हमारे छात्रावास : भारत-विकास की सशक्त कड़ी

-डॉ0 प्रवीण तोगड़िया

भारत की जनसंख्या में युवा कितने, बच्चे कितने, महिलाएँ कितनी, वृद्ध कितने, हिन्दू, कितने, अहिन्दू कितने, जाति कितनी और कौन सी आदि चर्चाएँ और गणनाएँ चलती रही हैं और चलती रहेंगी। इनमें से किसी भी विषय की ‘टीवी डिबेट’ में न जाकर सत्यार्थ में वनवासी तथा अन्य गरीब छात्र-छात्राओं के लिए निवासी छात्रावास बनाकर उन्हें शिक्षा देकर जीवन में आगे लाने का महत् कार्य विश्व हिन्दू परिषद लम्बे समय से कर रही है। आज 146 ऐसे छात्रावास भारत के कोने-कोने में हैं और उनमें 6000 छात्र और छात्राएँ रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। पूर्वोत्तर की ऊँची पहाड़ियों से लेकर दक्षिण के सागर किनारे और विदर्भ की कड़ी धूप से जलते क्षेत्र से लेकर गुजरात के घने वनों में, पूर्वोत्तर में नागालैण्ड और आसाम की सीमा में हाफलांग में और ओड़िसा की फुलबनी सहित कई प्रदेशों और क्षेत्रों में विश्व हिन्दू परिषद के हजारों कार्यकर्ता वनवासी और अन्य गरीब छात्र-छात्राओं को श्रेष्ठ शिक्षा देने में तन-मन-धन से लगे हैं। धर्म परिवर्तन के धोखे से हाफलांग जैसे क्षेत्र में जहां 80 प्रतिशत नागा ख्रिश्चन बन गए, वहां हमारे छात्रावासों की सेवा से बाकी वनवासी और नागा हिन्दू ही रहे हैं।

इन कई छात्रावासों में दसवी कक्षा और आगे तक नियमित पढ़ाई तो होती है। इसके अलावा उन छात्र-छात्राओं को जीवन के महत्ताम मूल्य भी सिखाए जाते हैं। परम्परा से चले आए संस्कारों से उन्हें अवगत कराया जाता है। उनका रहना, भोजन, शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक प्रगति पर विशेष ध्यान दिया जाता है। कई छात्रावासों में उन्हें नई दुनिया में आवश्यक कौशल्य – जैसे संगणक, सम्पर्क कला (Communi-cation skills) आदि भी सिखाए जाते हैं। इन्हीं अथक् परिश्रमों का परिणाम है कि कई ऐसे छात्रावासों में पढ़कर, रहकर बड़े हुए छात्र आज कई महत्तव की जगहों पर उत्ताम कार्य कर रहे हैं। विजयनगर (आज का हैदराबाद) के पास चलनेवाले छात्रावास में पढ़ा हुआ छात्र आज एमबीबीएस डॉक्टर बनकर उसी क्षेत्र में कार्य कर रहा है। गुजरात के तलासरी में पढ़ा हुआ छात्र राजनीति में कुशल बनकर उसी क्षेत्र का सांसद बनकर उस क्षेत्र के विकास का कार्य कर रहे है। ऐसी अनेक यशोगाथाएँ हैं जिनके कारण वहां अथक् सेवा करनेवाले कार्यकर्ताओं का मनोबल उच्च रहता है।

जहां प्रशासन भी हार गया ऐसी जगहों पर हमारे छात्रावासों ने उपेक्षित समूहों को सम्मान से आगे बढ़ने के लिए मार्ग बना दिया है। नागपुर के पास पारधी समूह की बस्तियां हैं-कई अन्य प्रदेशों में भी हैं। समाज और पुलिस इन्होंने इस समूह को ‘चोर’ यह लेबल लगाकर दूर रखा था। उन्हें विकास की कोई किरण दूर-दूर तक नहीं दिख रही थी परन्तु विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ताओं ने इस समूह को प्रगति की बहती धारा में सम्मलित किया। उनके लिए छात्रावास बनाया। आज उनके बच्चे पढ़ रहे हैं, विकास के प्रकाशमान मार्ग पर सर ऊँचा कर चल रहे हैं। शिक्षा देनेवाली शालाएँ दुनिया में, भारत में बहुत हैं; परन्तु सम्मान से जीवन जीने का मार्ग बच्चों को उपलब्ध करानेवाली विश्व हिन्दू परिषद इन छात्रावासों में छ: हजार से भी अधिक छात्र-छात्राओं को विकास की नई किरणों की छत्रछाया में उनके गुणों का समुचित उदय करा रही हैं।

