आस्तीनों में ना अपने सांप पालो दोस्तों / पंकज झा

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कथित माननीय अरूप जी और तथाकथित श्रीमान राष्ट्रवादी जी……! कथित इसलिए कि अगर आपको लगे कि आपके विचारों में दम है तो खुल कर हमारी तरह नाम और पते के साथ आना चाहिए. नक्सलियों की तरह आस्तीन में छुपकर वार करने वालों की सराहना नहीं होती आज-कल. अपन जब भी जो भी लिखते हैं पूरे जिम्मेदारी के साथ लिखते हैं. इसलिए दांत तोड़ दिए जाने पर डॉक्टर से भी खुले-आम जा कर संपर्क कर सकते हैं. ना “राष्ट्रवादी” नाम का उपयोग करने वाले आप जैसे कायरों की तरह किसी को जाति के आधार पर लांछित करते हैं और न ही व्यक्तिगत निंदा-भर्त्सना में भरोसा है अपना. अगर अरुंधती का नाम ले कर लिखा भी है तो इसलिए कि उसका वह लेखन व्यक्तिगत ना होकर जवानों की शहादत का पृष्ठभूमि तैयार करने वाला रहा है. हमने क्या हासिल किया है क्या नहीं यह मेरे जानने वालों से पूछा जा सकता है मुझे सफाई देने की ज़रूरत नहीं. संघ से अपना ज्यादा नाता नहीं रहा है फिर भी इतना ज़रूर कहूँगा कि जहां आप छुपे हैं उस खोल में भी चैन की नींद सो रहे हैं तो निश्चय ही वह संघ जैसे संगठनों की बदौलत ही संभव हुआ है. वाणी या कलम का संयम मेरे समेत सबके लिए अपेक्षित है. लेकिन जब आँख के सामने एक साथ ताबूत बना दिए गए 76 शहीद सोये हों और आप जैसे लोग जश्न मना रहे हों तो फिर कहाँ संयम रह जाता है? अहसान जाफरी, तीस्ता या गुजरात के बारे में फिर कभी. ‘मुकराना’ के आदिवासियों को उससे कोई लेना-देना भी नहीं है. गुजरात के मामले पर काफी कुछ लिखा गया है और लिखा जा भी रहा है. भले ही रक्तिम मीडिया ने जगह ज्यादे नहीं दी हो लेकिन तीस्ताओं के नंगे नाच का भी भंडाफोर हो ही गया है. किस तरह उन लोगों ने गवाहों को खरीद एवं बरगला कर, झूठ पर झूठ रच एक चुनी हुई सरकार को बदनाम करने का प्रयास किया, किस तरह कही भी हो जाने वाले या करा देने वाले दंगे उन लोगों की रोजी-रोटी का सामान बन कर सामने आता है वह अब किसी से छिपा नहीं है. आप सबकी पहचान होती तो जबाब देना ज्यादा आसान होता. अगर आप जैसे लोग इन भौकने वाले मीडिया के बहकावे में आ कर ऐसी बातें कर रहे हैं तब गुजारिश है कि थोड़े ठंडे दिमाग से अपने लोकतंत्र के बारे में सोचें. यह समझने का प्रयास करें कि लाख बुराइयों के बावजूद लोकतंत्र से अच्छा -या कम बुरा- विकल्प वर्तमान दुनिया में मौजूद नहीं है. कमियां कई हो सकती है लेकिन अगर नक्सलियों को समर्थन करने के बाद भी अरुंधती जैसे लोगों की जुबान उनके हलक में ही सलामत रह जाती है तो इस लिए कि यह लोकतंत्र है. स्वछंदता की हद तक यहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्र उन सौदागरों को भी नसीब है. तो उठाने वाले हर सवाल का जबाब अपने यहाँ मौजूद है. गुजरात पर भी बातें की जा सकती है. क़ानून अपना काम कर ही रहा है. अगर दोषी कोई भी साबित हो तो दण्डित होगा ही. लेकिन यहाँ पर अफजल-कसाब के बदले किसी अहसान की चर्चा करना जान-बूझ कर मुद्दों को भटकाना ही कहा जा सकता है. खासकर अरुंधती को लेकर लिखे गए किसी आलेख या विचार में अकारण संघ को घुसा देना भी इसी श्रेणी का मामला कहा जायगा. आइये बात अभी बस्तर की करें.

मान लें किसी नगर-निगम के महापौर की अक्षमता या उसके बेईमानी के कारण किसी शहर में हैजा फ़ैल गया हो. लोग-बाग बड़ी संख्या में मर रहे हों. तब एक नागरिक के रूप में हमारा पहला दायित्व क्या होना चाहिए ? जाहिराना तौर पर सबसे पहले उस महामारी के रोकथाम की उपाय, है ना ? या सब लोग पिल पड़ेंगे उस महापौर के खिलाफ नारेबाजी करने में ? निश्चित ही जब स्थिति सामन्य हो जायेगी तब उस नकारे की भी खबर लेंगे लेकिन फिलहाल हैजा को ही खतम करने का उपाय करेंगे ना? तो बस्तर के साथ अभी किसी भी तरह की दूसरी बात ऐसे ही नारे लगाने के मानिंद होगा. सीधी सी बात है कि साठ साल में इस आदिवासी क्षेत्र में जिसका भी शासन रहा हो वह जिम्मेदार है वर्तमान के इस नक्सल महामारी के प्रति. कमोबेश कोई भी राजनीतिक दल इस जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड सकता. खास कर अब जब दिग्विजय सिंह जैसे लोगों को भी यह उपेक्षा रणनीतिक तौर पर दिखने लगी है. तो उनसे भी सवाल पूछा जाना चाहिए कि अगर यह क़ानून-व्यवस्था या उपेक्षा का मामला है तो इस क्षेत्र पर दस साल राज कर लूट का सरंजाम करने के लिए क्यूँ न वे सबसे पहले माफी मांगते हैं. तो मित्रवर…निश्चय ही, कुछ तो मजबूरियां रही होगी वरना कोई यूँ बेवफा नहीं होता….! इस बात से किसी को भी इनकार नहीं किया जाना चाहिए कि राजनीतिकों, व्यापारियों, शोषकों आदि के कारस्तानियों का ही उपज है यह नक्सलवाद. आज के नक्सली वास्तव में आदिवासी-जनों को बरगलाने में इसलिए ही कामयाब हो पाए क्युकी नेताओं ने ऐसे स्थिति पैदा की थी. लेकिन यह समय इस पर मंथन करने का नहीं है. अभी नियति ने हमारे समक्ष कोई ज्यादे विकल्प नहीं छोड़े हैं. चाहे तो लोकतंत्र या नक्सलवाद. चाहे तो भारत या फिर चीन. चाहे प्रगति का राजमार्ग या फिर पशुपति से तिरुपति (आगे बीजिंग तक) तक लाल गलियारा. चाहे तो लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गयी सरकारें, या फिर हर तरह के मानवाधिकार को कुचलने एके लिए कुख्यात ‘जनताना सरकार’. तो गंदगी और लोकतंत्र में से हमें एक को चुनना है और किसी भी तरह के तीसरे पक्ष की कोई गुंजाइश फिलहाल तो नहीं है. चाहे तो आप भारत के संविधान के साथ हैं या फिर “आंतरिक सुरक्षा को खतरा” के रूप में – उपहास के रूप में ही सही लेकिन अरुंधती द्वारा भी – चिन्हित किये गये गिरोहों के साथ. निश्चय ही इस महाभारत में किसी शिखंडी के लिए कोई जगह नहीं है. आपको किसी कलम के हिजड़े को खड़े कर योद्धाओं को अस्त्र चलाने से रोकने नहीं दिया जाएगा. अगर आप लोकतंत्र के साथ हैं तो स्वागत, अन्यथा किसी भी तरह का मानवाधिकार सबसे पहले देश के संविधान में आस्था रखने वालों का होगा. देशद्रोहियों के मानवाधिकार को कुचल कर भी . इसमें कोई भी किन्तु-परन्तु कोई भी अगर-मगर चलने नहीं दिया जाएगा.

