नीतिहीन शिक्षा प्रणाली – युवा पीढ़ी से खिलवाड़

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शिक्षक बच्चों के लिए मार्गदर्शक होते है | बच्चों को बौद्धिक व नैतिक सुमार्ग पर ले जाने का दायित्व  माता-पिता के बाद शिक्षक का ही होता है | शिक्षक एकमात्र ऐसा स्तंभ है जिस पर बच्चों के भविष्य का निर्माण निर्भर करता है | परन्तु समय ने करवट ली व गुरु-शिष्य तथा सन्तान-माता-पिता के बीच सम्बंधों की गुणवत्ता में भारी बदलाव देखने को मिल रहा है | गुरुकुल प्रथा से हटकर आज स्कूलों में शिक्षा तो है परन्तु दीक्षा का अभाव देखने को मिल रहा है | शिक्षा संस्थानों में गुणवत्ता का अभाव दिख रहा है जिससे युवा पीढ़ी अपने मार्ग से भटक रही है |  न तो गुरु शिष्य का बेमिसाल मधुर सम्बन्ध रहा है और न ही शिक्षा का नैतिक उद्देश्य |

कारण कोई भी हो लेकिन नैतिक मूल्यों में यह गिरावट भविष्य के लिए अच्छा सन्देश नही है | शिक्षा संस्थानों को कमाई का कम व शिक्षा-दीक्षा का ज्यादा ध्यान रखना होगा | सरकारी स्कूल अनुशासनहीनता के केंद्र बनते जा रहे हैं जिससे विद्यार्थी गलत आदतों के शिकार हो रहे हैं | इसके लिए जिम्मेवार प्रदेश की नीतिहीन शिक्षा प्रणाली है | जिस कारण शिक्षक अपने को आदर्श के रूप में प्रकट नही कर पा रहे है | दूसरी तरफ शिष्यों में भी अपने गुरुजनों के प्रति आदर व सम्मान की कमी दिख रही है | अत: समाज का यह स्तंभ ज़र-ज़र हालत में पहुँच चुका हैं | यदि समय रहते इसे गिरने से नही रोका गया तो सारा भवन धराशायी हो जायेगा |

हिमाचल प्रदेश में शिक्षा जगत की कुछ ऐसी ही स्थिति है | शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता को सुधारने की जगह साक्षरता दर को सुधारने का प्रयास सरकार का लक्ष्य बन गया है जिससे विद्यार्थी साक्षर तो बन रहे हैं परन्तु उनमें संस्कारों का अभाव होता जा रहा है | अच्छे शिक्षक अच्छी शिक्षा व दीक्षा प्रदान कर सकते हैं परन्तु आज के समय में अच्छे शिक्षकों की भी कमी अखर रही है | पहले जो पढ़ने में अच्छे बच्चे होते थे उनमें से ज्यादातर शिक्षक बनना अपना लक्ष्य बनाते थे लेकिन आज पैसा कमाने की होड़ में ज्यादातर बच्चे निजी कंपनियों में काम करना पसंद करते हैं | जिससे शिक्षा जगत में अच्छे शिक्षकों की भारी कमी हो गयी है | सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश भर में 5.8 लाख प्राथमिक स्तर के व 3.5 लाख अप्पर प्राथमिक स्तर के शिक्षकों की आवश्यकता है | जबकि विश्वविद्यालयों के लिए यह संख्या 5 लाख बनती है | दूसरी तरफ शिक्षक अपने करियर के प्रति असुरक्षित महसूस कर रहे हैं क्योंकि शिक्षकों को पूरा वेतन व नौकरी की सुरक्षा देने के बजाय उन्हें अनुबंध के आधार पर भर्ती किया जा रहा है | यही कारण है कि आज अच्छे शिक्षक मिलना दुर्लभ हो गये हैं | ऐसी परिस्थिति में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार केवल एक सपना मात्र बन गया है |

हिमाचल प्रदेश में शिक्षकों की भर्ती के लिए कोई नीति सरकार ने निर्धारित नही कर रखी है | सरकारें समय-समय पर अलग-अलग रास्तों से शिक्षकों को भर्ती करती रही हैं जिससे प्रदेश में अध्यापकों के कई वर्ग हो गये हैं | जैसे वालंटियर, तदर्थ, विद्या उपासक, ग्रामीण विद्या उपासक, पैट, पैरा, पीटीए, एसएमसी, सहित और भी कई | ऐसे लोग स्कूलों में पढ़ा रहे हैं जिन्होंने मुश्किल से दसवीं पास की | तृतीय श्रेणी में स्नातक पास शिक्षक बने हैं | ऐसे लोग क्या पढ़ाते होंगें ? जरूरत इस बात की है कि अध्यापक भर्ती के लिए विशेष नीति बने | ऐसा न हो, जो भी सरकार आए, अपनी मर्ज़ी से भर्ती करती रहे | पीटीए शिक्षकों के साथ जो हुआ और जो भी हो रहा है, इसको दोहराया नही जाना चाहिए | जब तक शिक्षकों की गुणवत्ता में सुधार नही लाया जाता तब तक विद्यार्थियों की शिक्षा में गुणवत्ता लाना संभव नही | अत: सरकार को एक तय नीति के तहत शिक्षकों की भर्ती व समय-समय पर प्रशिक्षण देना जरुरी है |

शिक्षा का निजीकरण होने की वजह से सरकारी स्कूलों में केवल वे ही बच्चे रह गये हैं जिनके माता-पिता निजी स्कूलों में बच्चों को भेजने की सामर्थ नही रखते | यहाँ तक की शिक्षक स्वयं अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाना पसंद करते हैं | ज़ाहिर है कि जब शिक्षक स्वयं अपने स्कूलों को अपने बच्चों के काबिल नही समझते तो स्वभाविक है कि दूसरे लोग सरकारी स्कूलों को कैसे सही ठहरायेंगे | हालाँकि शिक्षा का स्तर निजी स्कूलों के बराबर लाने के लिए शिक्षा विभाग कई प्रकार के कदम उठा रहा है लेकिन जब तक शिक्षक खुद शिक्षा के स्तर को नही सुधारते तब तक विभाग के वे कदम बौने साबित होंगे | शिक्षकों को पहले यह समझना होगा कि वे आने वाले समाज के निर्माता हैं | अत: उन्हें समाज को किस ओर ले जाना है इस पर विचार करना होगा | सरकारी स्कूलों का यह हाल है कि अधिकतर स्कूलों में शिक्षक स्वयं बच्चों को परीक्षा के दौरान नक़ल करवाते हैं तथा बच्चों के माता-पिता व स्कूल प्रबंधन समितियां इस कार्य के लिए उन्हें सहयोग देते हैं | इसका प्रमाण यदि विभाग को चाहिए तो जिन स्कूलों का रिजल्ट 90 प्रतिशत से ऊपर रहता है उनमें परीक्षा के दौरान अचानक जाकर देखें कि नक़ल का कैसा रूप वहाँ देखने को मिलता है |

साल 1999 के दौरान स्कूल शिक्षा बोर्ड के अनुरोध पर बतौर एस.डी.एम. चौपाल मैंने स्वयं यह प्रयोग करके देखा तो शत-प्रतिशत रिजल्ट देने वाले 9 स्कूलों का रिजल्ट जीरो से दस प्रतिशत तक रहा जो शिक्षा विभाग की आँखे खोलने के लिए पर्याप्त है | ये वही स्कूल थे जिन्हें पिछले सालों अच्छा रिजल्ट देने के लिए शिक्षा विभाग पारितोषिक देता रहा था | जिस स्कूल में मास कोप्यिंग पाई जाये उसके ड्यूटी पर तैनात सभी शिक्षकों के खिलाफ़ एंटी-कोप्यिंग एक्ट के तहत केस दर्ज किया जाना चाहिए तथा उस दिन की परीक्षा रद्द घोषित की जानी चाहिए | रद्द की गयी परीक्षा जिम्मेवार अधिकारी की निगरानी में करवानी चाहिए ताकि बच्चों को भी अपना चेहरा आईने में नज़र आ सके | यह प्रयोग नकल रोकने के लिए कारगर साबित हुआ है | यह बात अलग है कि इस सारे अभियान को सफल बनाने की कीमत मुझे जानलेवा हमले से चुकानी पड़ी थी | देखना यह भी आवश्यक है कि औचक निरिक्षण करने वाले कितने शिक्षक व अधिकारी इस प्रकार का जोखिम उठाने के लिए तैयार है और जो ऐसा जोखिम उठा कर सराहनीय कार्य करते हैं उनके लिए सरकार के पास सुरक्षा एवं प्रोत्साहन हेतु क्या योजना है | ऐसी सूरत में केवल शिक्षा निर्देशालय से फ़रमान ज़ारी करना पर्याप्त नही है अपितु धरातलीय स्थिति को समझते हुए शिक्षा में सुधार लाने होंगे | कार्यवाही बच्चों के खिलाफ़ ही नही अपितु शिक्षकों के खिलाफ भी  होनी चाहिए |

ऐसा भी नहीं है कि सभी शिक्षक नक़ल करवाना चाहते हैं परन्तु जो इस प्रथा के विपरीत चलते हैं उनको न तो स्थानीय लोगों का सहयोग मिलता है और न ही स्कूल के मुखिया का | इसलिए ऐसे अध्यापक कई बार परीक्षा ड्यूटी से अपना मुंह मोड़ना ही उचित समझते हैं | अत: आवश्यकता इस बात की है कि सभी स्कूलों में ऐसे शिक्षकों की पहचान की जाये, उन्हें उचित सुरक्षा प्रदान की जाये तथा सराहनीय कार्य करने के लिए सम्मानित किया जाये | ऐसे शिक्षकों के लिए सरकार या विभाग के पास क्या योजना है जो पढ़ाते भी ईमानदारी से हैं और नक़ल जैसी सामाजिक बुराई को न पनपने देने के आरोप में स्कूल प्रबन्धन समितियों के प्रतिनिधियों के कोप के भाजन भी बनते हैं ? सम्मान उन शिक्षकों को मिले जो धरातल पर अच्छा काम करते हैं न की उनको जो विभिन्न स्तरों से प्रमाण पत्र इकट्ठे करके अवार्ड के लिए अपनी झोली फैलाकर सरकार के पास आते हैं | इस बात की भी आवश्यकता है कि शिक्षकों को कॉन्ट्रैक्ट के बजाय रेगुलर नौकरी पर रखा जाये ताकि वे लग्न से कार्य करें |

यह भी देखा गया है कि शिक्षकों पर समय-समय पर दूसरे विभाग जैसे – चुनाव, जन-गणना आदि का काम भी सौंपा जाता है जिससे बच्चों की पढ़ाई पर विपरीत असर पड़ता है | अत: इस प्रकार के कार्य शिक्षकों को न सौंपे जायें | शिक्षकों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट रिजल्ट प्रतिशत के आधार पर नही अलबत्ता बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता के आधार पर लिखी जानी चाहिए तभी भवन के इस ज़र-ज़र हुए स्तंभ को टूटने से बचाया जा सकता है | निर्देशालय से शिक्षकों को ताजा दायित्व यह मिला है कि उन्हें देश-विदेश के घटनाक्रम के सम्बन्ध में प्रश्न बच्चों से तैयार कराने होंगे | निर्देशों में यह भी है कि स्कूलों के औचक निरिक्षण के दौरान उप-निदेशक विद्यार्धियों से सवाल पूछेंगे | विभाग की यह पहल तो अच्छी है लेकिन स्कूलों की बुनियादी जरूरतों व खामियों की तरफ भी ध्यान देना होगा अन्यथा निर्देश केवल हवाई आदेश बनकर ही रह जायेंगे | अत: सरकार को शिक्षा नीति बनाकर उसके तहत शिक्षकों को भर्ती किया जाना चाहिए तथा नक़ल जैसी बुराई को सख्ती के साथ रोकना चाहिए ताकि शिक्षा में गुणवत्ता का प्रसार हो |

 

बी. आर. कौंडल

4 COMMENTS

  1. क्रान्तिकारी प्रगति-चक्र:

    (१)शिक्षा-के माध्यम से एक परिणामकारी ही नहीं, पर जापान की भाँति, एक क्रान्तिकारी प्रगति-चक्र देश में, चलाया जा सकता है-जो होना ही चाहिए–अवसर चूकना नहीं है।
    ऐसे प्रगति चक्र का फल, तुरंत मिलता नहीं है, पर “शुभस्य शीघ्रं”।
    उचित अधिकारियों के सामने यह विषय रखा जाए।
    इस सुधार बिना, हम प्रगति बिलकुल नहीं कर पाएंगे।
    ————————————————————-
    (२)हमारे प्रगति-चक्र की मुख्य कल शिक्षा और शिक्षक है।
    और उस की ऐसी हीन अवस्था जानकर व्यथा होती है।
    देश की प्रगति का सीधा संबंध शिक्षा और शिक्षक से होता है।
    कौंडल जी से अनुरोध: आप इस विषय पर अपना लेखन करते रहे।
    यह योगदान अति आवश्यक है।
    आ. कौंडल महोदय का बहुत बहुत धन्यवाद।
    डॉ. मधुसूदन
    (सुरेशचंद्र जी से सहमति।-आप की टिप्पणी ने ध्यान खींचा।)

