विश्ववार्ता

दोराहे पर खड़ा एक मुल्क

हिमकर श्याम

पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में गम, दहशत और गुस्से का माहौल है. उन्हीं गोलियों ने उसके सीने को छलनी कर दिया है जिनका इस्तेमाल वह भारत के लिए करता रहा है. पेशावर में आतंकियों की क्रूरता का सबसे वीभत्स, वहशी और बर्बर चेहरा सामने था. गोलियों का खौफ़ और मासूमों की चीख़ अब भी यहाँ की फिजाओं में है. हर तरफ दहशत और आक्रोश का माहौल है. यह नृशंस घटना दर्शाती है कि पाकिस्तान की पूरी व्यवस्था कितनी चरमरा गई है. पाक हुकूमत के समक्ष आतंक के खिलाफ़ कठोर और निर्णायक फैसला लेने का समय है. अपनी गलतियाँ को सुधारने का मौका है.

पाकिस्तान तालिबानियों के बढ़ते दबदबे, उग्रवादी हिंसा और बीमार अर्थव्यवस्था से दोचार है. पाकिस्तान खुद को एक ऐसे मुल्क के तौर पर पेश करता रहा है जिसे तीन शक्तियाँ मज़हब, फौज ओर न्यायपालिका, चलाती हैं. यहाँ सिर्फ़ कहने भर को जम्हूरियत है. पाक सेना के सामने जम्हूरी सरकारें हमेशा भयभीत नजर आतीं हैं. पाक सेना, आइएसआई और जेहादी गुटों के गठजोड़ ने मुल्क को खतरनाक मोड़ पर ला खड़ा किया है. मुल्क दोराहे पर है. एक रास्ता उसे अमन-चैन और विकास की ओर ले जा सकता है और दूसरा खौफ़, जलालत और विनाश की ओर. यह उसे तय करना कि वह अपने बच्चों को कैसा मुल्क देना पसंद करेगा? एक ऐसा भयमुक्त वातावरण जहाँ मासूमों, निर्दोषों और बच्चों का कत्लेआम न हो, या फिर भय, आतंक और दहशत के साये में जीने को मजबूर समाज.

ख़बरों की माने तो तहरीके तालिबान पाकिस्तान लोकतान्त्रिक तरीके से चुनी गयी सरकार को अपदस्थ कर वहां कठोर इस्लामी कानून लागू करना चाहती है. इसी तालिबान को कभी अमेरिका ने अपने स्वार्थ के लिए खड़ा किया था और पाकिस्तान ने अपने निजी फायदे के लिए उसे फलने, फूलने और बढ़ने का मौका दिया. आतंकी संगठनों की ताकत अगर पाकिस्तान में बढ़ती गई है तो इसलिए कि वहां की राजसत्ता का वरदहस्त उनकी पीठ पर रहा है. पाकिस्तान हुकुमरानों ने तहरीक तालिबान ए पाकिस्तान और उत्तरी वजीरिस्तान में छुपे आतंकियों का फन कुचलने में जरूरत से ज्यादा देर कर दी और अब यह उसी के लिए घातक साबित हो रहा है.

आतंकवाद के खिलाफ़ पाकिस्तान का हमेशा से ही दोहरा रवैया रहा है. पाकिस्तान की गिनती दुनिया के खतरनाक देशों में होती है. कभी अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पाकिस्तान आतंकवाद का न सिर्फ पनाहगार बना हुआ है बल्कि वह इसे बढ़ावा भी दे रहा है. पाकिस्तान में रहकर आतंकवादी भारत और अफगानिस्तान में आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं. पाकिस्तान में दहशतगर्दों ने प्रशिक्षण शिविर खोल रखे हैं. जहाँ नौजवानों को जेहाद और मज़हब के नाम पर भड़काया जाता है. उनके भीतर इतना ज़हर भर दिया जाता है कि वह हर वक़्त मरने-मारने को तैयार रहते हैं. पाकिस्तान लश्कर-ए तैयबा, जैशे मोहम्मद जैसे संगठनों और हाफिज सईद, लखवी और दाऊद जैसे आतंकियों की सरपरस्ती करता है. सईद और लखवी पर 2008 में मुंबई पर हमले करवाने का आरोप है. यदि पाकिस्तान वास्तव में आतंकवाद को समाप्त करना चाहता है तो उसे बिना भेदभाव किए सभी आतंकी संगठनों को नेस्तनाबूद करना होगा. बेखौफ घूम रहे दहशतगर्दों को सबक सिखाना होगा, नहीं तो यही दहशतगर्द एक दिन उसकी तबाही के कारण बन सकते हैं.