यह समय पूरी ताकत के साथ लोकतंत्र के हत्यारों को कुचलने का है. और इस बीच में जो भी आये, छुप कर या सामने आ कर हर तरह से उनको समाप्त कर आगे बढ़ जाने का है. हर तरह के विचार-विमर्श, वाद-प्रतिवाद, सहमति-असहमति आदि की पूरी गुंजाइश इस समाज में है. हम बहस-मुहाबिसा भी करेंगे, लड़ेंगे-झगड़ेंगे भी, मत-मतान्तर भी होगा हमारा लेकिन अपने देश को बचा लेने के बाद. अभी जैसा सबको पता है लाल-गलियारा कोई केवल शब्द विन्यास नहीं है. हाल ही में एक चीनी बौद्धिक का ब्लू-प्रिंट सामने आया है जिसमें वो भारत को तीस टुकड़ों में बाटने की बात करते हैं. देश ने चाइना से युद्ध के समय आस्तीन के सांपो को चीन के चेयरमेन को अपना चेयरमेन कहते हुए भी सुना ही है. लाख नक्सल चुनौतियों के बावजूद बस्तर के साथ सबसे अच्छी बात यह है कि वह देश के मध्य में है. किसी देश का सीमा वहाँ से नहीं लगता. इस मामले में देश को बढ़त हासिल है और कही ना कही अगर नक्सली कमज़ोर पड़ रहे हैं या पड़ेंगे तो इसी कारण. तो लाल-गलियारा उसी नक्सल कमजोरी को दूर करना का उनका उपाय है. बार-बार खबर तो आती ही है कि हिमालय को लांघ चीन नेपाल तक पहुच आसान करना चाहता है. जिस दिन ऐसा हो गया और वहाँ से ये गलियारा इनको मिल गया फिर तो जिस तरह ईस्ट इंडिया कंपनी का स्वागत करने भाई लोग आतुर थे वैसे ही अरुन्धतियां साज-सिंगार कर पहुच ही जायेंगी काठमांडू तक स्वागत करने. तो चिंता और डर इस बात का ही है.

लेकिन अगर हम समय से जाग गए. तो कम-से-कम अभी इन नक्सल नामधारी लुच्चों की इतनी औकात नहीं है कि वे लोकतंत्र पर सवाल भी खड़े कर पाए. लाख बुरे हालत में भी हमारे जांबाजों ने ऑपरेशन ग्रीन हंट के दौरान ज्यादे ही नक्सलियों को मार गिराया है. तो प्रिय अरूप और राष्ट्रवादी मित्र. अगर आप भी छुपे हुए भेडिये नहीं बल्कि सच्चे नागरिक हैं, तो अभी आपके पास भी विकल्पों की कमी होनी चाहिए. सवाल अभी देश और लोकतन्त्र को बचाने का है, बाकी बातें बाद में. जैसा कि नीरज ने कहा है….आग लेकर हाथ में पगले जलाता है किसे, जब ना ये बस्ती रहेगी तु कहाँ रह पायेगा…आखिर जब-तक हुसैन की तरह अरुंधती भी अपने किसी ‘क़तर’ में ना चली जाय तबतक उसको भी यह सोचना चाहिए कि इसी बस्ती में उसका भी घर है. और अपने ही हाथों अपने घर को जलाने से बाज़ आये…धन्यवाद.

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  1. आपलोग क्या हैं पता नहीं, लेकिन मुझे अकारण संघ के साथ नत्थी कर पता नहीं क्या साबित करना चाहते हैं? हालाकि इसमें आपत्तिजनक कुछ नहीं लगता अपने को. निश्चित ही राष्ट्रवादी विचारधारा को संघ द्वारा भी अंगीकार किये जाने के कारण अपने विचारों में ज़रूर मेल-जोल है. हम यह मानते हैं कि देश हित की बात करने वाले हर संगठनों को जम कर समर्थन मिलना चाहिए. लेकिन फिर भी यह बताना आवश्यक है इस लेखक ने आज-तक संघ के किसी भी शाखा को देखा भी नहीं है . हां किताबों में ज़रूर थोड़ा बहुत पढ़ा है उसी तरह जैसे अन्य विचारधारा और संगठनों के बारे में. कहने को तो हम भी आपको दंडकारान्य स्पेशल कमिटी का सदस्य, लश्करे तोयबा का कमांडर या फिर वामपंथी अदि कुछ भी कह सकते हैं. लेकिन जैसे आप सभी मेरे परिचय के बारे में कूद कर नतीजे पर पहुच गए ऐसा मैं नहीं पहुचना चाहता. अतः कम से कम अपने लिखे को मेरा व्यक्तिगत विचार ही रहने दें.
    रही बात विनायक सेन की तो किसी को केवल ज़मानत मिल जाना इस बात की जमानत नहीं हो जाती के वह बरी हो गया हो. दूसरी बात यह कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा ज़मानत दिए जाने से पहले निचली अदालत से लेकर उच्च न्यायालय तक कई बार उसके याचिका को खारिज किया गया था. और अवमानना का खतरा मोल लेकर भी मैं यह कहना चाहूँगा कि बिना सरकार का पक्ष सुने उच्चतम न्यायालय ने मात्र 18 सेकेंड में विनायक को जमानत दे दी थी. पुलिस द्वारा केवल आदिवासी महिलाओं का बलात्कार किये जाने की खबर आपके पास पुख्ता होगी अपने को नहीं मालुम. रही बात आदिवासियों का ज़मीन हथिया लेने की तो अपना स्पष्ट मत है कि आदिवासी इलाके में होने वाले किसी भी औद्योगिक प्रकल्प का सबसे पहला लाभार्थी वहां के माटी पुत्र हों. और इस से मूंह चुराने वाले किसी भी शासन की जम कर भर्त्सना की जानी चाहिए. लेकिन किसी भी कीमत पर वनवासियों के दुःख दर्द का ठेकेदार, उनके सपनों का सौदागर नक्सलियों को नहीं बनने दिया जाना चाहिए. उनको कुचलने, जी हां कुचलने हेतु सेना को बुलाने के अलावा अब कोई विकल्प बचा नहीं है लोकतंत्र के पास. धन्यवाद.

  2. गालिओ के मामले में संघियो से कोई नहीं जीत सकता यह निर्विवाद रूप से सही है इसे आपके अभिव्यक्ति से ही समझा जा सकता है आपका संघ तो घोषित रूप से दच्प्द्पंथी संघटन है और साथ ही फासिस्ट भी अप जसे लोगो के मुह से लोकतंत्र की बात करना एक नाटक से अधिक कुछ नहीं है.झारखण्ड की लोकतांत्रिक सरकारके महँ कार्य डॉ.सेन की गिरफ़्तारी पैर सर्वोच्च न्यायलय का फासला खुद अपने आप तथाकथित लोकतंत्र किपोल खोलने के लिए काफी है अपने बड़ी सफाई से आदिवासियो को उनकी जगह जमीन से विस्थापित किये जाने के मुसे को छोड़ सपय आखिर कुओं नहीं जनता की सिर्फ खनिज भंडार और औओद्योगिकरेद के किये आदिवासियो को विस्थापित करने को विकास से जड़ केर जनता को गुम्र्ष किया जा रहा है.जब असिवासी अपने स्तित्य के लिए तथा अपने औरतो के बलात्कार और अत्पिदन से बचने के लिए हथियार उठाया है अब वे शोशुत होने को टायर नहीं आजादी के बस ४०%असिवासियो का विस्थापन विकास के नाम पैर हुआ लेकिन उन्हें क्या मिला अज पुजीपतियो के दलाल न्स्त्रित्य अपने देशी विदेशी अको के लिए नर्संघर केर रहे है वे जवान भी उन्ही गरीबो में ही है जो अपनी नुओकारी की मजबूरी के चलते आदिवासियो के खिलाफ लड़ रहे है.अभी सुन्द्स्य इंडियन के प्रसून जी का दंतेवाडा से लुओताने के बाद लेख आया है जिसमे उन्होंने बताया है की १०० से अधिक जवान पुचले एक साल में मलेरिया से मर गए जिसकी चर्चा भूल केर भी कोई नहीं करता मई.आपके लिए २पैसे प्रति बण्डल तेंदू पत्ता टुडे को 1rup करवाना छटी मोती सफलता लगाती है लेकिन यही वजह है की अज आदिवासी इलाके में सुताचाबलो को मुखबिर से बंचित केर सेता है जिससे दंतेवाडा जैसी घटना हो जाती है और कुसी को खबर रक् नहीं होती क्या कोई सुरचाबलो की ज्यातती की खबर आयी वह तो एकही फार्मूला है अगर पकडे गए तो नाक्स्सल samarthak और मर diye गए तो naxsalvasi

