प्लास्टिक किसी को न भाये – उसका कचरा सबका दर्द भगाये

चंद्र मोहन

बाजार से खरीदारी करके घर लौटते सभी के हाथों मे छोटे बड़े प्लास्टिक के थैलों को हर कोई आसानी से देखता है. प्यास लगी हो तो पानी की बोतल भी प्लास्टिक की ही बाजार मे उपलब्ध है. रेलगाड़ी मे सफर करो तो स्टेशन पर भी पानी की प्लास्टिक बोतल भी सभी पहचानते हैँ.

कुछ भी खाने का सामान मंगवाइये, वह प्लास्टिक के डिब्बे मे ही आता है. सरकार ने भी कई फतवे जारी किए कि प्लास्टिक से दूरी बनायें. लेकिन यह प्लास्टिक है कि हमारी रोज़मरा की जिंदगी का हिस्सा  बन चुका है.

कुछ अरसा पहले प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु के महाबलिपुरम में समुन्दर के तट पर न केवल करीब आधे घंटे की सैर की बल्कि वहां सागर तट पर फैले कचरे को भी उठा कर स्वच्छ्ता का सन्देश दिया. पी एम मोदी ने एक तीन मिनट का वीडियो भी शेयर किया कि वहां घूमते हुए प्लास्टिक की बोतलें और अन्य प्लास्टिक के सामान को उठाया और होटल कर्मचारी को साफ सफाई का ध्यान रखने का सन्देश भी सुना दिया.

प्लास्टिक कितना खतरनाक हो सकता है, इसको सभी जानते हैँ लेकिन उससे छुटकारा पाया जाये, इसको कैसे समझा जाये!

प्लास्टिक से पैरासिटामोल:

वैज्ञानिकों ने 24 घंटे में कचरे को दर्द निवारक में बदल दिया .एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने ई कोलाई बैक्टीरिया का उपयोग करके पीईटी प्लास्टिक कचरे को पैरासिटामोल में परिवर्तित करने की प्रक्रिया विकसित की है।व्यावसायिक स्तर पर इसका उत्पादन शुरू करने से पहले इसमें और विकास की आवश्यकता है।

यू.के. में एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के नए शोध ने पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट (पीईटी) प्लास्टिक के अणुओं को एसिटामिनोफेन में बदलने के लिए एस्चेरिचिया कोली बैक्टीरिया का उपयोग करके एक महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है जिसे आम तौर पर पैरासिटामोल के रूप में जाना जाता है। यह प्लास्टिक प्रदूषण और दवा निर्माण में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता दोनों को संबोधित करने के लिए एक आशाजनक दृष्टिकोण प्रदान करता है।

एसिटामिनोफेन का उत्पादन आमतौर पर जीवाश्म ईंधन का उपयोग करके किया जाता है। प्लास्टिक जैसे अपशिष्ट उत्पादों के साथ इन अवयवों को प्रतिस्थापित करने से दो प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियों का अभिनव समाधान मिल सकता है।

यद्यपि इस प्रक्रिया को बढ़ाने तथा इसकी औद्योगिक और वाणिज्यिक व्यवहार्यता को प्रदर्शित करने में समय लगेगा, फिर भी इस नई प्रौद्योगिकी में टिकाऊ औषधि उत्पादन और अपशिष्ट प्रबंधन के लिए काफी संभावनाएं हैं।

एडिनबर्ग विश्वविद्यालय द्वारा जारी समाचार के अनुसार इस प्रक्रिया के कई लाभ हैं, जिनमें शामिल हैं:

त्वरित परिणाम: परिणाम 24 घंटे के भीतर प्राप्त किए जा सकते हैं।

कॉम्पैक्ट सेटअप: इसे एक छोटी प्रयोगशाला सेटिंग में किया जा सकता है।

ऊर्जा दक्षता: यह कमरे के तापमान पर संचालित होता है जिससे अत्यधिक गर्म या ठंडा करने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के जैव प्रौद्योगिकीविद् स्टीफन वालेस कहते हैं , “यह कार्य दर्शाता है कि पीईटी प्लास्टिक केवल अपशिष्ट या प्लास्टिक बनने वाला पदार्थ नहीं है – इसे सूक्ष्मजीवों द्वारा मूल्यवान नए उत्पादों में परिवर्तित किया जा सकता है जिनमें रोगों के उपचार की क्षमता भी शामिल है।”

