारतीय लोकतंत्र का नासूर बन चुका है । काश्मीर के तात्कालीन महाराज हरि सिंह की विलय स्वीकृति के बाद भी भारत सरकार की भ्रष्ट नीतियों ने काश्मीर की आम आवाम को वहां से बेदखल करा दिया । हैरत की बात तो ये है सेक्यूलरिज्म का रोना रोने वाले निर्वीर्य नेताओं के पास आज भी कश्मीर से विस्थापित हुए हिन्दुओं के पुर्नवास की कोई योजना नहीं है । आजाद मुल्क में सर छुपाने का ठौर ढ़ूढ़ने को विवश क्या ये हिन्दू क्या भारतीय लोकतंत्र का हिस्सा नहीं है ? ऐसे में भारतीय सरकार का दोहरा रवैया क्या प्रदर्शित करता है ? इन विस्थापितों की इस दुर्दशा का जिम्मेदार कौन है ? असंख्यों प्रश्न हैं जो निरंतर हमें उद्वेलित करते हैं । इस विषय में सबसे बड़ी दुर्भाग्य पूर्ण बात ये है कि भारत सरकार की ओर से आज भी कोई सार्थक पहल होती नहीं दिख रही है ।
इस पूरे मामले में यदि इतिहास को भूला भी दिया जाए तो भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी कांग्रेसी सरकार वर्तमान परिप्रेक्ष्यों में अपनी जवाबदेही से मुकर नहीं सकती । आजादी के साठ से अधिक वर्षों में चार दशक से भी अधिक सत्ता की बागडोर संभालने वाली अपनी सतही मानसिकता से उबर नहीं सकी है । आज भी समस्या का निवारण करने के बजाय कांग्रेसी दिग्गज शांतिप्रिय कौम को कोसे जा रहे हैं । वो भी ऐसे समय जब पूरा विश्व जेहादियों के दंश से जूझ रहा है । ऐसे में शायद भारत ही एकमात्र ऐसा देश जहां आज भी भगवा आतंकवाद के नाम पर वैश्चिक अल्पसंख्यकों के हित की अनदेखी की जा रही है । भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां जघन्य आतंकियों अफजल को साहब और लादेन को लादेन जी का आदरसूचक संबोधन दिया जाता है । भारत सरकार की इस कुत्सित नीति को ही सेक्यूलरिज्म कहते हैं ? यदि सेक्यूलरिज्म यही है तो निश्चित तौर पर हमारी पंथनिरपेक्षता के मानक अमेरिका,इजरायल जैसे विकसित देशों के सर्वथा विपरीत है । गौरतलब है कि इन देशों में आतंकियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने में किसी विशेष धार्मिक समस्या का सामना नहीं करना पड़ता । इस अनुसार यदि भारतीय शासन प्रणाली को देखें तो एक राष्ट्र दो संविधान और दो ध्वज के साथ राष्ट्रीय हितों की तिलांजली देने वाला एकमात्र राष्ट्र है ।बहरहाल देखने वाली बात ये है कि इन विषम परिस्थितियों हम अपनी तथाकथित आजादी कब तक कायम रख पाते हैं ? तथाकथित इसलिए क्योंकि बहुत से विद्वान जन इसे संपूर्ण स्वायत्तता न मानकर सिर्फ सत्ता का हस्तांतरण भर मानते हैं ।
उपरोक्त सारे संदर्भों में देश को रसातल तक पहुंचाने के लिए निश्चित तौर पर कांग्रेस की गलत नीतियां ही जिम्मेदार हैं । स्मरण रहे जिस शिंदे साहब के मंत्री रहते हुए पूरे देश ब्लैक डे मना रहा था उन्हे ही सजा के स्थान पर गृह मंत्री बना देने के निर्णय को कहीं से भी सही नहीं कहा जा सकता । खैर शिंदे साहब ने अपनी तुच्छ मति से देश को दोबारा निराशा की गर्त में ढ़केलने में कोताही नहीं बरती । इस बात को प्रमाणित करने के लिए उनके आठ माह के कार्यकाल में हुई तीन हिंसक घटनाएं पर्याप्त हैं । काबिलगौर है कि गृहमंत्री रहते हुए पूर्व गृह मंत्री चिदंबरम साहब आम जन को ढ़ाढस बंधाने के लिए अपने लिए भी किसी प्रकार का सुरक्षा बंदोबस्त नहीं करते थे । वहीं दूसरी ओर शिंदे जी ने आते ही अपने लिए जेड श्रेणी की सुरक्षा व्यवस्था का इंतजाम कराया । अब आप ही सोचिये एक डरा हुआ मंदमति मनुष्य राष्ट्र की क्या सेवा कर सकता है । मंद मति इसलिए कि देश में लगातार जेहादियों के तांडव को भगवा आतंकवाद कहना उनकी मानसिक दशा को ही प्रदर्शित करता है । ऐसे में भारत सरकार को तत्काल उन्हे कार्यभार से मुक्त कर देना चाहिए था, लेकिन मनमोहन सरकार से ऐसी उम्मीद लगाना बेवकूफी ही है । हां आम आदमी को वोट देने से पूर्व इन बम धमाकों के निहीतार्थ के विषय में अवश्य सोचना होगा । अन्यथा जनता के मत से जन्मे ये भस्मासुर हमारी राष्ट्रीय संप्रभुता को भस्म कर डालेंगे । अतएव अब ये आवश्यक है कि देश का आम आदमी जात-पात के तिरिया चरित्र से बाहर आकर राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखकर अपना मत दे ।