  3. नक्सलवाद बर्बरता का रास्ता अपना रहे है. इनका किसी भी तरह समर्थन नहीं किया जा सकता है. समर्थंक भी राष्ट द्रोही है. हमें भ्रष्ट सरकारी नीतिओं का विरोध करना चाहिए, भ्रष्टाचार का विरोध करना चाहिए, भ्रष्ट लोगो का बहिष्कार करना चाहिए. नक्सलवाद या नक्सलवादी का समर्थन देश द्रोह है. नक्सलवाद भ्रष्ट राजनीती और भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी अधिकारिओं का नतीजा है. विरोध इनका करना है न की नाक्साल्वाद का.

  4. सबसे ज्यादा असाधारण आतंरिक समस्याएं कोंग्रेस के शासनकाल मैं ही दिखाई देती हैं. एक विज्ञापन मैं एक हीरो वायलिन बजाकर चूहों को खाई मैं गिरा देता है, ऐसा ही कुछ दंतेवाडा की घटना मैं दिखता है | एक सुनियोजित तरीके से उनको मौत के मुह मैं डाला गया है| उनकी ट्रेनिग भी पर्याप्त नहीं थी| किसके आदेश पर वो नियमो के विरुद्ध समूह मैं जंगल में चले गए, इसकी जाँच होना चाहिए|
    कई घटनाएं वास्तविक मुद्दों से लोगो का ध्यान हटाने के लिए योजनाबद्ध रूप मैं कराई जाती हैं| जनता का विश्वाश ये राजनितिक दल और राजनेता खो चुके हैं| जनता के अंदर घोर निराशा है| भारत एक विश्व महाशक्ति बनेगा ये कहनेवाले ये क्यों कह रहे हैं पता नहीं, जिस देश का आदमी अपनी जिन्दगी के सिर्फ दिन गिनता रहता है, उसके महाशक्ति बनने के सपने देखना पागलपन ही कहा जा सकता है| देश मैं न ही आन्तरिक सुरक्षा है न ही बाहरी| पूंजीवाद अपने चरम पर है आईपीएल और उसके सट्टा बाज़ार से जुड़े मंत्री उद्योगपति अरबों के वारे न्यारे कर रहे हैं| वंही देश के कई हिस्सों मैं किसान आत्महत्या कर रहे हैं | बच्चे भूख, कुपोषण और अनजानी बिमारियों से मर रहे हैं| पीने का पानी नसीब नहीं है| शायद व्यवस्था ने यह सोच लिया है की गरीबों का मर जाना ही अच्छा है क्योंकि वो अर्थव्यवस्था पर बोझ हैं | आईपील मैं उद्योगपतिओं मंत्रिओं द्वारा कई शहरों की टीम बनाकर उनको खरीदने को एक नयी तरह की व्यवस्था की शुरुआत माना जा सकता है | आशंका है की ये आगे चलकर उन शहरों को भी खरीद लें और बिलकुल संभव है की प्रदेशों को भी फिर आगे चलकर ये लोग अपने पसंद के देशों के साथ मिलकर उनके उपनिवेश बनकर अपने को इस देश से अलग कर सकते हैं| लोकतंत्र आज भी नहीं है भविष्य मैं उसका निशान भी नहीं मिलनेवाला|

  5. अरूप जी.. आप तो प्रखर वक्ता लगते है. फिर इतनी जल्दी आप क्यों खो देते है. जितने भी कॉमेंट्स किये है सब आपके खिलाफ ही गए है. अब या तो ये सारे संघी है या पागल है. तो भाई मै नहीं मानता कि सभी ऐसे ही होंगे. सीधी से बात है कि यह एक मंच है. आप अपना विचार रखिये और लोग उस पर प्रतिक्रिया दे कर उसे और ज्यादा ग्राह्य बनायेंगे. संचार में होता ही है. सन्देश भेजने वाला श्रोता, पाठक की प्रतिक्रिया पाकर अपना सन्देश सुधरता है. तभी तो प्रतिक्रिया को संचार का प्राण तत्व कहा जाता है.. पर आप प्रतिक्रिया देते देते जाने क्या क्या दे गए.. भाई साहब नक्सली कोई देशभक्त तो नहीं है ना कि उसके साथ हमदर्दी दिखाई जाये. आपको उनके विचारधारा से लगाव है, ठीक है. हमारा देश सभी को अधिकार देता है. अब चाइना होता, तो अलग बात थी. वहा तो इतनी भी आजादी नहीं है कि राष्ट्र कि विचारधारा से इतर कुछ कह भी दो. कर देंगे तो बात करना तो दूर, गोली खाने के लिए भी वक़्त नहीं देंगे. फिर भी हमें समाजवाद, और साम्यवाद से एलर्जी नहीं है. मार्क्सवाद और लेनिनवाद से भी अपच नहीं है. कांग्रेस और बीजेपी से भी अकूत प्यार नहीं है. कोई कही सही है.. कोई कही गलत. बात बहुत सीधी है.. कोई इतना ही अच्छा होता तो इतने दलों का वजूद नहीं होता. गाँधी, नेहरु इतने ही पुज्यनिये होते तो तो उन्ही के काल में सुभाष चन्द्र बोस, हेडगेवार जी इतने लोकप्रिय क्यों होते. फिर आप कौन राष्ट्र भक्त है कौन नहीं इसे तय करने अकेले ही बैठ गए. अजी सभी को मौका दीजिये.. किसी की सुनिए और फिर सुनाइए.. और लाल कृष्णा अडवानी.. शिवसेना,,कंधार.. आई पी एल .. सब कहा से आ गया.. बात नक्सली की हो रही थी.. आपको लग रहा है कि सीमान्त प्रदेश में आतंकवादी खतरों के बात भी शांति बनी हुई है तो नक्सल पर इतना हाय तौबा क्यों तो एक बार यहाँ आकर देख लीजिये. नही भी आये तो इतना तो समझ ही सकते है ना अनदेखे दुश्मन और देखे दुश्मन से लड़ना कितना मुश्किल होता है.. फिर भी आपको इनसे बहुत हमदर्दी है तो पूछिए जिन ७६ जवान … सॉरी आप तो उन्हें पूजीपति ही कहेने ना.. तो जिन ७६ पुजीपतियो को मारा है, उनसे समाज में कितनी एकरूपता आएगी.. पूजीपति आदिवासी को मरकर उनकी सम्पति कहा बनती जाती है.. अब तक जिन्हें मारा गया उनकी सम्पति किस्मे बाँटेंगे.. उन आदिवासिओ में जिसका एक बेटा भी गरीबी से लड़ने के लिए सी आर पी ऍफ़ में भारती हुआ था.. या उत्तर प्रदेश के उस परिवार में, जिसमे कई पीढ़ी आतंकवादी से लड़कर तो शहीद हो गयी.. लेकिन उन ७६ में से एक जवान नाक्साली से लड़कर शायद पूजीपति बन गया…(कोई बड़ी बात भी नहीं होगी जब हमारे धर्मनिरपेक्ष और प्रगिशील लेखक इतिहास में इन्हें शहीद ना कहे..) कम से कम ७६ परिवार तो इस साम्यवाद से धरातल पर आ ही गए है.. अब उठाइए इन्हे कितना उठा पाते है.. और हा, एकाध को उठा पाए तो उसे भी यही पोस्ट करियेगा…. यकीन मानिये… उसे कभी डिलीट नहीं किया जायेगा..

