आर्थिकी कला-संस्कृति

अब आओ ऊपर वाले तुम, गायों को अगर बचाना है…

calf-cowअब आओ ऊपर वाले तुम, गायों को अगर बचाना है,

इंसान के बस की बात नहीं, वह स्वारथ में दीवाना है।।

जिस माँ का दूध पिया सबने, उस माँ पर नित्य प्रहार किया।

बदले में दूध-दही देकर, माता ने बस उपकार किया।

जो है कपूत उन लोगो को, गायों का पाठ पढ़ना है।। …..

कहने को हिंदू-जैनी है, लेकिन गो-वध भी करते है।

स्वारथ में अंधे हो कर के, पैसों की खातिर मरते है।

जो भटके है उन पथिकों को, अब तो रस्ते पर लाना है।

ये गाय नहीं है धरती पर, सबसे पावन इक प्राणी है,

यह अर्थतंत्र है जीवन का, भारत की मुखरित वाणी है।

भारत ही भूल गया सब कुछ, इसको नवपथ दिखलाना है।। ….

गायो को भोजन मिल जाए, बछडों को उनका दूध मिले,

तब मानव औ गौ-माता के रिश्तों का सुंदर फूल खिले।

बछडे को भी हक़ जीने का, गोपालक को समझाना है।। …..

हो धर्म कोई, भाषा कोई, सबने गायों को मान दिया,

इसलाम मोहब्बत करता है, बाइबिल ने भी सम्मान दिया।

क्या महावीर, क्या बुद्ध सभी ने, गौ को माता माना है।। …

कुछ स्वाद और पैसों के हित, मानव पापी बन जाता है,

पशुओं का भक्षण करता है, फ़िर अपनी शान दिखता है।

मानव के भीतर दानव का, बढ़ता अस्तित्व मिटाना है।।…

अब उठो-उठो चुप ना बैठो, अपने घर से बाहर आओ,

माता को अगर बचाना है तो उसकी खातिर मिट जाओ।

गौ हित में जान गयी तो फ़िर बैकुंठ्लोक ही जाना है।। …

हिन्दू आओ, मुसलिम आओ, सिख, ईसाई सारे आओ,

सबने गौ माँ का दूध पिया, अपनी माँ पर बलि-बलि जाओ।