पाक प्रायोजित छायायुद्ध का विस्तार

प्रमोद भार्गव

पाकिस्तानी सेना की वर्दी में एक बार फिर भारत पर आतंकी हमला हुआ है। इससे पहले यही स्थिति कारगिल और पूंछ इलाकों में निर्मित हो चुकी है। जम्मू-कश्मीर में बीते 25 साल से जारी छाया युद्ध का विस्तार पंजाब में भी हो जाना,न केवल चिंताजनक है,बल्कि अनेक आशंकाओं को भी जन्म देने वाला है। आतंकियों ने जिस बेफ्रिकी से गोलियां दागते हुए दीनानगर थाने पर कब्जा किया,उससे साफ है कि हमारी रॉ,आईबी और सेना की आंतरिक गुप्तचार संस्थाएं सोई हुई हैं। पंजाब पुलिस की सीआडी ब्रांच भी नाकाम रही। जबकि सरहद के करीब का यह थाना नितांत संवेदनशील क्षेत्र में आता  है। अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण रेखा से जुड़ा होने के कारण बड़ी संख्या में इस क्षेत्र में थल और वायुसेना की पहलकदमी भी रहती है। बावजूद तीन-तीन आतंकी हथियार लहराते हुए सीमा पार कर लेते हैं,एक यात्री की कार छीनकर बस अड्डे पहुंचते हैं। एक टेंपों और सवारी बस में गोलियां दागते हैं और बेखौफ थाना परिसर की बहुमंजिला इमारत पर कब्जा करके मोर्चा संभाल लेते हैं। बाद में प्रत्यक्ष लड़ाई में पुलिस कप्तान बलजीत सिंह समेत तीन सिपाही शहीद होते हैं और 9 नागरिक मारे जाते है। पंजाब पुलिस के विषेश प्रशिक्षित स्वात लड़ाकों को भी थल और वायु सैनिकों की घेराबंदी के बाद आतंकियों को निपटाने में 11 घंटे का समय लगता है। आतंकी घुसपैठ की यह नई तस्वीर देश की तकदीर को दहलाने वाली है ?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र की राजग सरकार अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते,पाकिस्तान से आगे बढ़कर दोस्ती के जितने प्रयास कर रही है,भारतीय सीमा में हालात उतने ही ज्यादा बिगड़ते जा रहे हैं। रूस के उफा में इसी माह 10 जुलाई को मोदी और नवाज शरीफ की मुलाकत हुई थी। इसके बाद जम्मू-कश्मीर नियंत्रण रेखा पर तो हालात बिगड़े ही,बिगड़े आतंकी हालातों का पंजाब में विस्तार हो गया। इस वजह से खालिस्तानी आतंक का संदेह नए सिरे से पैदा हो गया है। दरअसल,भारत की पाकिस्तान नीति अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के कार्यकालों में जिस तरह से अस्पष्ट और पाक परस्त दिखाई दी थी,कमोवेष वही पुनरावृत्ति नरेंद्र मोदी करते दिख रहे हैं। जबकि उनसे सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद के परिप्रेक्ष्य में कड़ाई से निपटने की उम्मीद थी। यह समझ से परे है कि पाक रक्षा मंत्री ख्वाजा असिफ कह रहे है कि हम भारत के विरूद्ध पहले परमाणु हथियारों का उपयोग कर सकते हैं। पाक सेना प्रमुख कहते हैं,कश्मीर पाकिस्तान का अंग है और हम इसे लेकर रहेंगे। हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज कह रही हैं,कि आतंकवाद का निर्यात और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते ? बावजूद वह कौन से कारण और दबाव हैं कि मोदी बेवजह की उदारता दिखाते हुए उफा में शरीफ के सामने मुलाकात का हाथ बढ़ाने को मजबूर हुए ? वार्ता और हमले के ये समानांतर उपक्रम हमारी पाक नीति को झकझोरते हुए कई सवाल उठा रहे हैं।

दो दशक बाद पंजाब के गुरूदासपुर में आतंकी हमले की घटना यह आशंका उपजती है कि पाक पंजाब में पृथक राज्य खालिस्तान की मांग को फिर से उकसाने की क्रूर मंशा पाले हुए है। इसकी पृष्ठभूमि में अकाली सरकार की खालिस्तान समर्थकों की पैरवी करने वाली उदारता भी अहम् भूमिका निभा रही है। प्रकाश सिंह बादल सरकार,खालिस्तानियों पर राज्य की विभिन्न अदालतों में चल रहे मुकदमे वापस लेने में लगी है। यहां तक कि सरकार ने पंजाब में खालिस्तान का सफाया करने वाले मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे देविंदरपाल सिंह की फांसी को टालने का भी कानूनी उपाय करके जता दिया है कि खालिस्तान की समस्या अकालियों के लिए वोट बैंक के बरक्ष कोई मान्य नहीं रखती है। छोड़े गए यही वे आतंकी हैं,जो सीमा पार करके पाक अधिकृत कश्मीर में चल रहे खालिस्तानी प्रशिक्षण शिविर में प्रशिक्षण लेकर भारत लौटकर खूनी इबारतें लिखने में लगे हैं। दीनानगर मुठभेड़ में यदि कोई एक आतंकी भी जिंदा पकड़ लिया जाता तो इस तथ्य की तस्दीक संभव थी ? हमें यह याद रखने की जरूरत हैं कि मुबंई आतंकी हमले के हमलावर कसाब के जिंदा पकड़ने के बाद ही यह साक्ष्य मिले थे कि ये खूंखार हमलावर पाकिस्तान द्वारा पोषित व प्रशिक्षित आतंकवाद का पर्याय थे। दरअसल आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद या लशकर ऐ तयैबा नहीं चाहते कि किसी भी सूरत में उनके द्वारा प्रशिक्षित आतंकी  जीवित पकड़े जाएं,क्योंकि ऐसा होने पर पाक प्रायोजित IndoPakWarआतंक के प्रशिक्षित भुक्तभोगी से प्रमाणिक सुराग और बहुमूल्य सूचनाएं एक साथ मिल जाती हैं।

दरअसल 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध की पराजय के घाव पाकिस्तान के लिए आज भी नासूर बना हुआ है,क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदरा गांधी की दृढ इच्छाशक्ति और सफल कूटनीति का नतीजा था कि उन्होंने पाक के दो टुकड़े कर नए राष्ट्र बांग्लादेश को जन्म दे दिया था। भूगोल बदलने का यह दंश पाक को आज भी चुभ रहा है। इसीलिए जिया उल हक के समय से ही पाक सेना और वहां की गुप्तचर संस्था आईएसआई की यह मंशा बनी हुई है कि भारत में निरंतर अशांति,हिंसा और मारकाट के हालात बने रहें। इस नीति के विस्तार की उसकी क्रूरतम मंशा के चलते पंजाब 1980 से 1990 के बीच जारी उग्रवाद से रक्तरंजित रहा है। उग्रवाद के इस विषैले फन को कुचलने का काम 1991 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने किया। उन्होनें ही पहली बार कश्मीर और पंजाब में बढ़ते आतंक की नब्ज को टटोला और अंतरराष्ट्रीय ताकतों की परवाह किए बिना कहा कि ‘यह आतंकवाद पाक द्वारा प्रायोजित छाया-युद्ध है।‘ राव ने केवल हकीकत के खुलासे को ही अपने कत्र्तव्य की इतिश्री नहीं माना,बल्कि बिना किसी दबाव के पंजाब के तात्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और सेना को इस उग्रवाद से निपटने की खुली छूट दे दी। इसी साहस का परिणाम था कि पंजाब से उग्रवाद नेस्तानाबूद हुआ। इसके बाद पंजाब में अब जाकर बेखौफ आतंक सिर उठाते दिखा है। हालांकि दीनानगर की इस घटना के पहले 14 अक्टूबर 2007 को भी लुधियाना के सिनेमा घर में धमाका हुआ था,जिसमें 7 लोग मारे गए थे व 40 घायल हुए थे। यह दृढ़ता राव ने जब दिखाई थी,तब उनके पास लोकसभा में संपूर्ण बहुमत नहीं था। लेकिन यह समझ से परे है कि निर्णायक जनादेश वाली नरेंद्र मोदी सरकार की बढ़ते आतंकवाद को लेकर बोलती बंद क्यों है ? क्या यह मान लिया जाए कि गरजने वाले बादल कभी बरसते नहीं है ?

यह तय है कि मुंहतोड़ जबाव दिए बिना पाक बाज आने वाला नहीं है। नवाज शरीफ से बात करने का भी कोई सार्थक नतीजा सामने नहीं आना है,क्योंकि पाक सेना,आईएसआई और चरमपंथियों का वजूद ही भारत-विरोधी बुनियाद पर टिका है। दूसरे,पाक द्वारा परमाणु क्षमता हासिल कर लेना भी,उसके दंभ को बढ़ा रही है। इसके अलावा चीन और पाक के बीच जिस औद्योगिक ग्लियारे के निर्माण में चीन द्वारा 46 अरब डाॅलर का निवेष हो रहा है,उससे पाक सरकार,सेना,आईएसआई और आतंकवादियों के हौसले बुलंद हैं। क्योंकि इस पूंजी से ही पाक चीन से हथियार खरीद रहा है,जो आतंकियों के पास सेना के जरिए पहुंचाए जा रहे हैं। इसकी पुष्टि दीनानगर थाना परिसर में मारे गए आतंकियों के पास से मिले हथियारों से हुई है। इनके पास से चीन निर्मित हैंड ग्रेनेड और एके-47 राइफलें बरामद हुई हैं। जाहिर है,इस लड़ाई से पाक से निर्यात आतंक का चेहरा तो बेनकाब हुआ ही है,साथ ही मेड-इन चाइना अंकित हथियरों ने यह भी खुलासा कर दिया है कि भारत विरोधी इस लड़ाई में चीन भी अप्रत्यक्ष भागीदारी कर रहा है।

इस ताजा हमले से यह साफ है कि सेना और आईएसआई को शामिल किए बिना पाकिस्तान से बातचीत का कोई मैत्रीपूर्ण हल निकलने वाला नहीं है। इसके उलट पाक कश्मीर की सरहद पर लड़ रहे आतंकियों को यह संदेश देने में कामयाब रहा है कि उसने छाया युद्ध का विस्तार फिर से पंजाब की धरती पर कर लिया है,लिहाजा वे अपनी जगह डटे रहें। इस छद्म लड़ाई से पाक ने भारत सरकार और सेना का ध्यान कश्मीर से भटकाने का भी काम किया है,जिससे सैनिकों की कश्मीर सीमा पर एकमुश्त तैनाती बंट जाए और उसकी जबरन घुसपैठ की आतंकी गतिविधियां चलती रहें। जाहिर है,सीमा पर राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियां बढ़ गई हैं। लिहाजा भारत को पाक नीति अधिक स्पष्ट और पारदर्शी बनाने की जरूरत है। अन्यथा भारत को छद्म युद्ध के दीनानगर जैसे परिणाम आगे भी  भुगतने होंगे ?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,213 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress