अब समान नागरिक संहिता लागू करने का सही समय

मृत्युंजय दीक्षित

आजकल बिहार विधानसभा चुनावों का दौर चल रहा है। बिहार के चुनावों में जातिगत मुददा हावी है इसी बीच केंद्र सरकार ने धर्म आधारित जनगणना के आंकड़ों को बेहद शांत तरीके से जारी कर दिये हैं जिसके बाद जनमानस में एक नयी बहस को भी जन्म दे दिया है। इन आंकड़ों को देखकर पता चल रहा है कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की आबादी तीव्र गति से आगे बढ़ रही है। मुस्लिमों की बढ़ती आबादी पर संघ परिवार सहित सभी हिंदू संगठनों ने भी गहरी चिंता व्यक्त की है तथा इस पर संघ परिवार तथा समस्त हिंदू संगठनों में बैठकों व िचंतनों का दौर भी शुरू हो गया है। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार उप्र में 3.84 करोड़ मुसलमान हैं जो प्रांत की आबादी का 19 प्रतिशत हैं। प्रांत में कुल 20 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी वाले जिलों की संख्या 21 है।

आंकड़ों के अनुसार यूपी की कुल आबादी का पांचवा हिस्सा मुसलमान है। शेष ईसाई, सिख और बौद्ध आदि धर्म के अनुयायियों की संख्या लाखों में ही गिनी गयी है।आंकड़ों के अनुसार मुस्लिमों में बेरोजगारी की दर घटी हैं। जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में मुस्लिम बेरोजगारी  2.3-1.9 रह गयी है साथ ही शहरी क्षेत्रों में यह 4.1 से 3.2 पर  आ गयी है। 11.2 प्रतिशत मुस्लिम समाज जीडीपी में सहयोग कर रहा है । जबकि इसके विपरीत पाकिस्तान व बांग्लादेश में अलपसंख्यक हिंदू समाज की स्थिति बेहद दयनीय होती जा रही है। एक प्रकार से पड़ोसी देशों की स्थिति की तुलना में भारत में  अल्पसंख्यकों की स्थिति बेहतर से बेहतर होती जा रही है। आंकड़ों का अध्ययन करने से पता चल रहा है कि उप्र के गाजियाबाद में यदि हिंदू बहुसंख्यक हैं तो मुस्लिम मुरादाबाद में राजधानी लखनऊ में ही मुस्लिमों की आबादी 26 प्रतिशत तक बढ़ी है। जनसंख्या वृद्धि दर में बहराइच काफी आगे रहा है। राजधानी लखनऊ में 71.7 प्रतिशत हिंदू और 26 प्रतिशत मुस्लिम रहते हैं ।

muslimsउप्र में रामपुर में 50.57 प्रतिशत, मुरादाबाद में 47.12, प्रतिशत बिजनौर में 43 प्रतिशत, सहारनपुर में 42 प्रतिशत, मुजफ्फरनगर में 42 प्रतिशत, ज्योतिबा फॅुले नगर में 40 प्रतिशत, बलरामपुर में 37 प्रतिशत है। इसी तरह मेरठ, बहराइच, श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर, बागपत, गाजियाबाद, पीलीभीत, संतकबीरनगर, बारांबकी ,बुलंदशहर, बदायूं, लखनऊ और खीरी में भी मुस्लिम आबादी 20 प्रतिशत से अधिक है। उप्र में सबसे कम मुस्लिम आबादी ललितपुर में है। पश्चिमी उप्र में  मुस्लिम आबादी सबसे अधिक जबकि बुंदेलखंड में सबसे कम हैं। धार्मिक आधार पर आधारित जनगणना के आंकड़ों को प्रकाशित करने के पीछे विपक्ष सरकार पर आरोप लगा रहा है कि सरकार ने यह आंकडे़ सांप्रदायिक विद्वेष की भावना को भड़काने के लिये जारी किये हैं साथ ही इन आंकड़ों के माध्यम से सरकार व भारतीय जनता पार्टी बिहार के चुनावों व आगामी चुनावों में लाभ लेने का प्रयास कर सकती है। राजनैतिक विश्लेषकों का मत हेै कि इन आंकड़ों से मतों का ध्रुवीकरण हो सकता है। यह भी कहा जा रहा है कि बिहार विधानसभा चुनावों की कम से कम 50 सीटों पर  इन आंकड़ों का असर पड़ सकता है। वहीं तेजी से बढ़ रही मुसिलम आबादी अब हिंदू संगठनों के लिए बेहद चिंता व चिंतन तथा बयानबाजी का विषय भी बन चुका है। गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ व कुछ  संगठन के बयान भी आ चुके हैं जबकि कानपुर में तो कुछ संगठनों ने पोस्टरबाजी भी शुरू कर दी जिसके कारण वहां कुछ तनाव भ्सी पैदा हो गया लेकिन तत्परता से हालात में सुधार हो गया। आंकड़ों के अंकगणित की राजनीति के बीच  अब बहुत जल्द ही राजनीति क्षेत्रों में कुछ संगठन समान जनसंख्या नीति व समान नागरिक संहिता आदि कानूनों को लागूकरने की मांग तो करेंगे ही साथ ही अब मुस्लिम सामज को जो अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया है वह भी समाप्त करने की मांग उठेगी। हिंदू संगठन वैसे भी आरोप लगाते रहते हैं कि जहो जहां मुस्लिम आबादी बढ़ती हैं वहां वह सांप्रदायिक हो जाते हैं आंकड़ो से साफ पता चल रहा है कि पश्चिमी उप्र में मुस्लिम आबादी का प्रतिशत तेजी से बढ रहा है कि यही कारण है कि आज पश्चिमी उप्र में छोटी से छोटी बातों को लेकर भी सांप्रदायिक तनाव पैदा हो जाता है। इन क्षेत्रों में सर्वाधिक वारदातंे युवतियों आदि के साथ छेड़छाड़ को लेकर होती रहती है। जिससे कई बार स्थिति विस्फोटक तक हो जाती है।वहीं प्रशासन भी इन मामलों को गंभरीता से नहीं लेता है तथा यदि कार्रवाही करता भी है तो वह एकपक्षीय होती है।

