
ओमिक्रोन के आने की खबर
मिल चुकी है
विद्यालयों में बांटे जा रहे हैं मास्क
मगर केवल एक- दो
क्या इससे बच पायेंगे हमारे नौनिहाल ?
लेकिन इन सब खबरों से भी बेखबर है
एक और तबका
जो अभी तक झुग्गी- झोपड़ियों में कैद है
शिक्षा से कोसों दूर
उनके छोटे- छोटे बच्चे नंग- धड़ंग
खुली सड़कों पर शरारत करते
कूदते- फांदते,बकड़ियाँ बाँधते- चराते
अपने -अपने काम में मशगूल ।
ओमिक्रोन आ रहा है
पूरे लाव लश्कर के साथ
हर रोज बदल- बदल कर आती खबरें
खबरों से पैदा होता एक अज्ञात भय
लील जाना चाहता है पूरी की पूरी आबादी
और आजादी …
शायद सोचने के लिए नहीं बच गया कुछ
केवल और केवल सोशल डिस्टेंसिग
लगाए जानेवाले उन्नत और बेहतरीन मास्क
कुछ गिनी-चुनी दवाएं
सूखे फल, पौष्टिक लेकिन सुपाच्य भोजन
पढ़ने के लिए कुछ पसंदीदा पुस्तकें
लिखने के लिए कलम और नोट बुक
और यही तो साथ रहेंगे
जीवन की अंतिम यात्रा में
और –
पाप- पुण्य का लेखा – जोखा
सुकर्म- कुकर्म
आस्तिकता- नास्तिकता
विभिन्न विचारधाराएँ, तर्क- वितर्क- कुतर्क
और न जाने क्या-क्या ?
जीवन का सत्य यही तो है !
इसे स्वीकारना ही होगा ।
कल फिर मिलेंगे
इसी मंगल कामना के साथ !
● पंडित विनय कुमार