अब अन्ना के आंदोलन को निपटाने की बारी आई है…

सुरेश चिपलूनकर

जैसी कि उम्मीद थी, राजघाट पर अन्ना ने 8-10 घण्टे का “दिखावटी अनशन” करके वापस बाबा रामदेव के आंदोलन को पुनः हथियाने की कोशिश कर ली है। “टीम अन्ना”(?) के NGO सदस्यों ने अन्ना को समझा दिया था कि बाबा रामदेव के साथ “संघ-भाजपा” हैं इसलिये उन्हें उनके साथ मधुर सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए, रही-सही कसर साध्वी ॠतम्भरा की मंच पर उपस्थिति ने पूरी कर दी, इस वजह से अन्ना ने बाबा रामदेव के मंच पर साथ आने में टालमटोल जारी रखी…। 8 जून को भी राजघाट पर अन्ना के सहयोगियों ने अन्ना को “समझा” कर रखा था कि, वे सिर्फ “रामलीला मैदान की बर्बर घटना” का विरोध करें, रामदेव का समर्थन नहीं… (अप्रैल की घटनाएं सभी को याद हैं जब अन्ना हजारे ने बाबा रामदेव को लगभग उपेक्षित सा कर दिया था और मंच के पीछे स्थित भगवा ध्वज थामे भारत माता का चित्र, अखण्ड भारत का लोगो भी हटवा दिया था, क्योंकि वह चित्र “संघ” से जुड़ा हुआ है) यहाँ पढ़ें… अतः राजघाट पर अन्ना ने रामदेव के साथ हुए व्यवहार की घोर निंदा तो की, लेकिन रामदेव का समर्थन करने या न करने की बात से कन्नी काट ली।

वैसे तो पहले ही कांग्रेस, जन-लोकपाल के लिए गठित साझा समिति की बैठकों में अन्ना हजारे के साथियों को अपमानित करने लगी थी और फ़िर सरकार के अंदर साझा सहमति बन गयी थी कि पहले रामदेव बाबा को अन्ना हजारे के जरिये “माइनस” किया जाए, वही किया गया, मीडिया के जरिये अन्ना हजारे को “हीरो” बनाकर। फ़िर बारी आई रामदेव बाबा की, चार-चार मंत्रियों को अगवानी में भेजकर रामदेव बाबा को “हवा भरकर” फ़ुलाया गया, फ़िर मौका देखकर उन्हें रामलीला मैदान से भी खदेड़ दिया गया। भ्रष्टाचार और काले धन के मुद्दे पर घिरी तथा एक के बाद एक “प्रभावशाली” व्यक्तियों की “तिहाड़ यात्रा” की वजह से कांग्रेस “कुछ भी कर गुज़रने” पर आमादा है, अतः पहले अण्णा को मोहरा बनाकर आगे करने और फ़िर बाबा रामदेव को “संघ-भाजपा” की साजिश प्रचारित करने की इस “कुटिल योजना” में सरकार अब तक पूरी तरह से सफल भी रही है। ये बात और है कि “सेकुलरजन” यह बताने में हिचकिचाते हैं कि यदि इस आंदोलन के पीछे संघ का हाथ है तो इसमें बुराई क्या है? क्या संघ को भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का समर्थन करने का भी हक नहीं है???

वैसे कांग्रेस, मीडिया और NGO गैंग के हाथों की कठपुतली बनकर अण्णा हजारे ने रामदेव बाबा के आंदोलन को पलीता लगा दिया है। जनवरी-फ़रवरी में जब बाबा रामदेव ने अन्ना सहित सभी वर्गों को दिल्ली में एक मंच दिया था, तब उन्हें नहीं पता था कि यह अन्ना जिन्हें महाराष्ट्र के बाहर कोई पहचानता भी नहीं है, और जिसे “अत्यधिक भाव देकर” वे राष्ट्रीय मंच दिलवा रहे हैं, वही एक दिन पीठ में छुरा डालेंगे, लेकिन ऐसा ही हुआ। भले ही इसके जिम्मेदार व्यक्तिगत तौर पर अन्ना नहीं, बल्कि अग्निवेश और भूषण-केजरीवाल जैसे सेकुलर NGO वीर थे, जिन्होंने अन्ना को बरगला कर रामदेव के खिलाफ़ खड़ा कर लिया, परन्तु हकीकत यही है कि पिछले एक साल से पूरे देश में घूम-घूमकर बाबा रामदेव, जो जनजागरण चलाये हुए थे उस आंदोलन को सबसे अधिक नुकसान अन्ना हजारे (इसे “सेकुलर” सिविल सोसायटी पढ़ें) ने पहुँचाया है। ज़ाहिर है कि कांग्रेस अपने खेल में सफ़ल रही, पहले उसने अन्ना को मोहरा बनाकर बाबा के खिलाफ़ उपयोग किया, और अब बाबा को ठिकाने लगाने के बाद अन्ना का भी वही हश्र करेगी, यह तय जानिए। जैसा सिविल सोसायटी वाले चाहते हैं, वैसा जन-लोकपाल बिल अब कभी नहीं बनेगा… और काले धन की बात तो भूल ही जाईये, क्योंकि यह मुद्दा “भगवाधारी” ने उठाया है, और संघ-भाजपा-भगवा ब्रिगेड जब 2+2=4 कहती है तो निश्चित जानिये कि कांग्रेस और उसके लगुए-भगुए इसे 2+2=5 साबित करने में जी-जान से जुट जाएंगे…