    Rajesh Raj

  6. पंकजजी

    आपके लेख मैं सतत पढता हूँ और अगर प्रमाणित करने की जरुरत है तो कह सकता हूँ आप हमेशा लोकतंत्र के हक़ में बात करते हैं बेशक भाजपा की पत्रिका में हैं मगर यह कोई गुनाह तो नहीं? मैं लगातार यह भी देख रहा हूँ, सूडो इंटेलेक्चुअल्स का एक बड़ा वर्ग भाजपा के नाम से फुंफकारता है| आप संघ की बात करें तो साम्प्रदायिक हैं और हिन्दू धर्म की धज्जियां उडाएं तो सेक्यूलर| वह रे मानसिक दिवालियापन| मान लेते हैं , कभी किसी नेता से कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए पूरे संगठन को दोष देना कहां तक उचित है? यह भी देख रहा हूँ, धमकी और घृणा की भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है जबकि प्रतिक्रया संतुलित होनी चाहिए| भाषा की शालीनता बनी रहनी चाहिए| धमकी की भाषा का भी इलाज है बशर्ते आप तैयार हों|
    -रमेश शर्मा ,राष्ट्रीय सहारा
    रायपुर

  7. Naxls are also adibasis of Bharat. This map of India was a creation of Nehru congress only 63 years back. Nehru inherited colonial powers from British and was very proud to say “I am the last English ruler of India “Now Italian congress (Sonia) is also acting like a colonial power. You can’t win the heart of the people by suppression. When British honourably left India with gun salutes leaving Bharat in the hands of their puppets, people of India faced the greatest human tragedy. Millions were butchered raped and were forced to flee in one part of India, in another part Nehru Gandhi were busy in praying one community not to leave “Their India” For months atrocities were going on and on, on Hindus but Nehru Gandhi never denounced nor done anything to prevent the greatest human horror.
    In his long rule Nehru sent many applications for the membership in the Organisation of Muslim States on the ground that the great English Ruler (Nehru) has preserved more Muslims in Hindustan then in Pakistan. This was Nehru’s great secularism. For all, who know nothing about the so called Indian freedom? Slavery of 1300 years is not enough for them?

  8. पंकज जी,सच मै नक्सली देश की सभ्यता संस्कृति के लिए सबसे बड़ा खतरा है !और ये इस सभ्यता संस्कृति की ही देन है ,की इतना बड़ा देश धर्मसापेक्ष है !काश लोकतंत्र के हित मै जेसी बेचेनी आपके मन मै है, वो इन सभी TV news channel वालो के ह्रदय मै भी हो तो !कितना अच्छा हो !आप इसी तरह राष्ट्रहित मै लिखते रहे यही मनोकामना है !

  9. अरूप जी, आप कुछ ज्यादा ही उतेजित नहीं हो रहे ?और जब हम राष्ट्रहित मै बात कर रहे हो ,तो कम से कम पूर्वाग्रह तो छोड़ने ही चाहिए !मै स्वयंसेवक हू लेकिन हमें किसी विचार का आँख मूँद कर विरोध करना नहीं सिखाया !कम से कम आप से भी इक जागरूक बुद्धिजीवी होने के नाते मेरी ये अपील है !!!!थोडा निष्पक्ष और पूर्वाग्रह रहित होकर और देश समाज का अध्ययन करे !मेरी शुभ कामनाये आपके साथ है !!!

  10. नक्सलवाद से लड़ने की वे बात कर रहे है जो नक्सलियों के पैर पकड़ते है। महात्मा गांधी को वे गाली दे रहे है जो अंग्रेजों के दलाल थे। जितने लोगों ने अभी तक कमेंट दिया उनमें से एक में भी दम नहीं है कि नक्सलियों के इलाके में जाकर एक भाषण दे दे। फिर भाषण दे भी कैसे। जितने संघी राष्ट्रवादी यहां दिख रहे है ये सारे नक्सलियों के पैर पकड़ चुनाव जीतते है। झारखंड में भाजपा के जितने सांसद आए है वे नक्सलियों के पैर पकड़ चुनाव जीते है। यह सच्चाई है। भाजपा के झारखंड में कम से कम दो जिला अध्यक्ष रात में नक्सलियों के एरिया कमांडर होते है। अब जरा बात महात्मा गांधी की करे। कुछ संघी राष्ट्रवादियों ने महात्मा गांधी को बुरा भला कहा है। भइया आजादी के आंदोलन में अंग्रेजों की दलाली करते रहे हो। आपके बाबा बटेश्वर नाथ उर्फ अटल बिहारी वाजपेयी ही सजा की डर से अंग्रेजों के गवाह बन गए राष्ट्रवादियों को फंसा दिया। जहां तक पंडित नेहरू की बात है तो किताब उठाकर देखों कितने साल आजादी के आंदोलन में जेल रहे हे। ये जनसंघी दो साल इमरजेंसी में जेल क्या रह लिए पांच साल देश को लूटकर खा गए। हरे-हरे डालरों के साथ पकड़े गए टीवी स्टिंग आपरेशन में। यही इनका राष्ट्रवाद है जो नक्सलियों को देश से उखाड़ फेकेंगा। सौ रुपये पचास रुपये के लिए अपनी जमीर बेच देते है। खुदा की कसम छतीसगढ़ के भाइयों पैसा खुदा तो नहीं पर खुदा की कसम खुदा से कम भी नहीं। अब बताए ये खुदा की कसम वाले नक्सलियों से लड़ेंगे। जो पैसे को खुदा से उपर मानते है। जितने कमेंट करने वाले है सब खुदा की कसम पैसा खुदा से कम भी नहीं की कसम खाने वाले ही है। सामने राष्ट्रवाद की पाठ पढ़ाते है और बंद कमरे में खुदा की कसम खाते है।

  11. to phir jinhe bhi koi shikayate hain desh se, sarkar se, un sabko hathiyar utha lene chahiye. naxaliyon se hamdardi rakhne wale pehle is sach ko jaan le ki naxali sabse pehle school aur hospital building ko hi nishana bana rahe hain, fir un areas me kaise infrastructure develop ho. ye baat sach hai ki kahin na kahin hamare samaj me, hum sab me khot hai, kyonki ye log samaj me se hi nikal kar aaye hain. aur rahi baat naxalwaad ki to naxalwaad isliye nahi baadh gaya ki wahan kisi ne dhyan nahi diya balki isliye ki hum kamjor hain. jo kaam govt. aaj kar rahi hai (goli ka jawaab goli) wo aaj se 20 saal pehle kar deti to ye naubat hi nahi aati. naxaliyon se hamdardi rakhne waalon ko kabhi CRPF ke jawaano se bhi hamdardi hoti hai jo keral, rajasthan ke hokar bhi 8000 rs. ke liye chhattisgarh jaate hain aur jaan gawankar aate hain, unke parivaar par kya gujarti hai. aur yadi naxaliyon ka tarika aur unki maange (MAOISM) jaayaz hai to hum bhi dekh lete hain ye tarika kitna safal hota hai. aur yadi safal ho bhi jaye to desh me khun kharabe se maange manwaane ki ek achchi parampara shuru ho jaayegi

  12. संघी और नक्सली दोनों अपने उदेस्यो को लेकर बेहद सख्त होते है. इसे अतिवादी कह सकते है. और अतिवाद किसी भी समाज के लिए ठीक नहीं होता. हिंसा को कभी भी ठीक नहीं कहा जा सकता. लेकिन सब कुछ गवा चुके लोग आखिर करेंगे क्या. कहते है बैगा जनजाति के विकास के नाम पर ९९ अरब रुपये खर्च हो चुके है. बैगा तो वही के वही है आखिर पैसे गए कहा. कह सकते है की सत्ता धारिओ ने देश को खूब लुटा है. प्रतिकार तो होगा ही. जहा तक अरुधिती रॉय का मामला है उनके नेक इरादे पर हम सक नहीं करते. लेकिन इतना तय है की जिसने गरीबी नहीं देखि और झेली ओह गरीबी को क्या समझेगा. नेता लोग भर पेट खीर खाकर गरीबी पर बेहतर भाषण देते है. आजाद देश का सच है की ७० फीसदी लोग अभी भी गरीब है. और ये नक्सलवाद उसी गरीबी और शोषण का परिणाम है. मान लिया जाय की अर्ध सैनिक की जगह नक्सली मारे जाते तब क्या होता. मरता तो देश का आदमी ही. जो कही से भी उचित नहीं है. संघ और नाक्सालवाद में जाने की जरूरत नहीं है. जरूरत है लोगो को इन्साफ दिलाने,भोजन देने, काम देने और शोषण से बचाने की. वरना इस लोकतंत्र को कोई नहीं बचा सकता.