योजना यही है कि ऐसे कई अधिक छात्रावास बने, कई अधिक क्षेत्र जो समाज से, प्रशासन से दुर्लक्षित हैं वे भी हमारे छात्रावासों के धर्मपथ के महत्व के मापदण्ड बने! यह कार्य कैसे होगा? करोड़ों हिन्दुओं के सहयोग से होगा ! आज भारत में हिन्दू राजसत्ता नहीं हैं-मैं हिन्दू ‘पॉवर’ की बात नहीं कर रहा हूं, हिन्दू पॉलिटी (Polity) की बात कर रहा हूं जिसमें हिन्दू धर्म, संस्कृति, कला, परम्पराएँ ये सब अपने परमसम्मान के साथ बढ़े, राजनीतिक धोरणों (धुरियों) पर हिन्दू धर्म का प्रभाव रहे – इसे हिन्दू पॉलिटी (Polity) कहा जाता है तो आज हिन्दुओं को वनवासी, गरीब हिन्दू बच्चों के विकास के लिए कुछ करना है तो अपने बूते ही करना होता है ! हम हमारे छात्रावासों में यह कार्य कर ही रहे हैं।

हिन्दू परम्परानुसार छात्र और छात्राओं के निवास अलग-अलग हैं, सबका जीवनसत्वों से पूर्ण, ताजा, भोजन, नाश्ता, सबका आरोग्य, सबका स्वास्थ्य और साफ-सुथरा रहना, ठीक साफ जगहों पर सोना, स्नान आदि, उत्तम पढ़ाई के साधन, क्रीड़ा और कला इनके साधन, मनोरंजन इन सबके लिए खर्च अवश्य आता है। हिन्दू दाताओं के अविरल सहयोग से अब तक ये छात्रावास बढ़ रहे हैं और उनमें पढ़कर बड़े हुए बच्चे भी आज उनके विकास में सहयोग कर रहे हैं।

छात्रावासों की गतिशील प्रगति के लिए और संख्या में वृध्दि के लिए आवश्यक है कि और अनेक सहृदय हिन्दू दाता आगे आयें। कोई एक वर्ष के लिए एक छात्र गोद ले सकता है-कैसे ? छात्र हमारे छात्रावास में ही पढ़ेगा, रहेगा। बस उस पर आनेवाला खर्चा दाता देंगे। हमारे कई प्रशिक्षित कार्यकर्ता इन दूर-दूर पहाड़ियों में, वनों में, आतंक से पीड़ित क्षेत्रों में चलने वाले छात्रावासों में अपने-अपने घर त्याग कर सेवा कर रहे हैं – उनका खर्च दाता उठा सकते हैं, छात्रावासों का भोजन, उनके लिए आवश्यक पढ़ाई के साधन, वस्त्र, इलेक्ट्रिसिटी……..अनेक प्रकार के खर्च होते हैं। इनके लिए दाता सहयोग कर सकते हैं ! ऐसे छात्रावासों में पढ़नेवाले हजारों बच्चों का छात्र संगम 19 से 23 मई, 2010 गुजरात के सूरत में आयोजित किया जा रहा है। यह ज्ञान और सेवा का महासंगम है। यह हिन्दुओं के उदयमान हाथों का उत्सव है। हम सब इसमें तन-मन से लगे हैं ही, करोड़ों हिन्दू सहृदय इसमें तन-मन के साथ धन से जुड़ जाएँ तो यह छात्रावासों का छात्र संगम ज्ञान और सेवा का अतिपवित्र महाकुम्भ होगा !

हिन्दू धर्म इतने आक्रमणों में आज तक अपनी संस्कृति, परम्पराएँ सहेजे हुए आगे बढ़ रहा है, वह ऐसे ही अनेक कार्यों के कारण और सहृदय दाताओं के कारण। हर हिन्दू का यह उत्तारदायित्व है कि हमारी आनेवाली पीढ़ी के इन तेज-तर्रार वनवासी और अन्य गरीब बच्चों की प्रगति में सहभागी हों – तभी तो हम सच में कह पायेंगे–

‘पढ़ेगा भारत तो बढ़ेगा भारत’!

चित्र परिचय: स्व. सीताराम अग्रवाल स्मृति छात्र संगम-19-23 मई, सूरत (गुजरात) का उदघाटन करते विहिप-इंटरनेशनल सेक्रेट्री जनरल डॉ. प्रवीण भाई तोगड़िया

2 COMMENTS

  1. विश्व हिन्दू परिषद के द्वारा छात्रावासो का चलाया जाना सराहनीय कार्य है.

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