निर्मल बाबा की कृपा का कारोबारी चमत्कार

दिव्य आंख का अवतरण बनाम पेड न्यूज

प्रमोद भार्गव

टीवी समाचार चैनलों पर ‘थर्ड आई ऑफ निर्मल बाबा’ नाम से विज्ञापन दिखाकर भक्तों पर दिव्य कृपा बरसाने का दावा करने वाले निर्मल बाबा अब खुद कठघरे में हैं। बाबा को मुश्किल में वही भक्त डाल रहे हैं, जिनका कष्ट वे तीसरी आंख की दिव्य त्रिकाल दृष्टि से हर लिया करते थे। हालांकि दैवीय शक्तियों और चार भुजाओं से भक्तों के कल्याण का प्रपंच रचने वाले अकेले निर्मल बाबा नहीं हैं, टीवी चैनलों पर मंत्र-महामंत्र और चमत्कारिक वस्तुएं एवं टोटके बेचने वाले तथाकथित सिद्धियों बनाम कारोबारियों की पूरी एक जमात सूची है। हैरानी इस बात पर भी है कि छल, प्रपंच और प्रहसन के इस पूरे कारोबार को प्रोत्साहित और संरक्षण भुगतान समाचार के बूते वे टीवी चैनल दे रहे हैं, जिनकी पैठ घर-घर में है और जिनके मालिक व उद्घोषक प्रगतिशील होने का दावा करते हैं। निर्मल बाबा की कृपा का प्रसारण करीब 35 चैनलों पर हो रहा था और चैनल इस कृपा को विज्ञापन की बजाए बतौर कार्यक्रम दिखा रहे थे। यही नहीं यह कार्यक्रम चैनलों के टीआरपी चार्ट में भी शामिल था। कुछ महीनों से तो बाबा मुख्य चैनलों के प्राइम टाइम पर अवतरित हो रहे थे। लिहाजा बाबा ने अपने बही खातों में वार्षिक आमदनी का जो आंकडा़ 240 करोड़ बताया है, उसमें इस बात की भी पड़ताल करने की जरुरत है कि पेड न्यूज के बहाने चैनलों के खाते में कितना धन गया। क्योंकि बाबा ने तो अतीन्द्रीय शक्तियों का भय दिखाकर समाज को दुुर्बल बनाने का काम किया ही, चैनल भी इसमें बराबर के भागीदार रहे हैं।

धर्म और समाज के प्रर्वतक मानवता को तात्कालिक व समकालीन संकटों से मुक्ति के लिए अस्तित्व में आए और उन्होंने समाज को कष्ट में डालने वाली बड़ी व सत्ता में दखल रखने वाली ताकतों से जबरदस्त लोहा भी लिया। इस क्रम में भगवान बुद्ध ने ईश्वर के नाम पर संचालित धर्म सत्ता को राजसत्ता से अलग किया। उस युग में धर्म – आधारित नियम-कानून ही राजा के राजकाज के प्रमुख आधार थे। किंतु बुद्ध ने जातीय, वर्ण और धर्म की जड़ता को खंडित कर समतामूलक नागरिक संहिता को मूर्त रुप दिया। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी जन्म आधिरित और जातिगत श्रेष्ठता की जगह व्यक्ति की योग्यता को महत्व दिया गया। इस्लामी पंरपरा में भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को उसकी रजामंदी के अधीन माना गया। ईसा मसीह ने भी व्यक्ति स्वातंत्रय और करुणा के अधीन न्याय का सूत्र दिया। गुरुनानक ने जातिवाद की उंच-नीच को अस्वीकार कर सत्तागत राजनीतिक धर्मांधता को मानव विरोधी जताया।

परंतु कालांतर में धर्मांध लोगों ने अपनी-अपनी प्रभुताओं की वर्चस्व स्थापनाओं के दृष्टिगत कालजयी पुरुषों के संघर्ष को दैवीय व अलौकिक शक्तियों के सुपुर्द कर धर्म को अंधविश्वास और उससे उपजाए गए डर के सुपुर्द कर दिया। बोध प्राप्ती के इस सरल मार्ग को शक्ति के मनोविकार, प्रसिद्धि की लालसा, धन की लोलपुता और वैभव के आडंबर में परिवर्तित कर दिया। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में तो धर्म अभिव्यक्तियों के बहाने टीवी चैनलों के माध्यम से अंधविश्वास फैलाने के रास्तों पर ही आरुढ़ होता दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि वैचारिक शून्यता के माहौल में हर नए विचार के आगमन और प्रयोग की कोशिशों को कल्पनातीत लीलाओं की तरह महामंडित कर जड़ता का मनोविज्ञान रचा जाकर सामसजिक सरोकारों को हाशिए पर लाया जा रहा है।