  13. Vikash, kindly tell me in which dictionary swaraj means full freedom,
    Mera bharat huwa mahan bana gulami ko pahan jis ne bhi raunda humko humne un ko apnaya gazini ho ya babar sab ko humne hai sis nabaya.
    Mera Bharat Mahan hai? Itihas shakshi hai jab India bata Bahutse gande khun nail youn me baha gaye, karodo ghar bar bihin huye, nariyoun ki ashmita bhi khul kar lutigai fir bhi hum garba se kahate hain kahi kucha huwa hi nahi,bapu ne di hume azadi bina khada bina dhal sabar mati ke shanta tune kar diya kamal

  14. mamla naxalvad ya sanghvad ka nahi hai. dono gut apna kam apne dhang se apne hit ke liye kar rahe hai. naxali hatya karte hai to sanghi bhi samaj me vish gholne ka kaam karte hai. dono hi samaj ke liye ghaatak hai. jaha tak suvidha bhogi logo dwara naxali prem ki baat hai is par kaha ja sakta hai ki jisne garibi nahi dekhi oh garibo ka bhala kya karega. neta log bhar pet khir khakar garibi par behter bhashan dete hai. yahi karan hai ki garibi ki garv se naxalvad panpi hai. un netao ko kya kaha jay jo naxalio ke bich me rahkar chunao jitte hai. ghaalmel to hai hi. sochne ki jaroorat hai .

  15. lekh achchha hai. pratikriyaaye bhi aa rahi hai. yahi hai jeevant samaaj ki pahachaan. kuchh soch ke tippani karate hai, to kuchh baal noch kar bhi karate hai, fir bhi likhanaa chahiye.

  16. पंकज जी आप तो बस लिखते रहिये. आपकी लेखनी कितनी धारदार है इसका उदाहरण बेनामी नक्सलवादी मानसा-पुत्रो की प्रतिक्रया से ही जाहिर होती है. इनके पास ना तो ढंग के तर्क होते हैं, ना ही खुद की कोइ सोच. और मारे बौखलाहट के ये लोग अनर्गल-प्रलाप-गाली-गलौच शुरू कर देते हैं. खुद की पोल खुलना इन्हें सहन नहीं होता. और आजाद विचारों को रोकने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकते. आखिर जिसका (चीन) खाते हैं, उसी का बजाते हैं. इनका बौद्धिक आतंक साहित्य से लेकर पत्रकारिता तक हर जगह कायम है. कोई इन्हें आइना दिखाए तो संघी, फासिस्ट कहते हुए टूट पड़ते हैं. इससे उनका काम आसान हो जाता है. क्योंकि संघ को गरियाने के लिए पूरी देशद्रोही फ़ौज तैयार मिलती है.
    को शख्स अपने असली नाम के साथ ही जनता के सामने नहीं आना चाहता, वो कायर नक्सली ही हो सकता है. आप चिंता न करे, आपके तर्कों में दम है, आपकी बात में सचाई है. लोग आपको ही सुनेंगे. पुन: प्रवक्ता और आपको हार्दिक साधुवाद.

  17. असीम जी, आपके तर्क से काफी हद तक सहमत…..! मैंने तय किया था कि अब कोई नयी प्रतिक्रया नहीं दूँ लेकिन जबाब देना फिर ज़रूर लगा. जिस “मनरेगा” का जिक्र आपने किया है वास्तव में उसका श्रेय वाम को जाता है ..ऐसी और भी उपलब्धियों को आप उनके खाते में डाल सकते हैं…”कानू दा” पर इसी साईट पर लिखे अपने आलेख https://www.pravakta.com/?p=8245 में हमने विस्तार से जिक्र किया है कि “वामपंथियों का यह कहना भी सही है कि सूचना का अधिकार, नरेगा (अब मनरेगा) आदि क्रांतिकारी क़ानून भी उन्ही के दवाव के कारण लागू होना संभव हुआ है. लेकिन ये तो संभव तभी हो पाया न जब आपने संविधान द्वारा प्रदत्त लोकतांत्रिक अधिकार का सम्मान करते हुए अपने पुराने विचार को नयी ऊर्जा के साथ प्रस्तुत करना स्वीकार किया. क्या भूमिगत होकर हत्या और बलात्कार करने वाले कथित नक्सलियों के पास ऐसी कोई उपलब्धि है? ” अगर आप समय निकाल पर उस लिंक पर जाए तो इस तरह के उनके अन्य उपलब्धियों का भी वर्णन वहाँ मिलेगा आपको….. लेकिन उन “साँपों” को इस के लिए अपने बिलों से बाहर निकल संसद तक पहुचना पड़ा था ना? यही तो अपना आग्रह है…और क्या? रही बात दांतेवाडा की तो वो कोई “तिल” नही है. आज की सबसे बड़ी समस्या है और आकाश भी सामने हो तो थूकना पडेगा ही….”कौन कहता कि सुराख नहीं होता आसमां में, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों”…धन्यवाद.

  18. राष्ट्वादिता से इतर ये महाधूर्त छ्द्मधारी अरूप या राष्ट्रवादी जिस तरह से बातों को मुद्दों से भटकाकर बेवाजय का आँय बाँय कहे जा रहा है पर अपनी ऊर्जा व्यय करने से बेहतर आप मुद्दे पर लिखते रहें, सटीकटा से आपने मुद्दे उठायें हैं जो इन महाशयों कि समझ में कभी नहीं आएगा,
    रही बात मैथिल की तो भैये ये तो शतप्रतिशत सही है, वैसे मैथिल नागों से शास्त्रार्थ करने कि कुव्वत बहुतों में नहीं है सो इस नागों से बच कर रहियो.
    भाई पंकज आप अपने ऊर्जा मुल्यक विचारों को उकेरते रहें.
    बधाई.

