‘सतसईया’ का दोहा हो या, ‘पदमावत’चौपाई हो ?
या बच्चन की ‘मधुशाला’की,सबसे श्रेष्ठ रुबाई हो ?
केश-कज्जली ,छवि कुन्दन सी,
चन्दन जैसी गंध लिये |
देवलोक से पोर-पोर में,
भर लाई क्या छंद प्रिये |
चातक चक्षु,चन्द्रमुख चंचल,चन्दनवन से आई हो ?
या बच्चन की ‘मधुशाला’की,सबसे श्रेष्ठ रुबाई हो ?
रक्त – कपोल , नासिका तीखी,
अधर पगे, मधु प्याले से |
क्षण-क्षण मुस्कानों से पूरित-,
मृग-नयना , मतवाले से |
मदमाती,मदमस्त,मुखर सी,मस्त-मस्त अंगडाई हो ?
या बच्चन की ‘मधुशाला’की, सबसे श्रेष्ठ रुबाई हो ?
देह-कलश से बरस रही है,
यौवन की रसधार प्रिये |
पुष्प – लता सी स्वर्ण-देह में,
घुंघरू सी झनकार प्रिये |
मलयागिरि से चली मस्त हो, मंद वही पुरवाई हो ?
या बच्चन की ‘मधुशाला’की ,सबसे श्रेष्ठ रुबाई हो ?
प्रिय सुमुखि क्यों आई हो ?,
धरती पर नव-छन्द लिए |
महक रहा जो मधुर गंध से,
अमृत-घट निज संग लिए |
सप्त-लोक के सप्त-सुरों की , सतरंगी – शहनाई हो ?
या बच्चन की ‘मधुशाला’की ,सबसे श्रेष्ठ रुबाई हो ?
श्रृंगार रस की एक उत्कृष्ट रचना. अति सुन्दर.
अति सुन्दर नहीं सुन्दरतम -बधाई
उत्साह वर्द्धन के लिए आपको शतश: आभार