नर्सिंग :क्यों उपेक्षित है हैल्थ सिस्टम की रीढ़

विश्व नर्सिंग डे 12 मई पर विशेष

डॉ अजय खेमरिया

कोरोना के कहर से कराहती दुनियां के दर्द को कम करने में चिकित्सकीय सेवा वर्ग के प्रति हम आज दण्डवत मुद्रा में खड़े है।उनके सम्मान, और उत्साहवर्धन के लिए उपकृत भाव से कभी करोडों लोग दीपक जलाते है कभी घण्टी थाली पीटते है तो कभी सेनाओं के जरिये पुष्पवर्षा हो रही है।इन आकस्मिक दृश्यों के बीच कुछ सवाल नीतिगत विमर्श के केंद्र से गायब है, वह है-नर्सिंग सेक्टर की विसंगतियां।जिस स्वास्थ्य श्रंखला के बल पर दुनिया कोविड से मुकाबला कर रही है उसका मेरुदण्ड है नर्सेज़।आज विश्व नर्सिंग दिवस है क्योंकि आज ही के दिन 1820 में आधुनिक नर्स व्यवस्था की जनक फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म इटली के एक अमीर परिवार में हुआ था।हर साल यह दिन उनकी स्मृति में नर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है।स्वास्थ्य क्षेत्र का मेरुदण्ड कहने के लिए इस वर्ग की महत्ता को आंकड़े प्रमाणित करते है। भारत में कुल चिकित्सकीय सेवा क्षेत्र का 47 फीसदी हिस्सा नर्सेज़ का है वहीं 23 फीसदी डॉक्टर,5.5फीसदी डेंटिस्ट,और 24.5 में अन्य पैरामेडिकल स्टाफ शामिल है।खासबात यह भी है कि वैश्विक दृष्टि से नर्सों की यह भागीदारी 60 फीसदी है यानी भारत से13 फीसदी अधिक।(27.9मिलियन)डाक्टर सलाह और सर्जरी के बाद मरीज को नर्स के भरोसे पर छोड़ देते है।मरीज के स्वस्थ्य होने तक नर्स ही उपचार को अंजाम तक पहुँचाती है लेकिन हमारे यहाँ इस भरोसेमंद कड़ी को कोई  सामाजिक सम्मान नही है।न पर्याप्त सुविधाएं और सेवा के अनुरूप प्रतिफल की व्यवस्था भी। भारतीय सेना में ट्रेनी नर्स के रूप में भर्ती होने वाली परिचारिका (नर्स) नायब सूबेदार से मेजर जनरल तक के प्रमोशन पाकर रिटायर होतीं है।सिविल अस्पतालों  में 80 फीसदी स्टाफ नर्स बगैर पदोन्नति के अल्प वेतन पर जीवन गुजारने को विवश है। नर्सिंग का अध्ययन डिप्लोमा के आगे बीएससी,एमएससी,पीएचडी तक जाता है। स्नातक चिकित्सा पाठ्यक्रम (एमबीबीएस)का 60 फीसदी तक नर्सिंग में पढ़ाया जाता है लेकिन स्वास्थ्य क्षेत्र के इस मेरुदण्ड पर सरकार का कभी ध्यान नही गया। कोविड से निर्णायक जंग में जुटी स्टाफ नर्स को राजपत्रित अधिकारी का दर्जा और सेना की तरह प्रमोशन के अवसर भी सुनिश्चित करना आज आवश्यक है।भारत में ही फिलहाल बीस लाख नर्सों की जरूरत है। 2009 में इनकी संख्या 16.50लाख थी जो 2015 में घटकर 15.60लाख रह गई थी। डब्लू एच ओ की ताजा रिपोर्ट कहती है कि 2030 तक विश्व मे 60 लाख नर्सों की आवश्यकता होगी।भारत और फिलीपींस आज भी सर्वाधिक नर्सेज़ देने वाले देश है। ब्रिटिश नेशनल हैल्थ सर्विस में हर साल एक हजार भारतीय नर्सें स्थाई सेवा में रखी जाती है।दुनियां के लगभग हर मुल्क में भारत की नर्सें आज सेवाएं दे रही है।यानी भारत स्वास्थ्य क्षेत्र की इस रीढ़ को कायम रखने वाला अहम मुल्क है, लेकिन तथ्य यह है कि हमारे यहां इस सेवा का कोई एकीकृत ढांचा ही नही है। हर राज्य में नर्सिंग सेवा शर्ते वेतन भत्ते अलग है।मप्र,राजस्थान, बिहार,दिल्ली,हरियाणा  में 20 हजार से कम वेतन पर संविदा में इनकी भर्तियां होती है।दिल्ली उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली में नर्सिंग वेतन 20 हजार करने के निर्देश सरकार को दिये। क्या यह वेतन सेवा के अनुपात में उचित कहा जा सकता है?उत्तराखंड में सरकार ने फार्मासिस्ट के समान वेतन करने के लिये कहा।मप्र में तीन अलग अलग वेतनमानों पर इनकीं भर्तियां होती है।