तस्वीर

0
130

मेरे जीवन में
जब तक माँ मेरे साथ थी
मैं कभी भी
उस तरह से उसे नहीं देख सका
जिस तरह से
मुझे जन्म देकर उसने देखा था

ना ही कभी
सुन सका मैं उसकी तरह
क्योंकि वह
हृदय से श्रवण करती थी
और मैं
श्रुतिपटों से सुनता था

अब रोज़
नौकरानी आती है करने वो काम
जिन कार्यों को
घर में माँ किया करती थी
मूढ़मति था मैं
माँ को घर की रानी समझता था

मेरे जीवन से
जा चुकी है माँ बहुत दूर
इतनी दूर
जहां से लौट कर कोई नहीं आता
फिर भी पुकारता हूँ
जैसे बचपन में पुकारा करता था

दीवार पर टंगी
तस्वीर में ही अब दिखती है माँ
बहुत रुलाती है
जब याद बनकर आती है माँ
ढूँढ़ता हूँ गोद वो
जिसमें सुकून से मैं सोया करता था

आलोक कौशिक

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress