आतंकवाद अब युद्ध का आतंक बन गया है, जो आतंकी हमलों से कहीं ज्यादा खतरनाक है। यदि आतंकी संगठनों के द्वारा तीसरी दुनिया के देशों पर हो रहे आतंकी हमलों की कड़ियां आपस में
जोड़ी जायें, तो यह बात बिल्कुल साफ नजर आने लगेगी कि युद्ध के आतंक को बढ़ाना ही इन
आतंकी संगठनों का मूल मकसद है, जिसका लाभ आतंकवाद विरोधी सैन्य अभियान में लगे
अमेरिकी साम्राज्य और यूरोपीय देशों को मिलता है, उनके सहयोगी उन देशों को मिलता है, जो
लोकतंत्र विरोधी हैं, जिन्होंने नकली लोकतंत्र की बहाली को राजनीतिक अस्थिरता फैलाने का
हंथियार बना लिया है, जिसमें आतंकवादी उनके सहयोगी हैं।
मतलब…? ‘आतंकवाद’ और ‘आतंकवाद विरोधी सैन्य अभियान’ एक-दूसरे का हाथ बंटाते हुए बढ़ रहे
हैं। एक ही सेना के उन टुकड़ियों की तरह काम कर रहे हैं, जिनके बीच अच्छा तालमेल है, और
जिन्हें एक ही मुख्यालय से आदेश मिलता है। जिनकी कोशिश तीसरी दुनिया के किसी भी देश
पर हमला करने के लिये अधिकार प्राप्त करना है। अमेरिकी सरकार यह चाहती है कि जहां भी
आतंकवाद हो, वहां उसे हमला करने का अधिकार हो। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने
देश के विधि निर्माताओं से मांग की है, कि दुनिया के किसी भी कोने में ‘इस्लामिक स्टेट’ के
खिलाफ सख्त कार्यवाही करने का व्यापक अधिकार व्हाइट हाउस के पास हो। वो इसे अपनी
मंजूरी दे, जो वर्तमान में इराक और सीरिया तक सीमित है। यह मांग अपने आप में अमेरिकी
सैन्य अभियान को वैश्विक विस्तार देने की योजना है। अघोषित रूप से इस बात को मान्यता
देने की पेशकश है, कि अमेरिकी कांग्रेस दुनिया की सबसे बड़ी संसद है। जिसके पास किसी भी
देश की सरकार और उसकी वैधानिक संरचना से बड़ी ताकत है। वह एक ऐसी सर्वोच्च वैधानिक
इकाई है, जिसके लिये राष्ट्रसंघ की स्वीकृति भी जरूरी नहीं।
बाजारवाद और आतंकवाद ने वैश्विक स्तर पर दुनिया की आम जनता को अमेरिका विरोधी बना
दिया है। जिसे बराक ओबामा दुनिया पर अपनी दावेदारी मान कर चल रहे हैं। विश्व पर
एकाधिकार किसी भी देश की सरकार का वैधानिक अधिकार नहीं हो सकता। यह अधिकार किसी
भी देश की सरकार के पास नहीं है, कि वह विश्व जनमत और विश्व समुदाय के आज और आने
वाले कल का निर्धारण करे। उसे अपने हितों से इस तरह जोड़ दे, कि जनहित और अपने से
असहमत देश के हितों का ख्याल ही न रह जाये। अमेरिकी सरकार ने बाजारवाद और आतंकवाद
को उस मुकाम पर पहुंचा दिया है, कि सरकारें आम जनता विरोधी हो गई हैं। इस तरह जिन
देशों की सरकारों के पक्ष में अमेरिका है, वहां सरकारें जन विरोधी हैं और जिन देशों की सरकारें
अपने देश की आम जनता के पक्ष में हैं, उन्हें अमेरिकी विरोध, आतंकी हमले और युद्ध के आतंक
को झेलना पड़ रहा है।
वैश्विक वित्तीय ताकतें विश्व बाजार को नियंत्रित करने के लिये तीसरी दुनिया के देशों में
राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बना रही हैं और आतंकवादी संगठनों को खुला सहयोग दे रही
हैं। इस बात के सैंकड़ों प्रमाण हैं, कि अमेरिकी सरकार, पश्चिमी देश और खाड़ी देशों की
प्रतिक्रियावादी सरकारें आतंकी संगठनों को आर्थिक एवं कूटनीतिक सहयोग दे रही हैं। सूचना एवं
हथियारों से आतंकी संगठनों को मजबूत कर रही हैं। जिस इस्लामिक स्टेट के खिलाफ बराक
ओबामा हमले का असीम अधिकार पाना चाहते हैं, वह इस्लामिक स्टेट खुद अमेरिकी हथियारों से
लड़ रहा है और अमेरिकी हितों से संचालित हो रहा है। अल कायदा, उससे जुड़े आतंकी संगठन
और बोको-हरम की स्थिति भी यही है। आतंकवाद को साम्राज्यवादी ताकतों ने वैश्विक खतरे में
बदल दिया है। उसे शांति एवं स्थिरता के विरूद्ध खड़ा कर दिया है। मानव समाज के विकास की
ऐतिहासिक दिशा को नियंत्रित करने का जरिया बना लिया है। उनका मकसद आतंकवाद को
वैश्विक खतरा बना कर, उसके खिलाफ सैन्य कार्यवाही का अभियान चला कर, वैश्विक वर्चस्व
हासिल करना है। उन्होंने आतंकवाद और युद्ध के आतंक को लातिनी अमेरिकी देशों की ‘विकास
के जरिये समाजवाद’ की वैचारिक चुनौती और ‘बहुध्रुवी विश्व’ की अवधारणाओं के खिलाफ खड़ा
कर दिया है। उनका मकसद चीन की आर्थिक बढ़त और रूस के द्वारा वैश्विक सुरक्षा के लिये
सामरिक संतुलन की नीति को बदलना है, ताकि एकध्रुवी अमेरिकी विश्व की अवधरणा को खुली
छूट मिल सके।
लीबिया वह पहला देश है, जहां कर्नल गद्दाफी का तख्तापलट कर, टीएनसी विद्रोहियों की अंतरिम
सरकार बनायी गयी, उन हथियारबद्ध मिलिसियायी गुटों को शामिल किया गया, जो गद्दाफी
विरोधी और अमेरिकी समर्थक थे। अंतरिम सरकार में अल कायदा और उससे जुड़े आतंकी गुटों
की बड़ी भूमिका थी। जिसका जन्म ही अमेरिकी सहयोग से अफगानिस्तान की समाजवादी क्रांति
के खिलाफ सीमांत क्षेत्रों के कबिलाई समाज में हुआ। जिसने अफगानिस्तान ही नहीं, इराक में भी
बहुराष्ट्रीय सेनाओं के हमले की पृष्ठभूमि बनायी और लीबिया में कर्नल गद्दाफी के खिलाफ खड़े
किये गये विद्रोह में बड़ी भूमिका का निर्वाह किया। जो काम अफगानिस्तान, इराक और लीबिया में
अल कायदा तथा उससे जुड़े आतंकी संगठनों ने किया, वही काम ‘इस्लामिक स्टेट’ इराक और
सीरिया में कर रहा है।
वैश्विक वित्तीय ताकतों के आर्थिक हमलों ने लातिनी अमेरिकी देशों के विकास के जरिये समाज
की सोच को नई जमीन दे दी है। महाद्वीपीय एकजुटता ने वैश्विक एकजुटता की अनिवार्यता को
बढ़ा दिया है। ‘अमेरिकी वैश्वीकरण’ के साथ बढ़ता ‘आतंकी वैश्वीकरण’ नये वैश्विक संघर्ष की
अनिवर्यताओं को बढ़ा रहा है। यदि लातिनी अमेरिकी देशों में दक्षिण पंथी प्रतिक्रियावादी ताकतों
के जरिये राजनीतिक अस्थिरता पैदा की जा रही है, तो एशिया और अफ्रीका में आतंकी हमलों का
विस्तार हो रहा है। इस बात को समझने की सख्त जरूरत है, कि आतंकी संगठनों का ध्रुवीकरण,
अमेरिकी वैश्वीकरण और तीसरी दुनिया के देशों में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने की अमेरिकी
नीतियों से अलग नहीं है।
Author:- Ankur Vijayvargiya