अंगदान है मानवता, उदारता एवं संवेदना का द्योतक

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अंग दान दिवस-13 अगस्त 2023 पर विशेष
-ः ललित गर्ग :-

अंग दान दिवस भारत में प्रतिवर्ष 13 अगस्त को मनाया जाता है। हमारा देश महर्षि दधीचि जैसे ऋषियों का देश है, जिन्होंने एक कबूतर के प्राणों व असुरों से जन सामान्य की रक्षा के लिये अपना देहदान कर दिया था। परंतु समय के साथ भारत में अंगदान की प्रवृत्ति में गिरावट देखी गई। निश्चित तौर पर अंगदान करके किसी अन्य व्यक्ति की जिंदगी में नई उम्मीदों का सवेरा लाया जा सकता है। इस तरह अंगदान करने से एक प्रेरणादायी शक्ति पैदा होती है, जो अद्भुत होती है। इस तरह की उदारता एवं संवेदना व्यक्ति की महानता का द्योतक है, जो न केवल आपको बल्कि दूसरे को भी जीवन का उजास प्रदान करती है। किसी व्यक्ति के जीवन में अंग दान के महत्व को समझने के साथ ही अंग दान करने के लिये आम इंसान को प्रोत्साहित करने के लिये सरकारी संगठनों, सार्वजनिक संस्थानों और दूसरे व्यवसायों से संबंधित लोगों द्वारा हर वर्ष यह दिवस मनाया जाता है। इंसान की सम्पत्ति का कोई मतलब नहीं अगर उसे बांटा और उपयोग में नहीं लाया जाए, चाहे वे शरीर के अंग ही क्यों न हो। इस दृष्टि से अंगदान एक महान् दान है, जो हमें स्वर्ग-पथ की ओर अग्रसर करता है।
अंगदान की अहमियत और प्रक्रिया के बाबत लोगों को जागरूक करने के लिये ही अंगदान दिवस मनाया जाता है। मानवीय दृष्टि से हर इंसान को पूरिपूर्ण शरीर एवं अंगों के साथ जीवन जीना अपेक्षित है, इसलिये बिल गेट्स ने कहा भी है कि हर मनुष्य का जीवन समान रूप से मूल्यवान है।’ यही कारण है कि जिस व्यक्ति के शरीर का कोई अंग भंग है या उसके शरीर का कोई हिस्सा अधूरा है तो उसे वह अंग दान कर एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया जा सकता है। एक अंगदान दाता आठ जरूरतमंदों की जान बचा सकता है। कोई भी व्यक्ति इस पुनीत कार्य से जुड़ कर जीवन सार्थक बना सकते हैं। एक जीवित व्यक्ति के लीवर का अंश दो व्यक्तियों को प्रत्यारोपित किया जा सकता है। लीवर की भांति पैंक्रियाज का आंशिक दान किया जाता है, फिर भी दाता का यह अंग बखूबी कार्य करता रहेगा। केवल भारत में ही नहीं दुनिया में हर साल लाखों लोगों के शरीर के अंग खराब होने के कारण मृत्यु हो जाती है।
दुनिया भर के अंगदान दाताओं की संख्या की तुलना में अंगों की मांग काफी अधिक है। हर साल कई मरीज डोनर के इंतजार में मर जाते हैं। आंकड़े बताते हैं कि भारत में 200,000 किडनी की औसत वार्षिक मांग के मुकाबले केवल 6,000 ही प्राप्त होते हैं। इसी तरह, दिलों की औसत वार्षिक मांग 50,000 है, जबकि उनमें से 15 प्रतिशत उपलब्ध हैं। अंग दान करने वालों की संख्या बढ़ाने के लिए अंगदान की आवश्यकता को जनता के बीच संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है। सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं जैसे टीवी और इंटरनेट के माध्यम से जागरूकता फैलाना। हालाँकि, हमें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। अंग दान किसी व्यक्ति के जीवन को बचा सकता है। इसके महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

