संदर्भ: मणिपुर शांति समझौता।
प्रमोद भार्गव
फरवरी 2023 में मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच दंगों की शुरुआत हुई थी। अब जाकर यहां स्थायी शांति की दिशा में केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से कुकी समुदायों के संगठनों के बीच समझौते पर सहमति बन पाई है। कुकी नेशनल ऑर्गेनाइजेशन (केएनओ) और यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (यूपीएफ) ने एक साल के लिए सभी ऑपरेशन निलंबित करने का फैसला लिया है। कुकी-जो परिषद ने राष्ट्रीय राजमार्ग-2 को खोलने का निर्णय किया है, जिससे हिंसा के बाद पहली बार मुफ्त आवाजाही शुरू हो। इन उपायों से राज्य में शांति की उम्मीद जगी है। इससे पहले मणिपुर में जारी खूनी संघर्ष के चलते संबंधित पक्ष अपनी शर्तों को मनवाने के लिए अडिग थे। इस कारण समझौते का रास्ता नहीं खुल रहा था। अब कुकी-जो के दोनों प्रमुख संगठनों और केंद्र व राज्य सरकार के बीच समझौते पर हस्ताक्षर हो गए हैं। बावजूद यह कहना मुश्किल है कि स्थायी शांति बनी रहेगी ?
कुकी गुटों ने मुख्य रूप से मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता बरकरार रखने पर सहमति जताई है, जो मैतेई समुदाय की प्रमुख मांग थी। वरना इसके पहले कुकी संगठन अलग पहाड़ी राज्य बनाने की मांग कर रहे थे। यह चुनौती बड़ी थी, जिसे सरकार द्वारा स्वीकारना कठिन था। इसीलिए अब उम्मीद की जा रही है कि टकराव और हिंसक संघर्ष की स्थिति समाप्त होगी और यह समझौता स्थायी सामाधान होगा। हालांकि इस समझौते के सामानांतर मणिपुर की नगाओं की संस्था ने मुक्त आवागमन के साथ भारत-म्यामां सीमा पर बाड़बंदी करने का विरोध करते हुए कारोबारी प्रतिबंध की घोषणा कर दी है। इस वक्तव्य के बाद कुकी-जो परिषद ने कहा है कि समझौते को मैतेई बस्तियों और कुकी-जो के क्षेत्रों के बीच के बफरजोन में किसी तरह की आवाजाही के रूप में नहीं समझा जाए। अब लोगों की सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित करना सरकार का काम है। इससे स्थायी शांति की आशंका बनी हुई है।
संभावना बन रही है कि 13 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मिजोरम पहुंच रहे हैं। उम्मीद है कि उसके एक दिन पहले मोदी मणिपुर जा सकते हैं। सूत्रों से मिल रही जानकारियों के अनुसार प्रधानमंत्री के लिए मैतेई बहुल इंफाल के साथ-साथ कुकी बहुल चुड़चांदपुर में भी आगमन की तैयारियां शुरू हो गई हैं। प्रधानमंत्री दोनों समुदायों को साधने की कोशिश करेंगे। मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद यह पहला दौरा होगा। विपक्ष प्रधानमंत्री के मणिपुर नहीं जाने पर तल्ख टिप्पणी करके लगातार निशाना साध रहा था। 13 फरवरी 2025 को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था। उसके बाद से लगातार गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ केएनओ और यूपीएफ के प्रतिनिधियों से गंभीर बातचीत चल रही थी। इसी बातचीत के फलतः यह सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन्स (एसओएस) त्रिपक्षीय समझौता संभव हुआ है। यह समझौता एक साल के लिए लागू रहेगा। याद रहे कि कुकी गुटों के साथ 2008 में ही एसओएस पर समझौता हुआ था, जिसे हर साल बढ़ाया जा रहा था। लेकिन हिंसा के चलते 2024 में इसे बढ़ाया नहीं गया था और अब नई शर्तों के साथ एसओएस पर समझौता हुआ है। समझौते में मणिपुर की अखंडता बनाए रखने के साथ ही स्थायी शांती और स्थिरता लाने के लिए वार्तालाप के माध्यम से सामाधान निकालने की जरूरत पर बल दिया गया है। इसके तहत मैतेई समुदाय की प्रमुख आपत्तियों के सामाधान भी तलाशे हैं। इसके तहत कुकी गुटों को अपने शिविर ऐसे स्थलों से हटाने होंगे, जो मैतेई समुदाय से सटे हुए हैं। दरअसल मैतेई समुदाय आरोप लगाता रहा है कि कुकी अपने शिविरों से मैतेईयों पर हमले करते रहते हैं। इन गुटों को यह भी सत्यापित करना होगा कि उनके गुटों में कोई विदेशी नागरिक तो शामिल नहीं है। इन गुटों के पास जो भी मारक हथियार हैं, उन्हें बीएसएफ और सीआरआरपीएफ के नजदीकी शिविरों में जमा करना होगा। जिससे हिंसक मुठभेड़ की आशंका पर विराम लग सके। इन शर्तों पर कठोरता से पालन के लिए संयुक्त निगरानी समिति बनाई जाएगी।
फरवरी 2023 में राज्य सरकार ने पहाड़ी और जंगली क्षेत्रों से अवैध प्रवासियों को बाहर करने की शुरूआत की थी। इन क्षेत्रों की नगा और कुकी समुदाय की 34 जातियां, जनजाति की श्रेणी में अधिसूचित हैं। अतएव इनके लिए चिन्हित भूभाग पर किसी गैर-जनजातीय समुदाय के लोग काबिज नहीं हो सकते हैं। विडंबना यह रही कि जिन लोगों को प्रवासी बताकर विस्थापन का सिलसिला शुरू हुआ तो उन्हें इस इलाके के मूल निवासी कुकी समुदाय ने अपना बताया। किंतु सरकार ने इस तथ्य पर ध्यान न देते हुए कूकियों की बेदखली का सिलसिला तो बनाए ही रखा, साथ ही मैतेई समुदाय को जब जनजाति का दर्जा मिल गया, तब उन्हें बलपूर्वक नगा और कूकी समुदाय के लोगों को आरक्षित भूखंडों पर भी काबिज होने से नहीं रोका। विवाद की असली जड़ यही विरोधाभास रहा था। इससे उपजे संघर्ष में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच इतनी गहरी दुर्भावना पैदा हो गई थी कि बीते सवा-दो-ढाई साल से इस समस्या का हल नहीं निकल रहा था। यह जातीय हिंसा इस हद तक भड़की कि अनेक निर्दोष महिलाओं पर बर्बर अत्याचार के साथ जघन्य बालात्कार के मामले भी सामने आते रहे हैं। करीब 250 लोग इस हिंसा में अपने प्राण गवां चुके हैं। मैतेई समुदाय इस इलाके में शैक्षिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से सक्षम वर्ग है। संख्याबल में भी वे अधिक हैं। ज्यादातर मैतेई हिंदू होने के साथ वैष्णव संप्रदाय से जुड़े हैं। इनमें से कुछ मतांतरित मुसलमान भी हैं। जबकि नगा और कूकियों में से 90 फीसदी धर्मांतरित ईसाई हैं। इस लिहाज से यह विवाद आसानी से धार्मिक रंग में बदलकर हिंसक हो गया था। इसे धार्मिक रंग देने में ड्रग माफिया ने भी आग में घी डालने का काम किया। समूचे पूर्वोत्तर भारत में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्यात नशे का कारोबार खूब फल-फूल रहा है। यहां प्रत्येक माह हेरोइन बड़ी मात्रा में पकड़ी जाती है। बड़ी मात्रा में यहां अफीम की खेती भी खूब होती है।
पूर्वोत्तर में अलगाव एवं हिंसा कम हुई है। एक बड़े भूभाग में प्रगति व विकास का वातावरण बना है।लोग इसी मानसिक दृष्टि से आगे बढ़ रहे हैं।अलग-अलग जनजातीय समुदाय के लोगों के बीच सौहार्द्र का माहौल बना रहे हैं।इस दृष्टि से लंबे समय से चल रहे प्रयासों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका भी समझौते की पृष्ठभूमि में रही है। संवाद स्थापित करके जो समझौता अब किया गया है, वह जातीय हिंसा भड़कने के तत्काल बाद किया जाता तो न केवल मणिपुर बल्कि समूचे पूर्वोत्तर भारत के लिए कहीं अधिक शुभ रहता।
प्रमोद भार्गव