विशेषज्ञों का कहना है कि यह नया दृष्टिकोण दर्शाता है कि कैसे पारंपरिक रसायन विज्ञान, इंजीनियरिंग जीव विज्ञान के साथ मिलकर जीवित सूक्ष्मजीवी कारखानों का निर्माण कर सकता है, जो टिकाऊ रसायनों का उत्पादन करने में सक्षम होंगे, साथ ही अपशिष्ट, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को भी कम करेंगे।

नेचर केमिस्ट्री में प्रकाशित इस शोध को ईपीएसआरसी केस पुरस्कार और बायोफार्मास्युटिकल कंपनी एस्ट्राजेनेका द्वारा वित्त पोषित किया गया था तथा एडिनबर्ग इनोवेशन (ईआई) द्वारा समर्थित किया गया था।

ईआई में कंसल्टेंसी के प्रमुख इयान हैच ने कहा, “हम इन अत्याधुनिक खोजों को विश्व-परिवर्तनकारी नवाचारों में बदलने के लिए स्टीफन और विश्वविद्यालय के अन्य लोगों के साथ काम करने के लिए एस्ट्राजेनेका जैसी असाधारण कंपनियों को ला रहे हैं। इंजीनियरिंग जीवविज्ञान जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता को खत्म करने, एक चक्रीय अर्थव्यवस्था का निर्माण करने और टिकाऊ रसायन और सामग्री बनाने की अपार संभावनाएं प्रदान करता है और हम संभावित सहयोगियों को संपर्क करने के लिए आमंत्रित करेंगे”

सब ने अब तक यही सोचा था कि कांच की बोतलें ही सबसे बढ़िया ऑप्शन हैं, है ना? हमने उन्हें ईको फ्रेंडली माना, सेहत के लिए बेहतर समझा और अपने किचन में भी जगह दी लेकिन हाल ही में फ्रांस की फूड सेफ्टी एजेंसी ANSES द्वारा किए गए एक नए शोध ने हमारे इस भरोसे की नींव हिला दी है।

जी हां, यह स्टडी एक ऐसी चौंकाने वाली सच्चाई सामने लाती है, जिसे पढ़कर आप शायद अपनी कांच की बोतल को फेंकने पर मजबूर हो जाएं। अध्ययन बताता है कि आपकी पसंदीदा कांच की बोतलें प्लास्टिक से कहीं ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक कणों से दूषित हो सकती हैं। आइए विस्तार से जानते हैं।

स्टडी में सामने आए चौंकाने वाले नतीजे

वैज्ञानिकों को भी इस बात पर यकीन नहीं हुआ जब उन्होंने अपने शुरुआती नतीजे देखे। उन्हें उम्मीद थी कि कांच की बोतलें प्लास्टिक की तुलना में साफ होंगी लेकिन हुआ ठीक उलटा! इस अध्ययन में पाया गया कि कोल्ड ड्रिंक, नींबू पानी, आइस टी और बीयर जैसी चीजों की कांच की बोतलों में प्रति लीटर औसतन 100 माइक्रोप्लास्टिक कण पाए गए। यह संख्या प्लास्टिक या धातु के डिब्बों में पाए जाने वाले कणों से 50 गुना ज्यादा थी।

कहीं ढक्कन ही तो नहीं गुनहगार?

शोधकर्ताओं को लगा कि इस गंदगी का मुख्य कारण बोतल के ढक्कन हो सकते हैं। उन्होंने देखा कि बोतलों में पाए गए ज्यादातर प्लास्टिक कणों का रंग और बनावट ढक्कन के बाहरी पेंट से मिलती-जुलती थी। इसका मतलब है कि कांच की बोतलों को बंद करने वाले धातु के ढक्कनों के बाहरी पेंट से ही ये छोटे-छोटे प्लास्टिक कण ड्रिंक्स में मिल रहे थे।

“Diabetes का खतरा बढ़ाती है प्लास्टिक वॉटर बोतल, जानें कैसे करें सुरक्षित Plastic की पहचान

प्लास्टिक इन दिनों कई तरीकों से इस्तेमाल होता है। आमतौर पर इसका इस्तेमाल वॉटर बोतल की तरह किया जाता है। हालांकि Plastic Water Bottle के इस्तेमाल से होने वाले नुकसान के बारे में तो सभी जानते हैं। इसी बीच अब इसे लेकर एक ताजा स्टडी सामने आई है जिसमें यह पता चला है कि प्लास्टिक बोतल के इस्तेमाल से Diabetes का खतरा बढ़ सकता है।

डायबिटीज का खतरा बढ़ाती है प्लास्टिक बोतल 

प्लास्टिक हमारी डेली लाइफ का अहम हिस्सा बन चुका है।

लोग आमतौर इसे बोतल में रूप में इस्तेमाल करते हैं।

हालांकि, हाल ही में पता चला है कि इससे Diabetes का खतरा बढ़ता है।

प्लास्टिक इन दिनों हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। हम आमतौर पर कई तरीके से प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हैं। खासकर बोतल के रूप में इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। लोग अक्सर पानी पीने के लिए प्लास्टिक की बोतल का इस्तेमाल करते हैं लेकिन प्लास्टिक की बोतल में पानी पीने से काफी नुकसान होता है। यह कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं की वजह बन सकता है। इसी बीच अब इसे लेकर एक चौंकाने वाली स्टडी सामने आई है।

हाल ही में आई इस स्टडी में पता चला कि प्लास्टिक की पानी की बोतल का इस्तेमाल करने से डायबिटीज और हार्मोन डिसरप्शन का खतरा बढ़ता है। आइए विस्तार में जानते हैं क्या कहती है स्टडी-डायबिटीज 

अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के एक अध्ययन से पता चला कि प्लास्टिक में इस्तेमाल होने वाला BPA इंसुलिन सेंसिटिविटी को कम करता है जिससे संभावित रूप से टाइप 2 डायबिटीज का

 एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के शोध के मुख्य लेखक प्रोफेसर स्टीफन वालेस ने कहा, “अभी तक लोगों को यह एहसास नहीं है कि पैरासिटामोल तेल से बनता है।” “यह तकनीक दिखाती है कि पहली बार इस तरह से रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान को मिलाकर हम पैरासिटामोल को अधिक टिकाऊ तरीके से बना सकते हैं और साथ ही पर्यावरण से प्लास्टिक कचरे को भी साफ कर सकते हैं।”

नेचर केमिस्ट्री नामक पत्रिका में लिखते हुए वालेस और उनके साथियों ने बताया कि कैसे उन्होंने पाया कि लॉसन रीअरेंजमेंट नामक एक प्रकार की रासायनिक प्रतिक्रिया जो प्रकृति में पहले कभी नहीं देखी गई, जैव-संगत थी। दूसरे शब्दों में, इसे जीवित कोशिकाओं की उपस्थिति में उन्हें नुकसान पहुँचाए बिना किया जा सकता है।

टीम ने यह खोज तब की जब उन्होंने पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट (PET) – एक प्रकार का प्लास्टिक जो अक्सर खाद्य पैकेजिंग और बोतलों में पाया जाता है – को लिया और टिकाऊ रासायनिक तरीकों का उपयोग करके इसे एक नए पदार्थ में परिवर्तित कर दिया.

बुखार और बदन दर्द के लिए पैरासिटामोल एक अच्छी दवा है जो दर्द और बुखार से राहत दिलाने में मदद करती है हालाँकि, पैरासिटामोल लेते समय सावधानी बरतना ज़रूरी है। ज़्यादा खुराक लेने से किडनी या लिवर को नुकसान हो सकता है। अगर आपको पैरासिटामोल लेने के बाद कोई साइड इफ़ेक्ट होता है तो डॉक्टर से संपर्क करें। अगर सीमित मात्रा में लिया जाए, तो पैरासिटामोल बुखार या बदन दर्द से पीड़ित लोगों के लिए फ़ायदेमंद हो सकता है।

पेरासिटामोल क्या है?

पैरासिटामोल बुखार और शरीर के दर्द की दवा है। यह शरीर के दर्द और पीड़ा को दूर करने में मदद करता है। इस दवा का उपयोग उच्च तापमान को कम करने और फ्लू और सर्दी के इलाज के लिए भी किया जाता है।

चंद्र मोहन

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