अगर देशव्यापी जनगणना आंकड़ों परनजर डाली जाये तो स्थिति बहुत अधिक खतरनाक होती दिखलायी पड़ रही है। आज देश के सात पूर्वोत्तर प्रांतों में हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं। मिजोरम ,नागालैंड,मेघालय जम्मू कश्मीर अरूणांचल प्रदेश,पंजाब, मणिपुर  और लक्षद्वीप में हिंदू आज अल्पसंख्यक हो चुका है। यह सबकुछ केंद्र और राज्यों में शासन कर रहे दलों व चर्च प्रेरित संगठनांे द्वारा

इन राज्यों में हिंदू समाज के खिलाफ चलाई गयी जोरदार मुहिम का परिणाम है। यहां पर हिंदुओं को दोयम दजै का नागरिक बनाकर रख दिया गया है।जिसके कारण ही आज यह सभी राज्य अशंात हैं और भारत में रहते हुए भी अपने आप को बेगाना महसूस करते रहते है। इन राज्यों में तो हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा व आरक्षण आदि का लाभ मिलना चाहिये। लेकिन सेकुलरवादी दलों को यह  सब रूचिकर नहीं लग सकता है।  इसलिए अब समय आ गया है कि देश के सभी राजनैतिक दल अल्पसंख्यकवाद की राजनीति को समाप्त करने की योजन बनायें।साथ ही समान नागरिक संहिता पर नये सिरे से विचार करने का समय आ गया है। उप्र में तो अल्पसंख्यकवाद और हिंदुओं की लगातार घट रही जनसंख्या पर संघपरिवार व सभी हिंदू संगठनोंने अपने सम्मेलनों व बैठकों में विचार विनिमय प्रारम्भ भी कर दिया है । इस समस्या से निजात पाने के लिए अब संघ परिवार बेअी बचाओं अभियान को सफल बनाने के लिए कमर कस रहा है। इस जनगणना से यह साफ पता चल रहा है कि देश का हिंदू समाज जनसंख्या नियंत्रण के उपायों को तो आसानी से अपना रहा है लेकिन मुस्लिम समाज अशिक्षा व धार्मिक कट्टरता के कारण उसमें इस समझ का घोर अभाव है। यही कारण है कि मुस्लिम समाज आज भी पिछड़ा है। वैस्ंो भी कांग्रेस व वामपंथी दल तो चाहते ही हैं कि देश का मुसिलम समाज यदि जितना पिछड़ा रहेगा उन्हें उतना ही फायदा रहेगा। लेकिन ताजा जनगणना रिपोर्ट अब परिस्थितियां बदल रही हैं तथा समाज के सभी वर्गो में एक नयी प्रकार के बहस को जन्म दे रही हैं जिसके चलते देश में जनसंख्या वृद्धि का युद्ध छिड़ने का  भी खतरा पैदा हो गया है।

 

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