दहशतगर्दी को जेहाद और मज़हब से चश्मे से देखना ठीक नहीं है. दहशतगर्दों का कोई मज़हब नहीं होता. दहशतगर्दी सिर्फ़ और सिर्फ़ दहशतगर्दी है. दिन, ईमान और इंसानियत से इनका कोई लेना-देना नहीं है. दहशतगर्द दुनिया में अस्थिरता फैलाना चाहते हैं. अपने सरपरस्तों के इशारे पर दहशतगर्दी फैलाना इनका मुख्य मकसद है. दहशतगर्दों ने पाकिस्तानी फौज से वजीरीस्तान और कबायली उत्तर-पूर्वी सीमान्त इलाकों में उसके द्वारा चलाई गई मुहिम का बदला लेने के लिये इस घटना को अंजाम दिया. गौरतलब है कि मारे गए सभी बच्चे मुसलमान हैं और उन्हीं अफसरान के हैं जो दहशतगर्दों के सरपरस्त रहे हैं. बच्चों को निशाना बनाने की वहशीयाना कार्रवाई ने पूरी दुनिया के साथ-साथ पाकिस्तानी आवाम और मीडिया को आक्रोशित कर दिया है. सभ्य समाज में इस तरह की की असंवेदनशीलता के लिए कोई जगह नहीं है. अगर सबकुछ ऐसे ही चलता रहा तो यह मुल्क, मुल्क कहलाने के लायक नहीं बचेगा.

आतंकवाद को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना किसी भी रूप में उचित नहीं. इसके चलते वह पहले भी कई बार जख्मी हो चुका है. पेशावर की घटना से उसे सबक लेने और यह समझने की जरूरत है कि जब दहशतगर्द निर्दोष एवं मासूम नागरिकों को बम और गोलियों से उड़ाते हैं तो दर्द कितना और कैसा होता है. समय से पहले जिन घरो के चिराग बुझ गये है शायद वो ताउम्र इस शोक से बाहर नहीं आ पाएंगे.  पेशावर के दुख में भारत भी दुखी है. रिश्ते भले ही कड़वे रहे हैं लेकिन जो कुछ हुआ उससे हर कोई सदमे में है. मन सबका आहत है. हो भी क्यों ना? दुःख तो सबका एक सा होता है. बच्चे तो बच्चे हैं. यहाँ के हों या वहाँ के. खून बच्चों का बहा, लहूलुहान इन्सानियत हुई. इंसानियत और अमन-चैन के लिए आतंकवाद का जड़ से खात्मा बेहद जरूरी है. सिर्फ़ आतंकवाद को नेस्तनाबूत करने के ऐलान से कुछ नहीं होगा. इसे अमल में भी लाना होगा. पाकिस्तान आवाम का सब्र टूटता दिखाई दे रहा है. वह आतंकवाद पर अब कोई निर्णायक फैसला चाहती है.

पाक सरकार अपने कुकृत्यों से बाज आएगी ऐसा लगता नहीं है. वह तहरीक-ए-तालिबान के खिलाफ तो कड़ा रुख अपनाए हुए है, मगर दूसरे कई संगठनों पर किसी तरह की कोई कार्रवाई करने से अब भी कतरा रही है. सईद पाक सरजमीं पर खुलेआम घूम रहा है और भारत के विरुद्ध आग उगल रहा है. पाकिस्तान की अदालत सबूतों के अभाव में लखवी को बरी कर देती है. हालाँकि जमानत मिलने के एक दिन बाद ही उसे अचानक वापस जेल क्यों भेज दिया गया. ऐसे फैसले से आतंकियों का हौसला बढ़ता है. सब जानते है कि लखवी जेल में बैठकर भी लश्कर का पूरा कामकाज संभालता रहा है. पाकिस्तान के पास दो विकल्प हैं. एक तो वहाँ जो कुछ भी हो रहा है उसे यूँही चलने दिया जाये और दूसरा, आतंकवाद से निपटने का संकल्प ले कर अपनी अस्थिरता, अशांति और बदहाली से बाहर निकलने की कोशिश की जाये. पाकिस्तान को एक मुल्क के रूप में अपने वजूद को नए सिरे से गढ़ने का प्रयास करना होगा, यदि ऐसा नहीं हुआ तो यह मुल्क विनाश की कगार पर पहुँच जायेगा. देखनेवाली बात होगी कि क्या वहाँ के सियासतदां मुल्क को किस रास्ते पर ले जाना पसंद करते हैं.