अमेरिका,ब्रिटेन, इटली,यूएई में नर्स 75 हजार से सवा लाख मासिक वेतन पर नियुक्ति पातीं है।जाहिर है भारत में नर्सिंग सेवा को सरकार ने खुद ही दोयम प्राथमिकता पर रखा हुआ है।भारत से हर साल करीब 20 हजार नर्स विदेश में जाकर सेवाएं देती है इनमें 60 फीसदी केरल से होती है। अगर केरल की तरह अन्य राज्यों की नर्स भी अंग्रेजी में निपुण हो तो  विदेश जाने वालों का यह आंकड़ा कई गुना अधिक हो सकता है। दुनियां की कुल 2.79करोड़ नर्सेज़ में से 90 फीसदी महिलाएं है और भारत मे यह आंकड़ा 88 फीसदी है।डब्लू एच ओ की एक रपट के मुताबिक कोविड संकट में करीब 44 हजार  तो मरीज नर्सेज़  के सेवाभावी समर्पण से ही स्वस्थ्य हुए है।ऐसे में सरकार के स्तर पर एकीकृत नर्सिंग सेवा संवर्ग या मानक सेवा शर्तों का निर्धारण किया जाना आज वक्त की मांग है।एक तरफ सरकार महिलाओं के सशक्तिकरण का खम्ब ठोकती है लेकिन नर्सिंग सेक्टर की 88 फीसदी महिलाओं के आर्थिक,सामाजिक सशक्तिकरण की तरफ कोई ध्यान नही है।कोविड संकट के बाद दुनिया का स्वास्थ्य क्षेत्र पूरी तरह बदलने वाला है इसलिए भारत इस अवसर का लाभ भी उठा सकता है इसके लिए हमें बुनियादी रूप से नर्सिंग सेक्टर को एकीकृत रूप से पुनः खड़ा करना होगा। राष्ट्रीय नर्सिंग सेवा शर्तें निर्धारित करने के साथ ही नर्सिंग स्कूल्स की संख्या को भी बढ़ाना होगा।इन्वेस्टमेंट कमीशन ऑफ इंडिया के अनुसार इस सेक्टर में बड़े निवेश की आवश्यकता है क्योंकि यह 12 फीसदी की दर से बढ़ने वाला क्षेत्र है।सरकार निजी क्षेत्र पर निर्भरता के स्थान पर खुद नर्सिंग स्कूल्स का संचालन वैश्विक मांग के अनुरूप  सुनिश्चित कर सकती है।न केवल भारत बल्कि दुनिया मे तेजी से इस सेवा क्षेत्र की मांग बढ़ेगी क्योंकि अमेरिका में जहां 10 हजार लोगों पर 83.4नर्स है वहीं अफ्रीकी और दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों में यह औसत 8.7है। कोविड संकट में यह भी तथ्य स्पष्ट हो चुका है कि विश्व की आधी आबादी तक कोई बुनियादी स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध नही है।विकसित देशों में नर्सो की बढ़ती उम्र भी बड़ी मांग निर्मित करेगी क्योंकि भारत की तुलना में यहां जनांकिकीय स्वरूप उम्रदराज हो चुका है।जाहिर है भारत नए वैश्विक स्वास्थ्य जगत में एक बड़ा उद्धारक साबित हो सकता है।इसके लिए सरकारी स्तर पर एक स्थाई और समावेशी नर्सिंग नीति की आवश्यकता है।इंग्लैंड की तरह नेशनल हैल्थ सर्विस ही भारत के लिए आज एक सामयिक अपरिहार्यता है।हालांकि मोदी सरकार ने हाल ही में 130 जीएनएम और इतने ही एएनएम स्कूल्स खोलने को मंजूरी दी है।निजी क्षेत्र में खोले गए स्कूल्स केवल लाभ कमाने की मानसिकता से संचालित है इसलिए बेहतर होगा सरकार इस सबसे महत्वपूर्ण काम को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता पर ले।वस्तुतः नर्सिंग एक ऐसा पेशा है जो सदैव कायम रहेगा जब तक इंसान रहेगा तब तक ऐसे लोगों की जरूरत पड़ती रहेगी जो प्रेम और सहानुभूति के साथ पीड़ितों की सेवा कर सकें।  कोविड का ख़ौफ़  हमारी नर्सिंग सिस्टर्स के प्रति हमारी सामाजिक जबाबदेही जाग्रत करने के लिए पर्याप्त है।माँ,बहन,बेटी के हर स्वरूप में खुद को होम करने के संकल्प के साथ खड़ी हमारी इस मातृशक्ति के लिए आज श्रद्धा से प्रतिसँकल्प का दिन भी है।विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2020 को अंतरराष्ट्रीय नर्स व मिडवाइफ बर्ष भी घोषित किया है।

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