
आनंद जोनवार
यह दिन महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा, प्यार प्रकट करते हुए शैक्षणिक ,आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। पूरी दुनिया में महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की जाती है समाधान खोजे जाते हैं ,और संकल्प लिए जाते हैं।
आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। यह महिला जागरूकता और सशक्तीकरण का आयोजन है । जानकारी और जागरूकता महिलाओं और पुरुषों में भेदभाव मिटाने के सबसे बड़े हथियार है। इसकी शुरुआत 1857 में न्यूयॉर्क शहर की पोशाक बनाने वाले एक कारखाने की महिलाएं अपने समान अधिकारों ,काम करने की अवधि में कमी ,कार्य अवस्था में सुधार की मांग करते हुए ,जुलूस निकालकर सड़कों पर उतर आई थी । सन 1910 में महिलाओं की समस्यायों के समाधान हेतु बीजिंग में एक विश्व सभा बुलाई गई थी ।उसी दिन की स्मृति में प्रतिवर्ष 8 मार्च को महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा । इसका उद्देश्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना। शिक्षा पाकर लड़कियां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनेंगी तो आर्थिक आजादी के साथ ही समानता की भावना भी पनपेगी । महिलाओं में अधिकारो के प्रति जागरुकता जरूरी है। तभी वे अपनी सुरक्षा खुद कर पाएंगी , तब समाज पुलिस और कानून भी उनकी मदद करेगा।
आज महिलाओ को अधिकार और महत्व देने का दिन है। महिलाओं की सुरक्षा, कल्याण एवं सुरक्षित मातृत्व को लेकर अनेकों योजनाएं तैयार की जाती है । इस दिशा में कई संस्थाएं कार्यरत हैं ,परंतु सफलता तभी मिलेगी जब हर महिला अपने अधिकारो के प्रति सजग होकर पहला कदम खुद बढ़ाए।
भारत में महिलाओं से संबंधित अनेक मुद्दे जीवित है और अनेक पैदा हो रहे है । भारतीय महिलाओं की स्थिति पर ध्यान दे तो दो असंतुलित चित्र सामने आते है । एक तरफ महिलाएं अपनी मेधाशक्ति, मेहनत और दृढ़ संकल्प के बल पर धरातल से आसमान तक की ऊंचाइयों को छू कर अपनी प्रवीणता अर्जित कर रही हैं। तथा देश को गौरवान्वित कर देश की प्रतिष्ठा दुनिया में बढ़ा रही है ।यह एक गौरवान्वित चित्र है । दूसरा चित्र चिंतित और सोचने पर मजबूर कर देता है । जहां ना वह जन्म से पहले सुरक्षित है ,ना जन्म के बाद । आजकल महिलाओं के साथ अभद्रता हो रही है। रोज ही अखबारों और न्यूज़ चैनलों में पढ़ते हुए देखते हैं कि महिलाओं के साथ छेड़छाड़, सामूहिक बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं। ऐसी घटनाओं को सुनकर दिल और दिमाग दोनों कौंध जाते है, माथा शर्म से झुक जाता है, और दिल दर्द से भर जाता है ।महिलाएं पूरे देश में असुरक्षित है।
इसे नैतिक पतन कहा जा सकता है। शायद ही कोई दिन हो जब महिलाओं के साथ की गई अभद्रता पर समाचार ना हो। नारी के सम्मान और अस्मिता की रक्षा के लिए इस पर विचार करना बेहद जरूरी है, और रक्षा करना भी। कोल्हू के बेल की मानिंद घर परिवार में ही खटती रहती है और अपने अरमानों का गला घोट देती है। परिवार की खातिर अपना जीवन होम करने में भारतीय महिलाएं सबसे आगे हैं ।
मुंबई से दिल्ली पहुंची गरिमा यात्रा ने समाज का वो आईना प्रस्तुत किया ,जो किसी भी सभ्य समाज की शक्ल पर सवाल उठाने के लिए काफी है।उस पुरुषवादी मानसिकता को उतार फैंका जो शर्मिंदगी का वास्ता देकर चुप रहने को मजबूर करती रहीं। सदियों तक गुम रहीं वो आवाज हम सभी के घर आंगन में, पीढियों से खामोश रही वो आवाज कभी दब जाया करती थी बंद कमरों में अपने मुंह पल्लू का एक छोर दबाए ।आज गूंज रहीं है , दुनिया के हर कोने कोने में । जिंदगी के किसी ना किसी मोड़ पर यौन हिंसा की शिकार रही ,चौबींस राज्यों के दो सौ जिलों की पच्चीस हजार लडकियां दस हजार किलोमीटर की यात्रा तय कर दिल्ली पहुंची । तो इस गरिमा यात्रा ने पुरुषप्रधान समाज की पोल खोल दी।
इनमें सुरक्षा का भाव समाज की सोच और असभ्य लोगों में व्यवस्था के खौफ से होगा। नारी तुम स्वतंत्र हो काल के कपाल पर लिखा सुखमंत्र हो मन का अनुबंध हो प्रेम का प्रबंध हो जीवन को परिभाषित करता निबंध हो।
मां, बहन, बेटी, पत्नी, सखी, प्रेमिका , शिक्षिका हर रूप में करुणा, दया, सरंक्षण, परवाह, सादगी की अपार शक्ति है नारी , जिसने अंधेरों में सिमटी ना जाने कितनी जिंदगियों को योद्धा बनाया है। मेरी नजर से देखे तो मुझे आप में दिखाई देता है समर्पण , समर्पण प्यार का , समर्पण दुलार का , समर्पण सेवा का, इनके समर्पण भाव से सृष्टि भी तृप्त है। हम आभारी है, कर्जदार है, आपके समर्पण के, दुलार के, प्यार के ।आज नारी शक्ति का दिन है। स्वयं को पहचान और नमन कर आगे बढ़ती चलो, ठोकर मार उसे जो तेरा सम्मान ना करें। नागरिक , समाज और सिस्टम के तौर पर एक जिम्मेदारी हमारी बनती है कि इनके संघर्षपूर्ण जीवन को और कठिन न बनाए । समाज की नींव और जीवन का रूप नारी की प्रतिभा को सम्मान और सुरक्षा दे ।