यह सब इसलिये भी हुआ है कि एक भगवाधारी को एक बड़ा आंदोलन खड़ा करते और संघ को पीछे से सक्रिय समर्थन देते देखकर कांग्रेस, वामपंथियों और “सो कॉल्ड सेकुलरों” को खतरा महसूस होने लगा था, और रामदेव बाबा के आंदोलन को फ़ेल करने के लिये एक “दूसरों के कहे पर चलने वाले गाँधीटोपीधारी ढपोरशंख” से बेहतर हथियार और क्या हो सकता था…। अब अण्णा हजारे को “निपटाने” की पूरी पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी है, अव्वल तो कांग्रेस अब अण्णा को वैसा “भाव” नहीं देगी जो उसने अप्रैल में दिया था, यदि जन-दबाव की वजह से मजबूरी में देना भी पड़ा तो जन-लोकपाल के रास्ते में ऐसे-ऐसे अड़ंगे लगाये जाएंगे कि अण्णा-केजरीवाल-भूषण के होश फ़ाख्ता हो जाएंगे, अग्निवेश तो “दलाल” है सो उसको तो “हिस्सा” मिल चुका होगा, इसलिये उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। (भगवा पहनने वालों का क्या हश्र होता है, यहाँ पढ़ें…

बाबा रामदेव का विरोध करने वालों में अधिकतर इसलिये विरोध कर रहे थे, क्योंकि वे “भगवाधारी” हैं, जबकि कुछ इसलिये विरोध कर रहे थे कि उनके अनुसार बाबा भ्रष्ट हैं और वे भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन का नेतृत्व नहीं कर सकते।

पहली श्रेणी के “सेकुलर” तथा “भगवा-रतौंधी” के शिकार लोग दरअसल कांग्रेस को विस्थापित करना ही नहीं चाहते, वे यह बात भी जानते हैं कि वामपंथियों और कथित तीसरी शक्ति की हैसियत कभी भी ऐसी नहीं हो पाएगी कि वे कांग्रेस को विस्थापित कर सकें… परन्तु कांग्रेस ने “शर्मनिरपेक्षता” की चूसनी उनके मुँह में ऐसी ठूंस रखी है कि वे भाजपा-संघ-हिन्दूवादी ताकतों का कभी समर्थन नहीं करेंगे चाहे कांग्रेस देश को पूरा ही बेच खाए। जबकि दूसरी श्रेणी के लोग जो बाबा रामदेव का साथ इसलिये नहीं दे रहे क्योंकि वे उनको भ्रष्ट मानते हैं, वे जल्दी ही यह समझ जाएंगे कि अण्णा को घेरे हुए जो NGO गैंग है, वह कितनी साफ़-सुथरी है। यह लोग कभी नहीं बता पाएंगे कि कांग्रेस से लड़ने के लिये “राजा हरिश्चन्द्र” अब हम कहाँ से लाएं? बाबा की सम्पत्ति की जाँच करवाने वालों और उन पर धन बटोरने का आरोप लगाने वालों को संसद में शहाबुद्दीन, पप्पू यादव, फ़ूलन देवी जैसे लोग भी स्वीकार्य हैं, साथ ही शकर माफ़िया और क्रिकेट माफ़िया का मिलाजुला रूप शरद पवार, विदेशी नागरिक होते हुए भी सांसद बन जाने वाला एम सुब्बा और अमरसिंह जैसा लम्पट और दलाल किस्म का व्यक्ति भी स्वीकार्य है, परन्तु बाबा रामदेव के पीछे समर्थन में खड़े होने पर पेटदर्द उठता है।

रामदेव बाबा को निपटाने के बाद अब कांग्रेस अण्णा और सिविल सोसायटी को निपटाएगी…। फ़िर भी अण्णा के साथ वैसा “बुरा सलूक” नहीं किया जाएगा जैसा कि रामदेव बाबा के साथ किया गया, क्योंकि एक तो अण्णा हजारे “भगवा” नहीं पहनते, न ही वन्देमातरम के नारे लगाते हैं और साथ ही उन्होंने बाबा रामदेव के आंदोलन को भोथरा करने में कांग्रेस की मदद भी की है… सो थोड़ा तो लिहाज रखेगी।

यदि गलती से भविष्य में किसी “गाँधीटोपीधारी” या “वामपंथी नेतृत्व” में कांग्रेस के खिलाफ़ कोई बड़ा आंदोलन खड़ा होने की कोशिश करे (वैसे तो कोई उम्मीद नहीं है कि ऐसा हो, फ़िर भी) तो हमारा भी फ़र्ज़ बनता है कि उसे टंगड़ी मारकर गिराने में अपना योगदान दें…। क्योंकि यदि उन्हें “भगवा” से आपत्ति है तो हमें भी “लाल”, “हरे” और “सफ़ेद” रंग से आपत्ति करने का पूरा अधिकार है…। यदि उन्हें बाबा रामदेव भ्रष्ट और ढोंगी लगते हैं तो हमें भी उनके गड़े मुर्दे उखाड़ने, “सेकुलरिज़्म” के नाम चल रही दुकानदारी और देशद्रोहिता तथा उनकी कथित “ईमानदारी”(?) और “लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं” की असलियत जनता के सामने ज़ाहिर करने का हक है…

4 COMMENTS

  1. ये समय ये समझने या देखने का नहीं है की बाबा रामदेव सही है या अन्ना हजारे …बात ये की दोनों की बाते सही हैं. जैसे आज़ादी की लडाई में भगत सिंह की भी अपनी भूमिका थी और महात्मा गाँधी की भी …ऐसे ही अन्ना और बाबा रामदेव दोनों महत्वपूर्ण है और रही बाबा रामदेव के भ्रष्ट होने या न होनेकी बात तो …सीधी सी बात है कोई भी भ्रष्ट आदमी भ्रष्टाचारी सर्कार के खिलाफ इतने दिन तक नहीं बोल सकता और न ही भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई क़ानून बनवाने के लिए अन्न्शन करेगा….और अगर सरकार भ्रष्ट नहीं है तो सर्कार तुरंत क़ानून बनाकर जनता की वाह वाही लूट लेनी चाहिए थी अब तक….जय हिंद

  2. सुरेश जी मैं आप का बहुत बड़ा फेन हूँ मैं नियमित रूप से आप की साईट पड़ता हूँ आप के लेख काफी जानकारी देते है , वैसे मैं maharastra नागपुर का हूँ अन्ना हजारे के बारे मैं काफी सुन रखा है वो सिर्फ पैसे ले कर अनसन करते है , ये बात सही है इस बार सायद कांग्रेस के एजेंट के रूप मैं काम कर रहे है ये सब अनसन वैगेरे उनकी नाटक है जनता को उनपे विश्वाश नहीं करना चाहिए , वो सिर्फ स्वामी रामदेव के मुद्दे को हाइजैक करने मैं लगे हुए है जैसे मोहनदास गाँधी ने तिलक, सावरकर को किया था जनता सावधान अन्ना सिर्फ एजेंट है उन पर विश्वास मत रखना

  3. असंभव को संभव कैसे बनाया जा सकता है । जिस दल के लोगों ने सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार और काला धन जमा किया है उसी दल की सरकार से ये उम्मेद रखना दिवास्वप्न है की वे लोग अपने ही खिलाफ फांसी का कानून बनाएँगे।
    कितना दंभ है कांग्रेसियों में ये उनके बयानो से जाहीर है
    सिविल सोसाइटी शब्द का प्रयोग बताता है की इस देश में दो तरह के नागरिक हैं एक आम और एक खास । इन्हे खास किसने बनाया यह भूल जाते हैं। ताजा बयान प्रणब मुखर्जी का कि सांसदों के अधिकार कम नहीं किए जा सकते !!?? ये अधिकार कौन प्रदान करता है प्रणब जी , एक कागजी दस्तावेज़ या इस देश की जनता ।
    अब तो कोंग्रेसियों ने ये भी साफ साफ कह दिया है कि शासन और राजनीति कुछ गिने चुने लोगों का अधिकार है बाकी लोग उससे दूर रहें ( योगी, जनता इत्यादि) ये किस सविधान के तहत है इसका भी खुलासा दिग्विजय सिंह करें ।
    दिग्विजय सिंह इस बात का भी खुलासा करेंगे कि वे कब कब स्विट्ज़रलैंड गए थे और क्यों ?

  4. लोग चट गए है दोनों ,रामदेव और अन्ना की समज से. एक से बढ़ कर एक बेफ्कुफी के कमेन्ट वे काम कर रहे है दोनों.
    सिविल सोसिटी भे अब तो फ्रौड़ से लगने लगी है.
    सर्कार को बिना कुछ करे उप्पेर हैण्ड पेश किया जा रहा है.
    पता नहीं असली क्रांति कौन लायेगा.

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