कोई भी व्यक्ति चाहे, वह किसी भी उम्र, जाति, धर्म और समुदाय का हों, वह अंगदान कर सकता है। किसी व्यक्ति के जीवन में अंग दान के महत्व को समझने के साथ ही अंगदान करने के लिये आम इंसान को प्रोत्साहित करना इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है। अंगदान ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी जीवित या मृत, दोनों तरह के व्यक्तियों से स्वस्थ अंगों और ऊतकों को लेकर किसी अन्य ज़रूरतमंद व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। प्रत्यारोपित होने वाले अंगों में दोनों गुर्दे (किडनी), यकृत (लीवर), हृदय, फेफड़े, आंत और अग्न्याशय शामिल होते हैं। जबकि ऊतकों के रूप में कॉर्निया, त्वचा, हृदय वाल्व कार्टिलेज, हड्डियों और वेसेल्स का प्रत्यारोपण होता है। आँख, पाचक ग्रंथि, आँत, अस्थि ऊतक, हृदय छिद्र, नसें आदि अंगों का भी दान किया जा सकता है। पूरे देश में ज्यादातर अंग दान अपने परिजनों के बीच में ही होता है अर्थात् कोई व्यक्ति सिर्फ अपने रिश्तेदारों को ही अंग दान करता है। विभिन्न अस्पतालों में सालाना सिर्फ अपने मरीजों के लिये उनके रिश्तेदारों के द्वारा लगभग 4000 किडनी और 500 कलेजा दान किया जाता है। जबकि भारत में ही प्रतिवर्ष लगभग 5 लाख लोग अंग प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा कर रहे हैं। प्रत्यारोपण की संख्या और अंग उपलब्ध होने की संख्या के बीच एक बड़ा अंतराल है।
अंगदान जीवन के लिये अमूल्य उपहार है। अंगदान उन व्यक्तियों को किया जाता है, जिनकी बीमारियाँ अंतिम अवस्था में होती हैं तथा जिन्हें अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। जीवित व्यक्ति के लिये अंगदान के समय न्यूनतम आयु 18 वर्ष होना अनिवार्य है। साथ ही अधिकांश अंगों के प्रत्यारोपण का निर्णायक कारक व्यक्ति की शारीरिक स्थिति होती है, उसकी आयु नहीं। जीवित अंगदाता द्वारा एक किडनी, अग्न्याशय, और यकृत के कुछ हिस्से दान किये जा सकते हैं। कॉर्निया, हृदय वाल्व, हड्डी और त्वचा जैसे ऊतकों को प्राकृतिक मृत्यु के पश्चात् दान किया जा सकता है, परंतु हृदय, यकृत, गुर्दे, फेफड़े और अग्न्याशय जैसे अन्य महत्त्वपूर्ण अंगों को केवल ब्रेन डेड के मामले में ही दान किया जा सकता है। अंगदान और प्रत्यारोपण ‘मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम (टीएचओए) 1994 के अंतर्गत आता है, जो फरवरी 1995 से लागू हुआ। इस अधिनियम के अनुसार अंगदान सिर्फ उसी अस्पताल में ही किया जा सकता है, जहां उसे ट्रांसप्लांट करने की भी सुविधा हो। यह अपने आप में बेहद मुश्किल नियम था। इस नियम से दूर-दराज के इलाकों के लोगों का अंगदान तो हो ही नहीं पाता था। इस समस्या को देखते हुए सरकार द्वारा 2011 में इस अधिनियम को संशोधित किया गया। नए नियम के मुताबिक अंगदान अब किसी भी आईसीयू में किया जा सकता है अर्थात उस अस्पताल में ट्रांसप्लांट न भी होता हो, लेकिन आईसीयू है, तो वहां भी अंगदान किया जा सकता है।
दुनियाभर में रक्तदान के प्रति जागरूकता की वजह से बड़े पैमाने पर लोगों ने इसका महत्व समझा और आगे आकर स्वेच्छा से रक्तदान करने लगे हैं, उसी प्रकार अंगदान के प्रति वैश्विक जागरूकता की महत्ती आवश्यकता है। रक्तदान के बाद दूसरे स्थान पर है नेत्रदान। लोग अब नेत्रदान के लिए भी आगे आने लगे हैं। तथ्य बताते हैं कि वैश्विक स्तर पर अंगदान में भारत की हिस्सेदारी बहुत ही कम है। प्राकृतिक मौत पर दिल के वाल्व, कॉर्निया, त्वचा एवं हड्डी जैसे ऊतकों का दान किया जा सकता है। भारत के आम नागरिकों में अंग दान को लेकर उचित शिक्षा और जागरूकता का अभाव है। में अधिकांश लोग मृत्यु के बाद जीवन एवं पारलौकिक विश्वासों में जीता है। अतः शरीर के अंगों में काट-छाँट उन्हें प्रकृति व धर्म के विपरीत लगता है। इसके अलावा समाज में व्याप्त अंधविश्वास, पारंपरिक सोच और कर्मकाण्डों, अंगदान के प्रति लोगों में स्पष्ट अवधारणा का अभाव में भय एवं मिथक, दूर दराज क्षेत्रों में सुविधाओं का अभाव, मानसिक तौर पर मृत व्यक्ति के परिजनों की सहमति नहीं मिल पाना, अस्पताल में अंग लेने के साधनों का अभाव और सबसे ऊपर जागरूकता का अभाव ऐसी चुनौतियां है जिन पर गहन चिंतन-मनन करते हुए अंगदान को व्यापक बनाया जा सकता हैं। ऐसे में डॉक्टरों, गैर-सरकारी संगठनों और समाज सेवियों को अंगदान के महत्त्व के प्रति लोगांे को जागरूक करना चाहिये। सरकार को यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिये कि अंग प्रत्यारोपण की सुविधाएँ समाज के कमजोर वर्ग तक भी पहुँच सकें। इसके लिये सार्वजनिक अस्पतालों की अंग प्रत्यारोपण क्षमता में वृद्धि की जा सकती है। लोगों को खासकर ब्रेन डेड मरीज के परिजनों को समझना होगा कि अंगदान सबसे बड़ा दान एवं पुण्य का काम है। अंगदान कर आप किसी जरूरतमंद व्यक्ति का जीवन बचा कर पुण्य कमाने में पहल कर समाज में उदाहरण बन सकते हैं।

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