धार्मिक चमत्कार के पाखण्ड के विस्तार में निर्मल बाबा जैसे ढोंगी ही नहीं लगे, सभी धर्मों के मठाधीश अंधविश्वास को आमजन में सुनियोजित ढंग से पहुंचाने में लगे हैं। तीन साल पहले वेटिकन सिटी में पोप ने सिस्टर अल्फोंजा को संत की उपाधि से इसलिए अलंकृत किया, क्योंकि उनका जीवन छोटी उम्र में ही भ्रामक दैवीय चमत्कारों का दृष्टांत बन गया था। जबकि ईसाई मूल की ही मदर टेरेसा ने भारत में रहकर जिस तरह से कुष्ठ रोगियों की सेवा की, अपना पूरा जीवन मानव कल्याण के लिए न्यौछावर किया, जन-जन की वे ‘मदर’ संत की उपाधि से विभूषित नहीं की जातीं। क्योंकि उनका जीवन चमत्कारों की बजाए यथार्थ रुप में मानव कल्याण से जुड़ा था। दूसरी तरफ सिस्टर अल्फोंजा ऐसे चमत्कारों की फेहरिश्त से जुड़ी थीं, जिनका सच्चाई, संदिग्ध और यथार्थ से परे है। अब इस चमत्कार को कितना वास्तविक माना जाए कि अल्फोंजा की समाधि पर प्रार्थना करने से एक बालक के पोलियोग्रस्त पैर बिना किसी उपचार के ठीक हो गए थे ? यह समाधि कोट्टयम जिले के भरनांगणम् गांव में बनी हुई है। यदि इस तथाकथित अलौलिक घटना को सही मान भी लिया जाए तो भी इसकी तुलना में यथार्थ के धरातल पर मदर टेरेसा की निर्विकार सेवा से तो हजारों कुष्ठ रोगियों को शारीरिक संताप व मानसिक संतुष्टि पंहुची है। इस दृष्टि से संख्यात्मक भौतिक उपलब्ध्यिां भी मदर टेरेसा के पक्ष में थीं। फिर अल्फांेजा को ही संत की उपाधि क्यों ?

इस्लाम में भी चमत्कारों की करामातें भरी पड़ी हैं। ईद-उल-जुहा, जिसे बकरीद भी कहते है, पर भेड़-बकरियों की कुर्बानी देने की मान्यता है। इस मान्यता के अनुसार हजरत इब्राहिम ने अपने पुत्र इस्लाम की कुर्बानी करने की ठान ली। लेकिन जैसे ही इब्राहिम अपने बेटे की गर्दन पर छुरी चलाने के लिए तत्पर हुए, वैसे ही गैब्रियल नाम के फरिश्ते ने इस्माइल को चमत्कार से भेड़ में बदल दिया। लिहाजा इस्माइल बच गए। अलबत्ता भेड़-बकरियों की कुर्बानी का रिवाज चल निकला। लेकिन जब इस्लामी पाखण्ड का विरोध सलमान रुशदी और तस्लीमा नसरीन करते हैं, तो उन पर मौत का फतवा जारी कर दिया जाता है।

चमत्कारों का कोई अंत नहीं है। हिंदुओं के कर्मकाण्डी ग्रंथ मनौतियां मांगने और फिर उनके पूरे हो जाने के पाखण्डों से भरे पड़े हैं। मंत्र कान में फूंकने से सांप और बिच्छू के जहर उतर जाते हैं। बांझों को संतान पैदा हो जाती है। लोगों की नौकरी लग जाती है और अदालतों में चल रहे मुकदमें भी जीत लिए जाते हैं। संतों की कृपा से भ्रष्ट अंतर्मन की अंतज्र्योति तो जागृत हो जाती है, लेकिन न तो बिना तेल के दीपक जलता है और न ही फयूज बल्व। आतंकवादी घटनाएं दुनिया के किसी भी देश में घटे, कोई भी संत, फकीर, पादरी या भविष्यवक्ता यह भविष्यवाणी नहीं करता कि आज, इस वक्त अमुक स्थल पर घटना को अंजाम दिया जा रहा है। जबकि ये चमत्कारी महानुभव अपने को त्रिकाल दृष्टा कहते हैं।

बहरहाल धर्म चाहे कोई भी हो उनके नीति नियंता धर्मों को यथार्थ से परे चमत्कारों से महिमामंडित कर कूपमंडूकता के ऐसे कट्टर श्रद्धालुओं की श्रृंखला खड़ी करते रहे हैं, जिनके विवेक पर अंधविश्वास की पट्टी बंधी रहे और वे आस्था व अंधविश्वास के बीच गहरी लकीर के अंतर को समझ पाने की सोच विकसित ही न कर पाएं। अब तो पेड न्यूज के मार्फत इस अंधविश्वास को बढ़ावा देने में भागीदार इलेक्टोनिक मीडिया भी हो गया है। निर्मल बाबा के चटनी, गोलगप्पे, समोसे और बर्फी से कष्टों का हरण करने वाले उपायों को महिमामंडित कर विस्तार देने में आजतक, स्टार न्यूज, जी न्यूज और आईबीएन – 7 जैसे चैनलों की सक्रिय भागीदारी रही। यदि रांची से प्रकाशित प्रभात खबर बाबा का भंडाफोड़ नहीं करता तो धर्म के पाखण्ड का यह कारोबार और आगे भी चलता ? इसलिए इस मामले में बाबा से कहीं ज्यादा गुनहगार वे समाचार चैनल हैं जो पेड न्यूज के जरिए अंध-विश्वास फैलाने का कारोबार कर अपने आर्थिक हित साध कर प्त्रकारिता से जुड़ी नैतिक आचार संहिता को पलीता लगा रहे थे।

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