सरकारी यात्रा पर पत्नी का क्या काम?

हमारे देश में सुख-सुविधाओं के नाम पर सरकारी धन को लूटने की होड सी चल निकली है। किसी न किसी बहाने से लोग सरकारी धन को लूटने का रास्ता खोज लेते हैं। इनमें बडे ओहदेदार ही आगे हैं। जिनके पास पहले से ही बहुत है, उन्हीं को और धन उपलब्ध करवाया जा रहा है। यही नहीं, बल्कि छोटे समझे जाने वाले लोगों के पास आर्थिक संसाधन नहीं है, उन्हें और वंचित करने के प्रयास भी साथ-साथ जारी हैं। ऐसा ही एक उदाहरण सामने आया है जो देश की सबसे बडी अदालत के सबसे बडे न्यायाधीश से जुडा हुआ है। इसलिये इस बारे में चर्चा होना तो स्वाभाविक ही है।

इस सम्बन्ध में एक सबसे बडा सवाल यह है कि सरकारी यात्रा पर जाने वाले राज नेताओं या अफसरों के साथ उनकी पत्नियों का जाना व्यक्तिगत तौर पर और कानून तौर पर तो हक है और इसे न तो कोई नकार सकता है और न हीं इसे रोका जा सकता है। लेकिन समस्या तब पैदा होती है, जबकि ऐसी सरकारी यात्रा पर जाने वाले मन्त्री, राजनेता या अफसर के साथ जाने वाली उसकी पत्नी या उसके परिवार के लोगों का किराया, रहना, खाना आदि का भुगतान राष्ट्रीय कोष से किया जाता है। क्यों आखिर क्यों सरकारी यात्रा पर किसी की भी पत्नी का क्या काम है? क्या हित होता राष्ट्र का पत्नियों से या पत्नी अधिकारियों या मन्त्राणियों के साथ में उनके पति के जाने से राष्ट्र को कोई लाभ नहीं होता। इसलिये साथ में जाने वाले पति या पत्नी का खर्चा सरकारी खजाने से उठाना देश के लोगों की गाढी कमाई की खुलेआम बर्बादी के अलावा कुछ भी नहीं है।

कुछ लोगों का तर्क होता है कि लम्बी यात्राओं के दौरान यदि पति के साथ पत्नी या पत्नी के साथ पति जाता है तो दोनों को भावनात्मक विछोह अनुभव नहीं होता है और इससे उनका मानसिक स्वास्थ्य ठीक बना रहता है। जिसके चलते जिस उद्देश्य के लिये यात्रा की जाती है, उसके सकारात्मक परिणाम की अधिक आशा की जा सकती है। इसलिये पत्नी के साथ पति और पति के साथ पत्नी का जाना कहीं न कहीं राष्ट्रीय हित में है। इस प्रकार के तर्क (जिन्हें कुतर्क कहा जाना चाहिये) के सहारे पति अपनी पत्नी को और पत्नी अपने पति को अपने साथ देश और विदेश में सैर कराने के लिये अपने साथ ले जाने और सैर का सारा खर्चा देश के राजस्व से उठाने का कानूनी अधिकार पा लेते हैं। साथ ही ऐसे तर्कों के आधार पर सिद्ध कर दिया जाता है कि यह सब जरूरी है।

इसी का परिणाम है कि पिछले दिनों देश की सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीश की पत्नी, उनके साथ विदेश यात्रा पर गयी, जिसका खर्चा सरकार ने उठाया और यात्रा से लौटने के बाद मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय की ओर से भारत सरकार को लिखा गया कि मुख्य न्यायाधीश की पत्नी के विदेश दौरे की अवधि के टीए एवं डीए का भुगतान किया जाये और इस दौरान हुए खर्च सरकार को उठाने चाहिए?यपि यह स्पष्ट नहीं है कि यह मांग मुख्य न्यायाधीश के कहने पर की है या फिर उच्चतम न्यायालय के प्रशासनिक कार्यालय द्वारा अपनी ओर से की गयी है। भारत सरकार की ओर से मुख्य न्यायाधीश के साथ में उनकी पत्नी को सरकारी खर्चे पर हवाई यात्रा की मंजूरी दी गयी थी और शेष सभी खर्चे स्वयं मुख्य न्यायाधीश को अपनी जेब से वहन करने थे, लेकिन भारत सरकार को लिखा गया है कि मुख्य न्यायाधीश की गत वर्ष 12 से 18 अक्तूबर के दौरान डबलिन और लंदन की यात्रा के दौरान जो खर्चा उनकी पत्नी पर किया गया उसकी भी भरपाई की जानी चाहिये। जिसे टीए एवं डीए के रूप में मांगा गया है। भारत सरकार की ओर से अभी तक इसकी मंजूरी नहीं दी गयी है, लेकिन मंजूरी दी भी जा सकती है। वातानुकूलित कमरों में बैठे ब्यूरोक्रेट इसे अपने अनुकूल पाकर, निर्णय ले सकते हैं कि जिन कारणों से मुख्य न्यायाधीश की पत्नी को सरकारी खर्चे पर हवाई यात्रा की मंजूरी दी गयी उन्हीं के आधार पर उन्हें टीए एवं डीए का भी भुगतान किया जा सकता है। यदि विधि मन्त्रालय इसे मंजूरी दे देता है तो भविष्य सभी पतियों के साथ जाने वाली पत्नियों के लिये भी टीए एवं डीए प्राप्त करने का कानूनी मार्ग खुल जायेगा। देखना होगा कि इस बारे में ब्यूराक्रेसी फ़ाइल पर कैसी टिप्पणी लिखती है?

जबकि एक दूसरा पहलू भी विचारणीय है और वह यह कि देश या विदेश में सरकारी यात्राओं पर जाने वाले मन्त्री, सांसद या उच्च अधिकारों के साथ जाने वाले पीए, सीए, पीएस आदि को सरकारी दायित्वों का निर्वाह करना होता है, लेकिन उन्हें अपने साथ अपनी पत्नी या पति को ले जाने की कोई अनुमति नहीं होती है, आखिर क्यों? क्या छोटे पदों पर आसीन लोगों को पत्नी के भावनात्मक सामीप्य की जरूरत नहीं होती है।केवल बडे लोगों का ही मानसिक स्तर कमजोर होता है, जिन्हें सहारा देने के लिये उनके साथ में उनकी पत्नी या पति को सरकारी खर्चे पर यात्रा करने की अनुमति दी जाती है? इन सवालों के जवाब देश की जनता मांग रही है और आज नहीं तो कल इन सवालों के जवाब देने ही होंगे। आखिर लोगों के खून-पसीने की गाढी कमाई को मन्त्रियों, सांसदों और अफसरों के पति या पत्नी के सैर-सपाटे के बर्बाद करते हुए कोई कैसे सहन कर सकता है। यह आम करदाता के साथ धोखा है। जिसके लिये ऐसे कानून बना कर राजस्व की बर्बादी करने वालों को जवाबदेह होना चाहिये।

-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा

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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

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