  2. आदरणीय में भी सिक्षाविभाग में ४०-४२ वर्ष सेवा के बाद प्राचार्य पदसे सेवा निवृत हुआ हुँ. शिक्षा नीति और व्यवस्था पुरे भारत मैं लगभग एक समान है। किसी भी प्रांतीय दाल की सरकार हो ,आपने जो शिक्षक पदों के नाम उल्लिखित किये हैं वे नाम बदलकर एक जैसे ही हैं म। प्रदेश में उनके पद नाम हैं–शिक्षाकर्मी/संविदा शिक्षक/अतिथि शिक्षक/अंशकालीन शिक्षक/गुरूजी/आदिय़दि १०वीऔर १२वे दर्जे को देखा जाय तो तीन तरह की परीक्षा। एक नियमित बोर्ड की परीक्षा जो पाठशालाओं में अध्यन रत बच्चे देते हैं,एक ओपन बोर्ड जिसकी परीक्षा और प्रश्नपत्र देखने लायक अध्यन करने लायक है तीसरी पत्राचार परीक्षा इसके प्रशन पात्र समयविभाग चक्र ,पद्धति ,मूल्याङकं न सब अधयन के विषय है. जब ५ और १० किलोमीटर पर हाई स्कूल और हायर सेकंडरी है तो इन ओपन स्कूलों की जरूरत क्या है?कागज पर डिगरी और नौकरी के लिए ये एकदम अच्छे कदम हैं किन्तु ओपन बोर्ड से परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले छात्रों को इतना भर्मित कर दिया गया है की वे वास्तव मैं स्वयं को १० या १२ दर्जा उत्तीर्ण मानते हैं जब की हक़ीक़त यह है की उन्हें कक्षा ७ या ८ //परचा दे दिया जाय तो उनका उत्तीण प्रतिशत निराशाजनक होगा. विज्ञानं शिक्षण की दुर्गति देखिए. यदि जाँच की जाय तो एक १०गुणा १० के कमरे मैं भौतिक/रसायन/जीवशास्त्र/भूगोल /गणित की प्रयोगशालों वाले कई विधालय मिल जाएंगे. अधिकांश विध्यालयों में प्रयोगशाला सहायक या अटेण्डेंट है ही नहॆऽउर यदि नियुक्त हैं तो उन्हें या तो कार्यालयीन कार्य या अन्य कार्य दे दिया गया है. ताजुब यह है की सभी राजनीतिक दलों की पुरे देश में दो बातों को लेकर गजब की आपसी समझाइश है. एक तो सदनों में वेतन भत्तों को लेकर ये ५ या १० मिनिट में प्रस्ताव पास कर लेते हैं. दूसरे किसी दल का नेता शिक्षा व्यवस्था को लेकर कभी किसी की आलोचना नहीं करता. भरषटाचार/धर्म निरपेक्षता/भूमि सुधर नियम पर तो इनका ज्ञान मुखर रूप से प्रकट होता है. विदेश नीति/एफ ड़ी आईं /बीमा/ पर इनके हंगामे देखने काबिल. विरोध करने के लिए प्रस्तावित विधेयक फाड़ना/अख़बार की कतरने हिला हिला कर बताना /गर्भ गृह में जाकर सभा के अध्यक्ष पर काकज फ़ेकना. कुर्सिया,माइक फ़ेकना. इनके रोज के कर्म. किन्तु शिक्षा नीति और उसकी दुर्दशा पर ये एक मत से चुप। स्थिति विकट है. एक बहुत बड़ी नाकाम पीढ़ी बनाने में ये लोग कार्य कर रहे हैन्य़हॆ पीढ़ी इन्हे कोसेगी.

      • कौंडल साहेब सेवानिवृत्त राजस्व अधिकारी होने के बाद भी आप शिक्षा में इतनी रूचि लेते हैं ,यह हमारे समाज के लिए अच्छी बात है. अन्यथा राजस्व अधिकारी जीवन भर ,वरिष्ट प्रशासनिक अधिकारीयों ,और राजस्व के मामले इन दो चीजों से ही सम्बद्ध रखता है. यदि आप सरीखे १०-५ लोग हर जिले में सक्रीय हो जाएँ और लेख,गोष्टियां ,आदि के माधयम से ऐसे प्रशनो को उठाते रहें तो कहीं न कही तो जूँ रेकेंगी.

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