  19. पंकज जी अगर आप को याद हो तो जिस योजना (NREGA) को सरकार अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि बता रही है वो आप के अनुसार आस्तीन के सापों की जद्दोजहद का नतीजा है, भोजन के अधिकार के सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बाद शुरु किये गए मिड डे मील, जननी सुरक्षा योजना इत्यादि भी आस्तीन के सापों के जद्दोजहद का ही नतीजा है.
    अपनी लेखनी की धार को अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों की तरफ मोड़िये. आसमान पर थूकेंगे तो छीटों से आप बच नहीं पाएंगे.
    बड़ा दुःख होता है जब हम किसी वाकये को तिल का ताड़ बना कर उस पर चर्चा करते है और कुछ दिनों बाद उसे भुला कर नए वाकये के बारे मैं चर्चा करना आरम्भ कर देते है. ये ठीक वैसा ही है जैसे कोई बच्चा पुराने खिलौने से खेलते- खेलते उब जाता है फिर उसे फेंक कर नए खिलौने से खेलने लगता है. ठीक ऐसा ही दंतेवाडा विषय भी है. एक खिलौना मात्र. हम इस विषय पर एक दुसरे के बाल खिंच रहें है. दूसरा विषय आते ही हम भी इसे भुला देंगे. जैसे अन्य विषयों को भुला चुके हैं. मैंने एक फिल्म देखी उसमे हीरो कहता है विलेन से कि मारने वाले को मरने के लिए भी तैयार रहना चाहिए.
    मेरा प्रश्न ये है कि CRPF के जवान दांतेवडा में क्या पार्टी मनाने गए थे नहीं वे नक्सलियों को मरने ही गए थे. आप इस बात से सहमत हो न हो ये सच है. ये भी सही है कि वे अपनी ड्यूटी कर रहे थे. अगर मारने गए थे तो मर गए इस बात पर इतना हो हल्ला करना कैसा. दूसरी तरफ ये भी सच है कि जवान बेकसूर थे. मगर सवाल ये उठता है कि अगर जवान बेक़सूर थे तो कसूरवार कौन है?
    नक्सली?
    हमें ये भी सोचना होगा कि जवान शहीद हुए है या फिर उनका कत्ल हुआ है.
    क्या अगर एक भाई दुसरे भाई को मार दे तो क्या हम ये कहेंगे कि भाई शहीद हो गया या ये कहेंगे कि भाई ने भाई कि हत्या कर दी?
    विषय वस्तु से न भटकते हुए मेरा प्रश्न ये है कि आखिर हत्यारा कौन है?
    आप मेरी इस बात से तो सहमत जरूर होंगे कि जवानों कि हत्या हुई है.
    आज जरूरत है जैसा चाणक्य ने किया था वैसा ही करने कि. चाणक्य ने कांटे को जड़ से खोद कर उसमे मठठा डाल दिया था कि फिर से वो कांटे कि झाडी पनप ना सके.
    निसंदेह आज नक्सलवाद को उखाड़ फेंकने कि जरूरत है. मगर सवाल ये है कि चाणक्य बनेगा कौन. उस माहोल में जहाँ फुट डालो और राज करो हावी है राजनैतिक दलों कि सोच पर.
    अंत में सिर्फ इतना ही कि जरूरत है राजनैतिक इक्छा शक्ति कि जो सरकार के पास नहीं है. जब तक ये इक्छा शक्ति नहीं होगी तब तक हमारे भाई मरते रहेंगे चाहे वो जवान हो या फिर नक्सली.

  20. Dixit u dont know what is suraj or swaraj.Gandh`s Swaraj means stress on governance not by a hierarchical government, but self governance through individuals and community building. The focus is on political decentralization.It cud have been only achieved by after getting freedom from Britishers.First stage of swaraj was Independence from Britishers. Yes it is right we ve not achieved yet swaraj. However we trying our best to attain swaraj to introduce Panchayatiraj like institution.

  21. Aroopji you are 100%right, uique history of India, history of1300years of slavery and its narrated history of so called freedom is also very unique like your feelings.
    by bijaya on Aug 25, 2009 06:32 AM
    Krishnendu you should know true history about the freedom of India. Gandhi and Nehru inherited power from British as they were used like their puppets and were used against Netaji Subash Chandra Bose and other freedom fighters. Sir Winston Churchill said “if there would have been three four more Gandhi’s were born in India we could have ruled India for few more centuries.” Gandhiji was not in favor of full freedom for India. He always advocated Swaraj for India and it was granted in 1947. You ‘should know who is perfect in India in this era of dynastic rule in the name of largest democracy of the world. Mohammad Gory’s favorite slave Qutbuddinaibac established slave dynasty like wise Nehru created dynastic culture in the name of democracy. President Obama said recently “elections only are not true democracy”??

  22. नक्सली विषय पर लेख देख रुका तो पाया कुछ खनक रहा है. आगे बढ़े तो देखा किसी अरूपजी को गालियाँ बकने का दोरा पढ़ा है. गाली गलोच की भाषा वाले गलीच कई टकराते है. इन्हें समझाने वाली भाषा में बताता हूँ. @आडवाणी, मोहम्मद अली जिन्ना को कराची में सेक्यूलर बता दिया :-अमेरिका का राष्ट्रपति भी भारत में आकर जो कहता है क्या अमेरिका में उसे याद रखता है. @कंधार में तीन उग्रवादी छोड़ने चले गए:-अगवा किये यात्रिओं के परिजनों को रोते दिखाकर ऐसा वातावरण बना दिया, उग्रवादी न छोड़ने का अर्थ संवेदनहीन छोड़ने का देश को अनेक बार बताया ही जा चुका है. ऐसे कुचक्र से जुड़े कुत्तों के भोंकने पर इस देश ने कान दिए तो वही होगा, आम आदमी का नाम ले कर सत्ता में आये, आम आदमी का इतना खून कभी नहीं पिया गया. सर्वोच्च न्यायालय से फांसी की सजा होने के बाद अफज़ल की फांसी रोकने के पीछे किसका दबाव है, यह बताएं? ऐसे कुचक्र से बिके मॉल को गट्टर में ही डालना चाहिए. अब बताएं किसके लिए है यह टिप्पणी -“चुलू भर पानी में डूब मरो।”

  23. जय हो प्रभुजी…
    कमाल की कलम चल रही है आपकी..
    लगे रहिये.. अभी बहुत ही छोटे स्तर से विरोध की शुरुआत हुई है …
    ऐसा ही चलता रहा तो बड़े भुजंगों की फुफकार भी झेलनी पड़ेगी.
    कहाँ तक जवाब देते रहेंगे आप..
    जब हाथी चलता है तो कुछ भौंकने की आवाजें आती ही हैं..
    ये जरुरी भी है.. वरना पता कैसे चलेगा की मतवाला हाथी चल रहा है..
    लगे रहिये.. हम सबों का समर्थन आपके साथ है..

  24. मुझे यह समझ में नहीं आता कि ऐसे ढीठों से बहस करके हम क्यों अपनी ऊर्जा नष्ट कर रहे हैं. जेनयू में तीन साल से हूँ और इनकी ढिठाई और देशद्रोही मानसिकता से अच्छी तरह वाकिफ हो गया हूँ. इनका पहला अस्त्र है कि बात अगर अपने खिलाफ जा रही हो तो बात को गलत दिशा में मोड दो. हॉस्टल में १० दिन से पानी न आ रहा हो और कम्यूनिस्ट छात्र नेता ईराक और गाजा पट्टी की बात करने लगेंगे. जेनयू में इनके कारनामों पर कभी विस्तार से लिखूंगा.

  25. @ अरूप
    जब यहीं पर संपादक बार बार कह रहे हैं की मामला कांग्रेस, भाजपा या पार्टियों का नहीं है, लोकतंत्र बनाम विदेश प्रायोजित भारत के शत्रुओं ‘नक्सलवाद’ से है तो एक कुतर्की की तरह बार बार बात घुमा फिरा वही भाजपा, संघ वगैरह की करते जा रहे हैं. सभी दोषी हैं यह साफ है, पर सबसे ज्यादा दोषी भारत का ‘महाभिशाप’ कांग्रेस नामधारी ‘नेहरू -गांधी’ वंशवाद है.

    मैं लेखक से शत प्रतिशत सहमत हूँ .जरा मानवाधिकार के नाम मलाई खा रहे देशद्रोह के सांप , जो हमारे आस्तीनों में छुपे हैं,उन पर और उनकी पृष्ठभूमि तथा उनके आय के स्रोतों पर नज़र डालें तो आपकी दृष्टी साफ़ होगी.

  26. नक्सलवाद जितना आक्रामक है नक्सलवाद के समर्थक भी उतने ही आक्रामक। जहाँ तर्क का अभाव होता है वही “आम” की चर्चा में “इमली” की बहस की जाती है। असंसदीय नक्सलवाद है और उसका समर्थन भी इसी श्रेणी में आता है। कश्मीर को भारत से अलग करने का समर्थन करने वाली अरुन्धति इस राष्ट्र की अखंडता के किये कितना प्रतिबद्ध हो सकती हैं यह जग जहिर है। और हमें चीन से बढते हुए खतरों के बीच यह भी याद रखना चाहिये कि नक्सलवाद की घोषित लाईन है “चीन का चेयरमेन हमारा चेयरमेन होगा” यानी कि केवल आंतरिक सुरक्षा का मामला कह कर पनपते हुए माओवाद से छुटकारा पाने का यह समय तो हर्गिज नहीं है यह बाहरी खतरा भी है। दूसरी बात कि इन दिनों “नक्सली आतंकवादियों की बी-टीम” अर्थात कुछ बुद्धिजीवियों और पत्रकारों नें यह लाईन ली है कि जो “लाल धारा” के साथ नहीं वह “भगवा धारा” के साथ है। सच यह है भारत की राजनीति और संस्कृति बाय-पोलर नहीं मल्टी-पोलर है, अनेक ध्रुव और धारायें हैं; किंतु इस सत्य को समझने के लिये लाल चश्माधारी कभी तैयार नहीं हो सकते, उन्हें विविधता भरे देश से प्यार नहीं जब तक इसका लाल सलाम न हो जाये?

