शब् पूरी अंधेरों के नाम हो गई !
मैक़दे की तरफ बढ़ चले क़दम
ज़िंदगी ही फिर जैसे ज़ाम हो गई !
आँखों से आंसु बन बह गया दर्द
उम्मीद मेरी मुझ पे इल्ज़ाम हो गई !
वक्त का फिर कभी पता नहीं चला
रफ़्ता रफ़्ता उम्र ही तमाम हो गई !
जिंदगी में ख़ुशी जितनी भी थी
वक्त के हाथों सब नीलाम हो गई !
चल कहकहों में दफ़्न कर दें अब
वह खामुशी जो सरे आम हो गई !
“ना ” को जिंदगी से निकाल दें
दुनिया को इक नई मिसाल दें !
जिंदगी एक पिच की तरह है
गेंद को अपनी बड़ा उछाल दें !
बिन पगलाए कुछ न मिलेगा
हिम्मत जज़्बे में अपने उबाल दें !
हर काम के लिए ज़िद ज़रूरी है
बेचारगी को दिल से निकाल दें !
हंसेगा कोई मज़ाक बनाएगा
उनकी नजरों को नए सवाल दें !
एवरेस्ट भी फ़तेह कर लोगे तुम
ख़ुद का ज़ुनून बाहर निकाल दें !
प्लेयर तुम चियरलीडर भी तुम
अपने फ़न को बस नये क़माल दें !
जब तक बड़ों का सरमाया है
हर तरफ़ रहमतों का साया है !
जब तक दुआएं उनकी साथ हैं
दिल तब तक नहीं घबराया है !
क़िस्मत से ज़्यादा नहीं मिलता
वक़्त ने हमको यह सिखलाया है !
उम्र गुज़र गई यही सोचते हुए
कौन अपना है, कौन पराया है !
यक़ीन यह है वह बेवफ़ा नहीं है
दिल में ख्याल क्यूँ फिर आया है !
सर्दी गर्मी बर्दाश्त नहीं होती अब
बन गई जाने कैसी यह काया है !
थकान का तो नामो निशान नहीं
जब से पयाम उन का आया है !
तेरे हाथ से बनी चाय का स्वाद
मुझे तुझ तलक़ खींच लाया है !