विविधा

पेट्रोल की बात पर बेबात उछलते लोग

अनिल त्यागी

खाद्य वस्तुओं की मंहगाई की मारा-मारी में पेट्रोल की कीमत बढ गई। आम लोगों को कोई नुकसान फायदा हो न हो विपक्षी दलों के प्रवक्ताओं को अपने चेहरे चमकाने का मौका सरकार ने दे ही दिया, सरकार सिर्फ कीमतें बढाती है तो क्यों उसके कारण जनता को समझाने का कोशिश नहीं करती। या फिर सरकार में इतना दम नहीं है कि जनता का सामना कर सके। उस पर भी पेट्रोल कम्पनीयों का यह तुर्रा की अभी कीमतें कम बढी है।

मेरी विनम्र राय है कि पेट्रोल की कीमतें जितनी बढानी है एक बार बढा ले, रोज रोज की हाय तौबा से तो छुटकारा मिलेगा। बस एक बात समझ से परे है कि जब पेट्रोल के दाम अन्तराष्‍ट्रीय बाजार से जोडे गये है तो उस पर टैक्स हिन्दुस्तान के क्यों लगाये जाते है। इससे टैक्स भी खत्म कर देने चाहिये उम्मीद है कि तब पेट्रोल वर्तमान से काफी कम कीमत पर उपलब्ध होगा।

एक अजीब बात है कि सारे के सारे नेता और मीडिया वाले इसे मंहगाई और गरीबों पर मार करने वाले कारक के रूप मे प्रचारित कर रहे हैं। जब कि पेट्रोल आज भारतवर्ष में मंहगाई या गरीबों पर कहीं भी फर्क डालने की औकात में नहीं है। जितने भी जन यातायात के साधन है चाहे वो रेल हो या बस इन सबमे पेट्रोल का इस्तेमाल तो अतीत की बात है। जब सफर करने का साधन रेल बिजली से चलती हो, बसों में पेट्रोल का उपयोग शून्य हो गया हो, माल ढोनेवाले ट्रको मे पेट्रोल टेंक की जगह डीजल ने ले ली हो, तो कैसे ये गरीब आदमियों और आम जनता के खिलाफ जायेगा? कोई तर्क मेरी समझ में तो आता नहीं।

आज पेट्रोल का उपयोग मंहगी कारों में और अधिकांश दुपहिया बाहनों में ही होता है देश के मीडिया महारथी और विपक्षी दल जरा यह तो बताये की इनमें से कौन सा माध्यम देश के गरीब और गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोगा करते है। और जो थोडा बहुत परिष्‍कृत पेट्रोल हवाई जहाजों में इस्तेमाल होता है उससे आम आदमी का क्या लेना देना।

दुपहिया वाहनों का भारत जैसे देश में उपयोग कम दुरूपयोग अधिक होता है। ऐसा करने वाले हैं मध्यम वर्ग के बाबू, नवयुवक और मध्यमवर्गीय किसान। पता नहीं उन्हे समय का कैसा उपयोग करना है कि जल्दबाजी की मारामारी में हैं, बाबू या बडे बाबू मझौले दुकानदार हो कोई और दफतर या अपने काम से निपटने के बाद अपने वाहन से आधे घण्टे में घर पहुंच कर चाय पीते हुए टी.वी. के सामने जम जाते है पता नहीं जल्दी घर आकर वे कौन सा देश हित कर रहे है अगर पैदल या सार्वजनिक वाहन से घर पहुंचने मे थोडी देर लग जाये तो पता नहीं कौन सा पहाड टूट जायेगा पर चलना है तो अपने वाहन से चाहे फिर सेहत के लिये दो घण्टे रामदेव के नुस्खे आजमाने पडे और पेट से बदबूदार हवा खारिज करने के लिये अलाये बलाये का सहारा लेना पडे। मेरी समझ से तो ऐसे लोगो के लिये पेट्रोल के बढे रेट के साथ सडको के नये स्टैण्डर्ड के अनुसार बहुत सारे टैक्स लेने चाहिये।