    देश की संसद को “सूअर बाडा” कहने वाले अपनी भाषा का दायरा भी जानते हैं। पंकज जी आपकी प्रतिबद्धता प्रशंसनीय है नक्सलवाद से मुकाबला करने के लिये इस देश के वे बुद्धिजीवी जो लाल सोच के साथ नहीं हैं उन्हे भी तट्स्थता छोडनी ही होगी।

  27. अरूपजी, आपमें राजनीतिक समझ की कमी है। पंकजजी का यह कहना कि ‘राष्ट्र वृक्ष के लिए विष का काम करने वाले इस नागिन का दांत किस तरह तोड़ दिया जा सके हमें इस पर सोचना चाहिए.’ यह 76 सीआरपीएफ के जवानों को घेर कर बर्बर तरीके से मार देनेवाले नक्‍सलियों के पक्ष में खडी होनेवाली तथाकथित एक्टिविस्‍ट लेखिका पर राजनीतिक प्रहार है। लेकिन ‘बिहार में मैथिल ब्राहमणों को नाग कहा जाता है’ यह श्रेष्‍ठताबोध की ग्रंथि से उपजित है और संकीर्ण क्षेत्रवादी मानसिकता का परिचायक है। इस तरह के वक्‍तव्‍य से समाज को नुकसान होता है।

  28. पंकजजी को हार्दिक धन्यवाद कि आजकल आप राष्ट्रीय शत्रु नक्सलवादियों की खाल उधेड़ने में कोई कोताही नहीं बरत रहे हैं. आपने लेखकीय धर्मं का निर्वाह किया है. एक गुजारिश है कि नक्सलियों की खबर बाद में लें, पहले नक्सलवाद के पैरोकारों की जमकर धुलाई करें. कामरेड अनूप अब पाला बदलकर सोनिया गाँधी के चमचे बन गए हैं. उनकी बौखलाहट साफ़ समझ में आती है. जनता न तो सीपीएम के साथ है और न ही नक्सलियों के साथ. गत लोकसभा चुनाव में सीपीएम की भारी दुर्गति हुई और नक्सलियों के प्रभाव क्षेत्र में उनके चुनाव बहिष्कार के आह्वान का जनता ने बहिष्कार कर दिया और भाजपा के पक्ष में जनादेश दिया. कांग्रेस ने १९८४ में सिखों का नरसंहार किया तो नक्सलियों ने गरीब, किसान और आदिवासियों को भून डाला. संघ के बारे में अरूप जानते ही क्या हैं, संघ को उनके आका नेहरु ने १९६२ में गणतंत्र दिवस के परेड में शामिल किया था, आपातकाल के समय हजारों स्वयंसेवकों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर देश में लोकतंत्र की रक्षा की. पंकजजी आप नक्सलियों और कांग्रेस के चमचों की खबर लेते रहिये, हम आपके साथ हैं.

  29. आप किसी महिला के प्रति असंसदीय भाषा का प्रयोग करे वो जायज है। अरुंधती राय की दांत तोड़ दो। वह नागिन है। भईया ये कौन सी संसदीय भाषा है। लोकतांत्रिक भाषा है। किसी महिला के प्रति कौन सी भाषा का प्रयोग करना चाहिए क्या यह संघ की शाखाओं में नहीं सिखाया जाता है। अगर नहीं सिखाया जाता है तो फिर किस तरह का राष्ट्रवाद संघ सिखाता है। जब आप किसी को नागिन कहे तो ठीक है, आपको कोई नाग कह दे गलत है। सोच तानाशाही पूर्ण है। वाह भाई वाह, आप नागिन कहे तो लोकतांत्रिक और दूसरे नाग कहे तो तानाशाह। समझ में आ गया यह प्रवक्ता किस तरह के लोगों का मंच है। पहले अपनी साइट पर लिखने वालों को बताए कि वे किस तरह की भाषा का प्रयोग करे। नहीं तो यह मंच विलुप्त होते देर नहीं लगी। लोगों के पास इस तरह के मंचों पर आने के लिए समय नहीं है।

  30. भाई अरूप जी
    मुझे लगता है आप मुद्दे को भटकना चाहते हैं .बात हो रही है नक्सलवादियों की । आडवाणी ने क्या किया, क्या नहीं किया फिलहाल इस पर चर्चा नहीं हो रही है। इस पर भी अलग से चर्चा हो सकती है । जब तक लोकतंत्र रहेगा और नक्सलियों का देश पर कब्जा नहीं होता तब तक इस पर भी चर्चा हो सकती है । इस लिए मुझे लगता है कि आप तर्कों के अभाव से मुद्दे से भटकाना चाहते हैं । खैर कोई बात नहीं ।
    अरुंधती राय जैसे लोग जिनका आदिवासियों से कोई लेना देना नहीं है । उन्होंने आदिवासियों के बारे में सिर्फ किताबों में पढ रखी है ।, रहते वातानुकूलित घरों में हैं । चलते विमानों से हैं । यह तो आप भी समझ रहे होंगे कि उन्हें सर्वहारा नहीं कहा जा सकता । ऐसे में प्रश्न उत्पन्न होता है कि वे स्वयं आदिवासी नहीं है और न ही उनका आदिवासियों से कोई संबंध है । ऐसे में वे नक्सलियों के समर्थन में लेख क्यों लिख रही है । आपको तो पता ही होगा कि दंडकारण्य में नक्सलियों का समांतर तंत्र चलता है और वे भी सभी लोगों से नियमित हफ्ता वसूलते हैं । यह राशि हजारों करोडों में बैठती है । क्या हम यह मानें कि नक्सलियों के इस लूट के पैसे से उनको राशि प्राप्त होती है । वैसे हम यह मानने पर मजबूर हो रहे हैं, क्योंकि जिस व्यक्ति की जीवनशैली बुर्जुआवादी हो वह नक्सलियों के समर्थन में इस तरह के लेख कैसे लिख रहा है । अरुंधती राय जैसे लोगों के नई दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों के पांच सितारा होटलों को छोड़ कर छत्तीसगढ, ओडिशा,आंध्र के दंडकारण्य इलाकों के आदिवासी गांव में रहना चाहिए, तब उन्हें पता चलेगा कि नक्सली क्या होते हैं । पुलिस इनफार्मर के नाम पर कैसे सर व अन्य अंगों को काट कर सडक पर फेक दिया जाता है शायद उन्होंने देखी नहीं है । शायद आपने भी नहीं देखा होगा । आपके वैचारिक गुरु अरुंधती राय से इस बारे में पूछिये । और एक बात भाषा में शालीनता रहनी चाहिए । इस चीज का भी ध्यान रखेंगे तो अच्छा रहेगा ।

  31. @aroop-
    (संघ के कारिदों…सिर्फ संघियों के लिए वेबसाइट चलाते हो…फासीवाद का प्रचार कर रहे हो… बिहार में मैथिल ब्राहमणों को नाग कहा जाता है… संघ का नारा है- बच्चा-बच्चा राम का, क्या प्रोग्राम है शाम का…)

