उत्तर प्रदेश के जिला व क्षेत्र पंचायत चुनावों के नतीजों से भाजपा के
बड़े – बड़े दावों की हवा निकल गयी ।सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के लिये
भी नतीजे खुशी से गदगद होने वाले तो नही हैं ,लेकिन सपा मुखिया की
नसीहतों पर अगर संघठन से लेकर मंत्री तक अमल करते तो परिणाम बहुत बेहतर
होते ।सपा के लिये राहत भरी खबर ये है कि मेक इन इंडिया ,अच्छे दिन और
ग्रामीण भारत को सवांरने के दावों के बाद भी उसका प्रर्दशन भाजपा से
बेहतर है । हमेशा की तरह कांग्रेस इन चुनावों मे भी खाली हाथ रही ,वह
कहीं अपनी जमीन तलाशती भी नही दिखी ।यहां तक की पार्टी उपाध्यक्ष राहुल
बाबा के संसदीय क्षेत्र अमेठी और सेनिया गांधी के रायबरेली मे भी वह बुरी
तरह परास्त हो गयी ।जानकारों का कहना है कि कांग्रेस का प्रदर्शन
र्निदलीयों से भी फीका रहा है ।वहीं मोदी के गढ़ मे भाजपा औधें मुंह गिर
गयी ,प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वराणसी मे उसे बड़ा झटका लगा और 48
मे से मात्र 8 सीटों पर ही समर्थित प्रत्याशी फतह हासिल कर सके
।अलबत्ता बिना शोर शराबे के चुनाव मैदान मे उतरी बसपा के लिये परिणाम
कुछ सुकून भरे जरूर हैं ।बसपा के उम्मीदवार कई स्थानों पर बड़े अंतर से
जीते हें ,इससे जाहिर होता है कि प्रदेश के ग्रामीण इलाकों मे उसकी ताकत
पिछली पराजयों के बाद भी बनी हुयी है । मुलायम सिंह यादव के आदर्श गांव
तमौली वाले क्षेत्र से सपा की हार ने सब को चौका दिया तो पहली बार मे ही
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने उत्तर प्रदेश मे चार सीटें जीत
कर सभी सेक्यूलर दलों के लिये खतरे की घंटी बजा दी है । हालांकि पंचायत
चुनाव पार्टी के सिंबल पर नहीं लड़ा जाता लिहाजा हमेशा की तरह जीतने वाले
प्रत्याशियों की जीत का श्रेय लेने और हारे हुए प्रत्याशियों को खुद से
अलग करने में पार्टियां और उनके शीर्ष नेता वक्त नही लगायेंगें ।
सियासत में हवा का रुख बदलने बहुत देर नहीं लगती। तमाम अंतरविरोधों और
विपरीत हालात के बीच डेढ़ साल पहले देश भर में नरेंद्र मोदी का उदय भी
ऐसे ही हुआ था। उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में यूं तो सपा और भाजपा
ने बहुत जगह अपनी जीत के झंडे गाड़े हैं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
की ओर से विकसित किए जा रहे आदर्श गांव जयापुर मे भाजपा समर्थित
उम्मीदवारों की हार, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के आदर्श गांव में सपा
समर्थित उम्मीदवारों की हार ,रायबरेली और अमेठी मे कांग्रेस समर्थित
उम्मीदवारों की हार कहीं प्रदेश मे नये कोणों के अभ्युदय संकेत तो नहीं
है? यानी पंचायत चुनावों के नतीजे सभी प्रमुख दलों के लिये अल्टीमेटम
जैसे हैं ।सनद रहे कि साल 2007 और 2012 के विधान सभा चुनावों और पिछले
लोकसभा चुनाव मे किसी एक दल को एक तरफा वोट देने वाले प्रदेश के मतदाताओं
का मिजाज इस बार बदला हुआ लगा ।हालाकिं पंचायत सरकार के चुनाव एक दम अलग
हालातों मे लड़े जाते हैं लेकिन सभी राजनीतिक दल खुद इन चुनावों को विधान
सभा चुनावों का सेमिफाइनल मान कर चल रहे थे ।वैसे उनकी ये सोच पूरी तरह
से नकारी भी नही जा सकती क्यो किं प्रदेश की दो तिहाई आबादी का रूख भी
इन चुनावों से जाहिर होता है ।महज डेढ़ सरल पहले मोदी मैजिक के बूते
लोकसभा की 80 मे से 73 सीटें जीतने वाली भाजपा के इस करिश्मे के आसपास
भी नही पहुंच सकी ।यहां तक कि पीएम मोदी के ससंदीय क्षेत्र वाराणसी में
बीजेपी को करारी शिकस्त मिली है। यहां डीडीसी के 48 सीट पर बीजेपी के 47
उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था। इसमें सिर्फ 8 को जीत मिल सकी है। इससे
साफ है कि ग्रामीण क्षेत्रों मे मोदी की छवि धुंधलाने लगी है ।जब कि
वाराणसी संसदीय क्षेत्र में सेक्टर 5 के जयापुर गांव को प्रधानमंत्री
मोदी अपने सपनों का गांव बनाने में जुटे हैं। यहां इतनी एजेंसियां और
संस्थाएं काम कर रही हैं कि वाकई गांव की सूरत दिन ब दिन बदल रही है।
इसके बावजूद भाजपा समर्थित उम्मीदवार रिंकू सिंह को हराकर बसपा समर्थित
उम्मीदवार गुड्डू तिवारी ने अपनी जीत का झंंडा गाड़ दिया। जिस सेक्टर में
जयापुर गांव पड़ता है, वहां के आसपास के गांवों में ऐसा संकेत तो जाना ही
चाहिए था कि जहां प्रधानमंत्री ही जी-जान से विकास में लगे हों, वहां के
लोगों की किस्मत संवरते देर नहीं लगेगी, फिर भी भाजपा समर्थित उम्मीदवार
की हार ने भाजपाइयों के माथे पर पसीना ला दिया है। बचाव के कुछ जुमले गढ़
लेने के अलावा उनके पास सही जवाब का कोई चारा नहीं है ।भजपा ने विकास के
साथ- साथ मजहबी राजनीति को भी खूब हवा दी थी उसके बाद भी क्या पूरब यहां
तक की पश्चिम,मध्य और बुंदेलखण्ड तक मे वह अपनी कामयाबी के करीब लही
पहुंच सकी ।हरदोई मे भाजपा सांसद अंजुबाला की बहन दो स्थानों से लड़ी
लेकिन कामयाब नही हो सकीं ।वैसे भाजपा ने जिला पंचायत की कुल 3112 सीटों
मे से 512 पर जीत का दावा किया है, लेकिन ये सच होने के बाद भी ये नही
कहा जा सकता है कि वह अपनी उम्मीदों पर खरी उतरी है । अनुशासित कही जाने
वाली भाजपा मे आंतरिक असंतोष भी खतरे की घंटी है जो उसके मिशन 2017 के
लिये भी मुश्किलें पैदा कर सकतें हैं ।
उधर सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी को भी झटका लगा
है उसे अपने ही मैदान में बहुत जगह शिकस्त मिली है। प्रदेश के कई
मंत्रियों के बेटे-बेटी, बहूू और भाई चुनाव हार गए हैं।पार्टी की किरकिरी
कराने वाले दर्जा प्राप्त मंत्री और पैकफेड के चेयरमैन तोताराम यादव को
इतनी करारी हार मिली है कि समाजवादियों से सपने में भी ऐसा नहीं सोचा रहा
होगा। 23 उम्मीदवारों वाले इस चुनाव में तोताराम 20वें स्?थान पर रहे। यह
वही सख्श हैं, जिन्होंने जिला पंचायत का अपना चुनाव जीतने के लिए बूथ