प्रधानमंत्री नरसिंहाराव से पहले देश में दुपहिया वाहनों का नम्बर इंतजार के बाद आता है स्कूटर मोटरसाइकिल ब्लैक में मिलती थी, सरकार कम्पनीयों को जितना अनुमति देती थी उतने ही वाहन बाजार में आते थे लेकिन उदारवादी सोच ने ओटोमोबाइल कम्पनियों को उत्पादन की छूट क्या दी और फिर बैंको ने लोन देने की होड लगाई तो आज एक परिवार में तीन-चार दुपहिया वाहन होना आम बात है। साहब तो साहब ही है उनके लाटसाहब भी स्कूल से लेकर टयूशन तक मोटरसाईकिल पर ही जायेगे और फिर बिटिया ही क्यों तरसे उसके लिये भी तो कम्पनीयो ने स्कूटी बनाई ही है। जिस स्कूटर मोटर साई किल को लोग पहले छूने की हसरत रखते थे आज कम्पनीया उसके प्रचार के लिये सडको पर फड लगाये खडी रहती है और पास ही बैठे रहते है एक अदद फाइनेंस कम्पनी के कर्मचारी आप राशन कार्ड और पे स्लिम दीजिये और दुपहिया वाहन ऐसे ले आइये जैसे साग पकाने के लिये हंडिया खरीद लाये हो।फिर पेट भर कर पेट्रोल की बढती कीमतो को गालियां दीजिये। यह है भारत के उत्पादन वृध्दि का अर्थशास्त्र।

देश के युवाओं को आज गांधी का दर्शन समझाने वाला कोई गांधी या महात्मा नजर नहीं आता। दक्षिण अफ्रीका में गाधीजी के टालस्टाय आश्रम से निकटवर्ती शहर दस बारह मील था वहॉ एक नियम बनाया गया था जो आश्रम का सदस्य आश्रम के काम से शहर जाता था उसे रेल का किराया दिया जाता था और जिन्हें शहर केवल घूमने फिरने के लिये जाना होता था उन्हे पैदल ही जाना पडता था। ऐसा ही कोई कानून इन दुपहिया वाहन घारको के लिये भी बन जाये तो पेट्रोल जैसी बदबूदार चीज के लिये देश का खरबों डालर तो बचेगा ही सडको के निर्माण पर भी बडा खर्च बच जायेगा। सरकार जिस इन्फ्रास्ट्रैक्चर को बडे शहरों में विकसित कर रही है यदि छोटे शहरों में विकसित कर दे तो देश का धन देश और देशवासियो के ही काम आयेगा। अगर गॉवों के पास बेहतर शिक्षा के साधन हो तो कोई बालक भला घर से दूर क्यों जायेगा। गांव में बिजली पानी उपलब्ध हो तो क्यों कोई परिवार गॉव छोडकर शहर में बसने जायेगा।

दुपहिया वाहनों का इस्तेमाल यानि पेट्रोल का इस्तेमाल मजबूरी भी है। बस हो या ट्रेन किसी कि गारटी नहीं की समय पर मिल ही जाये ऐसे में अपने काम पर समय से पहुचने के लिये वाहन पर खर्च करना मजबूरी है अगर सार्वजनिक यातायात के साधन की गारटी हो तो शायद ही कोई अपना खर्च बढाये। दिल्ली में मैट्रों की सफलता उदाहरण के रूप मे देखी जा सकती है।

एक खबर यह भी आई कि सीटू पेट्रोल की बढी कीमतों के खिलाफ आन्दोलन करेगी, इसे कहते है राजनैतिक अवसरवाद बगाल में चुनाव की चर्चा है तो सीटू का बयान आया वरना पूरे देश की ट्रेड यूनियनें फाइस्टार कामरेडों की बपौती बन चुकी है जो चन्दा तो मजदूरो से लेते है और संघर्ष किसी के लिये नहीं करते। सीटू हो या इटक बी एम एस हो या कोई और यूनियन इन्हे गंभीर चिंतन करना चाहिये। अभी तो पेट्रोल के दाम बढे है आने वाले दिनों में डीजल, रसोई गैस और कैरोसीन के मूल्य वृद्धि की आशंका है मजदूर यूनियनों, बैंक के कामरेडो नौजवान छात्रों और आम लोगों को अभी से ऐसा सशक्त वातारवरण बना देना चाहिये कि सरकार चाहे जिसकी हो कोई भी उदारवादी या परम्परावादी जन साधारण के इस्तेमाल आने वाली चीजो के दाम बढाने की हिम्मत न कर सके जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक सरकार और सरकारी कम्पनीयां मनमाने भाव बढाती रहेगी हम और आप तो सिर्फ पानी पी-पी कर सरकार को गालिया देती रहेगें पर कहावत है कि कौवे के श्रापे डांगर नहीं मरते।