    आपकी भाषा से कोई भी समझ जाएगा कि आप तानाशाही विचारधारा के सेवक हैं और नस्‍लवादी सोच से ग्रसित हैं। आपके जैसे मानवता विरोधी व्‍यक्ति के लिए प्रवक्‍ता पर कोई स्‍पेस नहीं है। लेकिन चूंकि हमारा लो‍कतंत्र में अटूट विश्‍वास है इसलिए आपके कमेंट को हमने प्रकाशित किया। ‘बिहार में मैथिल ब्राहमणों को नाग कहा जाता है’ इस‍ तरह के नस्‍लवाली और सामंती सोच से हम प्रवक्‍ता को पाठकों को अवगत कराना नहीं चाहते और आगे से इस तरह की टिप्‍पणी को हम प्रकाशित नहीं करेंगे। अगर आप सच में अपने विचार रखना चाहते हैं तो असंसदीय और नस्‍लवादी सोच से मुक्‍त होकर सार्थक बहस की दृष्टि से टिप्‍पणी लिखें।

    यह सौ प्रतिशत सही है कि प्रवक्‍ता को चलाने वाले लोग प्रखर राष्‍ट्रवादी हैं। लगता है आपने प्रवक्‍ता डॉट कॉम के लेखों को ठीक से पढा नहीं है। एक बार समय निकालकर प्रवक्‍ता के पुराने लेखों को खंगाल लेते तो अच्‍छा रहता लेकिन हम जानते हैं कि आपकी बौखलाहट के क्‍या कारण हैं। प्रवक्‍ता पर हम सबकी खबर लेते हैं। जहां कहीं भी अन्‍याय, अनीति और अनाचार है, हम उसका पर्दाफाश करते रहेंगे भले ही वह किसी विचारधारा के झंडे तले हो रहा है। प्रवक्‍ता डॉट कॉम का उद्देश्‍य है ‘मुख्‍यधारा की मीडिया से ओझल हो रहे जनसरोकार से जुड़ी खबर को प्रमुखता देना और एक अरब से अधिक की जनसंख्‍या वाले देश की राष्‍ट्रभाषा हिंदी को इंटरनेट पर प्रभावी सम्‍मान दिलाना।‘

  32. आ. अरूप जी… यह अंतिम प्रतिक्रया लिख हम अपने तरफ से इस बहस को विराम देना चाहेंगे. पहले तो बिना मतलब असुरक्षित महसूस करते हैं. हालाकि यह जबाब मोडरेटर को देना चाहिए लेकिन मै ही कहना चाहूँगा कि आपका कोई भी कमेन्ट हटाया नहीं गया है. अगर आप असंसदीयतम नहीं लिखेंगे तो हटाया कुछ भी नहीं जाता यहाँ पर. जहां तक मेरी जानकारी है. हाँ अब मुद्दे की बात. बात-बात पर आप संघ और भाजपा पर पिले पड़ रहे हैं. मेरे भाई आपने मेरे इस आलेख या पूर्व-वर्ती प्रतिक्रया में संघ और भाजपा की बात कहाँ पढ़ ली. थोडा बहुत सन्दर्भ दिया भी है तो आप ही के सवाल के जबाब में. मित्रवर, अगर आप लोकतंत्र में आस्था नहीं रखने वाले हैं तो फिर आपसे किसी भी विमर्श का कोई फायदा नहीं. लेकिन अगर भारतीय संविधान आपके लिए भी गीता और कुरआन हो तो पुनः पुनः निवेदन करना चाहूँगा कि भगवान के लिए इस मुद्दे को संघ और वाम या कांग्रेस और बीजेपी का मुद्दा मत बनाए. मैंने लिखा भी है कि सभी इस में जिम्मेदार हैं. कोई कम तो कोई ज्यादा. सीधा और बिलकुल सीधा सवाल लोकतंत्र बनाम नक्सलवाद का है. और कोई लाख भटकाने की कोशिश करे हम यही कहेंगे कि नक्सलियों को कुचलने में राज्य को अपनी जान की बाज़ी लगा देनी चाहिए. आपने ठीक ही कहा है कि पंजाब सीमा पर होने के बाद भी सुरक्षित है. बिलकुल ..आप खैर रखें जिस तरीके से पंजाब में आतंकियों को कुचलने का काम चुनी हुई सरकारों द्वारा किया गया वैसा ही यहाँ भी किया जाएगा. अभी भी किसी का मनोबल कम नहीं हुआ है. इस ऑपरेशन के दौरान भी अपने जांबाजों से ज्यादा नक्सली मरे हैं…उनको खतम करके ही दम लिया जाएगा…अगर आप देशभक्त हो तो निश्चिंत रहे. और कृपया इसको बीजेपी या कांग्रेस का मामला मत बनाएं….सादर.

  33. माननीय पंकज जी झा, देश जब संघ की ताकत नहीं थी, जनसंघ की ताकत नहीं थी तब भी बचा था। जनसंघ और संघ ने 1965 और 1971 की लड़ाई नहीं जीती। लोकतंत्र तब भी बचा, राष्ट्र तब भी बचा। सवाल अगर आप लोकतंत्र और राष्ट्र को बचाने की करते है तो एक सवाल आपसे पूछना जरूरी होगा। सारी उम्र एलके आडवाणी भारत को रोटी खाते रहे। लेकिन एकाएक मोहम्मद अली जिन्ना को कराची में सेक्यूलर बता दिया। इसके लिए आडवाणी को क्या कहा जाए, राष्ट्रवादी, अलकायदावादी या तालिबानी। अब जरा एक संघियों के राष्ट्रवाद का उदाहरण देते है। कंधार में तीन उग्रवादी छोड़ने चले गए। अब क्या कहा जाए, डरपोक, बुझदिल या कायर। अब जरा एक और उदाहरण देते है। बस लेकर की लाहौर चले गए हमारे प्रधानमंत्री महोदय। उसके बाद कारगिल का युद्व हो गया। इसे क्या कहा जाए, मूर्खता, भाजपा का अति सेक्यूलरवाद या कुछ और। बस्तर देश की सीमा से नहीं लगता यह आपको बचाव का कारण नजर आ रहा है। अरे समझदार पंकज जी झा, पंजाब और राजस्थान की सीमा पाकिस्तान से लगती है। वहां क्या हो गया। वह भी तो आजादी के साठ साल बाद भी सुरक्षित है जिसमें भाजपा का शासन मात्र पांच साल ही रहा है।
    बहुत लोकतंत्र और राष्ट्र बचाने की चिंता करते हो माननीय पंकज जी झा। तो जरा बाल ठाकरे को समझाइए न। आपके भाजपा के गठबंधन मित्र है। यह तो आपका बचाव है कि आप छतीसगढ़ में है। अगर मुंबई में होते तो सीधे शिव सैनिक आपको दरभंगा, झंझारपुर, मधुबनी भेज देते। दूसरों को राष्ट्रवाद मत सिखाए। देश हमेशा विदेशी आक्रांता और आंतरिक विद्रोहों को झेलता रहा है। तब भी जब संघ और भाजपा नहीं था। इस देश ने हूण, शकों, कुषाण, मुसलमान, अंग्रेजों को आक्रमण झेले है। तब भी भारत का कुछ नहीं बिगड़ा। दांत तोड़ने की बात कर ज्यादा राष्ट्रवादी होने का ढोंग न रचे। भाजपाई कितने राष्ट्र प्रेमी होते है सारे जानते है। रोमेश शर्मा जो अभी जेल में है उससे पूछ लीजिए कितने भाजपाइयों के दाउद इब्राहिम से संबंध है। अब जरा आईपीएल का मामला खुलने दीजिए। सामने नजर आ जाएगा कितने भाजपाइयों ने सट्टा बाजार और अडंर वर्लड से माल खाए है। वसुंधरा राजे सींधिया और मोदी के संबंधों का खुलासा तो हो ही गया है। अब जरा और कई खुलासे होने है। अरे भाजपाइयों देश के पुरातन धरोहर भी बेचने में शर्म नहीं आती है। मोदी को आमेर फोर्ट के पास की हवेलियां ही बेच दी। शर्म करो। राष्ट्रवाद और लोकतंत्र को बचाने की दुहाई देते हो। चुलू भर पानी में डूब मरो। अगर दम होगा तो इस कमेंट को न हटाना।

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