पाँच बरस के बाद ही, क्यों होती है भेंट?
मेरे घर की चाँदनी, जिसने लिया समेट।।
ऐसे वैसे लोग को, मत करना मतदान।
जो मतवाला बन करे, लोगों का अपमान।।
प्रत्याशी गर ना मिले, मत होना तुम वार्म।
माँग तुरत भर दे वहीं, सतरह नम्बर फार्म।।
सत्ता के सिद्धान्त की, एक अनोखी बात।
अपना कहते हैं जिसे, उससे ही प्रतिघात।।
जनता के उत्थान की, फिक्र जिन्हें दिन रात।
मालदार बन बाँटते, भाषण की सौगात।।
घोटाले के जाँच हित, बनते हैं आयोग।
आए सच कब सामने, वैसा कहाँ सुयोग।।
रोऊँ किसके पास मैं, जननायक हैं दूर।
छुटभैयों के हाथ में, शासन है मजबूर।।
व्यथित सुमन हो देखता, है गुलशन बेहाल।
लोग सही चुन आ सकें, छूटेगा जंजाल।