कब्जा कराया था। मैनपुरी मुलायम सिंह यादव का गढ़ होने के कारण अखिलेश
सरकार को तोताराम के मसले पर बहुत जलालत झेलनी पड़ी है। ऐसे ही प्रदेश
सरकार के मंत्री एसपी यादव की पत्नी, बेटा और बहू अपने जिले बलरामपुर में
चुनाव हार गए। पीलीभीत से राज्यमंत्री हाजी रियाज अहमद के दो भाई, और
दामाद जिला पंचायत सदस्य का चुनाव हार गए हैं। वहीं राज्यमंत्री राजीव
कुमार सिंह के भतीजे भी चुनाव हार गए हैं ।इसके बावजूद सपा ने करीब 48
जिलों मे अपनी कामयाबी का परचम फहराया है ।गांधी नेहरू परिवार के गढ़ मे
मी मतदाताओं ने सपा को भाजपा पर तरजीह दी है ।अमेठी को केन्द्रीय मंत्री
स्मृति ईरानी ने अपनी कर्म भूमि बना रखी है लेकिन पंचायत के मतदाताओं पर
उनका प्रभाव नही दिखा ।सपा यहां 16 सीटें जीतने मे कामयरब हो गयी लेकिन
भाजपा के खाते मे केवल 4 सीटें ही आयीं ।इसी तरह रायबरेली और जालौन मे भी
सपा ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया है ।फतेहपुर ,गोरखपुर ,
इलाहाबाद,प्रतापगढ़ ,इटावा और मउू मे सपा की बल्ले –बल्ले रही ।गोरखपुर
जहां से भाजपा के फायर ब्रांड नेता आदित्यनाथ आते हैं वहां से कुल 73
सीटों मे से सपा को 34 और भाजपा को महज 18 सीटें ही मिल सकीं ।जबकि
मिरजापुर , मथुरा , मेरठ और बरेली मे भाजपा को बड़ी कामयाबी मिली ।
साल 2012 मे सूबे की सत्ता गंवाने के बाद
लोकसभा चुनावों मे भी करारी हार का सामना करने वाली बसपा को ग्रामीण
मतदाताओं ने अहम मुकाबले से पहले थोड़ा खुश होने का मौका दे दिया है ।
सबसे ज्यादा चौंकाने वाले नतीजे बसपा समर्थित उम्मीदवारों के रहे । मिसाल
के तौर पर सहारनपुर में 49 जिला पंचायत सीटों में से 25 पर बसपा के
प्रत्याशियों ने कब्जा जमाया। जबकि फैजाबाद में 41 में से 15, हाथरस में
25 में से 13, आगरा मे 51 मे से 20 और हापुड़ में 19 में से 7 सीटें
जीतकर बसपा ने कम से कम बीजेपी को तो कड़ी टक्कर दी है ।वैसे राजनीतिक
हलके मे असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की भी चर्चा हो रही है
।पंचायत चुनाव मे ओवैसी की एआईएमआईएम ने दो सीट बलरामपुर, एक आजमगढ़ और
एक मुजफ्फरनगर से जीत कर कुल चार सीट जरूर कब्जा लीं है लेकिन इसे बहुत
बड़ी कामयाबी नही माना जा सकता है और ना ही इसे यूपी मे ओवैसी का उभार ही
माना जा सकता है ।फिलहाल इसे सिमटी हुयी सफलता कहना ही बेहतर होगा ।लेकिन
सूबे की सत्ता को सचेत हो जाना चाहिये और ओवैसी जैसों को प्लेट फार्म
बनाने का मौका नही देना चाहिये।बहरहाल पंचायत चुनाव के नतीजों ने उत्तर
प्रदेश की भविष्य की सियासी तस्वीर को आईना दिखाया है ।उत्तर प्रदेश
की सत्ता के लिये बेताब भाजपा के लिये जहां कड़ा संदेश है कि वादों,
बड़े बोलों और मैनेजमेंट से हमेशा के लिये जनता के दिलों पर काबिज़ नही
हुआ जा सकता है ।तो वहीं सपा के लिये बसपा की बढ़त को रोकने की चुनौती है
।
** शाहिद नकवी **